पीठ पर टिका घर (लघुकथा संग्रह) / सुधा गोयल (कथाकार)

पीठ पर टिका घर (लघुकथा संग्रह)


कथाकार : सुधा गोयल 

पहला संस्करण : 2024

ISBN: 978-93-95356-40-4

नमन प्रकाशन 

4231/1, अंसारी रोड, दरियागंज, 

नई दिल्ली-110002 

फोन  : 8750551515, 9350551515

चिन्तन

लघुकथा आकार में लघु किन्तु अपनी गहन अर्थी गम्भीर शैली द्वारा समाज व्यवस्था के व्यापक सन्दर्भों से जुड़ी ऐसी कथा है जिसकी सघन सम्वेदना चेतना को एकदम स्पन्दित कर देती है। जैसे महाकाव्य के आंशिक गुणों से युक्त काव्य को खंडकाव्य अथवा गीतिकाव्य कहा जाता है। उसी प्रकार कथाशिल्प में आरम्भ से चरम बिन्दु तथा अनेक तत्वों को प्रभावशाली ढंग से आत्मसात् कर जो विधा प्रकाश में आई उसे हम लघुकथा कहते हैं।

लघुकथाओं का जन्म कब, कहाँ और कैसे हुआ, इसका आदि प्रणेता कौन था, यह बता पाना बेहद मुश्किल है। लघुकथाओं की परम्परा ढूंढ़ी जा सकती है पर कोई निश्चित इतिहास निर्धारित नहीं किया जा सकता। शायद मानव जाति के आविर्भाव के साथ ही लघुकथाओं का आविर्भाव हुआ।

आदि मानव जाति ने जब आपसी सुरक्षा के लिए ग्रुप बनाकर रहना शुरू किया तो जंगली जानवरों से रक्षा के लिए आग जलाकर उसके चारों तरफ बैठकर वक्त काटने के लिए अपने अनुभवों को कल्पना के सहारे बतकही का सिलसिला शुरू किया होगा। वही बतकही कालांतर में लघुकथाएं हुईं।

रोजी-रोटी और आवासीय सुविधा की खोज में आदमी इधर-उधर घूमने लगा। इसी घुमन्तु प्रवृत्ति ने लघुकथा का प्रचार प्रसार किया।

लघुकथाओं की एक परम्परा है और वह परम्परा हम वेद, इतिहास, पुराण, रामायण, महाभारत, बौद्ध धर्म संबंधी अवादान जातक कथाएं, पौराणिक कथाएं, हितोपदेश व पंचतन्त्र की कथाओं में पाते हैं। डॉ. स्वर्णकिरण लघुकथा को बंगला की गल्प कथा से नि:सृत मानते हैं।

प्राचीन काल में लघुकथा का रूप मौखिक होता था क्योंकि उस समय तक लिपि का आविष्कार नहीं हुआ था। इसलिए व्यक्ति वस्तुस्थिति को समझने के लिए प्राकृतिक साधनों का सहारा लेता था। अतः कथाएं एक दूसरे के पास मौखिक रूप से ही पहुंचती थीं। इस प्रणाली को विद्वानों ने 'गल्प कथा' कहा है। इस गल्प विद्या के तीन भेद लिए हैं- दंत कथाएं, लोक कथाएं व जातक कथाएं।

लिपि के ज्ञान और विकास के साथ-साथ गल्प कथाएं लिपिबद्ध होती गईं। हितोपदेश, ईसप की कथाएं, आलिफ लैला के किस्से, बैताल पच्चीसी, सिंहासन बत्तीसी आदि कथाएं भी इसी क्रम की सशक्त और लोकप्रिय कड़ी हैं।

अभी तक जितने भी देशों की मुद्रित लघुकथाएँ प्रकाश में आई हैं, उनके अनुसार यह निश्चित किया जा सकता है कि लघुकथाओं का उद्गम स्थान चीन रहा होगा क्योंकि भाषा का आविष्कार विश्व में सबसे पहले चीन में हुआ और यहीं से ये कथाएं धीरे-धीरे सारे विश्व में फैल गईं।

आज लघुकथाओं का जितना विशाल भण्डार भारत, तिब्बत, बर्मा, और मिस्र में मिलता है उतना शायद अन्यत्र नहीं मिलता। यह कहना गलत न होगा कि चीन के बाद लघुकथा के क्षेत्र में भारत का ही दूसरा स्थान है। यहीं से लघुकथाएं मिस्र, फारस जैसे अरब देशों में पहुँची।

आज सामरिक विकास के कारण इनकी प्रस्तुति शिल्प, कला व शैली में परिवर्तन आए जिनका कारण भौगोलिक, सामाजिक व राजनैतिक परिवर्तन रहा। लघुकथा को दो प्रकार से प्रस्तुत किया जाता है- 1. संवाद द्वारा, 2. द्रश्यांकन द्वारा, लेकिन प्रायः लघुकथा में दोनों ही पदों का रहना यदि अनिवार्य नहीं तो आवश्यक तो होता ही है।

