समकालीन लघुकथा का सौन्दर्यशास्त्र एवं समाजशास्त्रीय सौन्दर्यबोध/जितेन्द्र जीतू
लेखक : डॉ. जितेन्द्र जीतू
प्रकाशक
वनिका पब्लिकेशन्स
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Copyright : लेखक
संस्करण: प्रथम 2018
आवरण: कुँवर रविन्द्र
मूल्य: आठ सौ रुपये $ 50
भूमिका
अपनी थीसिस 'समकालीन हिंदी लघुकथा का सौन्दर्यशास्त्र और समाजशास्त्रीय सौन्दर्यबोध: एक अध्ययन' पुस्तकाकार आप पाठकों के हाथ सौंपते हुये मुझे जो सुखद अनुभूति हो रही है उसका वर्णन मैं शब्दों में नहीं कर सकूँगा। एक बैंकर के पास ऐसे नॉन प्रॉफिटेबिल और व्यक्तिगत कार्यों के लिये कितना समय होता है यह कोई नॉन बैंकर क्या जाने भला! मैं आभार व्यक्त करता हूँ भाई डॉ. सुधांशु शर्मा और भाभी डॉ. नीरज सुधांशु जी का, जिन्होंने अपने बैंकर - भाई के प्रयासों को अमलीजामा पहना दिया अन्यथा ज़िन्दगी रोज़ाना के डे-एण्ड में यों ही गुज़र जाती और साल-दर-साल की लेखाबंदी पूर्ण करने के अलावा कम-से-कम यह अचीवमेंट तो कभी न हो पाता।
भरसक प्रयत्नों के बाद भी ये जो कुछ वर्षों का विलम्ब हुआ उसके लिये सिर्फ मुझे ही उत्तरदायी माना जाये।
'समकालीन लघुकथा का सौन्दर्यशास्त्र और समाजशास्त्रीय सौन्दर्यबोध' लिखने का विचार कब आया इस बारे में मैंने कुछ बातें अपनी थीसिस की भूमिका में लिखी थीं। संक्षेप में पुनः अवगत करा देना चाहता हूँ कि मुझे लघुकथा पर पीएच.डी. करने की सलाह वरिष्ठ कथाकार भाई महेश दर्पण जी ने दी थी। उनसे मेरा परिचय काफी पूर्व से था और हमारी भेंट प्रगति मैदान, दिल्ली में पुस्तक मेले के अवसर पर प्रति दो वर्ष में हो जाया करती थी। उनके बाद मैंने भाई सुकेश साहनी जी से टेलीफोनिक संपर्क किया, जिन्हें मैं पहले से ही जानता था। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुये कहा कि आपकी कई किताबें आ चुकी हैं और आप पर ही पीएच.डी. की जा सकती है, फिर भी यदि आप लघुकथा में ही इच्छुक हैं तो आपका स्वागत है। फिर उन्होंने मुझे कुछ विषय सुझाये। टेलीफोन पर उनके साथ आगे के सम्पर्कों में मैंने लघुकथा के अध्यायों के विषय में चर्चा की। उनके आशीर्वचन मिले और अन्ततः मैं तैयार हो गया।
प्रस्तुत ग्रंथ में समकालीनता का अर्थ सन् 1970-71 के बाद लिखी गयी लघुकथाओं से लिया गया है। कतिपय लघुकथाएँ इस अवधि से पूर्व की आयी हों तो इसे विषय स्पष्ट करने हेतु ज़रूरी समझ कर लिखा। सौन्दर्यशास्त्र में मैंने वही अध्याय लिये हैं जिन्हें मूल थीसिस में लिया गया था। एक-दो अध्यायों, जिनमें प्रमुख लघुकथाओं और लघुकथाकारों का परिचय दिया गया था, उन्हें मैंने यहाँ नहीं लिया। अध्यायों में आंशिक संशोधन की जहाँ ज़रूरत लगी वहाँ पर संशोधन किया है। कुछ नये लोगों की लघुकथाओं को ज़रूर इसमें डाला गया है ताकि उनकी सहभागिता भी रहे। साथ ही एक लम्बा आलेख विशेष रूप से लिखा जिसमें अधिकाँश नये लघुकथाकारों की लघुकथाओं को लिया गया है। फिर भी मेरी एक सीमा थी। सभी नये लघुकथाकारों की लघुकथाओं को नहीं लिया जा सका। ऐसे कार्यों की कोई सीमा नहीं होती।
एक बात और स्पष्ट करना चाहूँगा । यह सिर्फ शुरूआत है। खोज का कोई भी कार्य कभी अन्तिम नहीं होता। होता। इस प्रस्थान - ग्रंथ के बाद भी भविष्य में यह कार्य किसी-न-किसी रूप में निरंतर गतिमान रहेगा।
