लघुकथा-आलोचना-2021 : लघुकथा : बहस के चौराहे पर / सतीशराज पुष्करणा (सं.)
सम्पादक : सतीशराज पुष्करणा
प्रकाशन वर्ष : 1983/2021
पुन: प्रकाशन : योगराज प्रभाकर
53, 'उषा विला', रॉयल एनक्लेव एक्सटेंशन, डीलवाल, पटियाला 147002 (पंजाब)
चलभाष: 98725-68228
द्वितीय संस्करण के प्रकाशक :
देवशीला पब्लिकेशन
पटियाला- 147001 (पंजाब)
चलभाष: 98769-30229
Email: corellover@gmail.com
अनुक्रमणिका
आरंभिका
द्वितीय संस्करण के विषय में दो बातें /
सतीशराज पुष्करणा
प्रकाशक : दो शब्द / नीलम पुष्करणा
संपादकीय / सतीशराज पुष्करणा
भूमिका / जगदीश कश्यप
आलेख माला
लघुकथा का शिल्प / डॉ. स्वर्ण किरण
हिंदी-लघुकथा : संक्रमण का सही जायज़ा /
कृष्ण कमलेश
भग्न होते मूल्यों की लघुकथाएँ / भगीरथ
साहित्य में लघुकथा का योग / नरेंद्रप्रसाद 'नवीन'
लघुकथा और उसका सही अस्तित्त्व /
डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे
लघुकथा : सवाल अस्तित्त्व और भविष्य का /
भगवती प्रसाद द्विवेदी
लघुकथा में कथ्य / कमल चोपड़ा
लघुकथाओं में कल्पना तत्त्व / विक्रम सोनी
आठवें दशक की लघुकथाएँ / व्यास
लघुकथा की भाषा / ईश्वरचंद्र
लघुकथा एवं विश्लेषण / लालमुनि दुबे 'निरमोही'
लघुकथा : एक शास्त्रीय विवेचन /
सतीशराज पुष्करणा
पारंपरिक बनाम आज की लघुकथाएँ /
विष्णु प्रभाकर
लघुकथा : लाशों के दलालों और फंगस प्रवृत्तियों के खिलाफ़ एक जुझारू रुख /
अवधनारायण मुद्गल
हिंदी-लघुकथा: शिल्प-रचना विधान /
महावीर प्रसाद जैन
हिंदी-लघुकथा : ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में / जगदीश कश्यप
लघुकथा : विहंगम दृष्टि / मधुदीप
लघुकथा का शिल्प और प्रेषणीयता का सवाल / भगीरथ
लघुकथा : शिल्प और संरचना / शमीम शर्मा
नए लेखक की लघुकथा रचनाधर्मिता /
कुलदीप जैन
लघुकथा : भटकाव और मूल्यांकन की दिशा /
डॉ. चंद्रेश्वर कर्ण
लघुकथा का शरीर विज्ञान और प्रसव गाथा /
डॉ. ब्रजकिशोर पाठक
लघुकथा : शिल्प तथा संभावनाएँ /
डॉ. जगदीश प्रसाद
जिंदगी के समानांतर ये लघुकथाएँ / सुशील राजे
लघुकथा अस्तित्त्व और संघर्ष / अनिल जनविजय
लघुकथा के बीच से उभरते लघुव्यंग्य की पहचान / बालेंदु शेखर तिवारी
हिंदी-लघुकथा: एक दृष्टि / भूपाल उपाध्याय
लघुकथा : गंभीर लेखन की ज़रूरत /
राधेलाल बिजघावने
लघुकथा : वैचारिक मूल्यांकन / रामनारायण बेचैन
लघुकथा की रचना-प्रक्रिया और नया लेखक / जगदीश कश्यप
लघुकथा संग्रह पंचतंत्र के प्रेरणास्रोत /
बलदेव उपाध्याय
लघुकथा : मेरा दृष्टिकोण / सतीशराज पुष्करणा
लघुकथा : एक विचार / आशा 'पुष्प'
लघुकथा : लघु से कथा तक / चाँद मुंगेरी
लघुकथा : आमने-सामने / बलराम अग्रवाल
लघुकथा-लेखन : एक चुनौती /
भूपाल सिंह अशोक
पुलिस और लघुकथा / रामनिवास 'मानव'
नज़र-दर-नज़र / संतोष सरस
लघुकथा : आंदोलन की प्रासंगिकता /
अमर गोस्वामी
लघुकथा : परिदृश्य और चुनौतियाँ / धीरेंद्र शर्मा
शीर्षक के अभाव में / नंदल हितैषी
लघुकथा बनाम आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री / सतीशराज पुष्करणा
