यथार्थ-1987/मोहन 'अनंतसागर' (सं.)

 (शराफत अली खान के सौजन्य से)

यथार्थ (लघुकथा संकलन)

(गुलदस्ता रचना मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता-1987 के परिणाम एवं लघुकथा के कुछ अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों का ऐतिहासिक संकलन)

संपादन 

मोहन 'अनंतसागर'

संयोजन 

प्रकाश 'पंकज'

कला सलाहकार

असलम खान 

अशोक कुमार चौहान

संपादन सहयोग

अनिल पुरोहित 'हँसमुख 

महावीर 'अनजान'

राकेश कुमार सिडाना

रेवत प्रजापति

अजीत सिंह आर्य

अनुक्रम

संपादकीय : यथार्थ कल्पना और वस्तुत: ....1 संयोजकीय : यथार्थ से पहले....5

प्रतियोगिता निर्णायिकी : क्या कहते हैं निर्णायक?9 

प्रतियोगी लघुकथाएँ- प्रथम पुरस्कृत (एक) पार्टी अशोक लव 13 - द्वितीय पुरस्कृत (दो) लकीर कमल चोपड़ा 14 खून का रिश्ता.... रामाधार सत्यार्थी 15। तृतीय पुरस्कृत (तीन) दंगा देवेन्द्र कुमार 17 | दुश्मन - रीता सचदेव 17। भूखे पेट की नैतिकता मार्टिन जॉन अजनबी 18 |

प्रशंसित (शेष सभी) विश्वास : अविश्वास - नरेशचन्द्र 'नरेश' 19 | कार्यकर्ता सुरेन्द्र मंथन 21 - परम्परा का बोझ रतीलाल शाहीन 22 - परमपिता अशोक भाटिया 23 पैतृक काम रमेश अस्थिवर 24 पवित्रता अपवित्रता - सबीहा खातून 25 जाने कब वरदीचन्द्र राव 'विचित्र' 27 | नागपूजा बलराम अग्रवाल 28 लूट खसोट कमल चोपड़ा 29 । आर्थिक स्थति, वह अभ्र प्रज्ञात 30 | सपना - डॉ. पाण्डुरंग भोपले 31 । इत्मीनान सैली बलजीत 32। परिवर्तन मुकेश कुमार जैन - 'पारस' 331 बदला यथार्थ अजयकुमार शर्मा 34 परकोटे के कैदी नीलप्रभा भारद्वाज 34 । व्यवसाय, मादडण्ड - भगवान वैद्य 'प्रखर' 36 | ओरत सुरेश जांगिड़ 'उदय' 39 धीरे-धीरे मुकेश शर्मा 39 | सता का नशा मुकेश कुमार 40 अहिंसा गणेश राम 'बी.ए.' 40 पहचान - प्रकाश तातेड़ 40 परित्यक्ता रोहताश तंवर 41 ग्रात्महत्या - कु. पुनितासिंह 42 असली प्रश्रयदाता, अभिवादन : केशव दिव्य 44 दुश्मनी पं. सत्येन्द्र दीक्षित 45 सुरसतिया का हिस्सा अनिल कुमार अंशुमाला 46। सह-अस्तित्व - शराफत अली खान 47 । निर्णय : रमेश अस्थिवर 48 भाग्य विधाता रूप देवगुण 49 समदर्शी रोहित - - कुमार 'हैप्पी' 49 । वही अंजाम सुब्रत कुमार गोस्वामी 50 पढ़ा लिखा प्रादमी मिश्र 50 खाली पेट वाला दीपक उमा शर्मा 51 । - । अधिकार राकेश कुमार 52 बूढ़ा सुरेन्द्र कुमार 'अंशुल' 521 करवा - - चौथ कुमारी प्रतिमा श्रीवास्तव 54 एक ठहरा हुआ विश्वास अवधेश - कुमारी शर्मा 55। राहत कार्य जारी है - जय प्रकाश मानस 56। पितृहृदय : भगवानदेव 'चैतन्य' 56। मुकद्दमेबाज मातादीन खरवार 57 वरदान: - कोमल केरकट्टा 58। शरीफ बदमाश सन्तोष परिहार 59 | अभिनंदन -पारस दासोत 60। आधारशिला-विजय प्रेमी 60। पुरस्कार-सुरेश शर्मा 62 । धूल-सुरेन्द्र तनेजा 62। 