अपनी थीसिस आने से पूर्व मैं अपने पिता को खो चुका था और उस पर पुस्तक आने से पूर्व मैंने माँ और अपनी पत्नी को खो दिया। ये तीनों जिस दुनिया में होंगे वहीं से सकारात्मक ऊर्जा मुझे सप्लाई कर रहे होंगे तभी मैं इस ग्रंथ को अन्तिम रूप दे सका। मुझे मानसिक अवसाद से बचाकर लेखन की ओर उन्मुख करने में मेरे पुत्र करन के योगदान को कम नहीं आँका जा सकता। आदरणीय भाई डॉ. सुधांशु शर्मा का हमेशा इस बात के लिये आभारी रहूँगा कि वे लगातार इसे प्रकाशित कराने हेतु प्रेरित करते रहे। वहीं भाभी डॉ. नीरज सुधांशु के विश्वास के बिना तो प्रेरणा भी किसी काम नहीं आने वाली थी।
पुस्तक कैसी रही, अवगत कराइयेगा । पुस्तक में किसी भी त्रुटि हेतु मैं क्षमाप्रार्थी हूँ। अपने सभी मित्रों-परिचितों का आभार व्यक्त करता हूँ जो पीएच. डी. और इस पुस्तक को पूरा करने में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मेरे साथ जुड़े रहे।
डॉ. जितेन्द्र 'जीतू'
बिजनौर, दिनांक: 27-10-2018
अनुक्रम
समकालीन लघुकथा का सौन्दर्यशास्त्र
(अ) समकालीन लघुकथा का तात्त्विक सौन्दर्यबोध (ब) समकालीन लघुकथा का शिल्पगत सौन्दर्यबोध
स) समकालीन लघुकथा का वस्तुगत सौन्दर्यबोध
समकालीन लघुकथा को प्रभावित करने वाले कारक
राजनीतिक परिस्थितियाँ
धार्मिक परिस्थितियाँ
आर्थिक परिस्थितियाँ
सांस्कृतिक परिस्थितियाँ
सामाजिक परिस्थितियाँ
प्रमुख लघुकथाओं का समाजशास्त्रीय सौन्दर्यबोध
समाजशास्त्रीय सौन्दर्यबोध से अभिप्राय
इसकी प्रासंगिकता
समकालीन लघुकथा का समाज से अन्तर्सम्बन्ध समकालीन लघुकथा के बहाने पड़ताल
राजनीतिक समस्याएँ
सामाजिक समस्याएँ
आर्थिक समस्याएँ
सांस्कृतिक समस्याएँ
पारिवारिक समस्याएँ
धार्मिक समस्याएँ
नवीन मूल्यों की प्रतिष्ठा
अन्तर्विरोधी जीवन मूल्य
समकालीन लघुकथा में सौन्दर्यचेतना
यथार्थवादी चेतना
काल्पनिक चेतना
व्यावहारिक चेतना
मनोवैज्ञानिक चेतना
उपसंहार
समकालीन लघुकथा का चरमोत्कर्ष
समकालीन लघुकथा के सौन्दर्यबोध के क्षेत्र में प्रमुख उपलब्धियाँ
समकालीन लघुकथा के समाजशास्त्रीय सौन्दर्यबोध के क्षेत्र में प्रमुख उपलब्धियाँ
समग्र प्रभाव
परिशिष्ट
समकालीन लघुकथाओं का तात्त्विक सौन्दर्यबोध: कुछ उदाहरण
संवाद (बलराम अग्रवाल से डॉ. जितेन्द्र जीतू की बातचीत )
लघुकथा - तंदूरी औरत - डॉ. जितेन्द्र जीतू
संदर्भ ग्रंथों की सूची
डॉ. जितेन्द्र 'जीतू'
जन्म: 25 अगस्त 1965 बिजनौर
शिक्षा : पीएच.डी.
सम्प्रति : सर्व यू.पी. ग्रामीण बैंक, बिजनौर में कार्यरत ।
विधाएँ: : व्यंग्य, बालकथा, लघुकथा - आलोचना, कविता, कहानी ।
प्रकाशित कृतियाँ : आज़ादी के पहले आज़ादी के बाद, शहीद को पत्र, पति से कैसे लड़ें व काँटा लगा (व्यंग्य संग्रह), झूठ बोले कौवा काटे, कटी पतंग (बालकथा संग्रह), समकालीन हिन्दी लघुकथा का सौन्दर्यशास्त्र पर शोध, लघुकथा विषयक अनेक आलेख प्रकाशित। आकाशवाणी के लिए हास्य एकांकी का लेखन।
सम्पादन : बूँद बूँद सागर, अपने-अपने क्षितिज, सफ़र संवेदनाओं का (लघुकथा संकलन) पत्र लेखन, बैंक की डिक्शनरी ।
बहुत ही अच्छा
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार
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