एक कतरा रोशनी--2019/मधु जैन

(समीक्षा-1 : सरस दरबारी की ओर से / समीक्षा-2 : ॠता शेखर 'मधु' की ओर से)

पुस्तक  : एक कतरा रोशनी
कथाकार--मधु जैन
प्रकाशक :
बोधि प्रकाशन
सी-46, सुदर्शनपुरा इंडस्ट्रियल एरिया एक्सटेंशन •नाला रोड 22 गोदाम, जयपुर-302006 फोन: 0141-2213700, 9829018087 

ई-मेल:
 bodhiprakashan@gmail.com
कॉपीराइट © मधु जैन
प्रथम संस्करण : नवम्बर, 2019
ISBN: 978-93-89177-83-1
मूल्य: ₹175/

अनुक्रम
स्नेह 
शगुन
संवेदना
31 तारीख
खाली पेट
विकास बनाम विनाश
कोहरा
दृष्टिकोण
कुत्ते की पूँछ
नव-आह्वान
एक खिड़की अपनी सी 
नजराना नजरों का
अंतिम पंक्ति
वो सात दिन
शांति
सही निर्णय
गुजारिश
आसरा
सौगात
विकल्प
आसक्ति
सच्चा मित्र
कृतघ्न
सीख
गाँठ
ताली
निवारण
कबाड़
लाक्षागृह
जुनून
वजूद
दर्द की दवा
आहुति
तरकीब
इंसाफ
भावनाओं का असर
महादान
संस्कार
नहले पर दहला
तीर्थयात्रा
फर्क
विश्वासघात
संजीवनी
भीख
त्रासदी
सेल्फी
मंदिर
गांधीगिरी
मुक्तिबोध
फर्ज
कमाई
दूरदर्शिता
रेनकोट
शतरंजी चाल
डोनर
कुंठा
मिलन
अंर्तमन
नाजायज
सार्थक पहल
जीवनदायनी
मृगतृष्णा
बदलते रंग
चित भी मेरी पट भी मेरी
सौभाग्य
अधूरे ख़्वाब
आदर्श घर
जद्दोजहद
तूफानों के आगे
संतोषी
सपूत
खुशियों का गणित
मुखौटा
अहसास प्यार भरा
जहाँ चाह वहाँ राह
सफेद झूठ
ठोस रिश्ता
थकन
अनोखी पहल
छँटती धुंध
भ्रान्तियाँ
शत-प्रतिशत
व्यापार
इंतजार
अहिल्या
वारिस
नवाशीष
बंधन प्यार का
पछतावा
ऋणी
हादसा
उपेक्षा का दंश
सुखांत
अपराध-बोध
चैतन्य मन
कर्मठ हाथ
मंथन
अनजाना भय

समीक्षा-1 / सरस दरबारी
एक कतरा रौशनीआदरणीय मधु जैन का प्रथम लघुकथा संग्रह (2021) है । पहले का आनंद विरला ही होता है। पहला शिशु, शिशु का पहला कदम, पहली किताब, पहला एकल संग्रह ...!

यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है उस लेखक या लेखिका के लिए जिन्होने , रिटायर होने के बाद अपनी लेखकीय यात्रा शुरू की। प्रोत्साहन ने उन्हें पर दिये, और उन्होंने उड़ान भरी। आज उनकी उसी परवाज़ का प्रतिफल है , उनका प्रथम लघुकथा संग्रह – एक कतरा रौशनी...!

