लघुकथा-संग्रह-2021/योगराज प्रभाकर

लघुकथा संग्रह : फक्कड़ उवाच

कथाकार  : योगराज प्रभाकर

प्रथम संस्करण: 2021 

मूल्य: 300 रुपये

प्रकाशक : देवशीला पब्लिकेशन पटियाञला- 147001 (पंजाब) चलभाष: 98769-30229

© लेखक

ISBN: 978-81-955189-0-6

अनुक्रमणिका

फक्कड़ उवाच / योगराज प्रभाकर 

'फक्कड़ उवाच' और 'अन्य लघुकथाएँ'/

डॉ. पुरुषोत्तम दुबे

1. अंकगणित

2. अंतर्द्वंद्व

3. अधूरी कथा के पात्र

4. अनाम सैनिक

5. अपनी-अपनी भूख

6. अपने-अपने सावन

7. अवशेष

8. आँच

9. आत्मकथा से बेदख़ल पन्ना

10. एक अफ़ग़ानी की डायरी

11. कथा-पटकथा

12. कसक

13. कहा-अनकहा 

14. काले पन्ने काले अक्षर

15. कीचड़ और कमल

16. कुक्कुर जात

17. कुल्हाड़ियाँ और दस्ते 

18. केक्टस का फूल

19. कैलेंडर

20. क्या बोले बैताल ?

21. खंडहर

22. खेल-खिलाड़ी

23. गंगा मैया

24. गांधी का चौथा बंदर 

25. गांधी अभी ज़िंदा है

26. गिरह

27. गुरु गोविंद

28. चश्मे 

29. चौथी आवाज़

30. जंबू द्वीपे भारत खंडे

31 जड़ों से दूर

32. जन्नत की हकीकत

33. जमूरे 

34. ठप्पे

35. ढहते किले का दर्द

36. तापमान 

37. दाग़

38. दिल

39. दिशासूचक

40. दूरद्रष्टा

41. धूल सने दर्पण

42. नामकरण 

43. नारायणी

44. नियति

45. नींव के पत्थर

46. नीला, पीला, हरा

47 पड़ाव

48. पर्दे के पीछे

49. पीर परबत-सी

50. पेट

51. प्रतिद्वंद्वी

52. फक्कड़ उवाच

53. बंधन

54. बलिदानी

55. बीजमंत्र

56. बैताल से सवाल

57. भारत भाग्य विधाता

58. भारत माता

59. मौसेरे भाई

60. रू-ब-रू

61. रेल की पटरियाँ

62. लावा

63. वर्ण व्यवस्था

64. विचित्र गाथा 

65. विनाश काले

66. शिक्षित

67. शून्य से शून्य तक

68. संयुक्त राष्ट्र

69. सखा

70. सारांश

71. सावन का अंधा

72. सुबह का भूला

लेखक की ओर से भूमिका

फक्कड़ उवाच

लघुकथा विधा से मेरा नाता बहुत पुराना है। मैंने वर्ष 1978-79 में लेखन का आरंभ लघुकथा से ही किया था। हालाँकि कुछ वर्ष बाद मैं ग़ज़ल की ओर मुड़ गया था। लघुकथा मैं पंजाबी में लिखता था और ग़ज़ल हिंदी भाषा में कुछ अपरिहार्य कारणों से में वर्ष 2008 तक लेखन से दूर रहा, किंतु इस दौरान मैंने पढ़ना नहीं छोड़ा। हिंदी लघुकथा की तरफ़ मेरा झुकाव वर्ष 2010 में ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम से जुड़ने के बाद हुआ। यदि लघुकथा मेरे दिल में धड़कन बनकर बसती है तो ग़ज़ल मेरी रगों में लहू बनकर दौड़ती है। लेकिन मैं स्वयं को मूलतः गज़लकार ही मानता हूँ। संभव है कि वह गज़लकार आपको मेरी कुछ लघुकथाओं में देखने को मिल भी जाए।

मित्रों व शुभचिंतकों के अनुरोध के बावजूद मेरा एकल लघुकथा संग्रह प्रकाशित करवाने का कोई इरादा नहीं था। क्योंकि मुझे हमेशा सुप्रसिद्ध शायर जॉन एलिया की बात याद आ जाती थी। एक भेंटवार्ता के दौरान उन्होंने बताया कि उनके कुछ मित्र उनसे अक्सर पूछते हैं कि अभी तक उनका एकल संग्रह क्यों प्रकाश में नहीं आया। तो जॉन एलिया का उत्तर था कि 'मैं जब अपना संग्रह प्रकाशित करवाने के बारे में सोचता हूँ तो देखता हूँ कि बाक़ी लोग मुझसे कहीं बेहतर लिख रहे हैं, ऐसे में अपना संग्रह निकालने का क्या फ़ायदा?' बिल्कुल यही मनःस्थिति मेरी भी रही।

बहरहाल, इस संग्रह के अस्तित्त्व में आने का श्रेय दो लोगों को जाता है--भाई रवि प्रभाकर व श्रीमती कल्पना भट्ट जी को। वर्ष 2007 में मैं अपना पुश्तैनी घर छोड़कर दूसरी जगह जा बसा था। मेरे वहाँ आने के लगभग एक वर्ष बाद रवि भाई किसी संदूक में पड़ी एक पुरानी फ़ाइल मेरे पास लेकर आए जिसमें 1979 से लेकर 1991 तक लिखी मेरी 48 लघुकथाएँ थीं। उनमें से अधिकतर तो मैं भूल भी चुका था। फिर लगभग तीन वर्ष पूर्व श्रीमती कल्पना भट्ट जी ने मुझे एक फ़ाइल मेल की जिसमें इंटरनेट पर पोस्ट की हुई मेरी शताधिक लघुकथाएँ थीं जो उन्होने बहुत ही मनोयोग से एकत्र की थीं। उसी दिन से ही भाई रवि प्रभाकर मुझसे एकल लघुकथा संग्रह लाने को कह रहे थे । इनके अलावा कुछ रचनाएँ मेरे पास भी थीं, उन सब में से यह सत्तर कथाएँ चुनकर 'फक्कड़ उवाच' आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ।

