लघुकथा संग्रह 2019/सुरेश बाबू मिश्रा
कथाकार : सुरेश बाबू मिश्रा
प्रथम संस्करण : 2019
आई.एस.बी.एन. : 978-93-88471-85-5
प्रकाशक : अयन प्रकाशन, 1/20, महरौली, नई दिल्ली-110030
दूरभाष : 09818988613
ईमेल : ayanprakashan@rediffmail.com
अनुक्रमणिका :
1. गूँजते प्रश्न
2. समाधान
3. चुनाव
4. रेत के घरौंदे
5. चढ़ा हुआ पारा
6. बिडम्बना
7. विलुप्त होती प्रजाति
8. माहौल
9. वतन की मिट्टी
10. प्रयास
11. गूंज
12. उज्ज्वला योजना
13. समाज सेवा
14. गुणवत्ता
15. विधर्मी
16. इजाजत
17. सहमा हुआ शहर
18. कीमती सूट
19. नज़रिया
20. ज्वार भाटा
21. शहीद की विधवा
22. आशंकाएं
23. बेजुवां
24. सम्मान
25. भूख
26. विमोचन
27. बंधे हुए हाथ
28. नए मिजाज का शहर
29. सहनशीलता
30. मिशन
31. रिटर्न गिफ्ट
32. आखिरी प्रणाम
33. हवा का रुख
34. आजादी
35. सैल्फ डिफेन्स
36. उपवास
37. वतन
38. राष्ट्र द्रोह
39. इंजेक्शन
40. नियति
41. किराया
42. ठेंगा
43. गुबार
44. जुलूसों का शहर
45. लहरें
46. मजहब
47. बदलता परिवेश
48. उपयोगिता
49. नींद
50. कैरेक्टर सर्टिफिकेट
51. हुड़दंग
52. जीत का सेहरा
53. जिज्ञासा
54. उल्टा दांव
55. दलित
56. काउन्टर साइन
57. अपनी - अपनी चिन्ताएँ
58. बाढ़
59. हरिया में हरि
60. अपने-अपने उसूल
संग्रह से एक प्रतिनिधि लघुकथा :
गुबार
गरिमा आफिस जाने के लिए तैयार हो रही थी। वह अपने छोटे बेटे शलभ को स्कूल छोड़ते हुए अपने आफिस जाया करती थी। वह शलभ को स्कूल की यूनीफार्म पहना रही थी। शलभ चार साल का था और एल.के.जी. में पढ़ रहा था।
शलभ के पापा कल उसके लिए नए शूज लेकर आए थे। शलभ जिद कर रहा था कि वह नए शूज पहन कर ही स्कूल जायेगा। जब गरिमा ने उसे जबरदस्ती यूनीफार्म वाले शूज पहनाए तो वह जोर-जोर से रोने लगा। रोते-रोते उसने उल्टी कर दी जिससे उसकी पूरी यूनीफार्म भी खराब हो गई।
गरिमा परेशान हो उठी। उसने घड़ी पर नजर डाली साढ़े नौ बज चुके थे। आज वह फिर आफिस लेट पहुंचेगी और उसे बॉस की फटकार सुननी पड़ेगी, उसने मन ही मन सोचा।
उधर शलभ रोये जा रहा था। गरिमा की सास गरिमा को डांटते हुए बोलीं, “तुमने और अतुल ने उसकी आदते बहुत खराब कर दी हैं। तुम लोग इसकी हर जिद पूरी कर देते हो इसलिए यह दिन पर दिन जिद्दी होता जा रहा है।“
गरिमा पहले से ही बड़ी परेशान थी। सास की यह बात सुनकर उसे मन ही मन बड़ा गुस्सा आया, मगर उसने कहा कुछ नहीं।
उसने शलभ की यूनीफार्म चेंज की उसका हाथ मुंह धुलाया। वह शलभ को स्कूल छोड़ते हुए अपने आफिस पहुंची। गनीमत थी कि आज बॉस अभी नहीं आए थे इसलिए वह उनकी फटकार से बच गई।
गरिमा सीट पर बैठ गई और फाइलें देखने लगी, मगर आज उसका काम में मन नहीं ंलग रहा था। एक तो पूरे दिन काम में खटते रहो और ऊपर से सास की जली-कटी सुनो। हर समय उसी को डांटती रहती हैं, अपने पोते या बेटे से कुछ नहीं कहती हैं। पूरे दिन उसके मन में एक गुबार-सा उठता रहा।
आफिस में कन्डोलेंस हो गई थी, इसलिए आफिस दो बजे ही बन्द हो गया था और सब लोग अपने-अपने घर चले गये। बाहर बला की गर्मी थी। घर पहुँचते-पहुँचते गरिमा पसीने से पूरी तरह तर-बतर हो चुकी थी।
उसने कालवेल बजाई। सास ने आकर दरवाजा खोला। गरिमा को देखते ही वे बोलीं- “अरे बेटी तुम! आज इतनी जल्दी।“
गरिमा ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह अन्दर आ गई। उसने बैग मेज पर रखा तब तक सास फ्रिज में से एक गिलास ठण्डा पानी गरिमा को देते हुए बोली, “लो बेटी पानी पी लो, देखो धूप में तुम्हारा चेहरा कैसा मुरझा-सा गया है। तुम कपड़े बदल लो तब तक मैं तुम्हारे लिए चाय बना देती हूँ।“
अपने प्रति सास का प्यार देखकर गरिमा के मन का सारा गुबार उड़न छू हो गया था। वह सोचने लगी। सास हैं तो क्या हुआ हैं तो माँ। डांटती हैं तो इतना प्यार भी तो करती हैं।
सुरेश बाबू मिश्रा
जन्म तिथि : 05.07.1956
जन्म स्थान : ग्राम चन्दोखा, तहसील दतागंज, जिला बदायूँ, उ.प्र.।
शिक्षा : भूगोल एवं अंग्रेजी में स्नातकोत्तर एवं बी,एड.।
योगदान : राजकीय इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत। 1984 से साहित्य सेवारत। कहानी, लघुकथा एवं सामाजिक आलेख विधाओं में सृजनरत। समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं में अनेक रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी के रामपुर व बरेली केन्द्रों से रचनाओं, वार्ताओं एवं साक्षात्कारों का प्रसारण। दो लघुकथा संग्रहों सहित दर्जन भर पुस्तकें प्रकाशित।
सम्मान व पुरस्कार : उ.प्र. सरकार के प्रतिष्ठित सम्मान ‘साहित्य भूषण’ तथा ‘मीर तकी मीर पुरस्कार’, हिन्दी साहित्य परिषद प्रयागराज द्वारा ‘कथाश्री सम्मान’ सहित अनेकों सम्मान एवं पुरस्कार से अलंकृत।
संपर्क : ए-373/3, राजेन्द्रनगर, बरेली-243122, उ.प्र.
मो. 09411422735
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें