लघुकथा-संकलन-1985/कमलेश भट्ट 'कमल'-रामनिवास 'पंथी' (सं.)
(शराफत अली खान के सौजन्य से)
लघुकथा-संकलन : शब्द-साक्षीसंपादक द्वय : कमलेश भट्ट 'कमल'-रामनिवास 'पंथी' (सं.)
प्रकाशन वर्ष : 1985
प्रकाशक : राजाराम भारतीय, निराला प्रकाशन मुराई- बाग, डलमऊ, रायबरेली
चित्रांकन : जवाहर इन्दु
प्रमुख वितरक ★ एकादश साहित्य परिषद, २४१ इन्दिरा नगर, रायबरेली उ० प्र०
मूल्य : पन्द्रह रूपये
सिलसिला
शम्भुदयाल सिंह 'सुधाकर'
रामनिवास 'मानव'
अखिलेन्द्र पाल सिंह
आनन्द बिल्थरे
उपेन्द्र जोशी
कमल चोपड़ा
कमलेश प्रकाश
कृपाशंकर द्विवेदी
कृष्णा भटनागर
गंगा शरण विनम्र
जवाहर 'इंदु'
चित्रेश
दिनेश चन्द्र 'दिनेश'
दिनेश भट्ट 'दिवाकर'
नरेन्द्र प्रसाद 'नवीन'
पारस दासोत
कृष्णलता कश्यप
मन्जुला शर्मा
मनाजिर बाशिक हरगांबी
महेश भण्डारी
यदुमणि कुम्हार
रमेश चन्द्र श्रीवास्तव
राजकुमार कनोजिया
राजेन्द्र बहादुर सिंह 'राजन'
राजेंद्र मोहन त्रिवेदी 'बन्धु'
राम नारायण 'रमण'
रामनिवास मानव
रामकृष्ण 'विकलेश'
राम सिंह 'मित्र'
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
लाल चन्द ज्योति
विक्रम सोनी
वृन्दावन त्रिपाठी 'रत्नेश'
शम्भु शरण द्विवेदी 'बन्धु'
शराफत अली खान
शिवनाथ प्रमाणिक
शिव मित्र
सतीश राज पुष्करणा
सतीश राठी
ज्ञानेन्द्र साध
सम्पादकीय
लगभग दस माह के सतत प्रयास के परिणामस्वरूप 'शब्द साक्षी' आपके समक्ष प्रस्तुत है। विभिन्न संकलनों एवं एकल संग्रहों से होती हुई 'शब्द साक्षी' तक की लघुकथा की सघर्ष-यात्रा को थोड़े से शब्दों में समेट पाना असम्भव है, फिर भी दृढ़तापूर्वक इतना तो कहा ही जा सकता है कि इस यात्रा में लघु कथा ने अपने स्वरूप निर्धारण का महत्वपूर्ण कार्य, प्राय: पूरा किया है। अब हम इस बात पर बिल्कुल स्पष्ट हो चुके हैं कि लघु कथा चुटकुला नहीं है, लघुकथा छोटी या 'मिनी' कहानी अथवा कहानी का अंश नहीं है, वह शार्ट स्टोरी का हिन्दी रूप भी नहीं है। लेकिन लघुकथा क्या-क्या है इस बात पर विभिन्न साहित्यकारों विद्वानों में मतभेद होते हुए भी, यह बात लगभग तय पायी है कि लघुकथा जीवन तथा जीवन की संघर्ष गाथा से जुड़े विभिन्न पहलुओं को सोमिनि शब्दों वाली सधी और सटीक भाषा में इस तरह से अभिव्यक्ति देती है कि वह जाने-अनजाने पाठक के मर्म को वेध जाती है तथा पाठक की समूची चिंतन प्रक्रिया को क्षणमात्र के लिए ही सही, झकझोर कर रख देती है। लघुकथा के इस स्वरूप को प्रायः व्यंग्य के माध्यम से रूपायित किया जाता रहा है। व्यंग्य में भी पुलिस, नेता तथा कथित सभ्य और बड़े लोग दुराचार, भृष्टाचार, निकम्मापन, नपुंसकता, क्रूरता, कायरता, बेईमानी, अनैतिकता आदि-आदि को इस बड़े पैमाने पर अपनाया गया कि लघु कथा के माध्यम से व्यक्त समाज में ईमानदारी, सच्चाई, नैतिकता, सत्यनिष्ठा, सदाचार तथा जीवन के विविध उच्च मूल्य और आदर्श दूर-दूर तक नहीं दिखाई देते। जब कि वस्तुस्थिति यह है कि समाज में धनात्मक और ऋणात्मक दोनों तरह की प्रवृत्तियाँ हमेशा से पायी जाती रही हैं। आज की विडम्बना सिर्फ इतनी है कि ऋणात्मक प्रवृत्तियाँ बढ़-चढ़ गयी हैं और इस हद तक कि धनात्मक प्रवृत्तियाँ अल्पसंख्यक होने के साथ-साथ अपने को जीवित बनाये रखने में भी मुश्किलें महसूस कर रही हैं। यह स्थिति निःसन्देह घातक और चिन्ता का विषय है। ऐसे में साहित्य के सामाजिक दायित्व का भी प्रश्न सामने आता है कि क्या वह समाज की अधोगामी प्रवृत्तियों की चीरफाड़ और उसके यथार्थ दर्शन में ही लगा रहे या फिर ऊर्ध्वगामी प्रवृत्तियों का मण्डन और समर्थन कर ऐसी जिन्दगी जीने की आकांक्षा रखने वालों का मनोबल बढ़ाये। हमारे विचार में दूसरा विचार ही ज्यादा महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है क्योंकि साफ-सुथरा जीवन बिताना दिनों-दिन खतरनाक और त्रासद होता जा रहा है। अधोगामी यथार्थ का चित्रण भी बुरा नहीं, बशर्ते प्रस्तुतिकरण में उसके खण्डन की बात हो। इस माध्यम से समाज में उस स्थिति के प्रति वितृष्णा, ग्लानि और क्षोभ पैदा हो।
उपर्युक्त वैचारिक पृष्ठभूमि में ही 'शब्द-साक्षी' के लिए उन्हीं रचनाओं को वरीयता दी गयी है जो जीवन के उदात्त और सकारात्मक पक्ष को प्रस्तुत करती हैं तथा जिनमें जिजीविषा और सत्य के लिए संघर्ष की प्रेरणा झलकती है। यद्यपि हम अपने इस प्रयास में पूरी तरह सफल नहीं हो पाये हैं क्योंकि सम्मिलित रचनाकारों की सीमित संख्या एवं समय सीमा में रहकर हमें ऐसी कुछेक रचनाओं को भी स्वीकार करना पड़ा को हमारे घोषित मापदण्डों के अनुकूल नही थीं या जो पहले भी कहीं प्रकाशित हो चुकी थीं। यहाँ हमें अपने एक लघुकथाकार मित्र की बात से बल भी मिला कि अच्छी रचनाएँ तो बार-बार प्रकाशित कर अधिक से अधिक लोगों द्वारा पढ़ी जानी चाहिए।
संकलम की सार्थकता, सफलता और उपादेयता का निर्णय तो आप etat दृष्टि के आंकलन पर ही निर्भर करेगा, फिर भी इस प्रयास की कमियों से यदि आप हमें अवगत कर सके तो उससे हमें अपनी भावी योजनाओं के क्रियान्वयन में सहायता मिलेगी ।
और अन्त में, हम संकलन में सम्मिलित सभी रचनाकारों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए अपने उन सभी मित्रों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं, जिनका इस संकलन में किसी भी स्तर पर किसी भी प्रकार का सहयोग प्राप्त हुआ।
शुभ कामनाओं सहित ।
कमलेश भट्ट 'कमल'
राम निवास 'पंथी'
कमलेश भट्ट 'कमल'
जन्म तिथि : 12 अक्टूबर, सन् 1951 ई.
जन्म स्थान : उधनपुर, बरारा बुजुर्ग, रायबरेली
शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी, संस्कृत), बी.टी.सी.
व्यवसाय : 1973 ई. से 2014 तक अध्यापन कार्य ।
अभिरुचि : शिक्षण, लेखन, सेवा, स्वाध्याय, अध्यात्म ।
सम्बद्धता : अनेक शैक्षिक, साहित्यिक संस्थाओं से संबद्ध आजीवन सदस्य।
प्रदेय : साहित्य एवं शिक्षा में मानवीय मूल्यों के प्रबल पक्षघर, आकाशवाणी से कविताओं का प्रसारण, समीक्षा, निबन्ध, साक्षात्कार तथा पद्य में हाइकु, मुक्तक, क्षणिका एवं व्यंग्य लेखन।
सम्पर्क : ग्राम-उधनपुर, पोस्ट-बरारा बुजुर्ग, जिला-रायबरेली (उ.प्र.) - 229207
मो. : 9565035560
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