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लघुकथा विशेषांक 2020/रीटा खडयाल (सं.)

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लघुकथा  विशेषांक : हमारा साहित्य 2019-2020 (लघुकथा विशेषांक-2) संपादक (कार्यकारी) : रीटा खडयाल प्रथम संस्करण : 2020 आई.एस.बी.एन. : नहीं प्रकाशक : सेक्रेटरी, जे. एंड के. अकैडमी ऑफ आर्ट, कल्चर एंड लैंग्वेजिज, केनाल रोड, जम्मू-180001 फोन : +91-191-2542640/2577643/2579576 अनुक्रमणिका :  यशपाल निर्मल की लघुकथाएँ  बाप की सीट  गर्व  सच्चा प्यार  अजनबी  मोह माया  कीर्ति श्रीवास्तव की लघुकथाएँ  माया  बदलता रवैया  श्रद्धा सुमन  बैरी केवट  खानाबदोश  अश्वनी कुमार आलोक की लघुकथाएँ गुमशुदा  एतद्धि रामायणम्  मधुमेह  प्रेम न बाड़ी उपजै  आपद्धर्म  केशव मोहन पांडेय की लघुकथाएँ क्षमा  खिलौना  मुक्ति  प्यार  अनफ्रेंड डॉ. मनोज तिवारी की लघुकथाएँ टिशू पेपर  काला चेहरा  बोझ  प्रयास  काश  शशि पाधा की लघुकथाएँ मोहर  गुथली  परतें  तबादला  डॉ. शिवम तिवारी की लघुकथाएँ वृद्धाश्रम का दुःख  हम सब मात्र निमित्त हैं  राष्ट्रप्रेम  सच्ची दोस्ती  सच्चा मानवधर्म  संतोष सुपेकर की लघुकथाएँ सोलहवें दिन  तीसरा पत्थर समूह  कर्ता के मन और...  खुशबूदार जवाब  महंगाई की तरह  प्रेरणा गुप्ता की लघुकथाएँ पुरुषों का संसार  मृगतृष्णा

लघुकथा आलोचना 2018/ डॉ. जितेन्द्र ‘जीतू’

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लघुकथा संग्रह : समकालीन लघुकथा का सौंदर्यशास्त्र एवं समाजशास्त्रीय सौंदर्यबोध लेखक / आलोचक : डॉ. जितेन्द्र ‘जीतू’ प्रथम संस्करण : 2018 आई.एस.बी.एन. : 978-93-86436-39-9 प्रकाशक : वनिका पब्लिकेशन्स, रजि. कार्यालय- एन ए-168, गली नं.6, विष्णु गार्डन, नई दिल्ली-110018/मृख्य कार्यालय- सरल कुटीर, आर्य नगर, नई बस्ती, बिजनौर-246701, उ. प्र. फोन : +91-9412713640 / +91-1342-262186 ईमेल : contact@vanikaapublications.com / vanikaapublications@gmail.com   वेबसाइट : www.vanikaapublications.com  अनुक्रमणिका :  समकालीन लघुकथा का सौन्दर्यशास्त्र (अ) समकालीन लघुकथा का तात्विक सौन्दर्यबोध (ब) समकालीन लघुकथा का शिल्पगत सौन्दर्यबोध (स) समकालीन लघुकथा का वस्तुगत सौन्दर्यबोध समकालीन लघुकथा को प्रभावित करने वाले कारक राजनैतिक परिस्थितियाँ धार्मिक परिस्थितियाँ आर्थिक परिस्थितियाँ सांस्कृतिक परिस्थितियाँ सामाजिक परिस्थितियाँ समकालीन लघुकथा का समाजशास्त्रीय सौन्दर्यबोध प्रमुख लघुकथाओं का समाजशास्त्रीय सौन्दर्यबोध समाजशास्त्रीय सौन्दर्यबोध से अभिप्राय इसकी प्रसंगिकता समकालीन लघुकथा का समाज से अन्तर्सम्बन्ध समकालीन

लघुकथा विशेषांक 2020/रीटा खडयाल (सं.)

