लघुकथा कलश-2021 (2) / योगराज प्रभाकर (सं.)

लघुकथा-विशेषांक : लघुकथा कलश 

              अप्रकाशित लघुकथा विशेषांक-1

संपादक  : योगराज प्रभाकर 

वर्ष : 4  अंक : 8        जुलाई-दिसंबर 2021


संपादकीय

'अप्रकाशित लघुकथा विशेषांक' प्रकाशित करने की प्रेरणा हमें डॉ. अशोक भाटिया से मिली थी। वे संपादकों द्वारा पूर्व प्रकाशित रचनाएँ प्रकाशित करने से काफ़ी निराश थे। कुछ समय पूर्व उन्होंने कहीं लिखा/कहा था कि न जाने संपादकों की ऐसी क्या मजबूरी है कि वे पूर्व प्रकाशित लघुकथाएँ बार-बार छापते रहते हैं। उनकी निराशा निरर्थक नहीं थी। वस्तुत: वे चाहते थे कि अप्रकाशित लघुकथाओं को ही अधिमान दिया जाना चाहिए ताकि वर्तमान में इस विधा की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन किया जा सके। इस संदर्भ में जब रवि भाई से चर्चा हुई, तो उन्हें यह विचार बहुत पसंद आया। उन्होंने कहा कि हमें यह चुनौती स्वीकार करनी चाहिए और अप्रकाशित लघुकथाओं पर आधारित एक 'महाविशेषांक' प्रकाशित करना चाहिए। यह अंक डॉ. अशोक भाटिया की प्रेरणा का ही सुफल है।

अक्सर पढ़ने-सुनने को मिलता है कि संपादक को निर्मम होना चाहिए। किंतु मेरा मानना है कि संपादक को निर्मम नहीं निष्पक्ष होना चाहिए। क्योंकि अरस्तु ने कहा था कि कोई भी संवेदनशील व्यक्ति निर्मम हो ही नहीं सकता। मैं संपादक अवश्य हूँ किंतु साथ ही लघुकथा विधा का एक जिम्मेवार शुभचिंतक भी हूँ अतः नई कलमों को प्रोत्साहित करना अपना उत्तरदायित्त्व समझता हूँ। लेकिन सत्तर से अधिक साथियों की रचनाएँ निरस्त करना इस बात का प्रमाण है कि रचना-चयन में किसी प्रकार की ढील नहीं दी गई है। जो भी श्रेष्ठ उपलब्ध था उसी में से सर्वश्रेष्ठ का चयन किया गया है। इसमें हम कितना सफल रहे है, इसका निर्णय तो सुधी पाठक व समीक्षक ही करेंगे।

लघुकथा कलश के प्रवेशांक से ही बहुत से विद्वान् साथियों को यह शिकायत थी कि वृहद आकार होने के कारण उन्हें पत्रिका पढ़ने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। सच तो यह है कि निजी तौर पर मैं इसके भव्य स्वरूप में किसी भी प्रकार के बदलाव के पक्ष में नहीं था। हालाँकि यह भी सत्य है कि इतनी भारी-भरकम पत्रिका भिजवाने में हमें भी काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था। अत: दिल पर पत्थर रखकर पत्रिका के आकार में परिवर्तन कर इसे पहले से छोटे आकार में प्रकाशित करने का निर्णय लिया। हमारे सभी वरिष्ठों ने भी इस निर्णय का समर्थन किया। आशा है यह नया आकार सुधी पाठकों को अवश्य पसंद आएगा। नए आकार के हिसाब से रचनाएँ इतनी अधिक थीं कि यह अंक दो भागों में विभाजित करना पड़ा। वर्णक्रमानुसार प्रथम एक सौ रचनाकारों की लघुकथाएँ इस अंक में शामिल की गई है, बाक़ी लेखकों की रचनाएँ 'अप्रकाशित लघुकथा विशेषांक-2' (जनवरी-जून 2022) में प्रकाशित की जाएँगी।

मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि लघुकथा विधा के वरिष्ठजन जिन समस्याओं और चिंताओं की बात आठवें-नौवें में किया करते थे, दुर्भाग्य से वे कमोबेश आज भी ज्यों-की-त्यों ही हैं। उदाहरण के लिए, लिखने की जल्दबाज़ी तब भी थी, अब भी है। अधकचरी रचनाओं की बाढ़ तब भी थी, अब भी है। लघुकथा को आसान विधा समझने की प्रवृत्ति तब भी थी, अब भी है। लघुकथा को सफलता का शॉर्टकट समझने की प्रवृत्ति तब थी, अब भी है। मठाधीशी और गुटबंदी तब भी थी, अब भी है। तो आखिर बदला क्या? प्रश्न यह भी उठता है कि आख़िर हमने इतिहास से क्या सीखा? वैसे कुछ सीखा भी है या नहीं? ये सब अति-महत्त्वपूर्ण एवं विचारणीय विषय है। लघुकथा की अधिकतम शब्द-सीमा और आकार को लेकर भी इधर बहुत ही भ्रम की स्थिति है। मैं ऐसी किसी भी सीमा को नहीं मानता। मेरा मानना है कि लघुकथा को शब्द-सीमा के जकड़बंद से मुक्त रखा जाना चाहिए। वैसे भी जिस विधा में न्यूनतम शब्द संख्या निर्धारित न हुई उसमें अधिकतम शब्द-सीमा तय करने का क्या औचित्य है? सायास किसी लघुकथा को 'छोटा' या 'बड़ा' करने का भी मैं पक्षधर नहीं हूँ। लघुकथा मात्र 'दागो और भागो' नहीं है। इसमें केवल निशाना साधना ही पर्याप्त नहीं होता बल्कि निशाना भेदना भी होता है। वर्ना हवा में तीर चलाने वाली बात हो जाएगी।

हम यदि स्तरीय लेखन करना चाहते हैं तो हमें ट्रेडिंग ट्रैप (Trending Trap) से बचना होगा। जब कोई विषय प्रचलन में आता है तो हम बिना उसकी गहराई में उतरे, बिना किसी तथ्यात्मक पुष्टि के धड़ल्ले से कलम चलाने लगते हैं। उदाहरण के लिए, पिछले डेढ़ वर्ष में कोरोना महामारी पर आधारित बेशुमार लघुकथाएँ लिखीं गईं। उनमें से अधिकांश इसी ट्रेडिंग ट्रैप' का शिकार लगी। इस विषय पर आधारित कुछ संकलन भी प्रकाश में आए, लेकिन उनमें शामिल रचनाओं में से शायद मुट्ठीभर ही दीर्घजीवी होंगी। ऐसे लेखन से विधा को क्या लाभ होगा, यह चिंतन और चिंता का विषय है। एक और बात है जिससे निजी तौर पर मुझे काफी निराशा होती है। वह है लघुकथा में 'प्रयोग' का अभाव। आज भी उन्हीं दो-तीन प्रचलित शैलियों में ही लिखी जा रही हैं। आखिर हम लोग प्रयोग करने से इतना डरते क्यों है? क्या यह आत्मविश्वास की कमी है या अध्ययन की? भाषा, शैली और शिल्प के स्तर पर प्रयोग करने की बहुत संभावनाएँ है, जरूरत केवल इच्छाशक्ति की है। वैसे हमने प्रयास किया है कि 'लघुकथा कलश' में कम प्रचलित अथवा अप्रचलित शैलियों यथा, पत्र-शैली, डायरी शैली, नाट्य शैली में रचित लघुकथाओं को भी स्थान दिया जाए। भविष्य में इन शैलियों पर आधारित लघुकथाओं के 'महाविशेषांक' निकालने पर भी गंभीरता से विचार किया जाएगा।

प्रस्तुत अंक हाल ही में शारीरिक रूप से बिछड़ गए डॉ. सतीशराज पुष्करणा, डॉ. शकुंतला किरण, मेरे अनुज रवि प्रभाकर, भाई विजय विभोर, कुसुमाकर दुबे, कुमारी अंकिता भार्गव तथा अर्चना त्रिपाठी को समर्पित है। यह मैं एक घोषणा करना चाहूंगा कि जब तक 'लघुकथा कलश' का प्रकाशन जारी रहेगा, तब तक भाई रवि प्रभाकर इसके उपसंपादक रह और डॉ. सतीशराज पुष्करणा इसके संरक्षक। साथियो, सदैव की भाँति हर प्रकार की असफलता पर मेरा एकाधिकार यथावत जारी रहेगा और किसी भी प्रकार की सफलता का श्रेय इस अंक में शामिल रचनाकारों को जाएगा।

लघुकथाएँ

1. अंकुश्री

2. अंजलि 'सिफ़र'

3. अंजू खरबंदा

4. अंजू निगम 

5. अनघा जोगलेकर

6. अनिता रश्मि

7. अनिल नानकराम मकरिया

8. अनिल शूर आज़ाद

9. अनीता मिश्रा 'सिद्धि' 