खलील जिब्रान व रविन्द्रनाथ टैगोर का नाम लघुकथाओं के विकास में अग्रणी है। माखनलाल चतुर्वेदी, आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री, उपेन्द्रनाथ अश्क, कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, आनन्द मोहन अवस्थी, जगदीशचन्द्र मिश्र, शिव नारायण उपाध्याय, राम निवास शर्मा मयंक जैसे मूर्धन्य साहित्यकारों ने लघुकथा को जीवन्त बनाने में अपना सम्पूर्ण योगदान दिया।

परन्तु लघुकथाओं को समीक्षकों से उपेक्षा मिली। कहानी को लेकर जितना लिखा गया, लघुकथाओं को उतना ही नकारा गया बल्कि एक दशक पूर्व गिनी-चुनी लेखकों की लघुकथाएं ही सहमी-सहमी सी सबके सामने आईं। कहानी विशेषांक धड़ल्ले से निकलते रहे  पर लघुकथाएं निर्जीव-सी पड़ी रहीं।

पिछले सालों से लघुकथाओं को समझने का प्रयास किया जा रहा है बल्कि कहूं कि लघु पत्रिकाओं ने लघुकथाओं को लेकर साहित्य जगत में एक क्रांन्ति पैदा की है तो अनुचित नहीं होगा। आज भी बड़ी-बड़ी पत्रिकाएं कभी-कभी एकाध लघुकथा छापकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती हैं। 'सारिका' ने मात्र एक लघुकथा विशेषांक निकालकर पहल अवश्य की, पर यह प्रयास अधिक सराहनीय नहीं रहा। लघुपत्रिकाएं अवश्य लघुकथाओं पर विशेषांक निकाल रही हैं।

मुझे यह बताते हुए जरा भी संकोच नहीं है कि लघुकथा संग्रह 'पीठ पर घर' की अधिकांश लघुकथाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं। इनका जन्मकाल सन् 1986 से लेकर आज तक है। विभिन्न आयामों व घटनाक्रमों से गुजरती, समय और अवधि का स्पर्श करती, परम्पराओं पर कुठाराघात करती ये लघुकथाएं अपना कलेवर पच्चीस-तीस शब्दों में ही लपेटकर बहुत-कुछ कह जाती हैं।

मुझे लगा कि इस संग्रह का नाम 'पीठ पर घर' लघुकथाओं का ही नहीं पूरे समाज का प्रतिनिधित्व करता है। नाम तो कुछ भी हो सकता था, लेकिन आम आदमी जब भी कोई काम करता है उसकी पीठ पर घर होता ही है। वह चाहे लेखक हो, क्लर्क, रिक्शाचालक, मन्त्री, संतरी, घर हर जगह उपस्थित रहता है।

अतः मेरे साहित्यिक मित्रो! लघुकथा संग्रह 'पीठ पर घर' आपके हाथों में आने को उत्सुक है और मुझे आपकी प्रतिक्रिया की प्रतिक्षा। यह मेरा पहला ही लघुकथा संग्रह है।

●सुधा गोयल

अनुक्रमणिका

चिन्तन (लेखकीय)

सप्तपदी का वायदा.

वेलेन्टाइन-डे

भगवान की पोशाक

मां

पिताजी आप क्यों लौटे

लक्ष्मी आई है.

सलोनी का निर्णय..

गंगा-बोली

तमाचा

दया

दौड़ के लिए दौड़.

मुझे हक चाहिए....

(ऐतिहासिक कथा)

बिन्दुसार.

वे दिन-ये दिन...

भिखारी

पीठ पर घर

मंदोदरी की महानता

निर्णय

मोनोग्राम

कारण

सप्तपदी

दुहिता

नई गेंद

टिप

नल दमयन्ती.

शपथ

भोज

कवि और दीया

सौदा

टिफिन

प्रार्थना

बंटवारा

रिटर्न गिफ्ट

जुलूस

हलो-हलो

परीक्षा भवन में 

दीया और बिजली.

एक था राजा 

अनाम-रिश्ते 

विचाराधीन.

व्यंजन विशेषांक

छुटकारा

नकल 

दास्ताने-दफ्तर 

ये मेरी बेटी है

आशीर्वाद

काले सिर वाली

दोगला आदमी

इन्टरव्यू

चित्र

मंजूरी

साक्षात्कार

पत्रिका का चंदा

तूफान क्यों आते हैं.

कनीज़ की अर्ज....

