हिन्दी लघुकथा के सिद्धान्त /भगीरथ परिहार

पुस्तक : हिन्दी लघुकथा के सिद्धान्त 

लेखक : भगीरथ परिहार 

वर्ष  : 2018

आईएसबीएन  : 978-1-5457-1979-4

प्रकाशक : 

अनक्रम

1- हिन्दी लघुकथा : उद्भव और विकास

2- लघुकथा लेखन : आरोप, चेतावनियाँ व कमजोरियाँ

3- लघुकथा, लघुकहानी व लघुव्यंग्य के विवाद का हश्र

4- लघुकथा लेखन की सार्थकता

5- लघुकथा लेखन की समस्याएँ

6- लघुकथा लेखन की स्थिति और संभावनाओं की तलाश 

7- लघुकथा की सृजन प्रक्रिया का स्वरूप

8- प्रेमचंद और लघुकथा विमर्श

9- विदेशी भाषाओं की लघुकथाओं के माध्यम से
तकनीक की तलाश

10- आधुनिक लघुकथा की अवधारणा

पुस्तक में 'अपनी बात' शीर्षक से लिखित भूमिका :

इस पुस्तक में लघुकथा विधा के समक्ष विभिन्न समय पर आई चुनौतियों को लक्ष्य कर लिखे आलेख संकलित है। इन आलेखों के शीर्षक से अनुमान लगाया जा सकता है कि उस समय लघुकथा के समक्ष विवादित या चर्चित विषय क्या थे? पिछले चालीस वर्षों में ये लेख लिखे गए हैं। आज जब लघुकथा एक मुकाम हासिल कर लिया है तब यह जरूरी हो जाता है कि हम इसके इतिहास को जाने और समझें कि यह किन-किन मोड़ों से गुजरी है।
"हिन्दी लघुकथाः उद्भव और विकास के अंतर्गत लघुकथा के इतिहास का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है, साथ ही पिछली सदी के आठवें दशक में जो इसने नया स्वरूप अख्तियार किया था उसके महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षरों के रचनाकर्म का संक्षिप्त आकलन भी प्रस्तुत किया गया है। 'लघुकथा लेखनः आरोप, चेतावनियाँ व कमजोरियाँ लेख में इस पर लगे आरोपों का प्रत्युत्तर दिया गया है। संजीदा लेखकों की चेतावनियों पर भी चर्चा की गई है और उसकी कमजोरियों की तरफ भी इशारा किया गया है।
एक वक्त वह भी था जब इसके नामकरण को लेकर भयंकर विवाद था, कुछ इसे लघुकथा तो कुछ इसे लघुकहानी कहना चाहते थे कुछ व्यंग्य के पैरोकार इसे लघु व्यंग्य में सम्मिलित करना चाहते थे। लघुकथा. लघुकहानी व लघुव्यंग्य के विवाद का हश्र लेख में तार्किक रूप से यह बताया गया है कि इसे लघुकथा कहना ही उचित क्यों है? अब जब सारे विवाद थम गए हैं और साहित्य में 'लघुकथा' नाम को सभी स्वीकार कर रहे हैं। अब इस लघु कथा रचना का सर्वस्वीकृत नाम लघुकथा ही है। 'लघुकथा लेखन की सार्थकता को भी प्रश्न के घेरे में डाल दिया गया था कुछ तो इसे निरर्थक लेखन मानते थे या कहानी लिखने के पहले की गई वर्जिस मानते थे। इस लेख में 'लघुकथा लेखन की सार्थकता को पिछले पच्चीस वर्षों (लेख लिखे जाने के समय से) के सन्दर्भ में चर्चा की गई है। 'लघुकथा लेखन की समस्याएँ' लेख में 'लघुकथा लेखन की समस्याएँ' लेख में हम लघुकथा की मान्यता के प्रश्न से रूबरू होते हैं। ऐसे भी प्रयत्न हुए कि यह विधा नहीं, उपविधा है। सजग लघुकथा लेखकों ने ऐसे प्रयत्नों का विरोध किया और बताया कि यह उपविधा क्यों नहीं है? इसी लेख में लघुकथा की समीक्षा को लेकर भी विचार किया गया है।
'लघुकथा लेखन की स्थिति और संभावनाओं की तलाश लेख भूमंडलीकरण के दौर में लघुकथा लेखन की स्थिति का जायजा लेता है और संभावनाओं की तलाश भी करता है। सम्भावनाएँ अनन्त हैं। तेजी से बदलता समय हमें नये-नये कथ्य और शिल्प उपलब्ध कराता है। कथ्य और शिल्प के स्तर पर सम्भावनाएँ भरपूर है केवल उसका संधान किये जाने की जरूरत हैं ।
'लघुकथा की सृजन प्रक्रिया का स्वरूप लेख में लघुकथा की सृजन प्रक्रिया और रचना विधान पर चर्चा की गई है। 'प्रेमचंद और लघुकथा विमर्श लेख में प्रेमचंद की उपलब्ध लघुकथाओं को समक्ष रख कर यह आकलन किया है कि ये लघु रचनाएँ लघुकथाएँ है या नहीं निःसंदेह इनकी कुछ रचनाओं को लघुकथा की श्रेणी में रख सकते हैं ।
'विदेशी भाषाओं की लघुकथाओं के माध्यम से तकनीक की तलाश' लेख में विदेशी भाषाओं के लेखकों द्वारा लघुकथा में इस्तेमाल की कई तकनीकों का जायजा लिया गया है।
अंत में, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण 'आधुनिक लघुकथा की अवधारणा प्रस्तुत की गई है ताकि लघुकथा के स्वरूप को ठीक से समझा जा सके ।
चूँकि ये लेख अलग-अलग समय पर लिखे गए थे इसलिए इनमें दोहराव होना स्वाभाविक है; पुस्तक की इस कमी के लिए लेखक क्षमा प्रार्थी है।