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  लघुकथा विशेषांक : हमारा साहित्य 2017-2018 (लघुकथा विशेषांक-1) संपादक (कार्यकारी) : रीटा खडयाल प्रथम संस्करण : 2020 आई.एस.बी.एन. : नहीं प्रकाशक : सेक्रेटरी, जे. एंड के. अकैडमी ऑफ आर्ट, कल्चर एंड लैंग्वेजिज, केनाल रोड, जम्मू-180001 फोन : +91-191-2542640/2577643/2579576 अनुक्रमणिका :  कमलेश भारतीय की लघुकथाएँ सात ताले और चाबी कुछ खास नहीं स्टिकर राजनीति चेहरा उमेश महादोषी की लघुकथाएँ वो एक क्षण पिंजड़े को पकड़कर झूलती चिड़िया एक रिश्ता यह भी फेसबुक के पाठक बनाम लघुकथा के पाठक राम का लंकादहन रामकुमार आत्रेय की लघुकथाएँ बूढ़ी लड़की संस्कृति खतरनाक आदमी सुख-दुःख मिट्टी का दीया मधुदीप की लघुकथाएँ उजबक की कदमताल टीस लौटा हुआ अतीत योद्धा पराजित नहीं होते रामकुमार घोटड़ की लघुकथाएँ  भटकती आत्मा समय-समय की बात  चाँद पर रोटी  घर-घर की कहानी  उनके आने के बाद  राजेंद्र परदेसी की लघुकथाएँ  विवशता  अधिकारी  अनुराग का एक क्षण  जंगलीपन  राधेश्याम भारतीय की लघुकथाएँ  बड़ा हूँ ना!  मेरा घर  पुल  कमी  अमृत  अशोक लव की की लघुकथाएँ  दो प्रार्थनाएँ  न सबूत न गवाह  राजनीति-बाला  परदे के पीछे  सरजू बड़ा हो गया  प्रद

लघुकथा संग्रह 2020/कहाँ हो तुम!

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लघुकथा संग्रह : कहाँ हो तुम! कथाकार :   कमलेश सूद प्रथम संस्करण : 2020 आई.एस.बी.एन. : 978-81-949025-1-5 प्रकाशक : एजूकेशनल बुक सर्विस, एन-3/25-ए, डी.के. रोड, मोहन गार्डन, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059 फोन : +91-9899665810 ईमेल : ebs.2012@yahoo.in अनुक्रमणिका :   1. नया घर 2. बस! अब और नहीं 3. जज्बा 4. समर्पण 5. हिम्मत मत हारना 6. बड़े साहब 7. रक्षा-कवच 8. माँ बेटे का रिश्ता 9. आधी रात के बाद 10. नवजीवन 11. वह मुस्कुरा उठी 12. महात्मा जी की सीख 13. लायक बेटे 14. सब ठीक हो जाएगा 15. भाग जाओ 16. उम्र की ऐसी की तैसी 17. छत पर भूत 18. छन्नाछन्न बरसीं मोहरें 19. आभार 20. इक्कीसवीं सदी बनाम पच्चीसवीं सदी  21. फरिश्ते 22. गौरी और काली 23. नेत्रदान 24. झाँकी 25. झंझट 24. नई नौकरानी 25. डर 26. कितना मातम 27. भटकन 28. मजबूरियाँ 29. मुखौटे 30. तोहफा 31. भाईचारा 32. भय का भूत 33. दूर के ढोल सुहावने 34. पिंजरे की मैना 35. संबल 36. होश तो आई पर मां को खोकर 37. आतिथ्य 38. अकेलेपन का दंश 39. दूसरी भी लड़की ही हो 40. आप मेरी मां हो 41. कोकिला 42. मीलों की दूरियाँ 43. वर्षगांठ 44. जाको राखे साइयां 45. महामा

लघुकथा-आलोचना-2021/रूप देवगुण

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पुस्तक :  पूर्ववर्ती हिन्दी लघुकथाओं का समीक्षात्मक अध्ययन (सन् 1875 से सन् 1970 तक) लेखक : रूप देवगुण प्रकाशक :  साहित्यागार,  धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर-302003 फोन : 0141-2310785, 4022382, 2322382, Mob.: 9468943311  e-mail: sahityagar@gmail.com website : sahityagar.com  webmail : mail@sahityagar.com प्रथम संस्करण : 2021 ISBN : 978-93-90449-17-0 अनुक्रमणिका 1. अंगहीन धनी  भारतेन्दु हरिशचन्द्र। 2. अद्भुत संवाद  भारतेन्दु हरिशचन्द्र 3. एक टोकरी-भर मिट्टी माधवराव सप्रे 4. भूगोल  चन्द्रधर शर्मा गुलेरी 5. बिल्ली और बुखार  माखनलाल चतुर्वेदी 6. बुढ़िया पुराण  अयोध्या प्रसाद गोयलीय 7. झलमला  पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी 8. नथ  माखनलाल चतुर्वेदी 9. दरवाजा  प्रेमचन्द 10. अधिकारी पाकर  माखनलाल चतुर्वेदी 11. न्याय घण्टा  चन्द्रधर शर्मा गुलेरी. 12. बड़ा क्या है ?  पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी  13. कलावती की शिक्षा  जयशंकर प्रसाद, 14. बेबी  आचार्य रामचन्द्र श्रीवास्तव 'चन्द्र' 15. सेठजी  कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर 16. सलाम  कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर 17. जादूगरनी  उपेन्द्रनाथ अश्क 18.

