मिट्टी की पुकार-2021/कुंकुम गुप्ता

(कांता राय के सौजन्य से )

लघुकथा-संग्रह  : मिट्टी की पुकार 

कथाकार  : कुंकुम गुप्ता

प्रकाशन वर्ष  : अक्टूबर 2021

ISBN : 978-81-951152-4-2

प्रकाशक : अपना प्रकाशन

21 / C, सुभाष कॉलोनी

नियर हाई टेंशन लाइन, गोविंदपुरा, भोपाल-462023 

फोन : 9575465147

ई-मेल roy.kanta69@gmail.com -

मूल्य: 270/-

अनुक्रम 

भूमिका

बड़ी बात

महिला दिवस

सीख

दूर-पास

बोरियत

यादें

जाने के बाद

कविता

अपना-अपना बिल

पहली पाठशाला

हैप्पी बर्थ-डे माँ

पॉलिश

मेरा घर

स्मार्ट

प्रतिक्रिया

उत्तर

भिन्नता

अवसरवादिता

रिश्तेदार 

दोहरापन

बोली की मिठास

अनपढ़ माँ

गलती

निर्णय

राजनीति कल और आज :

दूर के ढोल

फिर वही

अनायास

एक बार फिर

कटर

फैसला

चयन

सच्चा गहना

माँ

विडम्बना

विज्ञापन

मिट्टी की पुकार

बहुमूल्य टिकिट

बदलाव

सहमेल

मिसेज पन्त

सद्भावना

ऑनलाइन उपहार

स्वाभिमान

पुरस्कार

स्वाद

सबक

त्रिया चरित्र

आत्मबोध

संतान सप्तमी

घर-घर के खेल में

फूलों का झरना

आईडिया

कम्प्यूटर का क ख ग

रिश्तों का रंग

अपनों के रिश्ते

जिम्मेदारी

परिशिष्ट --लेखक के सरोकार

लेखिका का आत्मकथ्य इस संग्रह से : 

आज के जीवन की व्यस्तताओं में लघुकथाओं के फलक ने बहुत विस्तार पाया है तथा यह विधा काफी लोकप्रिय भी हुई है। लघुकथा में क्षण विशेष की अनुभूति की गहनता, शब्दों की मितव्ययता और बात करने का पैनापन होने के कारण यह पाठक को चिंतन-मनन करने के लिए प्रेरित करती है और एक नई दृष्टि भी प्रदान करती है।

मेरे सृजन केन्द्र में मेरे जीवन के अनुभव रहते हैं। लघुकथाओं के माध्यम से जीवन की घटनाओं तथा आसपास बिखरी विसंगतियों को शब्दों में बुनकर लघुकथा का रूप दिया है। यह मेरा पहला लघुकथा संग्रह है। वर्षों से सोच रही थी कि लघुकथा संग्रह प्रकाशित करवाना है लेकिन विपरीत परिस्थितियाँ, मेरी व्यस्तता और लापरवाही के कारण यह संभव नहीं हो सका। कान्ता रॉय जो के बार-बार कहने से ही यह सम्भव हो सका है। मैं उनके प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ।

लघुकथा का क ख ग मैंने डॉ. मालती बसंत के सानिध्य में रहकर तथा उनकी लघुकथाएँ पढ़कर सीखा है. और कभी कुछ मार्गदर्शन भी उनसे लेती रहीं विनीता राहुरीकर ने भी लघुकथा पंचलाइन लिखने के संबंध में बारीकी से समझाया कि लघुकथा का अंत इतना प्रभावी होना चाहिए कि कम शब्दों से धारदार व पैनों बात संप्रेषित सके। कई बार मेरी लघुकथा में मुझे कुछ कमी लगती है ती विनीता जी मात्र एक पंक्ति जोड़कर उसे प्रभावी बना देती हैं। इसी प्रकार कांता रॉय जी ने भी मेरी कुछ लघुकथाओं को सँवारा है।

मैं किसी भी विषय पर तुरंत लघुकथा नहीं लिख पाती हूँ जैसा कि आजकल कुछ मंचों पर शीर्षक दे दिए जाते है लघुकथा लिखने के लिए लघुकथा का बीज तत्व जय मेरे अन्तर्मन में घुमड़ता रहता है और एक समय बाद मुझे बेचैन करता है तब मैं उसे लिखने का उपक्रम करती हूँ। फिर इसे कुछ समय बाद दो-तीन बार काटती-छाँटती हूँ। तब कहीं लघुकथा बन पाती है।

अशोक भाटिया जी, बलराम अग्रवाल जी तथा योगराज प्रभाकर जी की किताबें, लेख आदि पढ़कर कुछ महत्वपूर्ण बातों को आत्मसात् करने की कोशिश की है। अनेक लघुकथा संग्रह पढ़ती रहती हूँ तथा भोपाल में भी लघुकथा गोष्ठियों में नियमित जाने का प्रयास करती हूँ ताकि लघुकथा को बुनावट की बारीकियों सीख सकूँ।

प्रबुद्ध पाठकों और लघुकथा विशेषज्ञों से अपेक्षा करती हूँ कि इस संग्रह की लघुकथाओं को पढ़कर अपने अमूल्य सुझावों से अवश्य अवगत कराएँ ताकि मैं आगे उनको सुधारने की कोशिश कर सकूँ।

डॉ. कुंकुम गुप्ता, 

2/9, रणथम्भौर कॉम्प्लेक्स, जोन-2, 

एम. पी. नगर, भोपाल 

कुंकुम गुप्ता

जन्म  : 06-12-1957, चिरगाँव 


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तपती पगडंडियों के पथिक/कमल कपूर (सं.)

आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र रचनावली,भाग-1/डाॅ. ऋचा शर्मा (सं.)

पीठ पर टिका घर (लघुकथा संग्रह) / सुधा गोयल (कथाकार)