लघुकथा आलोचना-2021 / अशोक भाटिया (डॉ.)
लघुकथा आलोचना : लघुकथा में प्रतिरोध की चेतना
लेकिन : डॉ. अशोक भाटिया
प्रकाशक : उद्भावना, एच-55, सेक्टर 23, राजनगर, गाज़ियाबाद
मो. : 9811582902
प्रकाशक : उद्भावना, एच-55, सेक्टर 23, राजनगर, गाज़ियाबाद
प्रकाशन वर्ष : 2021
अपनी बात
लघुकथा में प्रतिरोध / अशोक भाटिया
प्रतिरोध विरोध का एक रूप है। विकासोन्मुखता उसका लक्ष्य है, जिसके पीछे बेहतर समाज का सपना होता है। प्रतिरोध वास्तव में स्वतंत्रता, समानता और न्याय के मूलभूत अधिकारों के लिए संघर्ष का क्रियात्मक रूप है। महेन्द्र । प्रजापति के शब्दों में कहें तो 'हर वह समाज जो अपनी अस्मिता के प्रति सचेता होता है, वह प्रतिरोध करता है।
प्रतिरोध के दो मार्ग या प्रकार होते हैं- अहिंसात्मक और हिंसात्मक। महात्मा गांधी ने अंग्रेज शक्तियों को चुनौती देने और उनसे भारत मुक्ति का लक्ष्य पाने का अहिंसात्मक मार्ग चुना, जिसका वैश्विक स्तर पर अनेक देशों ने अनुकरण भी किया। इसी मुक्ति के लिए भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद आदि अनेक स्वप्नदर्शी क्रांतिकारियों ने हिंसा का भी सहारा लिया, जिसकी ऐतिहासिक भूमिका और महत्व रहा है। एक और धरातल पर प्रतिरोध को व्यक्तिगत और सामाजिक- दो रूपों में देखा जा सकता है। व्यक्ति के रूप में प्रतिरोध को अस्तित्व के लिए संघर्ष के रूप में देख सकते हैं। विभिन्न शक्तियों द्वारा किये जा रहे अन्याय, अनैतिक या समाजविरोधी गतिविधियों की प्रतिक्रिया में व्यक्ति की बजाए सामाजिक संस्थाओं या वर्ग-विशेष द्वारा किया गया सांगठनिक प्रतिरोध अधिक प्रभावी होता है।
प्रतिरोध को साहित्य का स्थायी भाव कहा गया है। साहित्यकार मूल रूप में तो सत्ता की निरंकुशता का, गलत नीतियों का विरोधी होता है। इस अर्थ में वह सदा प्रतिपक्ष रचता है।
प्रतिरोध का साहित्य लेखकों और पाठकों को (गुनाहों के देवता के मंदिर बनाने वालों की बजाय) ईमानदार, वंचित, शोषित और संघर्षरत वर्ग के साथ जोड़ता है और इन वर्गों के पक्ष में जनमत तैयार करता है। प्रतिरोध की चेतना के पीछे वास्तव में परम्परागत जीवन-दृष्टि की जड़ता को तोड़ने का उपक्रम और बेहतर समाज का सपना सक्रिय रहता है। साहित्य का मूलभूत लक्ष्य यश और धन प्राप्त करना या मनोरंजन करना नहीं है। साहित्य का उद्देश्य जन-चेतना को जागृत करना है, ताकि बेहतर के लिए प्रतिरोध का मार्ग प्रशस्त हो सके। विश्व का अधिकतर प्रतिनिधि साहित्य परिवर्तनकामी है और यह प्रतिरोध का ही एक रूप है।
इघर लघुकथा हमारे समय की ज़रूरत बनकर सामने आई है। बीसवीं सदी के आठवें दशक में इसका जो नया रूप उभरकर आया है, उसका मूल्यांकन किया जाना अभी बाकी है। यहाँ हम हिन्दी लघुकथाओं में उभरकर आ रहे प्रतिरोध को सामने लाने का उपक्रम कर रहे हैं। विरोध चाहे प्रच्छन्न हो या मुखर वह प्रतिरोध की संस्कृति को समृद्ध करता है ।
अनुक्रम
1. लघुकथा की पृष्ठभूमि
2. प्रतिरोध और स्त्री समाज
3. प्रतिरोध के सामाजिक आयाम
4. प्रतिरोध का पारिवारिक पक्ष
5. अंधविश्वास : हमारी बेड़ियाँ
6. प्रतिरोध का दलित संदर्भ
7. राजनीतिक गलियारे
अशोक भाटिया
जन्म : 1955 अम्बाला छावनी (पूर्व पंजाब)
मातृभाषा: पंजाबी ।
रिटायर्ड एसोसिएट प्रोफेसर ।
प्रकाशित पुस्तकें : अब तक 35 पुस्तकें प्रकाशित। लघुकथा रचना और आलोचना के प्रमुख हस्ताक्षर। दो कविता संग्रह, दो - लघुकथा संग्रह – 'जंगल में आदमी', 'अँधेरे में आँख़' (मराठी, - तमिल, बांग्ला में भी), 'बालकाण्ड' (बाल लघुकथाएं)। बहुचर्चित संपादित पुस्तकों में 'पैंसठ हिंदी लघुकथाएं (दो सं.), 'निर्वाचित लघुकथाएं' (चार सं.) और 'नींव के नायक' । लघुकथा - विमर्श में 'परिंदे पूछते हैं (दो सं.) और आलोचना में 'समकालीन हिंदी लघुकथा' आदि ।
सम्मान : हरियाणा साहित्य अकादमी के घोषित 'बाबू बालमुकुंद गुप्त सम्मान' (2017) सहित अमृतसर, कोलकाता, पटना, शिलॉन्ग, इंदौर, हैदराबाद, रायपुर आदि की संस्थाओं द्वारा सम्मानित ।
संपर्क : बसेरा, 1882, सेक्टर 13, करनाल - 132001 (हरियाणा) ।
फोन : 184-2201202,
मो. : 9416152100
ईमेल : ashokbhatiahes@gmail.com
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