लघुकथा-विशेषांक-2004/प्रभाकर शर्मा (सं.)

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(संतोष सुपेकर के सौजन्य से) लघुकथा-अंक : सागर के मोती ( अरविंद नीमा स्मृति लघुकथा-अंक ) संस्करण : अगस्त 2004 प्रकाशक : हस्ताक्षर प्रकाशन 271, इन्दिरानगर, आगर रोड, उज्जैन-456006 प्रबन्धन : सुदेश नीमा सहयोग राशि : रु. 20/ इस संकलन में अनुक्रम पृष्ठ नहीं है। प्रभाकर शर्मा द्वारा लिखित संपादकीय : लघुकथाएँ युगीन प्रवृत्तियों के अनुसार प्राचीन काल से ही लिखी जा रही हैं। पंचतंत्र की लघुकथाएँ राजपुत्रों को नीति की शिक्षा देने के लिए लिखी गई थी जिसमें वे सफल भी रहीं, वर्तमान लघुकथाएँ भी सामान्य जन के अन्दर सामाजिक, राजनीतिक और पारिवारिक विद्रूपताओं के विरुद्ध पनप रही विरोधी भावनाओं के कारण लिखी जा रही है । हर क्षेत्र में पनप रहे दोहरे चरित्र या कथनी और करनी के अन्तर को स्पष्ट करने के लिए भी लघुकथाएँ लिखी जा रही हैं। भारत में हो रहे पाकिस्तानी आतंकवादी गतिविधियों को आज भी अमेरिका मान्यता नहीं दे रहा है, जबकि अमेरिका पर हुए एक ही आतंकवादी हमले के कारण उसने अफगानिस्तान और लादेन के खिलाफ विश्व जनमत तैयार कर अफगानिस्तान पर आक्रमण कर समस्या का निदान कर लिया लेकिन इस घटना के बाद भारत की संसद पर आतंकी

लघुकथा-संकलन-1994/वेद हिमांशु एवं राजेन्द्र निरंतर (सं.)

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(संतोष सुपेकर के सौजन्य से) लघुकथा-संकलन : स्याह हाशिये    सम्पादक : वेद हिमांशु एवं राजेन्द्र निरंतर   प्रकाशक : काव्यपंक्ति, बृजनगर, शुजालपुर मंडी, म.प्र.  प्रथम संस्करण : अप्रेल 1994    रचनाधिकार : लेखकाधीन  संकलनाधिकार : सम्पादक  आवरण सज्जा : पारस दासोत / अव्यावसायिक पहल  — सहयोग राशि : पन्द्रह रुपये मात्र इस संकलन में अनुक्रम पृष्ठ नहीं है। वेद हिमांशु जन्म 1 जुलाई 1954 सांवेर (जिला इंदौर) एम. ए. हिंदी । सन् 1974 से लघुकथा आंदोलन में सक्रिय और सृजनात्मक भूमिका ! इंदौर, बैढ़न, (सीधी) मंदसौर और अब शुजालपुर, जहां भी होते हैं, चुप बैठना पसंद नहीं, शुरूआत अकेले करते हैं, फिर सब सहज ही साथ हो जाते हैं, विनीत स्वभाव और ठोस । तल्ख लेखन के लिए लोकप्रिय । कविता की सभी धाराओं में लेखन । मालवी बोली में नई कविता और जापानी शिल्प हाइकु मालवी में प्रयोग के लिए इन दिनों विशेष उल्लेख । रचनाओं के बंगला व पंजाबी में अनुवाद। कई राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय संकलनों में रचनाएं शामिल । 'काव्य पंक्ति' के सम्पादक संयोजक ! सदस्य 'लोक मानस अकादमी' एवं 'साहित्य मंथन' उज्जैन | सम्पर्क – सम्पाद