उनकी कथाएँ पढ़ते हुए हमनें महसूस किया,

कथाकार मधु जैन 
कि मधु जी एक बहुत ही संवेदनशील हृदय की स्वामिनी हैं जीवन के हर उस सरोकार को उन्होंने अपनी कथा वस्तु में ढाला है, जो कहीं न कहीं हमारे हृदय के तारों को छेड़ते हैं। और उनकी झनझनाहट, देर तक महसूस होती रहती है। संग्रह की पहली कथा, स्नेह पथ...! पढ़ते ही लगा, यह तो खज़ाना हाथ लग गया। 

इस कथा में सास ससुर और बहू के बीच का सामंजस्य सुकून पहुँचाता है। कामकाजी बहू हर मुमकिन कोशिश के बाद भी घर समय से नहीं पहुँच पाती। पीछे से उसके बुजुर्ग ससुर, बीमार पत्नी से निर्देश लेकर खिचड़ी बना देते हैं। इस प्रेम से अभिभूत बहू को रोता देख उनका बहू से कहना, शायद खिचड़ी में मिर्च ज़्यादा हो गई है, और बहू का प्रतिउत्तर, नहीं पापा जी  प्यारा ज़्यादा हो गया है, रिश्तों के प्रति कहीं, आश्वस्त करता है, कि रिश्तों का गणित अब बदल रहा है, उनमें स्नेह और सम्वेदनाओं की ऊष्मा बढ़ रही है। 

दूसरी कथा शगुन, बरबस आँखें नम कर देती है। मालती के घर पोती का जन्म हुआ है। हिजड़े पहुँचकर नेग माँगते हैं। मालती  के पास कुल तीन हज़ार रुपए हैं जो बहू की दवाइयों के लिए हैं। पर हिजड़ों की बददुआ के डर से वह उनकी ज़िद पर, मन कड़ा करके 2500 रुपए दे देती है। जब उन्हें इस सच्चाई का पता चलता है, तो वे अपनी तरफ़से  500 और जोड़कर मालती को तीन हज़ार यह कहते हुए लौटा देते हैं की यह हमारी तरफ़से बच्ची के लिए शगुन है। भाव विभोर हो मालती जब उन्हें आशीषती तब  पहली बार वे सच्चे शगुन का मोल समझ पाते हैं। वास्तव में दिल से निकली सच्ची दुआएँ ही अनमोल शगुन हैं। 

संवेदना– कर्मकांडों और झूठे आडंबरों में गुमराह होकर, लोग सच्चे धर्म के अर्थ भूल गए हैं। एक भूखे बालक को रोटी खिलाने कि बजाय वे एक गाय और कुत्ते को रोटी खिलाना अधिक श्रेयस्कर समझते हैं, उन्हें अपना परलोक जो सुधारना हैं। 

31 तारीख – एक बहुत ही भावुक करती कथा। अभिभावक अपने बच्चों को कितने प्रेम से पालते हैं। चाहे जितने बच्चे हों, खुद भूखे रहकर उनका पेट भरते हैं, पर एक माँ को जब दो बेटे, पंद्रह पंद्रह दिन के लिए बाँट लेते हैं , तो महीने के इकत्तीसवें दिन पेट भरने के लिए माँ को मंदिर की शरण लेनी पड़ती है, वहाँ मिले प्रसाद से पेट भरने के लिए।  

खाली पेट -  सरकारी अस्पताल से बीमार माँ के लिए मुफ्त की दवा तो मिल जाती है, पर भूखी माँ को खाना भी चाहिए जिसके लिए बेटा श्रम के एवज में खाने की माँग करता है। 

उनकी अधिकतर कथाएँ सम्वेदनाओं की झील में एक कंकर फेंक जाती हैं, और तलहटी में बैठी कालिख, समाज की विकृतियाँ, हमारी अपनी कमियाँ, सतह पर उभर आती हैं। पानी में उठी तरंगें, जब तक शांत होती हैं, उनकी कथाएँ और उनका मर्म , गहरे पैठ चुका होता है भीतर। उनकी सभी कथाएँ चाहे मानवेत्तर हों, या इतर, झकझोर देती हैं।


लघुकथा में पंच लाइन उसकी आत्मा होती है, उसी में कथा का पूरा सार, पूरा निचोड़ निहित होता है। पंच लाइन मधु जी की कथाओं का मजबूत पक्ष हैं। रिश्तों को जोड़ने वाले नाज़ुक रेशमी धागे कितने मजबूत होते हैं, यह मधु जी की कथाओं को पढ़कर महसूस होता है। यह उनके संवेदनशील व्यक्तित्व की ओर भी इंगित करता है। वे जीवन में सकारात्मक्ता को बहुत महत्व पूर्ण मानती हैं।  

