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फफोले (लघुकथा-संग्रह) / मधुकांत

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लघुकथा-संग्रह  : फफोले   कथाकार  : मधुकांत  ISBN: 978-93-93219-58-9 मूल्य : दो सौ पचास रुपये संस्करण: 2024 सर्वाधिकार : लेखक प्रकाशक : राइज़िंग स्टार्स 600/5-ए, आदर्श मोहल्ला, गली नं० 15 मौजपुर, दिल्ली-110053  चलभाष: 9891985727 आवरण: मोनिका सिंह अंदर बाहर के फफोले संवेदनशील त्वचा पर जब प्रतिकूल आघात होता है तो वह फफोलों के रूप में समाज के सामने अपने दर्द का प्रदर्शन करती है। किसी फफोले को चाहे मरहम लगाकर सहला न सको परंतु कभी भी उन पर हँसना या व्यंग नहीं करना चाहिए। इंसान के तन-मन पर कितने फफोले बने हैं, सदैव उन्होंने उसके अनुभव में वृद्धि ही की है। गरम दर्द से उपजे तन-मन के अंतरमन में छुपे आहत करते फफोले सदैव पीड़ा देते हैं। फफोलों के अंदर कुलबुलाता विष निरंतर पकता रहता है। रिश-रिश जब वह मवाद के रूप में बाहर निकलता है तो अंदर बाहर सब कुछ नम कर देता है और शेष छोड़ जाता है रिसते हुए घाव....। कालांतर में जब कभी कोई मरहम बनकर उसका उपचार करता है तब वह उसे एक खुरंड में बदल देता है। खुरंड की राख में कहीं दफन रहता है इस फफोलों का दंश। संयोगवश खुरंड को कोई सहलाए या उसकी ...