लघुकथा समीक्षा/भगीरथ परिहार

पुस्तक : लघुकथा समीक्षा

लेखक  : भगीरथ परिहार 

वर्ष  : 2018

आईएसबीएन  : 9781545723524

प्रकाशक  : 






अनुक्रम

1- भूमंडलीकरण के दौर में हमारी सांस्कृतिक चिंताएँ 

2 हिन्दी लघुकथाओं में दलित संघर्ष

3 मुट्ठीभर आसमान के लिए लघुकथा में स्त्री विमर्श 

4 लघुकथा के आईने में बालमन

5- सामाजिक मूल्यों के विघटन का परिदृश्य डॉक्टर पुणताम्बेकर

6 - लघुकथा : अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम

7 लघुकथा लेखन की प्रासंगिकता

8- हिन्दी लघुकथा की वर्तमान स्थिति

9 अनुत्तरित प्रश्न

10- परिचर्चा : कुछ मुद्दों पर

11 भगीरथ से साक्षात्कार : अनीता वर्मा

12 - भगीरथ से साक्षात्कार : त्रिलोक सिंह ठकुरेला

13 - भगीरथ से साक्षात्कार : सीमा जैन

14 - भगीरथ से साक्षात्कार : डॉ. लता अग्रवाल

पुस्तक में 'अपनी बात' शीर्षक से लिखित भूमिका :

अपनी बात

'हिन्दी लघुकथा के सिद्धांत' पुस्तक में हमने लघुकथा के सैद्धांतिक पक्ष पर विचार किया था। अब इस पुस्तक (लघुकथा समीक्षा) में हम समीक्षा के व्यवहारिक पक्ष पर फोकस करेंगे । भूमंडलीकरण के दौर को लघुकथा लेखकों ने किस तरह देखा है? इसका आकलन 'भूमंडलीकरण के दौर में हमारी सांस्कृतिक चिंताएँ लेख में किया गया है भूमंडलीकरण का वृद्धजनों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को लघुकथा ने बहुत अच्छे से बयान किया है।

विश्व बाजार में मनुष्य तो जैसे भावना शून्य हो गया है। वह हद से आगे जाकर व्यवहारिक हो गया है। भावनाओं से संचालित लोग मूर्ख नजर आते हैं। हर कोई प्रतियोगिता की दौड़ में दौड़े जा रहा है। उसे डर है कि कहीं वह पीछे रह गया तो उसका अस्तित्व संकट में पड़ जायगा। इस दौर में भाषाएँ लुप्त रही हैं, वेशभूषाएँ बदल रही हैं, जीवन शैली बदल रही है, लिव इन जैसी प्रेक्टिस हमारे सामाजिक जीवन में प्रवेश कर रही है; कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे जीवन के प्रत्येक आयाम में भूमंडलीकरण बदलाव ला रहा है। इसके कारण लघुकथा की वस्तु और शिल्प दोनों बदल रहे हैं।

'हिन्दी लघुकथाओं में दलित संघर्ष लेख में दलितों के दलन को रेखांकित करती लघुकथाओं का आकलन है। दलित विमर्श समानता की सोच का पोषण करती है और भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष का आह्वान करती है। दलितों के संघर्ष को उकेरने में हिन्दी लघुकथा अग्रणी रही है ।

'मुट्ठीभर आसमान के लिए : लघुकथा में स्त्री विमर्श' में पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री की दयनीय और शोचनीय स्थिति उजागर करती लघुकथाओं का आकलन है। हिन्दी लघुकथा ने जेंडर भेदभाव को ही रेखांकित नहीं किया है बल्कि यौन शोषण के विरुद्ध भी आवाज उठाई है।

