कल हमारा है-1986/मदन अरोड़ा (सं.)

(शराफत अली खान के सौजन्य से)

लघुकथा-संकलन:  कल हमारा है (काव्य एवम् लघुकथा संग्रह)

सम्पादक : 

मदन अरोड़ा

प्रकाशक :

युवा लेखक संघ, श्रीगंगानगर

प्रथम संस्करण : 1986

सर्वाधिकार सुरक्षित :

© युवा लेखक संघ, श्रीगंगानगर

सम्पादकीय पता :

132, मुकर्जी नगर, श्रीगंगानगर - 335001 (राज.) 

आवरण पृष्ठ : कृष्ण कुमार 'राजे'

सहयोग राशि

पेपरबैक : 12 रुपये मात्र; 

सजिल्द : 20 रुपये मात्र

(रजि० डाक से 4 रुपये अतिरिक्त)

मदन अरोड़ा की भूमिका :  'अपनी बात'

पहली बार जब कागज कास्थि लिए पहली बार किसी मानव ने कलम उठाई और साहित्य की परिभाषा लिखी। तब जो कम्पन उस हाथ से अनुभव किया होगा, वही कम्पन मैं अपने हाथों में अनुभव कर रहा है। ज्ञान के अन्तर पर थोड़ा-सा प्रकाश लाने का सामर्थ्य जुटा सके, यही इस संकलन का उद्देश्य रहा है और साहित्य सृजन के लिए इस प्रकार की कमाई अब हृदय की गहराई तक अनुभव की भी जानी चाहिए।

'कल हमारा है' से जुड़े अनुभव मुसीबतों के जंगल का आभास कराते हैं और सहसा अनुभव होता है कि साहित्य सिर्फ लिखने और पढ़भर जाने की चीज नहीं है। साहित्य को दोगली राजनीति, लाभ-हानि और आरोप-प्रत्यारोप से सहेज कर जनमानस तक पहुँचाने की इस निर्लिप्त महत्त्वाकांक्षा ने मुझे लेखक होने के कई अर्थ दिए हैं लेकिन अंतिम यत्न यही रहा है कि 'कल हमारा है' स्वस्थ साहित्य का हामी बने। अन्याय के विरुद्ध न्याय के पाञ्चजन्य,  असत्य के प्रति सत्य का सिंहनाद और तिमिर की सत्ता की स्पर्धा में आलोक का आह्वान करता 'कल हमारा है। साहित्य को धरियों से मुक्त करने का आग्रह कर रहा है। साहित्य किसी की आलमारी का ही सामान न बने, साहित्य किसी व्यक्ति विशेष की इलाघा का माध्यम न हो और वह किसी तथाकथित लेखक के पिता की विरासत न बने यह संकलन इन मिथकों को तोड़ने का प्रयास करता भी प्रतीत होगा। शब्द सिर्फ भैंस की बराबरी न करें, भाव सिर्फ कुण्ठा ही न दर्शाएं, व्याकरण मात्र सजावट के काम न आाए और कविताएं उकताहट पैदा करने का साधन न बने यही मानस बनाकर 'कल हमारा है' को प्रस्तुत किया है।

दुनिया चमक-दमक देखती है, ऊपर का श्रावण देखती है, आवरण के नीचे जो ठोस सत्य है, उस पर कितने लोगों का ध्यान जाता हैं। ठोस सत्य सदा शिवम् ही है किन्तु वह हमेशा ही सुन्दरम् भी हो यह आवश्यक नहीं। सत्य हमेशा कठोर होता है हम कठोरता से दूर भागते हैं। इसलिए सत्य से भी दूर भागते हैं। नहीं तो हम इमारत के गीत नींव की ईंट से प्रारम्भ करते। धन्य है, वह ईंट जो कट-छँटकर कंगूरे पर चढ़ती है और बरबस लोक-लोचनों को अपनी ओर आकर्षित करती है, किन्तु उससे भी अधिक धन्य वह ईंट है जो जमीन के सात हाथ नीचे जाकर गड़ गई और इमारत की पहली ईंट बनी, क्योंकि पहली ईंट पर ही उसकी मजबूती और पुख्तेपन पर सारी इमारत की प्रास्ति-नास्ति निर्भर है। कंगूरे बनने की महत्त्वाकांक्षाओं के घेरे को तोड़कर नींव की ईंट बन जाने का आग्रह हो 'कल हमारा है' का मिशन है।