भगीरथ परिहार 

रावतभाटा (कोटा) राजस्थान में रहते हैं.  उन्होंने बी.एससी, बी.एड, एम.ए. (राजनीति शास्त्र व अर्थशास्त्र) तथा एल.एल.बी की शिक्षा ग्रहण की.लम्बे समय तक परमाणु ऊर्जा विभाग के केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापन करते हुए 2004 में सेवा निवृत होकर अब स्वतन्त्र लेखन में व्यस्त हैं.

सन 1972 से ही लघुकथा लेखन में सृजनरत. ‘अतिरिक्त’ (1972 फोल्डर पत्रिका)का संपादन तत्पश्चात  ‘गुफाओं से मैदान की ओर’(लघुकथा का पहला संकलन 1974 रमेश जैन के साथ सम्पादित), का प्रकाशन. अन्य सम्पादित पुस्तकों में पंजाब की चर्चित लघुकथाएँ व राजस्थान की चर्चित लघुकथाएँ (2001लघुकथा संकलन) पड़ाव और पड़ताल : खंड-4 (लघुकथा एवं समालोचना संकलन), ‘मैदान से वितान की ओर’ (श्रेष्ठ लघुकथाएँ) इन्टरनेट पर प्रकाशित.

मौलिक प्रकाशित पुस्तकें-‘पेट सबके हैं’ एवं ‘बैसाखियों के पैर’ (लघुकथा संग्रह). बाजीगर (कहानी संग्रह), हिंदी लघुकथा के सिद्धांत’ (सैद्धांतिक समालोचना)  एवं लघुकथा समीक्षा (समालोचनात्मक समीक्षा). कथा शिल्पी सुकेश साहनी की सृजन संचेतना (समीक्षा) 

दिशा प्रकाशन, दिल्ली; पंजाबी की मिन्नी पत्रिका, अमृतसर व लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल ने लघुकथा लेखन के लिए सम्मानित किया।

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