देवी का आना

लौकी

तमाशा

चाणक्य

छिलपटिया

एडजस्ट मेंट

दो नोटों की विदाई

खोटे सिक्के

घड़ियाल

तथास्तु

भविष्य

कोट और बीस रुपए

विकल्प

समाधान

सेहरा या पगड़ी

प्रैक्टिकल

इन्टरव्यू

हकीकत

मन्त्र

देवी उवाच

पुनः जीवन मिला

गर्व

गश्त

वास्तविक जनवाद

अनुभव

माटी की गुड़िया

अपनों से हारीं

कब होगा सर्कस

उपचार

शिक्षा का दर्द

ब्लैक फंगस

वारियर्स

पहल

कारोबार

राहें ऐसी भी

स्मृति शेष

छत

विषबीज

मां का अधिकार

                      सुधा गोयल


जन्म
: 8 अप्रैल, 1948, अनूपशहर, जिला बुलंदशहर

पिता : स्व. श्री सूरजमल अग्रवाल

पति : स्व. श्री हरीशचंद गोयल

शिक्षा : एम.ए.(हिन्दी; सी.सी.एस.वि.वि.मेरठ)

सदस्य: 1. जिला महिला समिति बुलंदशहर, 

         2. अखिल भारतीय लेखिका संघ दिल्ली,

         3. हिन्दी साहित्य सम्मेलन इलाहाबाद, 

         4. उत्तर प्रदेशीय महिला मंच मेरठ, 

        5. वैश्य समाज महिला संघ बुलंदशहर, 

     6. भू.पू. उपाध्यक्षा जलेस जिला इकाई बुलंदशहर 

प्रकाशित साहित्य : उपन्यास स्मृति पर्व, सॉरी सुदर्शना, मृण्मयी, प्रश्नों की नागफनियां, पटाक्षेप, अलाव, मां, खंडित विश्वास, भूमिजा, (पौराणिक), मैं सौमित्र। कहानी संग्रह: वनवासिनी, रुक जाओ मां, सच तो बस यही है, मुट्ठी भर प्यार, निन्नी तुम कहां हो, अपने हिस्से का सच, तुम्हारा गुनहगार, संवासी और कहानियां, थैंक यू दादी मां, ये लम्हे वे लम्हे, 70+ की महिलाएँ, पौराणिक सच। बालगीत संग्रह कहते फूल हँसो हम जैसे। व्यंग्य संग्रह: लक्ष्मी उवाच, नौ सौ चूहे खाय काव्य संग्रह रिश्तों का सफर, तुम्हारे नाम।

पुरस्कार व सम्मान : 1. मानद उपाधि आर्य विशारद और शिक्षा विशारद, 2. कविता पर राजकुमार स्मृति पुरस्कार हिरोज क्लब इलाहाबाद 1985, 3. समाज सेवा तथा लेखन पर दिव्या सम्मान उत्तर प्रदेशीय महिला मंच मेरठ 1996, 4. राष्ट्रीय हिन्दी सेवा सहस्राब्दी सम्मान विश्व हिन्दी सम्मेलन दिल्ली 14.9.2000, 5. जाह्नवी कहानी प्रतियोगिता सांत्वना पुरस्कार, 6. सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन गाजियाबाद 2010, 7. पत्रकार सत्यदेव सम्मान 2011, 8. वैश्य रत्न सम्मान वैश्य मंडल बुलंदशहर 2012, 9. पेंशनर एसोशिएशन बुलंदशहर द्वारा लेखिका सम्मान 2016, 10. शुभम् संस्था गुलावठीं द्वारा शिखर सम्मान शुभम् रत्न 2020, 11. सर्टिफिकेट ऑफ राइटिंग स्टार द फेस आफ इंडिया तरंगिनि 2020, 12. उम्दा प्रस्तुति प्रपत्र तिस्ता प्रकाशन 21, 13. तिस्ता प्रकाशन कविता कानन द्वारा शब्द श्री 2021

अन्य : 1. कहानी संग्रह वनवासिनी पर ओडियो कैसेट्स ब्लाइंड एसोसिएशन बम्बई द्वारा 1985, 2. सुधा गोयल के हिन्दी साहित्य में नारी संवेदना पर शोधकार्य बुंदेलखंड विश्वविद्यालय द्वारा 2000, 3. अतिथि सम्पादन आंनद हिंदी डाइजेस्ट और दृष्टिकोण, 4. सहायक सम्पादन-युगप्रवर्तक, तेरी डगर, जगमग दीप ज्योति, नया अध्याय, 5. सम्पादन-स्मारिका आंचल 1978-2000, 6. अनुवाद-नेपाली, गुजराती, पंजाबी व तमिल में, 7. आकाशवाणी दिल्ली से कहानी प्रसारण

डाक-पता : सुधा गोयल, 290-ए, कृष्णानगर, 

डॉ. दत्ता लेन, बुलंदशहर-203001(उप्र)

मोबाइल : 9917869962 

ईमेल: sudhagoyal0404@gmail.com

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