बूँद बूँद सागर/सिद्धेश्वर
कथाकार : सिद्धेश्वर
प्रकाशक : अयन प्रकाशन
1/20 महरौली, नई दिल्ली- 110030 -
आवरण : करुणानिधान
मूल्य : पच्चीस रुपये
प्रथम संस्करण: 1988
अनुक्रम
कुछ कहने के बहाने
सागर की बूंदें : बूंदों में सागर / भगवती प्रसाद द्विवेदी
शब्द-शब्द से झांकती व्यंगवत्ता / डॉ. स्वर्ण किरण
संवेदनाओं के कथाकार / सतीशराज पुष्करण
लघुकथा-क्रम
इज्जत का नकाब
जिद्द
आंसू के रंग
गुनाह
विकल्प
अमीर-गरीब
दोहरा लाभ
भाषण की रोटी
एक बेटे की कीमत
अपना-पराया
बोहनी
छोटी मछली : बड़ी मछली
कामयाबी
भविष्य
निदान
कायर
वैवाहिक
ममता की हत्या
टुकड़ों में बंटी आज़ादी
दोहरा लाभ
राजनीति
डायन
आश्वासन
घृणित आकृति
बेइज्जती
मांग
अपवित्र गंगा
ऊपरी आमदनी
ज़हरीली मुस्कान
बड़ा डॉक्टर
अपनापन
तड़पती आत्मा की आवाज
फायदे का सौदा
प्रेमिका का रूप
बदला
विपरीत स्थिति
सांठ-गांठ
परम्परावादी
भीख नहीं, चन्दा
नहीं मिट रही भूख
अपना-अपना हिस्सा
बदलती उपमाएं
अपंग जिन्दगी
ऑफिस का साहब
आशीर्वचन का मोह
संबंध: खून का नहीं, पैसे का
व्यावहारिक
भूख और भूख
दिल का बौनापन
खुशी की हत्या
स्वीकृति -अस्वीकृति
आम के आम, गुठली के दाम
कथानक की खोज
मरने से पहले
सस्ता माल
प्यार का उफान
नज़रिया
आदमीयत
दहेज की तैयारी
रिश्ता एक बड़े घराने का
रिश्ते की ओट में
दोहरा चरित्र
प्रतिबिम्ब
औलाद
चन्दा
टुकड़ों में बंटा दिल
प्यास और प्यास
निःशुल्क सेवा
मूल्यांकन
पेट की खातिर
झूठ बनाम सच
अपनी-अपनी थाली
औपचारिकतावश
पुरस्कार
आगमन
संग्रह से सिद्धेश्वर की मनपसंद लघुकथा 'भविष्य':
तीन महिलाएं अपने-अपने बेटों का भविष्य निश्चित कर रही थीं।
“मैं अपने बेटे को इंजीनियर या डॉक्टर बनाऊंगी। पढ़ने-लिखने में बहुत तेज है मेरा बेटा।"
"अरी सखी! डॉक्टर या इंजीनियर बनाने में अब रखा ही क्या है? मैं तो अपने बेटे को व्यापारी बनाऊंगी ताकि रातों-रात लखपति बन जाए मेरा बेटा ।"
"तुम दोनों का बेटा उतना अधिक नहीं कमा पायेगा, जितना कि मेरा बेटा सिर्फ क्लर्क बनकर ही कमा लेगा। मैं तो अपने बेटे को क्लर्क ही बनाऊंगी ।"
“तुम्हारी भी खूब रही। क्लर्क का वेतन ही कितना होता है, जो लखपति बनने का ख्वाब देख रही हो?”
"वेतन में क्या बनता है री! क्लर्क को ऊपरी आमदनी जो बहुत होती है जितनी कि इंजीनियर, डॉक्टर या बिजनेस वाले को भी नहीं। मेरा बेटा साल-भर में ही घर भरकर रख देगा ! .. .."
सिद्धेश्वर
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