तकरीब- अनिल पुरोहित 'हँसमुख' 63। जरूरत,  श्रवणभूत-अर्जुन प्रसाद 'बादल' 64।

गैर प्रतियोगी लघुकथा शीर्षक, भूत डॉ. सतीश दुबे 66 कालिख, इतिहास महेन्द्र सिंह महलान-67 प्रसिद्धि का राज राजेन्द्र धवन 69 भीख  सतीश राठी 69 साहस डॉ. पुष्पा जौहरी 70 सही दिशा अनीता नामदेव 70 आत्म-सन्तुष्टि डॉक्टर रामकुमार घोटड़ 71 नंगा नाच विदेश्वर प्रसाद गुप्ता 72 मंगला या....डॉ. उपासनी माहेश्वरी 73 इज्जत  का मूल्य कीर्त्यानंद कलाधर 74 धर्म भ्रष्ट कर दिया-नदकिशोर 'नन्द' 74 प्राण पखेरू -रामावतार वर्मा 75 मगर- पुष्पलता कश्यप, 76 दो ठग सलमान फरीद 77। भगवान का घर - रूपनारायण 'अनुराग' 77 काजल की कोठरी अतुलमोहन प्रसाद 78 नागवंश, सन्देश का दण्ड-तरुण जैन 79 | मनःस्थिति डॉ. वृदावन त्रिपाठी 'रलेश' 80 तीन सौ पैसठ दिनों बाद विक्रम सोनी 81 | बदबू - सतीशराज पुष्करणा 82 खू-खाता कमल चोपड़ा 83 दहेज उन्मूलन कर्मेन्द्र मणि 'भारतीश' 84 हिसाब, परिवर्तन -मोहन 'अनंतसागर' 85 

आलेख लघुकथा लिखने से पहले तरुण जैन 87 प्रोर उसकी समीक्षा - सतीशराज पुष्करणा 89 लघुकथा वर्तमान परिप्रेक्ष्य - डॉ. उषा माहेश्वरी 94 लघुकथा और मनुष्य का जीवन संघर्ष माधव नागदा 100 कैसी होनी चाहिये एक मानक लघुकथा सतीश राठी 104 - लघुकथा-उभरती दिशाएं एवं अपेक्षाएं कमेन्द्र मणि 'भारतीश' 108 | लघुकथा भविष्य की निरर्थक चिन्ता धीरेन्द्र शर्मा 113 |

कुछ सार्थक प्रश्नोतर-बिना शीर्षक के 121 ।

टिप्पणियाँ / कतरनें-- लघुकथा बुद्धिजीवियों के अक्स पर....मोहन 'अनंतसागर' 124 | लघुकथा कथ्य दोहराव का आरोप कितना सार्थक : डॉ. दुबे 129

कुछ चुनी हुई श्रेष्ठ लघुकथाए - घाटे का सौदा, मुनासिब कार्रवाही, - सौरी, रेआयत, ग्रयों पर चर्बी सआदत हसन मंटो 133 घमंड की सजा खलील जिब्रान 134 संस्कार डॉ. सतीश दुबे 135। अपनी परायी देवीप्रकाश हेमंत 135 | हथियार सतीश राठी 136 | तुम कौन - हो ? पारस दासोत 136 कानून: नरेन्द्र प्रसाद नवीन 137 | भोला गाँव रावी 137 दूध का दूध, पानी का पानी रामनारायण उपाध्याय -139 | नैतिकता का बोझ - रघुवीर सहाय 140 अबदुल्ला का खुदा इसरार 141 अपना घर धीरेन्द्र शर्मा 141 बहू का सवाल : बलराम 142 भूख मधुकान्त 143 घायल आदमी सुरेन्द्र मन्थन 144 आदमी-धीरेन्द्र अस्थाना 145। एक और द्रोपदी-सिमर सदोष 146 व आदमी - श्यामसुन्दर अग्रवाल 147 परमिट - अशोक भाटिया 148 बयान आनन्द 148 | दोस्ती विष्णु प्रभाकर 149 पहचान आभा गुप्ता 150 मुक्ति रमेश जाधव 151 । मानवीय सभ्यता कर्मेन्द्र मणि 'भारतीश' 152 | महा-मन्दिर - अविनाशचन्द्र 'चेतक' 15 मृत्यु सुख, यथार्थ - मोहन 'अनंतसागर' 153 |

प्रस्तुत  संकलन का विविचारोत्तेज सम्पादकीय 'यथार्थ : कल्पना और वस्तुतः.....'

यथार्थ यानि नंगा नाच.

