अभिव्यंजना/डॉ. कमल चोपड़ा (सं.)

लघुकथा-संकलन  : अभिव्यंजना 

संपादक  : डॉक्टर कमल चोपड़ा 

ISBN : 978-81-943270-5-9

प्रथम संस्करण : 2020

प्रकाशक : कौशिक पब्लिशिंग हाउस ए-49, गली नं. 6, जगतपुरी एक्सटेंशन दिल्ली 110093, 

मो. : 0-9811827837

अनुक्रम

लेख

1. कमल चोपड़ा- गहन तहों में छिपे सूक्ष्म सत्यों का यथार्थान्वेषण

2. अशोक भाटिया पंजाबी मिन्नी कहानी का वर्तमान

3. बलराम अग्रवाल-हिन्दी लघुकथा में नारी अस्मिता 

4. सतीशराज पुष्करणा-हृदय तल को स्पर्श करतीं लघुकथाएँ

5. मृत्युंजय उपाध्याय जीवन सत्य से मुलाकात

6. लता अग्रवाल-लघुकथा में लघुता 

7. अनिता राकेश- लघुकथा में गाँव का सुख-दुःख

8. कल्पना भट्ट लघुकथा की श्रेष्ठता में संवाद की भूमिका

9. ध्रुवकुमार हिन्दी लघुकथाओं में बुजुर्ग पात्रों का चरित्र चित्रण

10. नीरज सुधांशु लघुकथा में नवीन विषयों की आवश्यकता

स्मृति

1. साहित्य को हवा, पानी और धूप समझनेवाला साहित्यकार रामकुमार आत्रेय -राधेश्याम भारतीय

सृजन

1. अदिति मेहरोत्रा- पतंग

2. अनघा जोगलेकर -इकाई और शून्य

3. अनिता रश्मि- कारण

4. अनिल शूर आजाद- वह पार्कवाली लड़की

5. अन्तरा करवड़े- किरचें

6. अभिषेक चन्दन- अष्टावक्र : उत्तर आख्यान

7. अर्चना तिवारी पूर्वाभास / बोझ

8. अर्चना वर्मा इस बार उपहार औकात गुनहगार / मुक्ति

9. अलका मित्तल दृष्टिकोण

10. अशोक बैरागी कसौटी

11. अशोक भाटिया-जिन्दगी के साथ/ देवता

12. अश्विनीकुमार आलोक शुभकामनाएँ

13. आलोक चोपड़ा-धंधा

14. आशीष दलाल-फसल

15. इन्द्रा स्वण श्रद्धा

16. उर्मि कृष्ण रक्षा

17. उषा लाल-सुबह का भूला 

18. ॠता शेखर 'मधु'- अपराध

19. ओम् प्रकाश अंशु विश्व समस्या 

20. ओम् प्रकाश 'करुणेश'- सत्संग

21. कमल चोपड़ा एक पेड़ / मिठास की बात

22. कमलेश भारतीय बहुत दिनों बाद/स्त्री /यह घर किसका है?

23. कल्पना भट्ट कलाकृति 

24. कान्ता रॉय- परवरिश / पगहा

25. कुँवर प्रेमिल - यू टू मी टू

26. कुमार नरेन्द्र -माँ पन्ना

27. गोपालनारायण आवठे- जय जय श्रीराम

28. चन्द्रेश कुमार छतलानी- दायित्वबोध

29. चित्तरंजन गोप- हजार साल बाद

30. जगदीश राय कुलरियाँ - हमदर्दी

31. ज्योत्स्ना 'कपिल' रोबोट

32. ज्ञानप्रकाश 'पीयूष' - नाग देवता 

33. तारिक असलम 'तस्नीम' ख़ुदा की मर्जी

34. निरंजन धुलेकर-छन्न! 