लघुकथा का अस्तित्त्व : परिभाषाओं के दायरे में / सतीशराज पुष्करणा
लघुकथा : एक नए आयाम की तलाश में /
मुकेश प्रत्यूष
हिंदी-लघुकथा के साहित्य का लेखा-जोखा / शकुंतला किरण
हिंदी-लघुकथा / डॉ. विनोद गोदरे
सर्वकालीन रचनाधर्मिता में लघुकथा का हस्तक्षेप / पुरुषोत्तम सत्यप्रेमी
लघुकथा : एकांकी दृष्टियाँ / भगीरथ
लघुकथा : सवाल भविष्य का / श्याम बिहारी सिंह 'श्यामल'
लघुकथा (वर्ष '78 से अब तक ) : एक विहंगावलोकन / डॉ. स्वर्ण किरण
लघुकथा शब्द का काल-निर्धारण एवं अवधारणा / अखिलेंद्र पाल सिंह
परिभाषाएँ
आपकी नज़र में : लघुकथा / प्रस्तोता : सतीशराज पुष्करणा
साक्षात्कार
आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी से एक महत्त्वपूर्ण भेंटवार्ता
अंतिका
निष्कर्ष / सतीशराज पुष्करणा
आभार
संदर्भिका
डॉ. ब्रजकिशोर पाठक के लेख 'लघुकथा का शरीर विज्ञान और प्रसव गाथा' से एक अंश :
वस्तुतः, भवभूति मिश्र आधुनिक कथा-लेखन में 'लघुकथा' के प्रथम प्रयोगधर्मा थे। इसे प्रसिद्ध और प्रचार के साथ परिनिष्ठ कथाविधा के रूप में प्रतिष्ठित करने और कलात्मक साज देने का श्रेय राधाकृष्ण जी को ही है। निष्कर्षतः, इस विश्लेषण के आधार पर लघुकथा को 'खींची हुई एक साँस', 'चुभने वाले काँटों पर खिला हुआ गुलाब का एक फूल' कह सकते हैं। यदि कहानी एक वाक्य है तो लघुकथा एक शब्द। इस 'शब्द' में वाक्य की 'महार्धता' होती है। लघुकथा का तात्त्विक विश्लेषण नहीं हो सकता। यह कथा तत्त्वों की एक समवेत कला है। यह आलोच्य नहीं, आस्वदय है। इसकी कला अभिधेय नहीं ध्वन्यात्मक है। इसके लेखन में 'चिड़ियों की आँख' की लक्ष्यभेदी एकाग्रता होती है। इसके अभिव्यक्ति क्रम में विद्युतवेग होता है। यह प्रभावांत में एक स्प्रिंगदार चाकू है। इस क्षण यह हास्य-व्यंग्य के एक पटाख़े से बमवर्षा करती है। इसके लेखन का अंदाज शायराना होता है। यह अँग्रेज़ी की न तो 'स्टोरी' होती है, न 'शॉर्ट स्टोरी'; इसके लिए 'मिनी स्टोरी' शब्द कुछ अनुकूल लगता है। इसका लेखन भारतीय हास-परिहास की मौखिक कथा-परंपरा से जुड़ा है। इस कथा-परंपरा का लेखन में प्रथम प्रवेश भारतेंदु युग की गल्प-गप्प परिहास कथाओं से हुआ। द्विवेदी युग में यतकिंचित संख्या में यह चुटकुले के नाम से मुद्रित हुआ। हिंदी कहानी लेखन को परंपरा का आरंभ लघुकथाओं से ही हुआ तथा चर्चित हिंदी की प्रथम मौलिक कहानियाँ अधिकांशतः लघुकथाएँ है। है। प्रेमचंद युग से लघुकथा-लेखन की यह परंपरा लोकगीतों की तरह लोककड़ी हो गई। इसका फिर से आविर्भाव आज़ादी के बाद, श्री भवभूति मिश्व की रचनाओं से हुआ। लघुकथा शब्द, पहली बार, इन्हीं के द्वारा प्रयुक्त भी हुआ। भवभूति जी की लघुकथाएँ रूपाकृति, उपलब्धि और अभाव की दृष्टि से एक प्रयोग थी। इसका सबल कलात्मक रूप राधाकृष्ण जी के गेंद और गोल' की लघुकथाओं के साथ प्रकट हुआ। इस कथा विधा को अखिल भारतीय ख्याति और मान्यता दिलाने वाले राधाकृष्ण जी ही थे।
द्वितीय संस्करण के प्रकाशक योगराज प्रभाकर की कलम से :
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