लघुकथा आलोचना 2018/ डॉ. जितेन्द्र ‘जीतू’


लघुकथा संग्रह : समकालीन लघुकथा का सौंदर्यशास्त्र एवं समाजशास्त्रीय सौंदर्यबोध

लेखक / आलोचक : डॉ. जितेन्द्र ‘जीतू’

प्रथम संस्करण : 2018

आई.एस.बी.एन. : 978-93-86436-39-9

प्रकाशक : वनिका पब्लिकेशन्स, रजि. कार्यालय- एन ए-168, गली नं.6, विष्णु गार्डन, नई दिल्ली-110018/मृख्य कार्यालय- सरल कुटीर, आर्य नगर, नई बस्ती, बिजनौर-246701, उ. प्र.

फोन : +91-9412713640 / +91-1342-262186

ईमेल : contact@vanikaapublications.com / vanikaapublications@gmail.com 

वेबसाइट : www.vanikaapublications.com 


अनुक्रमणिका : 


समकालीन लघुकथा का सौन्दर्यशास्त्र

(अ) समकालीन लघुकथा का तात्विक सौन्दर्यबोध

(ब) समकालीन लघुकथा का शिल्पगत सौन्दर्यबोध

(स) समकालीन लघुकथा का वस्तुगत सौन्दर्यबोध


समकालीन लघुकथा को प्रभावित करने वाले कारक

राजनैतिक परिस्थितियाँ

धार्मिक परिस्थितियाँ

आर्थिक परिस्थितियाँ

सांस्कृतिक परिस्थितियाँ

सामाजिक परिस्थितियाँ


समकालीन लघुकथा का समाजशास्त्रीय सौन्दर्यबोध


प्रमुख लघुकथाओं का समाजशास्त्रीय सौन्दर्यबोध

समाजशास्त्रीय सौन्दर्यबोध से अभिप्राय

इसकी प्रसंगिकता

समकालीन लघुकथा का समाज से अन्तर्सम्बन्ध

समकालीन लघुकथा के बहाने पड़ताल

सामाजिक समस्याएँ

राजनैतिक समस्याएँ

आर्थिक समस्याएँ

सांस्कृतिक समस्याएँ

पारिवारिक समस्याएँ

धार्मिक समस्याएँ

नवीन मूल्यों की प्रतिष्ठा

अन्तर्विरोधी जीवन मूल्य


समकालीन लघुकथा में सौन्दर्यचेतना

यथार्थवादी चेतना

काल्पनिक चेतना

व्यावहारिक चेतना

मनोवैज्ञानिक चेतना


उपसंहार

समकालीन लघुकथा का चरमोत्कर्ष

समकालीन लघुकथा के सौन्दर्यबोध के क्षेत्र में प्रमुख उपलब्धियाँ

समकालीन लघुकथा के समाजशास्त्रीय सौन्दर्यबोध के क्षेत्र में प्रमुख उपलब्धियाँ

समग्र प्रभाव


परिशिष्ट

समकालीन लघुकथाओं का तात्विक सौन्दर्यबोध: कुछ उदाहरण

संवाद (बलराम अग्रवाल से डॉ. जितेन्द्र ‘जीतू’ की बातचीत)

लघुकथा- तंदूरी औरत


संदर्भ ग्रंथों की सूची


पुस्तक से लेखक के दो महत्वपूर्ण कथन :


1. ‘‘किसी भी युग में विधा में किसी भी विधा का शास्त्र होना अत्यावश्यक है। शास्त्र से ही विधा की विशेषताएँ स्पष्ट होती हैं। यह विशेषताएँ ही विधा की पहचान हैं। बिना शास्त्र के विधा वैसे ही है जैसे बिना साँचे में ढला कोई पात्र, जो साँचागत न होने के कारण बेडौल आकृति का हो जाता है। साँचा ही वह शास्त्र है जो विधा पात्र को संपूर्ण बनाता है। पात्र की एक समान गोलाई, मध्य का स्थान, उसका मुख्य आदि निर्धारित करने का दायित्व साँचे का होता है। यह दायित्व साँचा अपने पूर्ण दायित्वबोध के साथ निर्वहन करता है तथा एक पात्र को उसका पूर्ण आकार प्रदान करता है। यही पात्र का सौंदर्य है। तो पात्र का सौंदर्य है उसकी एक समान गोलाई, उसके मध्य का स्पेस, उसका मुख, उसका तला आदि। और यह सौंदर्य उसका साँचा निर्मित करता है। 

      विधा की बात करें तो विधा का सौंदर्य होता है उसकी विशेषताएँ, उसका उद्देश्य। यदि विधा का शास्त्र न होता तो उसकी विशेषताएँ न होतीं। विधा विशेष को अन्य विशेषताओं में से पृथक करके आँका नहीं जा सकेगा। कैसे आँका जा सकेगा जब उसमें भी वही गुण होंगे जो अन्य विधाओं में होंगे, उसका भी वही उद्देश्य होगा जो अन्य विधाओं का होगा। तो विधा विशेष कहाँ हुयी और अन्य से अलग किस प्रकार हुयी।

      इसी संदर्भ में समकालीन लघुकथा की बात करें तो लघुकथा का सौंदर्य होगा उसका तात्विक विवेचन, उसका शिल्पगत विवेचन और उसकी मूल संवेदना। अर्थात वे सब मौलिक गुण तो उसे लघुकथा बनाते हैं या उसे लघुकथा का रूप देते हैं।

      तार्किक विवेचना में यह देखना होगा कि वे कौन-कौन से तत्व हैं जो लघुकथा को लघुकथा का रूप देते हैं। वे कौन-कौन सी शिल्पगत विशेषताएँ हैं जिनसे यह ज्ञात होता है कि यह लघुकथा है (कहानी नहीं है)। लघुकथा की मूल संवेदना अन्य विधाओं की मूल संवेदना से निश्चित रूप से अलग होती है। लघुकथा के सौंदर्य का अध्ययन हम उसके सौंदर्य शास्त्र के अंतर्गत करते हैं। (पृष्ठ 15)


