लघुकथा-संग्रह-2021/अखलाक अहमद जई

 

लघुकथा-संग्रह  : जेबकतरा

 कथाकार   :  अखलाक अहमद जई

प्रकाशक : समदर्शी प्रकाशन

प्रकाशन का पता : 335, देव नगर, मोदीपुरम

मेरठ, उत्तर प्रदेश - 250001

मोबाइल नम्बरः 9599323508

प्रकाशन वर्ष      :  जुलाई, 2021 

आईएसबीएन नम्बर 978-93-90481-95-8

सर्वाधिकार © : अख़लाक़ अहमद ज़ई 

अनुक्रम

भूमिका

अपनी बात

कठोर दण्ड

भूखे-नंगे लोग 

घाटे की भरपाई

पहला क़दम

असामाजिक तत्व 

अर्थनीति 

नौकरी- 1

दृष्टिकोण

साम्यवाद

वक़्त

हिन्दुस्तान का भाग्य

घरजमाई - 1

जयघोष

सहानुभूति

अनपढ़

वर्दी वाला इंसान

गर्वीली मुस्कान

हमारा इतिहास

नौकरी - 2

घरजमाई - 2

कर्त्तव्यनिष्ठा का पुरस्कार

हरवाह

हमें क्या मालूम ?

दानपात्र

स्थान का महत्व

अपना-अपना दुःख

चूहों की घंटी

बड़ा पेट

जेबकतरा

काफ़िर

पागल

नामर्द

अवसरवादी

आख़िरी आसरा

शंका

भाग- 2

धारावी

न ज़मीं मेरी, न आस्मां मेरा 

संक्षिप्त परिचय

________________________________

संग्रह से एक लघुकथा  'भूखे-नंगे लोग' :

कुल, सारी दुकानें बंद हो गयी थीं। यातायात के सारे साधन ठप्प पड़ गये थे। जिन्हें घर पहुंचने की जल्दी थी या जिन्हें पानी से डर नहीं लगता था, वह कमर कमर तक पानी में घुचसकर घर अथवा गंतव्य स्थान तक पहुंचने की जद्दोजहट कर रहे थे लेकिन जिनमें पानी में घुसने की हिम्मत नहीं थी, वह सायन स्टेशन के बाहर पुल पर खड़े, छाता ताने, पानी के खिसकने का इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन न बारिश रुक रही थी, न जल भराव कम हो रहा था और न ही रात ठहर रही थी। चार घंटे से अधिक समय से दूसरे राहगीरों के साथ वह भी फंसा पड़ा था। न तो बैठने का कोई साधन, न खाने-पीने का सहारा । बारिश की वजह से ठंड बढ़ गयी थी सो अलग।

उसे दो घंटे पहले चाय देकर गये छोकरे की याद आयी। उसने घूमकर पूरब की तरफ जाने वाले वन-वे की तरफ देखा। छोकरा उसी तरफ से आया था। पुल के बराबर सड़क होने के कारण उस तरफ थोड़ी दूर तक पानी का जमाव नहीं था। अचानक चमत्कारिक रूप से वही लड़का एक हाथ में चाय की केतली और दूसरे हाथ में प्लास्टिक कपों का दो फुटी रोल लिए उसी की तरफ बढ़ा आ रहा था। दस-बारह साल का दुबला-पतला, सिर से पैर तक भीगा हुआ। उसने ट्स का नोट शर्ट की जेब से निकालकर हाथ में ले लिया। पिछली बार चाय का पैसा लिए बगैर लड़का चला गया था। इस बार दोनों चाय का पैसा एक साथ वसलगा। एक चाय का दस रुपये से क्या कम लेगा! ऐसे ही विपदाओं के समय इन लूटभयों की निकल पड़ती है। नीयत सही नहीं रहती इन सालों की! इसीलिए तो कितना भी कमा लें, हमेशा भूखे-नंगे ही रहते हैं। लड़का पास आकर ढेर सारे कप उसके छाते के नीचे फुटपाथ पर फैलाकर उसमें चाय उड़ेलने लगा।

"पैसा कितना?" उसने एक कप उठाते हुए पूछा।

"नहीं अंकल, बापू ने कहा है कि पैसा नहीं लेना।"

उसकी आँखें लड़के और उसके पिता के प्रति कृतज्ञता से चमक उठीं- 'लगता है, पैसे वाली पार्टी है।' लड़के ने पुल पर इकट्ठी भीड़ को चाय बाँटी और चला गया।

दो घंटे बाद फिर वही लड़का चाय की केतली और कपों का रोल लेकर आया। उस वक्त तक रात के दो बज चुके थे। वह भूख से बेचैन हो रहा था। लड़के ने फिर पहले की ही तरह कपों को ज़मीन पर फैलाया और चाय उड़ेलने लगा उसने आभार मिश्रित भाव से पूछा--

“खाना खाया ?”

“नहीं अंकल, हम लोगों की तो आदत है।" लड़के ने बड़े ही सहज भाव से जवाब दिया -“लेकिन आप लोगों को भूखे रहने की आदत नहीं है न! इसीलिए बापू ने कहा कि कुछ नहीं है तो चाय ही पिला दो। ऐसे मौसम में सबका बदन तो गरम रहेगा!"

उसे यकायक रुलाई की तेज़ हबक छूटी। लड़का आगे बढ़कर भीड़ को चाय बांटने में मशगूल हो गया। उसने अपने आपको संभालने की बहुत कोशिश की, फिर भी लड़के की दी हुई मिठास में उसकी आंखों का नमक घुल ही गया।

अखलाक अहमद जई 

जन्म 27-12-1959, (बलरामपुर, उ. प्र.)

शिक्षा - एम.ए (हिंदी)

पुस्तकें - मामक सार, सोख़्ता (उपन्यास), मेढकी को ज़ुकाम हो गया, शिक्षा मंडी में ग्राहक देवता का प्रवेश (कहानी संग्रह), पढ़ा-लिखा इंसान (बाल कहानी संग्रह), आपका पत्र मिला (कविता संग्रह), आज मैं यहाँ हूं (शोध पूर्ण लेख संग्रह ), हरकारा ( पत्र संग्रह ), मुंबई और मेरी पत्रकारिता (समसामयिक लेख संग्रह) प्रकाशित।

पता- साईं बाबा कॉलोनी, बालकन जी बारी रोड, हॉस्पिटल एरिया, उल्हासनगर - 421002 (ठाणे) महाराष्ट्र ।

मोबाइल - 9323114334, 8625821669,

ईमेल akhlakaz37@gmail.com -

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

समकाल (लघुकथा विशेषांक) अगस्त 2023 / अशोक भाटिया (अतिथि संपादक)

तपती पगडंडियों के पथिक/कमल कपूर (सं.)

आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र रचनावली,भाग-1/डाॅ. ऋचा शर्मा (सं.)