समकालीन लघुकथा और प्रेमचंद (आलोचना) / बलराम अग्रवाल (संपादक)

प्रेमचंद की लघ्वाकारीय कथाएँ बद्रीसिंह भाटिया (04-7-1947 — 24-4-2021 ) # बद्री सिंह भाटिया लघुकथा के वर्तमान परिदृश्य से प्रतीत होता है कि यह अपनी विकास यात्रा पर उत्तरोत्तर अग्रसर है। गति धीमी होने का कारण पहले कि इसका आकार छोटा हैं पत्र–पत्रि़काओं के संपादकों को यह ‘फीलर’ की बजाए फिल्लर है। गद्यात्मक रूप होने के कारण यह कविता की तरह भी प्रस्तुत नहीं की जा सकती। चूँकि आकार छोटा है इसलिए कुछ रचनाकार इसके प्रस्तुतीकरण में मनमर्जी का प्रयोग भी कर रहे हैं। संभवत: यह कारण रहा हो कि वे मात्र लिखने के लिए लिख रहे हैं। विधा को या उसके मान को समक्ष रखकर नहीं लिखा जा रहा। यानी कि यह लेखन सायास बनकर रह गया है कि–इसमें क्या है , ऐसा तो मैं भी लिख सकता हूँ। चूँकि इसे ‘कथा’ नाम से अभिहित किया गया है अतएव यह चूल्हे के पास सुनाई जा रही बोध कथा , हितोपदेश के बात स्पष्ट करने के प्रसंग और पौराणिक प्रेरक प्रसंगों को भी अपने में समेटने लगी। खैर , लघुकथा हमारे समाज में मौखिक और लिखित रूप में लंबे समय से विद्यमान है। मानव–मन की परिणति मनोरंजन की रही है। वह थोड़े समय में यो बिना दिमाग ह...