'लघुकथा के आईने में बालमन में बाल मनोविज्ञान को लेकर लिखी लघुकथाओं का आकलन किया गया है। बच्चे सरल सहज और भेदभाव रहित होते हैं लेकिन परिवार और समाज उनमें भेदभाव के बीज रोपते हैं। अभिमन्यु अनत की कथा 'पाठ' की माँ बच्चे में काले गोरे के भेदभाव का बीज रोपती है । बालश्रमिकों की समस्या को लेकर भी लेखकों ने अच्छी रचनाएँ रची है । 'सामाजिक मूल्यों के विघटन का परिदृश्य : डॉक्टर पुणताम्बेकर' लेख में उनके लघुकथा कर्म को आलोचना की दृष्टि से देखा गया है। वे सामाजिक मूल्यों को अधिक महत्त्व देते हैं और उनके क्षरण से चिन्तित होकर अपनी कथाओं में उन पर व्यंग्य करते हैं ।

'लघुकथाः अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम लेख में स्पष्ट किया गया है कि अन्य विधाओं की तरह यह विधा भी अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। युगबोध को अभिव्यक्त करने में लघुकथा समर्थ रही है, तभी तो इसका इतना विस्तार हो रहा है, लेखकों और पाठकों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। हालाँकि इसकी गुणवत्ता पर अभी भी सवाल उठाए जा रहे हैं। 'लघुकथा लेखन की प्रासंगिकता देखने का नजरिया यह है कि क्या लघुकथा ने हमारे समय के यथार्थ को अभिव्यक्त किया है? क्या आमजन के दुःख दर्द और अपेक्षाओं को व्यक्त किया है ? अगर हाँ, तो इसकी प्रासंगिकता स्वयं सिद्ध है। 'अनुत्तरित प्रश्न' में लघुकथा सम्बन्धी महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर दिये गए हैं। 'परिचर्चा' में कुछ मुद्दों पर चर्चा की गयी हैं। इसी तरह विभिन्न साक्षात्कारों में लघुकथा संबंधी प्रश्नों के उत्तर प्रस्तुत किये गए हैं। समीक्षा सन्दर्भः डॉक्टर लता अग्रवाल का यह साक्षात्कार लघुकथा की समीक्षा से सम्बन्धित है

कुल मिलाकर यह पुस्तक पाठक को समीक्षा दृष्टि देने का प्रयास करती है। देखा जा रहा है कि लघुकथा का स्वरूप धीरे-धीरे बदल रहा है; उसके अनुरूप उसके समीक्षा मानदंड़ भी बदलेंगे ।

   

भगीरथ परिहार 

रावतभाटा (कोटा) राजस्थान में रहते हैं.  उन्होंने बी.एससी, बी.एड, एम.ए. (राजनीति शास्त्र व अर्थशास्त्र) तथा एल.एल.बी की शिक्षा ग्रहण की.लम्बे समय तक परमाणु ऊर्जा विभाग के केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापन करते हुए 2004 में सेवा निवृत होकर अब स्वतन्त्र लेखन में व्यस्त हैं.

सन 1972 से ही लघुकथा लेखन में सृजनरत. ‘अतिरिक्त’ (1972 फोल्डर पत्रिका)का संपादन तत्पश्चात  ‘गुफाओं से मैदान की ओर’(लघुकथा का पहला संकलन 1974 रमेश जैन के साथ सम्पादित), का प्रकाशन. अन्य सम्पादित पुस्तकों में पंजाब की चर्चित लघुकथाएँ व राजस्थान की चर्चित लघुकथाएँ (2001लघुकथा संकलन) पड़ाव और पड़ताल : खंड-4 (लघुकथा एवं समालोचना संकलन), ‘मैदान से वितान की ओर’ (श्रेष्ठ लघुकथाएँ) इन्टरनेट पर प्रकाशित.

मौलिक प्रकाशित पुस्तकें-‘पेट सबके हैं’ एवं ‘बैसाखियों के पैर’ (लघुकथा संग्रह). बाजीगर (कहानी संग्रह), हिंदी लघुकथा के सिद्धांत’ (सैद्धांतिक समालोचना)  एवं लघुकथा समीक्षा (समालोचनात्मक समीक्षा). कथा शिल्पी सुकेश साहनी की सृजन संचेतना (समीक्षा) 

दिशा प्रकाशन, दिल्ली; पंजाबी की मिन्नी पत्रिका, अमृतसर व लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल ने लघुकथा लेखन के लिए सम्मानित किया.                          

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