कहना न होगा कि लघुकथा विधा के वरिष्ठजनों ने जिन समस्याओं और चिंताओं की बात उस समय की थी, वे कमोबेश आज भी ज्यों-की-त्यों ही हैं। उदाहरण के लिए लिखने की जल्दबाज़ी तब भी थी, अब भी है। अधकचरी रचनाओं की बाढ़ तब भी थी, अब भी है। लघुकथा को आसान विधा समझने की प्रवृत्ति तब भी थी, अब भी है। • लघुकथा को सफलता का शॉर्टकट समझने की प्रवृत्ति तब थी, अब भी है। मठाधीशी और गुटबंदी तब भी थी, अब भी है। तो आख़िर बदला क्या? प्रश्न यह भी उठता है कि आख़िर हम ने इतिहास से क्या सीखा? वैसे कुछ सीखा भी है या नहीं? ये सब अति महत्त्वपूर्ण एवं विचारणीय विषय हैं। आज तक भी लघुकथा की अधिकतम शब्द-सीमा और आकार को लेकर इधर बहुत ही भ्रम की स्थिति है। दरअसल, मैं ऐसी किसी भी सीमा को नहीं मानता। मेरा मानना है कि लघुकथा को शब्द-सीमा के जकड़बंद से मुक्त रखा जाना चाहिए। वैसे भी जिस विधा में न्यूनतम शब्द संख्या ही निर्धारित न हुई उसमें अधिकतम शब्द-सीमा तय करने का क्या औचित्य है? सायास किसी लघुकथा को 'छोटा' या 'बड़ा' करने का भी मैं पक्षधर नहीं हूँ। लघुकथा मात्र 'दाग़ो और भागो' नहीं है। क्योंकि इसमें केवल निशाना साधना ही पर्याप्त नहीं होता बल्कि निशाना भेदना भी होता है। वरना हवा में तीर चलाने वाली बात हो जाएगी।

'फक्कड़ उवाच' की विशद भूमिका लिखने के लिए डॉ. पुरुषोत्तम दुबे जी तथा प्रतीकात्मक एवं अर्थगर्भित आवरण चित्र बनाने के लिए देश के नामचीन्ह चित्रकार श्री संदीप राशिनकर जी का हृदयतल से आभार व्यक्त करता हूँ। भाषा, वाक्य-विन्यास एवं प्रूफ़ संबंधी त्रुटियाँ दूर करने हेतु महत्त्वपूर्ण सुझाव देने के लिए मैं वरिष्ठ कथाकार श्रीयुत हरभगवान चावला जी का दिल की गहराइयों से शुक्रिया अदा करता हूँ। मुझे आशा है कि सुधी पाठक 'फक्कड़ उवाच' को अवश्य स्वीकार करेंगे ।

18 नवंबर 2021,                योगराज प्रभाकर 


योगराज प्रभाकर

जन्म तिथि: 18 नवंबर 1961

जन्म स्थान: पटियाला (पंजाब)

मूलत:  : गजलकार

संपादित पुस्तक : 'लघुकथा रचना प्रक्रिया' (2019)

अनुवादित पुस्तकें : 'सूरज की परछाईं' (लघुकथा संग्रह), लेखक: सुरिंदर कैले (पंजाबी से हिंदी, 2019), 'पल-पल बदलती जिंदगी' (लघुकथा संग्रह), लेखक: निरंजन बोहा (पंजाझबी से हिंदी, 2019 ), 'चिड़ियाँ' (लघुकथा संग्रह) लेखक : डॉ. प्रदीप कौड़ा ( पंजाबी से हिंदी, 2021), 'डॉ. अनिल शूर आजाद दीयाँ चोणवीयाँ मिन्नी कहाणीयाँ' (लघुकथा संग्रह) लेखक : अनिल शूर, (हिंदी से पंजाबी, 2021), 'मधुदीप दीयाँ चोणवीयाँ मिन्नी कहाणीयाँ (लघुकथा संग्रह) लेखक : मधुदीप (हिंदी से पंजाबी, 2021)

संपादित पत्रिका: 'लघुकथा कलश' (7 विशेषांक)

पुनः प्रकाशन : 'गुफाओं से मैदान तक' (संपादक : भगीरथ/रमेश जैन, 2019, 2021), 'लघुकथा बहस के चौराहे पर' (संपादक: डॉ. सतीशराज पुष्करणा, 2021 ) 'सलाम दिल्ली' (लेखक: अशोक लव, 2021)

संप्रति : एक प्रतिष्ठित निजी कंपनी में उच्चाधिकारी

संबद्धता: प्रधान संपादक, ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम,

संस्थापक एवं संपादक : 'लघुकथा कलश'

संपर्क : 53- 'ऊषा विला' रॉयल एनक्लेव एक्सटेंशन,डीलवाल, पटियाला- 147002 (पंजाब)

चलभाष: 98725-68228

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