उनकी कथा दृष्टिकोण को ही लीजिये। 

किसी भी परिस्थिति को देखने का दृष्टिकोण बदल लेने मात्र से ही बहुत सी जटिलताएँ, स्वयं सुलझ जाती हैं। । यह कहानी इसी पृष्ठभूमि पर रची गई है। अमूमन नौकरीपेशा पति पत्नी को अपने अभिभावकों की आवश्यकता, स्नेह आदर वश कम अपनी ज़रूरत पूरी करने के लिए अधिक पड़ती है। ज़रूरत दरअसल दोनों की है। अभिभावकों का अकेलापन दूर हो जाएगा और बच्चों की भी सहायता हो जाएगी। दृष्टिकोण  सकारात्मक होने से बहुत  सी उलझनें सुलझ जाती है । 

परिवार और रिश्तों की अहमियत से जुड़ीं उनकी कहानियाँ आपसी, प्रेमभाव , समझ, त्याग, एक दूसरे के प्रति चिंता और संरक्षण के भाव पर ज़ोर  देती है।

जैसे नज़राना नज़रों का , वो सात दिन, जहाँ पत्नी के कुछ दिन घर पर न रहने से पति को उसके योगदान का एहसास होता है, और वह अपनी पत्नी की लंबी आयु के लिए तीज का व्रत रखने लगता है। 

सौगात – सास बहू के रिश्ते की एक प्यारी सी कथा है। जहाँ बेटे द्वारा किया अपनी बहू  का अपमान, सास सह नहीं पाती, और बहू को पढ़ने पर ज़ोर देती है। जिस पर बहू का कथन की उसकी माँ ने तो उसे पराया धन कहकर, सिर्फ बारहवीं तक ही पढ़ाया, पर सासु माँ ने उसे औरों को डिग्री देने लायक बनाया, पुन: इन रिश्तों के प्रति आश्वस्त करता है। 

खुशियों का गणित- एक बहुत ही प्रेरक कथा। हम कल की चिंता में आज की खुशी भी होम कर देते हैं। छोटी छोटी खुशियाँ, किसी बड़ी खुशी के इंतज़ार में यूँही बिला जाती हैं। खाना भूख लगने पर ही सुस्वादु लगता है। वरना बेस्वाद हो जाता है। इसलिए वर्तमान में जीना सीखें।  

ठोस रिश्ता- जताती है, की एहसास कभी नहीं मरते बस उनपर समय की गर्त इकट्ठा हो जाती है , उसे झाड़ते रहिए, रिश्तों की मिठास बनी रहेगी। 

थकन- का सार है की प्यार के दो बोल या एक स्नेहिल स्पर्श सारी थकन मिटा देते है । और क्या चाहती एक गृहणी , एक माँ,एक पत्नी।

जुनून- एक माँ के जुनून की कथा, जो बेटियों को सेल्फ डिफेंस की शिक्षा देते देते स्वयं , ताएकोण्डो की एक गोल्ड मेडलिस्ट बन  जाती है । एक प्रेरक कथा जो बताती है, कि जुनून की कोई उम्र नही होती। स्काइ इस दी लिमिट। 

वजूद – पति पत्नी के रिश्ते की प्रगाढ़ता और अहमियत दर्शाती कथा।  

संस्कार- अच्छे संस्कारों के महत्व पर ज़ोर देती है। 

निवारण – जब घी सीधी उँगली से नहीं निकलता तो उँगली टेढ़ी करनी पड़ती है। सदा बहू से समझौता करनेवाली शोभा की नम्रता को उसके बेटे बहू ने उसे उसकी कमजोरी समझा तो शोभा को एक मजबूत कदम उठाना पड़ा। जैसे को तैसा की उक्ति को चरितार्थ करती रोचक कथा ।