02. समकालीन लघुकथा में सौंदर्य चेतना के सन्दर्भ में सामाजिक चेतना के अन्तर्गत नारी चेतना पर बात करते हुए लेखक ने डॉ. सुरेश कानड़े का कथन उद्धृत करते हुए महत्वपूर्ण बात कही है- ‘‘डॉ. सुरेश कानड़े  समकालीन नारी में आस्था को तलाशते हुए लिखते हैं- ‘भविष्य के प्रति आस्था का कोई चिह्न दिखाई नहीं देता है। इसका परिणाम यह हुआ कि काम संबंधों या यौन संबंधों में एक प्रकार से खुलापन आ गया है। नैतिकता के लिए कोई स्थान नहीं रह गया है। नारी का संबंध अब एक साथ कई पुरुषों से हो गया है। कहीं मैत्री के रूप में तो कहीं यौन संबंधों के रूप में, तो कहीं यह संबंध क्षणांश के लिए प्रतिवश हो गये हैं।’ 

      यहाँ यह प्रतीत होता है कि नारी में सिर्फ काम संबंधी मामलों में, घर छोड़ने में, नित नये मित्र बनाने में तथा नये-नये पुरुषों से संबंध स्थापित करने में ही चेतना आयी है। जबकि ऐसा नहीं है। समकालीन नारी की सोच आज परिष्कृत हुयी है। यहाँ पर नरेंद्र कौर छाबड़ा की लघुकथा देखें-

स्वाभिमान/नरेन्द्र कौर छावड़ा

      मेहंदी लगाने के लिए जो लड़की आयी उसे देखकर एक बारगी सभी चकित रह गये। दूध-सा गोरा रंग, ऊँची कद-काठी, तीखे नक्श लेकिन गूंगी। बड़े मनोयोग से वह अपने कार्य में जुट गयी। सभी महिलाएँ बड़ी उत्सुकता से उसे तथा उसकी कला को निहार रही थीं। 

      एक महिला उस लड़की से कुछ बोली तो उसने लिखकर बताने का इशारा किया। उस महिला ने कागज पर लिखा- ‘आपकी बीमारी का इलाज हमारे शहर के माने हुए वैद्य जी कर सकते हैं।’ लड़की ने उसी कागज के नीचे अपना जवाब लिखा- ‘असंभव! मैं जन्म से गूँगी हूँ और काफी इलाज करा चुकी हूँ।’’ महिला ने दोबारा लिखा- ‘‘एक बार आजमाने से क्या फर्क पड़ता है? शायद आप ठीक हो जायें। तब कितना सुखी हो जायेंगी आप?’ 

      लड़की ने नीचे लिखा- ‘मैं आज भी इस हाल में संसार की सबसे सुखी लड़की हूँ।’ और वह धीरे से मुस्कुरा दी। 


      बताइए? इसे क्या कहेंगे? क्या यह नारी चेतना नहीं है कि एक गूंगी लड़की भी खुद को संसार की सबसे सुखी लड़की बतला रही है। यह चेतना उसमें क्यों जागृत हुयी? क्या उसकी संस्कृति का इसमें कोई रोल है? क्या वह शिक्षित है, इसलिये? क्या उसके पास कला है, इसलिये? वह कमाती है, इसलिए उसके भीतर चेतना आयी है। कमाने के लिए उसे घर से बाहर निकलना पड़ा। बाहर निकलने से पूर्व उसने शिक्षा भी प्राप्त की होगी और शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात उसने कला भी हासिल की होगी। तो ये सब भूमिकाएँ जो वह समाज में निभा रही है, ये सब चेतना के फलस्वरुप ही तो निभा पा रही है।’’ (पृष्ठ 237-238)



डॉ. जितेन्द्र ‘जीतू’

जन्म : 25 अगस्त 1965, बिजनौर

सम्प्रति : सर्व यू. पी. ग्रामीण बैंक, बिजनौर में कार्यरत।

साहित्यिक योगदान : जीतू जी मुख्यतः व्यंग्यकार हैं किन्तु आपने बाल-कथा के क्षेत्र में भी पर्याप्त कार्य किया है। पिछले कुछ वर्षों में आपने समकालीन लघुकथा आलोचना के क्षेत्र में बहुत प्रतिष्ठा अर्जित की है। जीतू जी ने समकालीन लघुकथा के सौंदर्यशास्त्र पर महत्वपूर्ण शोधकार्य करके पीएच. डी. की उपाधि अर्जित की है। 

प्रकाशित कृतियाँ : चार व्यंग्य संग्रह- आजादी के पहले आजादी के बाद, शहीद को पत्र, पति से कैसे लड़ें व काँटा लगा; दो बालकथा संग्रह- झूठ बोले कौवा काटे व कटी पतंग; लघुकथा शोधालोचना- समकालीन लघुकथा का सौंदर्यशास्त्र एवं समाजशास्त्रीय सौंदर्यबोध आपकी मौलिक कृतियाँ हैं। जीतू जी ने बैंक डिक्शनरी तथा डॉ. नीरज शर्मा ‘सुधांशु’ के साथ चार लघुकथा सकलनों- बूँद-बूँद सागर, अपने-अपने क्षितिज, सफर संवेदनाओं का एवं लघुकथा में किसान का संपादन किया है। 

पता : कविकुल, खरबंदा निवास, स्टेशन रोड, बिजनौर, उ.प्र.

फोन : +91-8650567854

ईमेल : jitendra.jeetu1@gmail.com

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