लघुकथा-संग्रह-2020/सैली बलजीत
कथाकार : सैली बलजीत
प्रथम संस्करण: जुलाई 2020
ISBN : 978-9390216147
प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन, राजमंगल प्रकाशन बिल्डिंग, 1st स्ट्रीट, सांगवान, क्वार्सी, रामघाट रोड, अलीगढ़, उप्र. 202001, भारत
फ़ोन: +91-7017993445
अनुक्रमणिका
कितना फ़र्क
भीतर का आदमी
यह हादसा नहीं
हैवानियत
विवशता
दूरदर्शिता
आशंका
आत्म-ग्लानि
इस बार
इन्तज़ार
पत्थर होते लोग
कैसी पहचान
डर
जेबकतरा
निजात नहीं मिलती
समझदार
टूटा हुआ खिलौना
कालचक्र
रखवाली
अपना-अपना धंधा
घटियापन
कैसा दान
भीतर की टीस
अथक घोड़ा
स्वार्थ की हद
धंधा
कटी हुई ज़िन्दगी
विकल्प
मुनाफ़े का सौदा
मुखौटा
बाज़ारवाद
उसकी ज़रूरत
रिश्तों की अर्थी
गंदगी
पुण्य
साख
अशक्त उम्र
अंधेरे
कैसी हैवानियत
बेशर्म लोग
कितनी बार
क्षोभ
सोने की मुर्गी
फ़ौलाद होने तक
नया ज़माना
पत्थर दिल
पहला पड़ाव
ज्वारभाटा
मासूमियत
मुफ़्तख़ोर नही
कसूरवार
ऐसा तो नहीं था
उसकी तौबा
भूल-चूक
छुटकारा
ऊसूलों की लड़ाई
आत्मघाती निर्णय
चालाकी
दुनियादारी
वज्रपात
कैसी समझदारी
इन्सानी सांप
वह अब कहां लौट पाएगी...
उसकी चतुराई
समझौतों की बैसाखी
गंगा फिर नहीं बहेगी
अंधा-युग
निवृति-दंश
भूल
मशविरा
फ़र्क
वसूली
अब उसे यहीं रहना है
ये रास्ते कहां जाते हैं
मुझे अभी हिदायतों का पुलिन्दा मत थमाओ...
भेड़चाल
बापू की विरासत
पत्थर में तब्दील हुआ आदमी
विवश ज़िन्दगी जीने वाले
भूख तोड़ती भी है...
अच्छे दिन
दफ़्तर-पुराण
नयी शुरुआत
तंत्र
ख़ाली हाथ
जल्लाद
लपटें
पिंजरे का पाखी
सजा
जूठन
बेशर्म पीढ़ी
अछूत
अंधे युग के लोग
काग़ज़ी फ़रमान
जीने की चाह
जब पहाड़ टूटता है....
वह दोषी नहीं हो सकता...
लोकलाज
शातिर लोग....
उसे अब फौलाद होना है...
संग्रह से एक लघुकथा--'उसकी तौबा' :
वह जब सांझ ढले वापस आया तो झुग्गी की हालत देख भौंचक्का रह गया था. लकड़ी की खपचियों वाला दरवाजा ताले सहित उखड़ा हुआ दिखा था. उसने बुझे मन से इधर-उधर ताका था. चोर उसके बरतनों के अतिरिक्त पहनने वाले कपड़ों तक हाथ साफ़ कर गए थे. उसने माथा पकड़ लिया था. दिन-रात मेहनत की कमाई पर पानी फिर गया था. आस-पड़ोस वाले इकट्ठा हो गए थे.
"क्या-क्या चोरी हुआ है, बिरजू भाई...?" एक जना बोला था.
"गरीब के चार बरतन थे... ले गए...पहनने वाले कपड़े भी ले गए कमबख़्त.." बिरजू बुदबुदाया था.
"तुम घर में नहीं थे...?"
"दिहाड़ी के लिए तो जाना ई पड़ता है ना..."
"संजू तो घर ही में रहता है सारा दिन...? बाऊजी..."
"कहा था घर में रहने को... कहीं चला गया होगा घूमने..."
"चलो मिट्टी डालो... क्या बनेगा उन कमीनों का.. गरीब की बद्दुआ तो लगेगी ही..देख लेना..."
"क्या कर सकते हैं... बाऊजी..."
अब क्या सोचा है, बिरजू...? थाने में रपट लिखवानी है?"
"ना...ना...बाऊजी...क्या बात करते हो जी... दिहाड़ियां लगाने जाऊं या पुलिस वालों की मिन्नतें करता फिरूं...?"
"देख लो.बिरजू... थाने में रपट लिखवानी है...?"
"कहा ना... बाकी बचे चार पैसे भी गंवा दूं... पुलिस वाले ऐसे स्पट लिख लेंगे..? ना.ना... बाऊजी...रहने दो..." बिरजू ने कान पकड़कर तौबा कर ली थी. बिरजू ने सच ही दूर की सोची थी. आसपास के लोग खुसर-फुसर करते हुए अपने घरों की तरफ चले गए थे.
सैली बलजीत
जन्म : 7 जनवरी 1949
देश की शीर्षस्थ पत्रिकाओं में कहानियां प्रकाशित सैली बलजीत विद्युत इंजीनियरिंग के तकनीकी संयंत्रों के बीच नौकरी करने के उपरांत एस. डी. ओ के पद से कुछ साल पूर्व सेवानिवृत हुए हैं। उनकी कहानियों के कथानक और पात्र रोज़मर्रा जिंदगी के आम लोग होते हैं।
● विश्वविद्यालयों से एम.फिल हेतु शोध कार्य संपन्न। अनेक सम्मानों से अलंकृत। केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय (मानव संसाधन विकास मंत्रालय) नई दिल्ली के हिन्दीतर भाषी हिन्दी लेखन के अंतर्गत 'मुखौटों वाला आदमी' कृति पर राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त।
कहानी संग्रह : • अपनी-अपनी दिशाएं • गीली मिट्टी के खिलौने ● तमाशा हुआ था ● अब वहां सन्नाटा उगता है • बापू बहुत उदास है • यंत्र-पुरुष • समंदर में उतरी लड़की • मुखौटों वाला आदमी • घरौदे से दूर •अंधा घोड़ा • वह आदमी नहीं था • यह नाटक नहीं था ● टप्परवास • घोड़े अब हांफ रहे है • तुम यहां खुश हो ना चन्द्रमोहन
उपन्यास: मकड़जाल; नाटक : नागफनियों के देश में
लघुकथा : • खाली हाथ और लपटें • आज के देवता; कविता संग्रह : •पिताजी जब घर में होते हैं • छांव खतरे में है ● संस्मरण :• मेरे आईने में • अपने-अपने आईने • स्मृतियों के चलघर; संपादित कहानी संग्रह : •धूप में नंगे पांव •कर के दिन • खूबसूरत शहर और चीखें ●
शीघ्र प्रकाशय : मै बहुत उदास रहता हूँ- इन दिनों (कविता संग्रह)
संपर्क : 1288, लेन-4, श्रीराम शरणम कॉलोनी. डलहौजी रोड, पठानकोट (पंजाब)243001. फोन: 0986-2229440 (आवास);
मो.: 98780 38570
E-mail: sailibaljit@gmail.com
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