हिन्दी लघुकथा के सिद्धान्त /भगीरथ परिहार

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पुस्तक : हिन्दी लघुकथा के सिद्धान्त  लेखक : भगीरथ परिहार   वर्ष  : 2018 आईएसबीएन  : 978-1-5457-1979-4 प्रकाशक :  अनक्रम 1- हिन्दी लघुकथा : उद्भव और विकास 2- लघुकथा लेखन : आरोप, चेतावनियाँ व कमजोरियाँ 3- लघुकथा, लघुकहानी व लघुव्यंग्य के विवाद का हश्र 4- लघुकथा लेखन की सार्थकता 5- लघुकथा लेखन की समस्याएँ 6- लघुकथा लेखन की स्थिति और संभावनाओं की तलाश  7- लघुकथा की सृजन प्रक्रिया का स्वरूप 8- प्रेमचंद और लघुकथा विमर्श 9- विदेशी भाषाओं की लघुकथाओं के माध्यम से तकनीक की तलाश 10- आधुनिक लघुकथा की अवधारणा पुस्तक में 'अपनी बात' शीर्षक से लिखित भूमिका : इस पुस्तक में लघुकथा विधा के समक्ष विभिन्न समय पर आई चुनौतियों को लक्ष्य कर लिखे आलेख संकलित है। इन आलेखों के शीर्षक से अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय लघुकथा के समक्ष विवादित या चर्चित विषय क्या थे? पिछले चालीस वर्षों में ये लेख लिखे गए हैं। आज जब लघुकथा एक मुकाम हासिल कर लिया है तब यह जरूरी हो जाता है कि हम इसके इतिहास को जाने और समझें कि यह किन-किन मोड़ों से गुजरी है। "हिन्दी लघुकथाः उद्भव और विकास के अंतर्गत लघुकथा के इतिहास का

लघुकथा समीक्षा/भगीरथ परिहार

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पुस्तक : लघुकथा समीक्षा लेखक  : भगीरथ परिहार   वर्ष  : 2018 आईएसबीएन  : 9781545723524 प्रकाशक  :  अनुक्रम 1- भूमंडलीकरण के दौर में हमारी सांस्कृतिक चिंताएँ  2 हिन्दी लघुकथाओं में दलित संघर्ष 3 मुट्ठीभर आसमान के लिए लघुकथा में स्त्री विमर्श  4 लघुकथा के आईने में बालमन 5- सामाजिक मूल्यों के विघटन का परिदृश्य डॉक्टर पुणताम्बेकर 6 - लघुकथा : अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम 7 लघुकथा लेखन की प्रासंगिकता 8- हिन्दी लघुकथा की वर्तमान स्थिति 9 अनुत्तरित प्रश्न 10- परिचर्चा : कुछ मुद्दों पर 11 भगीरथ से साक्षात्कार : अनीता वर्मा 12 - भगीरथ से साक्षात्कार : त्रिलोक सिंह ठकुरेला 13 - भगीरथ से साक्षात्कार : सीमा जैन 14 - भगीरथ से साक्षात्कार : डॉ. लता अग्रवाल पुस्तक में 'अपनी बात' शीर्षक से लिखित भूमिका : अपनी बात 'हिन्दी लघुकथा के सिद्धांत' पुस्तक में हमने लघुकथा के सैद्धांतिक पक्ष पर विचार किया था। अब इस पुस्तक (लघुकथा समीक्षा) में हम समीक्षा के व्यवहारिक पक्ष पर फोकस करेंगे । भूमंडलीकरण के दौर को लघुकथा लेखकों ने किस तरह देखा है? इसका आकलन 'भूमंडलीकरण के दौर में हमारी सांस्कृतिक चिं

लघुकथा-आलोचना-1991/सुरेशचन्द्र गुप्त (डॉ.)