35. नीतू मुकुल- अकीदत

36. नीना छिब्बर- खारापन

37. नीरज सुधांशु कुम्भकार

38. पवन जैन-इंसाफ

39. पूर्णिमा मित्रा रिश्तों का जंगल

40. प्रतापसिंह सोढ़ी-मुझे जीना है 

41. प्रबोधकुमार गोविल-दो तितलियाँ और चुप रहनेवाला लड़का

42. प्रभास कुमार प्रभास'- जिजीविषा

43. प्रभात दुबे-चश्मा

44. प्रहलाद श्रीमाली जिन्दगी की रफ्तार

45. प्रेरणा गुप्ता- एक घूँट की प्यास

46. बलराम अग्रवाल- डूब / अकेला कब गिरता है पेड़

47. भगवती  प्रसाद द्विवेदी आबरू

48. भगवान वैद्य 'प्रखर' श्रद्धा

49. भगीरथ बजरंगी

50. मधु जैन निवाला

51. मधुकांत मौसम बच्चा / हर कोई हिरण्यकश्यप

52. मधुवीप प्रेमी, पति और बीसवीं सदी का मर्द /योद्धा पराजित नहीं होते

53. महेश राजा अपना चेहरा

54 मिन्नी मिश्रा-अहं

55. मीरा सिन्हा- गली में कुत्ता

56. योगराज प्रभाकर कुक्कुर जात / सखा

57. योगेन्द्रनाथ शुक्ल- महापुरुष

58. रजनीश दीक्षित हाथी के दाँत

59. रवि प्रभाकर कुकनूस 

60. राजकमल सक्सेना उसका लाल खून

61. रामकुमार घोटड़-समझ का फर्क / भगवान और पुजारी 

62. राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी 'बन्धु'- मूल्यांकन

63. राजेन्द्र राकेश राज

64. राधेश्याम 'भारतीय'- कमी

65. रामकरन - हार

66. रामकुमार आत्रेय हनी ट्रैप / सलाम रिश्ता

67. रामनिवास 'मानव' कारण 

68. रामयतन यादव- ऊँची नाक

69. रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' कालचिड़ी

70. रूप देवगुण- पहली पंक्ति / पर फिर भी

71. लता अग्रवाल - ममता / न्यू इयर गिफ्ट

72. लवलेश दत्त सुरक्षा

73. लाजपतराय गर्ग- ब्रह्मास्त्र

74. वाणी दवे उजाले बेचनेवाले लोग

75. विनीता परमार तबादला 

76. विनीता राहुरीकर - दहलीज का बंधन

77 विनोदकुमार दवे - बदला 

78 वीरेन्द्र 'वीर' मेहता -जवाब

79 शील कौशिक- छूटा हुआ सामान

80. श्यामसुन्दर अग्रवाल- माँ की चिन्ता/गुलाबवाला कप 

81. श्यामसुन्दर दीप्ति शार्पनर/गुलाबी फूलोंवाले कप

82. संगीता गोविल लड़ाई

83. संतोष सुपेकर- गिनीपिग्स

84 संदीप तोमर जनहित

85. संध्या तिवारी-क्षेपक

86. सतीशराज पुष्करणा-साँप और छुछुन्दर/काँटे-ही-काँटे

87. सत्यप्रकाश भारद्वाज घर वापसी

88. सत्या शर्मा 'कीर्ति'- यादों की बारिश

89. सविता इन्द्र गुप्ता-बड़ा कौन

90. सविता मिश्रा 'अक्षजा'- प्यार की महक

91. सारिका भूषण नशा

92. सीताराम गुप्ता क्षतिपूर्ति

93. सीमा जैन लक्ष्मी की कद्र / दोतरफा जाँच

94 सीमा वर्मा अंजलि के फूल

95.  सुकेश साहनी हैंगओवर/इंडिकेटर/विरास

96 सुरेन्द्र गुप्त अंधा  निर्णय

97  सुरेश बाबू मिश्रा- सिविलियन

98 सुशील चावला   मरने के बाद

99 सुषमा गुप्ता पूरी तरह तैयार

100 स्नेह गोस्वामी- वह जो नहीं कहा 

101. हरनाम शर्मा विकलांगता

फ्लैप-1 पर लिखी गयी डॉ. कमल किशोर गोयनका की टिप्पणी : 

बीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों में जब 'उपन्यास मर गया' तथा 'कविता का दौर खत्म हो गया' जैसे नारे साहित्य हो रहे थे, तब कथा-कुल की एक छोटी संतान में बुलंद 'लघुकथा' हिंदी साहित्य में बड़े धूम धड़ाके के साथ अवतरित हो रही थी। संभवतः जीवन की जटिलताओं, व्यस्तताओं तथा मीडिया के प्रभाव से उपन्यास पर्व महाकाव्य जैसी विधा पाठकों से दूर होती जा रही थीं और 'लघुकथा' अपनी लघुता, जीवंतता तथा मार्मिकता के कारण जीवन के निकट आती हुई एक बड़े वर्ग को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। विधाओं का उत्थान और पतन समय से संबद्ध होता है। एक समय का जैसा पाठक-समाज है तथा समाज का जैसा जीवन है. साहित्य की विधाएँ भी उसी रूप में आकार लेती हैं और विकसित होती हैं। इस शताब्दी के अंतिम दौर में यदि उपन्यास अपठनीय बनता जा रहा है और लघुकथा व्यापक आकर्षण का केंद्र बनी है तो उसके मूल में युग के जीवन और उसकी परिस्थितियों का योगदान भी महत्त्वपूर्ण है। आज उपन्यास, महाकाव्य आदि पढ़ने का समय और धैर्य किसी के पास नहीं है। साथ ही मीडिया के विस्तार ने इन्हें पाठकों की दृष्टि में उपेक्षणीय बना दिया है, लेकिन लघुकथा अपने सीमित एवं लघु आकार के कारण पाठकों की प्रिय विधा बन गई है और अब हिंदी का कोई अखबार तथा साहित्यिक पत्रिका ऐसी नहीं है जिसमें लघुकथा को स्थान न मिलता हो। लघुकथा की यह सर्वस्वीकृति उसकी जीवंतता एवं लोकप्रियता का प्रमाण है और मेरा विश्वास है कि इक्कीसवीं शताब्दी में प्रवेश करते समय भी इस स्थिति में कोई परिवर्तन होने वाला नहीं है। वास्तव में, लघुकथा की लोकप्रियता इक्कीसवीं शताब्दी में भी कम नहीं होगी, क्योंकि जीवन की जटिलताएँ एवं व्यस्तताएँ निरंतर बढ़ती जाएँगी और मनुष्य के पास सैकड़ों पृष्ठों के उपन्यास और महाकाव्य पढ़ने का समय ही नहीं होगा समय की यह विरलता पाठक में लघुकथा के रूप में जीवन के सत्य को पहचानने की उत्सुकता उत्पन्न करेगी और यदि इन परिस्थितियों में प्रतिभावान लेखकों की रचनात्मकता का भी स्पर्श लघुकथा को मिल गया तो इसमें संदेह नहीं कि लघुकथा इक्कीसवीं शताब्दी की भी लोकप्रिय विधा के रूप में अपना स्थान बनाकर रख सकेगी।

लघुकथा एक शुद्ध साहित्यिक विधा है, जैसी उपन्यास, कहानी, नाटक, महाकाव्य आदि विधाएँ हैं। लघुकथा कथाकुल में उपजी है और वह इस पर गर्व कर सकती है कि वह एक समृद्ध कथा कुल में जन्मी है। लघुकथा की इस शुद्ध साहित्यिकता पर यदि कोई संदेह करता है तो आश्चर्य होता है।

इस संकलन से एक लघुकथा :

मीरा सिन्हागली में कुत्ता है 

सुबह का समय, यानी व्यस्तता का समय। उस व्यस्तता में पड़ोस के घर में एक बड़ा ही स्नेहिल आवाज रोज सुनाई देता है--"बहू, ठीक से जाना, गली में कुत्ता है।" 

कुछ दिनों बाद उसी घर से रात में लगभग तीसरे पहर में किसी के कराहभरे रुदन से मेरी नींद टूट जाती है। परन्तु थोड़ा ध्यान से सुनने पर उसी के बगलवाले कमरे में हो रही एक वृद्ध दम्पती की वार्ता भी मुझे हल्की-हल्की सुनाई देती है--

पुरुष : यह कौन कराह रहा है ?

स्त्री : शायद बहू!

पुरुष : बहू! इतनी रात को क्यों? 

स्त्री : कुत्ते ने काट लिया है।

पुरुष : कुते ने काटा है? घर में? इतनी रात गए? तब तो उसे जख्म हो गया होगा? उसे डॉक्टर के यहाँ ले चलो। इंजेक्शन लगवाओ।

स्त्री : कोई जरूरत नहीं (चिढ़कर)। जख्म दिखता नहीं है और ना ही कोई इंजेक्शन काम करेगा।

पुरुष : क्या पहेली बुझा रही हो? यह कैसा कुत्ता है?

स्त्री: जैसा हमने जना है।

डॉ. कमल चोपड़ा

जन्मतिथि : 21 सितम्बर, 1955 

शिक्षा : चिकित्सा-स्नातक

लेखन : कहानी, बाल-कहानी, लघुकथा आदि लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ, लघुकथाएँ व बाल कहानियाँ प्रकाशित । 

प्रकाशित कृतियाँ : अतिक्रमण, भट्ठी में पौधा (कहानी-संग्रह); अभिप्राय, फंगस, अन्यथा, अनर्थ, अकथ (लघुकथा संग्रह); मास्टरजी ने कहा था (बाल उपन्यास)।

सम्पादित लघुकथा-संकलन : हालात, प्रतिवाद,

अपवाद, आयुध, अपरोक्ष, समकालीन लघुकथा : सृजन और विचार। 

विशेष : संरचना (वार्षिक) नामक लघुकथा केन्द्रित पत्रिका का 2008 से सम्पादन/प्रकाशन। 

सम्प्रति : स्वतन्त्र लेखन एवं चिकित्सा।

सम्पर्क : 1600/114, त्रिनगर, दिल्ली 110035

फोन: 011-27381899

मोबाइल : 9999945679

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