जितना घृणित उतना ही उपेक्षित,

लघुकथा लेखन का एक खास मुद्दा. इस पर एक सार्थक बहस की गुजाईश है कि यथार्थ कथा अपने वास्तविक स्वरूप में पेश हो या कथाकार की कल्पना के अनुरूप, यथार्थ व्यक्ति और समाज की विकृतियों का जीवन्त प्रमारण होता है. आम आदमी यथार्थ के प्रति आंख मूंद कर अन्धा बनने की कोशिश करता है. जबकि यथार्थ सदैव अपने वास्तविक स्वरूप में मौजूद रहता है हर कहीं, हर परिवेश में आम आदमी के आचरण से उसके स्वरूप में कोई अंतर नहीं आता. और ऐसे में एक रचनाकार की कलम यथार्थ लेखन को जन्म देती है. यथार्थ नग्न होकर आम आदमी के सामने आता है तो आम आदमी इस नग्नता में स्वयं का ही अक्स देखकर बजाय शर्म के आत्म ग्लानि महसूस करता है.

यथार्थ और रपट में अंतर नहीं किया जा सकता, परंतु यथार्थ रचना लेखन और 'रिपोटिंग' दो अलग-अलग चीजें है, यथार्थ लेखन के नाम पर ज्यादातर लघुकथायें रपट के रूप में मिलती हैं. अतः लघुकथा में प्रयोगधर्मियों ने कहा है कि, 'रपट में सृजन क्या है ? सृजन और रचना का अर्थ है कि लेखक उपलब्ध यथार्थ की नींव पर अपनी प्रतिभा व दृष्टि द्वारा एक नयी संरचना करता है, कुछ नया गढ़ता है. यथार्थ अपनी जगह है, जैसा भी है, एक लेखक उसमें एक नये कोण से, नई दिशा से देखता है, उससे कोई नया निष्कर्ष निकालता है. नया विश्लेषण देता है. यथार्थ का कलुपित या घृणित पक्ष भी मौलिक, नवीन एवं ताजगी के कारण रपट से ज्यादा प्रभावित करता हैं.' अतः लघुकथा में यथार्थ लेखन के लिए यह जरूरी है कि उसे रपट न बनने दिया जाये.

अब प्रश्न उठता है कि यथार्थ लेखन क्यों, किसलिए? इसकी क्या आवश्यकता है? क्या सामाचार पत्र या पत्रिकाओं में छपी रपटें यथार्थ लेखन के लिए पर्याप्त नहीं? इस प्रश्न के उत्तर के लिए पहले चंद रपटों की मुखियाँ देखें : 

-एक ससुर ने अपनी बहू के साथ बलात्कार किया और बेटे ने चलती हुई ट्रेन के आगे छलाँग लगाकर आत्महत्या कर ली.

-चलती भीड़-भरी ट्रेन में तीन फौजी जवानों द्वारा एक महिला के साथ बलात्कार किया गया.

- अदद तीन आतंकवादियों ने बस में सवार पूरे पचास लोगों को गोलियों से भून दिया.

- पुलिस से विद्रोह करने वाला एक व्यक्ति सरेआम पीटा गया.

- एक अपराधी द्वारा अपनी सगी बेटी को अवैध होने के संदेह में दिन दहाड़े सरआम गला घोट कर मार डाला गया था, लेकिन न्यायालय में अपराधी को बाइज्जत बरी कर दिया.

-पुलिस द्वारा एक बेटे को उसकी माँ के साथ संभोग करने के लिए मजबूर करके उससे हत्या का अपराध स्वीकार करा लिया गया.

इन सुर्खियों का क्या हश्र होना है? यह सुर्खियाँ सिर्फ सुर्खयाँ बनके रह जायेंगी. जबकि इन्सानियत और नैतिकता पर प्रश्नचिह्न लगा ही रहेगा. ऐसे अनगिनत प्रश्नचिह्नों का उत्तर होता है यथार्थ लेखन में यथार्थ यानि अनुभूत लेखन इन विकृतियों को ऐसे रूप में लोगों के सामने लाता है कि इन विकृतियों के प्रति लोगों में रोष हो, वे कुछ सोचने के लिए मजबूर हों, इन्हें सुधारने की आवश्यकता महसूस करें. मसलन, ऊपर की सुखियों को ही लें- इनमें हरेक से यह ज्वलंत प्रश्न उठते हैं कि : एक समर्थ व्यक्ति भी आत्महत्या को बेबस क्यों हो जाता है?

— भीड़ के सामने बलात्कार! भीड़ का स्वाभिमान बिल्कुल मर गया था?

—अदद तीन आतंकवादी और मरने वाले पचास ! क्या कुछेक लोग आतंकवादियों का सामना करके मरते हुए सबको नहीं बचा सकते थे?

-पुलिस रक्षक है कि भक्षक? पुलिस के तानाशाही रवैया का विरोध करने की भावना लोगों में मर क्यों गयी हैं?

—दिनदहाड़े सरे-ग्राम हत्या हुई. अन्धे कानून की आखें बनने को कोई तैयार नहीं?

- पुलिस ऐसे जघन्य, पाशविक और गिरे हुए कुकृत्य पर उतरी तो आखिर क्यों?

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