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पुस्तक :  लघुकथा:सरंचना और शिल्प लेखक : डॉ. सुरेशचन्द्र गुप्त संस्करण : फ़रवरी, १९९१ / प्रकाशक : दीपशिखा प्रकाशन (फ़ोन : ५७२६३७४), ५१ /२, न्यू मार्केट, लिबर्टी सिनेमा के समीप, करौलबाग़, नयी दिल्ली- ११०००५ वितरक : पराग प्रकाशन, ३/११४, कर्ण गली, विश्वासनगर, दिल्ली ११००३२ अनुक्रम विचार-खण्ड लघुकथा : संरचना और शिल्प लघुकथा : त्रासदी की प्रहेलिका लघुकथा : संप्रेरणा और सार्थकता लघुकथा : समष्टिमूलक व्यष्टि रेखा लघुकथा - खण्ड नपुंसक कैसे-कैसे मर्ज़ मंगलसूत्र भ्रम धुन्ध दवा हमनाम धन्धा नामाकूल उल्लू माई-बाप इक्कीसवीं सदी दुनियादारी प्रेतलीला दक्षिणा देवी-देवता संघर्ष ड्रॅगन छत्रछाया आधुनिक एकलव्य शराफ़त निदान दान मृत्यु- योग विवशता ज़माने की हवा इनाम सम्बन्ध वारिस कर भला, हो भला भगवत्कृपा मुर्दाबाद जिन्दाबाद अभिनन्दन सर्वशिरोमणि स्वतन्त्रता सेनानी रिश्ते भृगुवंशी पतिव्रता तीसरी लक्ष्मी भूमिका  स्वरूप लिखित 'प्राक्कथन' : साहित्यकार का मूल धर्म आत्माभिव्यक्ति है। अनुभवधर्मी रचनात्मकता जिस किसी भी विधा में अंकुरित पल्लवित होती है, वही संप्रेषणक्षम हो जाती है। ऐसे में किसी विधा को मुख्य और

हिन्दी-लघुकथा : संवेदना और शिल्प/सत्यवीर 'मानव' (डॉ.)

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पुस्तक का नाम : हिन्दी-लघुकथा : संवेदना और शिल्प लेखक : डॉ. सत्यवीर 'मानव' प्रथम संस्करण : 2019 ISBN: 978-93-84569-76-1 प्रथम संस्करण : 2012 द्वितीय : 2019 प्रकाशक : समन्वय प्रकाशन, के.बी. 97, (प्रथम तल), कविनगर, गाज़ियाबाद-201002 email: samanvya.prakashan@gmail.com Website : www.samanvayprakashan.com अनुक्रमणिका प्रथम अध्याय : लघुकथा का स्वरूप एवं परिचय १.१ प्रस्तावना १.२ 'लघुकथा' का स्वरूप १.२.१ 'लघुकथा' का अर्थ १.२.२ 'लघुकथा' का स्वरूप १.२.३ "लघुकथा' की परिभाषा १.३ लघुकथा तथा नीतिकथा, बोधकथा और जातककथा १.४ लघुकथा और लघुव्यंग्य १.५ लघुकथा का स्वरूप विकास १.६ लघुकथा का उद्भव एवं विकास १.७ लघुकथा का महत्त्व १.८ निष्कर्ष द्वितीय अध्याय : प्रमुख हिन्दी-लघुकथाकार २.१ प्रस्तावना २.२ प्रतिमानक लघुकथाकार २.२.१ विष्णु प्रभाकर २.२.२ सुगनचन्द 'मुक्तेश' २.२.३ डॉ० सतीशराज पुष्करणा २.२.४ डॉ० सतीश दुबे २.२.५ पृथ्वीराज अरोड़ा २.२.६ डॉ० रामनिवास 'मानव' २.२.७ डॉ० कमल चोपड़ा २.२.८ सुकेश साहनी २.२.९ डॉ० कृष्ण कमलेश २.२.१० प्रेमसिंह बरनालवी  २.२.१

लघुकथा-संग्रह-2020/सैली बलजीत

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लघुकथा-संग्रह : खाली हाथ और लपटें कथाकार  : सैली बलजीत  प्रथम संस्करण : जुलाई 2020 ISBN : 978-9390216147 प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन, राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट, सांगवान, क्वार्सी, रामघाट रोड, अलीगढ़, उप्र. 202001, भारत  फ़ोन: +91-7017993445 अनुक्रमणिका कितना फ़र्क भीतर का आदमी यह हादसा नहीं हैवानियत विवशता दूरदर्शिता आशंका आत्म-ग्लानि इस बार इन्तज़ार पत्थर होते लोग कैसी पहचान डर जेबकतरा निजात नहीं मिलती समझदार टूटा हुआ खिलौना कालचक्र रखवाली अपना-अपना धंधा घटियापन कैसा दान भीतर की टीस अथक घोड़ा स्वार्थ की हद धंधा कटी हुई ज़िन्दगी विकल्प मुनाफ़े का सौदा मुखौटा बाज़ारवाद उसकी ज़रूरत रिश्तों की अर्थी गंदगी पुण्य साख अशक्त उम्र अंधेरे कैसी हैवानियत बेशर्म लोग कितनी बार क्षोभ सोने की मुर्गी फ़ौलाद होने तक नया ज़माना पत्थर दिल पहला पड़ाव ज्वारभाटा मासूमियत मुफ़्तख़ोर नही कसूरवार ऐसा तो नहीं था उसकी तौबा भूल-चूक छुटकारा ऊसूलों की लड़ाई आत्मघाती निर्णय चालाकी दुनियादारी वज्रपात कैसी समझदारी इन्सानी सांप वह अब कहां लौट पाएगी... उसकी चतुराई समझौतों की बैसाखी  गंगा फिर नहीं बहेगी अंधा-युग