कह सकते हैं कि रचनाओं के निष्पक्ष सम्पादन, प्रकाशन काल की संवादहीनता, संयोजन सम्बन्धी आपदाओं एवम् आर्थिक स्रोतों को जुटाने के उपक्रम में यह संकलन तब आपके हाथों में नहीं आ सका, जब हमने तय किया था। हम इसके लिए क्षमाप्रार्थी हैं। 'कल हमारा है' भविष्य के प्रति आशाओं का द्योतक है। हम कुछ हृदयों में यह आशा पोषित कर सकें तो मानेंगे कि हम उत्तीर्ण रहे। यह भी कि यह पहला प्रयास है, आखिरी नहीं। उन तमाम हृदयों का आभार जिन्होंने 'कल हमारा है' के प्रति ममता रखी। उन सभी सहयोगियों का धन्यवाद जो अनुभव कराते रहे कि हम अकेले नहीं, और उन तमाम व्यक्तियों का भी आभार जिनसे हमने कई तरह के कई पाठ सीखे हैं। व्यक्तिगत रूप से मैं श्री सुशील बिहारणी जी (अध्यक्ष, बिहारणी शिक्षा न्यास, श्रीगंगानगर) का आभारी हूं जिनके सहयोग की वजह से 'कल हमारा है' का प्रकाशन बहुत आसान हो गया। मुद्रक श्री सुभाष बंसल का भी प्रभारी हूँ जिनके सौजन्य के कारण दूर बैठे भी पुस्तक सज-सवंर कर आपके हाथों में आ सकी है। अनुभवहीन होने के कारण हो सकता है संग्रह में कई कमियां रह गई हों। हमारा प्रयास रहेगा कि अगले प्रकाशन और भी सुन्दर व स्तरीय बनें। साहित्य को समर्पित तमाम चेहरों को साधुवाद। संकलन के प्रति आपके विचार, आलोचना व सुझावों की प्रतीक्षा रहेगी। जय भारत।

132, मुकर्जी नगर                        मदन अरोड़ा

श्रीगंगानगर (राज.)                               अध्यक्ष

                                            युवा लेखक संघ

                                         श्रीगंगानगर (राज.)

अनुक्रम 

रचना

खामोश शहीद / अलबेला खत्री

सम्प्रदाय के शहर में / अनिल डोरा

मुझे दहेज दो / अशोक बब्बर 

काल चिंतन / अरुण कुमार सिंह राठौड़

बिलासिका / अशोक भाटिया

सजा / बाली सम्भू

इज्जत प्रतिष्ठा / चन्द्रभूषण सिंह 'चन्द्र'

बुलेट प्रूफ / सी. दास बांसल

बंटवारा / जयपाल

मेरा स्कूल / चांद शर्मा

सिद्धान्तों का जनाजा / डालचन्द पोरवाल

बेबस / हरीश खुराना

अन्तहीन कहानी / गंगाशरण 'विनम्र'

पेट / किष्ण मार्तण्डी

अथ कलयुगे / जयप्रकाश दुबे 'राज'

पत्थर से पत्थर तक / कमल चोपड़ा

अपोंइण्टमेंट / कामिल अन्सारी

खैरात / डा. पाँडुरंग भोपले

दूरदर्शिता / किशोर जोशी

विकास-पथ / किशोर खुराना

स्वयंवर / मदन अरोड़ा

हल्फिया बयान / महेश संतुष्ट

रफ्तार / महीपाल सिंह

निगाह / मासूम गंगानगरी

अमीर होने का लाभ / मेघराज पोरवाल

कुएं की मौत / मोहन लाल गुप्ता

खेमों में / मोहन योगी

फैशन / डॉ. नरेन्द्र नाथ लाहा

शार्ट कट / प्रमोद कुमार शर्मा

तस्वीर के पहलू / राजकुमार 'कमल'

फिफ्टी-फिफ्टी / रामयतन प्रसाद यादव

फिर कब आयेगा / सतीश कसेरा

स्थिति / सतीशराज पुष्करणा

महाचोर / शराफत अली खान

हवन कुण्ड / सनी विजय

इज्ज़त / सुरेन्द्र 'पड़ोसी'

दर्द का अहसास / सुरेन्द्र कुमार 'अंशुल'

अपना दर्द / सुरेन्द्र तनेजा

टिकट / सूर्य गिरी शास्त्री

आदमखोर / तारिक असलम 'तस्नीम'

कोशिश / यश खन्ना 'नीर'

न्याय / चन्द्रकान्त त्रिवेदी 'घनश्याम'

मूल्य परिवर्तन / माधव नागदा

नसबन्दी / राजेन्द्र गंभीर


मदन अरोड़ा

जन्म : 9 फरवरी 1954 (मुजफ्फर नगर, उत्तर प्रदेश)

शिक्षा : एम० ए०., बी. एस. सी., आयुर्वेद रत्न।

संप्रति : स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एण्ड जयपुर, मुख्य शाखा श्रीगंगानगर में कार्यरत।

प्रकाशित कृति : 'कुसुम' काव्य संग्रह।

पता : 132, मुकर्जी नगर, श्रीगंगानगर (राज.) पिन 335001

लेखन की विधाएं: कविता, लघुकथा, लेख, आदि ।

अन्य गतिविधियाँ :

अध्यक्ष, युवा लेखक संघ, श्रीगंगानगर, (राज.) पिन 335001 

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