10. अनुराग शर्मा

11. अनूपा हर्बोला

12. अमृतलाल मदान 

13. अर्चना राय

14. अवधेश तिवारी

15. अशोक कालरा

16. अशोक वाधवाणी

17. अशोक बैरागी

18. अशोक भाटिया

19. अशोक लव

20. अशोक वर्मा

21. आभा सिंह

22. आशा खत्री 'लता' 

23. आशागंगा प्रमोद शिरढोणकर

24. आशा शर्मा

25. ऊषा लाल

26. उषाकिरण टिबडेवाल

27. ऋता शेखर 'मधु'

28. कनक हरलालका

29 कपिल शास्त्री

30 कमल चोपड़ा

31. कल्पना भट्ट

32 किंशुक गुप्ता 

33. कुँवर प्रेमिल

34 कृष्ण चंद्र महादेविया

35. कृष्णलता यादव 

36. कोमल वाधवानी 'प्रेरणा'

37. क्षमा सिसोदिया

38. गिरिजेश सक्सेना 'गिरीश'

39. गीता चौबे 'गूंज'

40 घनश्याम मैथिल 'अमृत' 

41. चंद्रा सायता

42. चंद्रेश कुमार छतलानी

43 चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'

44 जगदीश राय कुलरियाँ

45 जनकजा कांत शरण

46. जया आर्य

47. जसबीर चावला 

48. जानकी बिष्ट वाही

49. जितेन्द्र गुप्ता

50. ज्योत्स्रा सिंह

51. तनु श्रीवास्तव 

52. तेजवीर सिंह

53. देवराज डडवाल

54. नज्म सुभाष

55. नफे सिंह योगी मालड़ा 

56. नमिता सचान सुंदर

57. नयना (आरती) कानिटकर

58. निर्मल कुमार

59. नीना छिब्बर

60. नीरज सुधांशु

61. नीरजा कृष्णा

62. नीलम राकेश

63. नेहा शर्मा

64. पंकज शर्मा

65. पदम गोधा 

66. पम्मी सिंह 'तृप्ति'

67. पवन शर्मा

68 पवित्रा अग्रवाल

69. पारस कुंज

70. पारुल हर्ष बंसल

71. पुरुषोत्तम दुबे

72. पूजा अग्निहोत्री 

73. पूनम सिंह

74. प्रतापसिंह सोढी

75. प्रतिभा पांडे

76. प्रद्युम्न भल्ला

77. प्राची चतुर्वेदी रंधावा

78. प्रियंका श्रीवास्तव 'शुभ्र'

79. प्रेरणा गुप्ता

80. बलराम अग्रवाल

81. बालकृष्ण गुप्ता 'गुरु' 

82. भगवान वैद्य प्रखर

83. भगीरथ

84. भारती वर्मा बौड़ाई

85. मधु जैन

86. मनन कुमार सिंह

87 महिमा भटनागर

88 महिमा श्रीवास्तव वर्मा

89 महेश राजा

90. माधव नागदा

91. मार्टिन जॉन

92. मालती बसंत

93. मुकेश कुमार मृदुल

94. मुकेश शर्मा

95. मृणाल आशुतोष

96. मृदुला मिश्रा

97. योगराज प्रभाकर

98. योगेंद्र माथुर

99. योगेंद्र नाथ शुक्ल

100. रजनीश दीक्षित

पंजाबी एकादश 79-84

1. कुलविंदर कौशल

2. दविदर पटियालवी

३ प्रदीप मेहता

4 बीर इंदर बनभौरी

5 बुध सिंह नडालों 

6 रशीद अब्बास

7. रोहित कुमार

8. सुखदेव शांत

9 सुखमिंदर सिखो

10 मास्टर सुखविंदर दानगढ़ 

11. सोमा कलसियाँ

आलेख माला

हिंदी लघुकथाओं का हासिल: एक झलक

अशोक भाटिया

लघुकथा में अल्पसंख्यक विमर्श

कुमारसंभव जोशी 

हिंदी लघुकथा के क्षेत्र में रामेश्वर कांबोज 'हिमांशु' की ऊँचाई

खेमकरण सोमन 

लघुकथा में सही शब्द की खोज

डॉ पुरुषोतम दुबे 

दर्शनशास्त्र और लघुकथा

महेंद्र कुमार

27वाँ अंतरराज्जीय मिन्नी कहाणी (लघुकथा) सम्मेलन जगदीश राय कुलरियाँ / महेंद्रपाल मिंदा

प्राप्त पुस्तकें

योगराज प्रभाकर (संपादक)

चलभाष: 98725-68228


टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही सराहनीय कार्य, लघुकथा के बढ़ते कदम।
    मेरी लघुकथा शामिल करने के लिए हार्दिक धन्यवाद

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