कथा-समय (दस्तावेजी लघुकथाएँ)/अशोक भाटिया (सं.)

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लघुकथा रचना व आलोचना संकलन :  कथा-समय (दस्तावेजी लघुकथाएँ) सम्पादक : डॉ. अशोक भाटिया प्रकाशक : अनुज्ञा बुक्स,  दिल्ली-110032 आईएसबीएन  : 978-93-89341-10-2 ईमेल : anuugyabooks@gmail.com  फोन : 01122825424 / 93508 09192 प्रकाशन वर्ष : 2020 अनुक्रम   भूमिका एक भूमिका : दो भूमिका : तीन  इन लघुकथाओं में समय भगीरथ वक्तव्य आग बैसाखियों के पैर अन्तहीन ऊँचाइयाँ आत्मकथ्य अफसर चेहरा चेतना धर्म निरपेक्ष चुनौती क्रेडिट कार्ड दोज़ख दुपहरिया हड़ताल हक जीविका क्या मैंने ठीक किया ? लोमड़ी मौनव्रत पेट सबके हैं फूली रेंजर दौरे पर रोजगार का अधिकार  सपने में माँ सपने नहीं दे सकता तानाशाह और चिड़ियाँ शिक्षा यथार्थ जीवन स्थगित बलराम अग्रवाल वक्तव्य समन्दर: एक प्रेमकथा बुधुआ नदी को बचाना है। रुका हुआ पंखा उसकी हँसी मिठास गोभोजन कथा अलाव के इर्द-गिर्द मन अनन्त में  जहाँ मैं खड़ा हूँ यह कौन-सा मुल्क है दुःख के दिन मुलाकातें गरीब का गाल मन की मथनी बिना नाल का घोड़ा गाँव अभी भी लगाव यात्रा में लड़कियाँ मौत का मामला उजालों का मालिक लेकिन सोचो प्रेमगली अति सौकरी अशोक भाटिया वक्तव्य बैताल की नई कहानी तब और अब तीसरा च

लघुकथा आलोचना-2021 / अशोक भाटिया (डॉ.)

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लघुकथा आलोचना : लघुकथा में प्रतिरोध की चेतना लेकिन : डॉ. अशोक भाटिया प्रकाशक : उद्भावना, एच-55, सेक्टर 23, राजनगर, गाज़ियाबाद मो. : 9811582902 प्रकाशक : उद्भावना, एच-55, सेक्टर 23, राजनगर, गाज़ियाबाद प्रकाशन वर्ष : 2021 अपनी बात लघुकथा में प्रतिरोध / अशोक भाटिया प्रतिरोध विरोध का एक रूप है। विकासोन्मुखता उसका लक्ष्य है, जिसके पीछे बेहतर समाज का सपना होता है। प्रतिरोध वास्तव में स्वतंत्रता, समानता और न्याय के मूलभूत अधिकारों के लिए संघर्ष का क्रियात्मक रूप है। महेन्द्र । प्रजापति के शब्दों में कहें तो 'हर वह समाज जो अपनी अस्मिता के प्रति सचेता होता है, वह प्रतिरोध करता है। प्रतिरोध के दो मार्ग या प्रकार होते हैं- अहिंसात्मक और हिंसात्मक। महात्मा गांधी ने अंग्रेज शक्तियों को चुनौती देने और उनसे भारत मुक्ति का लक्ष्य पाने का अहिंसात्मक मार्ग चुना, जिसका वैश्विक स्तर पर अनेक देशों ने अनुकरण भी किया। इसी मुक्ति के लिए भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद आदि अनेक स्वप्नदर्शी क्रांतिकारियों ने हिंसा का भी सहारा लिया, जिसकी ऐतिहासिक भूमिका और महत्व रहा है। एक और धरातल पर प्रतिरोध को व्यक्तिगत और सामाज