समप्रभ-2006/प्रतापसिंह सोढ़ी-डॉ. योगेन्द्रनाथ शुक्ल (सं.)
देश के चौदह लघुकथाकारों की....
36 लघुकथाओं का संग्रह
सम्पादक द्वय : प्रतापसिंह सोढ़ी-डॉ. योगेन्द्रनाथ शुक्ल (सं.)
प्रकाशन वर्ष : 2006
प्रकाशक :
साहित्य कलश, 566, गुमाश्ता नगर, इन्दौर
आवरण चित्र : पारस दासोत
मूल्य : साठ रुपये
संपादकीय
श्रेष्ठ और बेबाक समीक्षकों की दरकार
दूसरी विधाओं की तरह लघुकथा भी युग का प्रामाणिक दस्तावेज है। कहानी के समान यह भी आधुनिक युग से संबंधित है। यही आधुनिक चेतना उसे परंपरागत लघुकथाओं से पृथक करती है। जो लेखक जितना अधिक चिन्तनशील होता है, उसकी लघुकथाएँ उतनी ही प्रभावी होती हैं और वह उतनी ही तीव्रता से समाजिक विसंगतियों पर प्रहार करता है। यही प्रहार-शक्ति लघुकथा का प्राण है। अपनी इसी शक्ति के कारण इसने बहुत कम समय में बहुत ऊँची जगह बनायी है।
नाटक, कहानी, उपन्यास आदि गद्य विधाओं को लोकप्रिय बनाने और उन्हें प्रतिष्ठा दिलाने में अनेक समीक्षकों का अकथ परिश्रम रहा है। विडंबना यह है कि लघुकथा के क्षेत्र में श्रेष्ठ और बेबाक समीक्षा करने वाले समीक्षकों की दरकार है। आज लघुकथा के अधिकांश समीक्षक पूर्वाग्रह से स्वयं को मुक्त नहीं कर पा रहे हैं। अनेक ऐसे लेखक भी हैं जो लघुकथाकार से अधिक समीक्षक के रुप में श्रेष्ठ हैं। ऐसे लेखकों को लघुकथा लेखन का मोह त्यागकर, समीक्षा के क्षेत्र में उतर जाना चाहिए। इसी में लघुकथा की भलाई है। यह बिन्दु इसलिए रेखांकित करना पड़ रहा है क्योंकि आज जो समीक्षाएँ आ रही हैं, उनमें से अधिकांश में रचना से अधिक महत्व रचनाकार को दिया जा रहा है, उनमें या तो तारीफ ही तारीफ है या निन्दा ही निन्दा। दरअसल आज लघुकथा साहित्य जितना उन्नत है, उतना उसका समीक्षा का क्षेत्र उन्नत नहीं है, यह चिन्ता का विषय है।
लघुकथाकार को अतिमुग्धता, खेमेबाजी के दायरे से बाहर निकलना होगा, तभी विधा को श्रेष्ठता मिलेगी। औसत दर्जे की लघुकथा को श्रेष्ठ बताना, विधा को क्षति पहुँचाना है। तथाकथित लघुकथा विशेषज्ञ यह भूल जाते हैं कि ऐसा करके विधा का मर्म जानने वालों के मध्य वे हास्य का पात्र बन रहे हैं. विषय चयन, शिल्प, आकार तथा तकनीक के बिन्दुओं पर लघुकथाओं की परख होना चाहिए। लघुकथा के लघु आकार को लेकर आज अनेक लेखक चिन्ता दर्शा रहे हैं, किन्तु उनकी चिन्ता बेमानी है क्योंकि गालिब, रहीम, बिहारी आदि अपनी लघु आकार की रचनाओं के माध्यम से बहुत ऊँचा स्थान प्राप्त कर चुके हैं।
'साहित्य कलश' मध्यप्रदेश की जानी-मानी साहित्यिक संस्था है, जो प्रदेश स्तर पर कवियों और लेखकों की प्रविष्टियां आमंत्रित करती हैं और उनका मूल्यांकन कर उन्हें अलंकरण प्रदान करती है। यह संस्था अभी तक अनेक कृतियों का प्रकाशन कर चुकी है। 'समप्रभ' के प्रकाशन के लिए हम 'साहित्य कलश' के सभी पदाधिकारियों के आभारी हैं, जिन्होंने सारे देश के लघुकथाकारों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया।
लेखकों का क्रम अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार है। स्थानाभाव के कारण हम अनेक लघुकथाकारों को चाहकर भी स्थान नहीं दे पाए हैं। आशा है, वे अन्यथा नहीं लेंगे। उम्मीद है, लघुता में प्रभुता दर्शाने वाली ये लघुकथाएँ पाठकों और समीक्षकों का ध्यान आकृष्ट करेंगी।
1 जनवरी 2006 प्रतापसिंह सोढ़ी
डॉ. योगेन्द्रनाथ शुक्ल
(प्रधान सचिव : साहित्य कलश, इन्दौर)
अनुक्रमाणिका
डॉ. अशोक भाटिया
बलराम अग्रवाल
चैतन्य त्रिवेदी
डॉ. कमल चोपड़ा
कृष्णानन्द कृष्ण
पारस दासोत
प्रतापसिंह सोढ़ी
डॉ. सतीश दुबे
सतीश राठी
श्याम सुन्दर अग्रवाल
डॉ. श्याम सुन्दर दीप्ति
प्रतापसिंह सोढ़ी
जन्मतिथि : 16 मार्च, 1946
जन्मस्थान : इन्दौर, म. प्र.
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी, इतिहास, समाजशास्त्र), एम.एड्.
प्रकाशित लघुकथा-संग्रह : शब्द संवाद सम्पादित लघुकथा-संकलन : त्रिवेणी, समप्रभ अन्य प्रकाशित।
पुस्तकें : एक कहानी-संग्रह, चार सम्पादित लघुकथा-संकलन, लघुकथाओं का पंजाबी, उर्दू, सिन्धी, मराठी में अनुवाद, पंजाबी और उर्दू कहानियों का हिन्दी अनुवाद।
सम्प्रति : सेवानिवृत्त प्राचार्य
सम्प्राप्ति : विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित।
सम्पर्क : 5, सुखशान्ति नगर, बिचौली हप्सी रोड,
इन्दौर - 452016 (म.प्र.)
मोबाइल: 09479560623
योगेन्द्रनाथ शुक्ल
जन्मतिथि : 4 मार्च, 1956
जन्मस्थान : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), पी-एच.डी.
प्रकाशित लघुकथा संग्रह : शपथयात्रा, लघुकथाओं का पिटारा सम्पादित लघुकथा-संकलन, कुछ पत्रिकाओं के लघुकथा-अंकों का सम्पादन एवं उनका पुस्तक रूप में प्रकाशन।
अन्य प्रकाशित पुस्तकें : नहीं।
सम्प्रति : प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष (हिन्दी)
सम्प्राप्ति : डॉ. परमेश्वर गोयल लघुकथा शिखर सम्मान, लघुकथाओं के विकास में योगदान के लिए अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
सम्पर्क: 390, सुदामा नगर, अन्नपूर्णा रोड, इन्दौर - 452009 (मध्य प्रदेश )
मोबाइल: 09977547030,
फोन : 0731-2483893
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