समाज में व्याप्त विसंगतियों पर भी उन्होंने खूब लिखा है ।

नाजायज- यह कथा, शराब की लत में इंसान कितना गिर सकता है, इसपर प्रकाश  डालती है।  

अंतिम पंक्ति – इसमें एक लेखिका कहानी लिखने बैठी है, अंत को लेकर असमंजस में है की कहानी का नायक अपनी पत्नी को चरित्रहीन कहकर घर से निकाल देगा या वह खुद ही परेशान होकर हर छोड़ देगी। उसने अपनी नौकरानी सुकूबाई से सुझाव माँगा, क्योंकि कथा उसी तबके की थी। जिसपर सुकूबाई ने कहा, वह होती तो शराबी कबाबी पति को घर से बाहर खदेड़  देती। यह कथा आश्वस्त करती है, की स्त्री अपने अधिकारों के प्रति जागृत हुई है। उसकी सोच विकसित हुई है। वहीं 

आहुति- बुरी आदतों और व्यसनों से छुटकारा पाने के महत्व को जताती है। 

उन्होंने बहुत महतावपूर्ण सामाजिक मुद्दों पर भी अपनी कलम चलायी है। जैसे,

सार्थक पहल- हमारे पूर्वाग्रह, वृद्धाश्रमों को एक सज़ा एक यातनाघर  समझते हैं,जबकि वे बुज़ुर्गों के लिए एक सुरक्षा स्थल भी हो सकते हैं। दृष्टिकोण में बदलाव लाती कथा। 

बेटियाँ – बेटियों सदा पिता की हमदर्द होतीं हैं, चाहे वह जीवनदायिनी  कथा की ,सुनीता हो, जो अपने पिता को अपना लिवर दे देती है,या मिलन की बेटी जिसे माँ बाप ने बेदखल कर दिया। और जब बेटे वृद्धाश्रम छोड़ आए, तो बेटी दामाद स्वयं उन्हें लेने गए। जिन्हें पराया समझा वही बेटी और दामाद उन्हें यह कहकर घर लिवा ले गए, की हम चाहते हैं हमारे दिन की शुरुआत आपके आशीर्वाद से हो। 

बदलते रंग - एक मजबूत कथा है जो बताती है, की कीमत इंसान की नही उसके ओहदे की होती है। तब उसके सारे ऐब उसकी खूबियाँ बन जाते हैं। जिस बहू का उसके साँवलेपन की वजह  से सदा तिरस्कार किया गया , उसके कलेकटोर बनते ही, वह परिवार की खूबसूरती बढ़ाने वाला तिल बन गई। समाज के दोगलेपन को उजागर करती कथा। 

आदर्श घर- संयुक्त परिवार के चलन को बढ़ावा देती एक खूबसूरत पहल। 

पछतावा- इन्सान स्वार्थ वश कितना अंधा और कृतघ्न हो जाता है। ऐसे भी माँ बाप हैं, जो अपनी बेटी का विवाह सिर्फ  इसलिए नहीं होने देते कि उसकी आमदनी से घर चलता है । और जब वह अपनी मर्ज़ी से विवाह कर लेती है, तो उससे विलग हो जाते हैं। पर जब दामाद के ओहदे का अंदाज़ होता है, तो पछताते हैं। 

जद्दोजहद – स्त्री की अस्मिता उसकी काबिलियत पर समाज ने सदा ही उँगली उठाई है, या उसे संशय के घेरे में रखा है। प्रस्तुत कथा , एक ठंडी बयार सी प्रतीत होती है जहाँ स्त्री ने बागडोर संभाल ली है, और बेड़ियाँ तोड़कर हर स्तर पर अपना सिक्का जमा रही है। 

तूफानों के आगे-  भी ऐसी ही एक कथा है, जहाँ घर कि बहू, कलेक्टर बनकर स्वयं को साबित करती है । 

संतोषी- ईश्वर की नेमतों के लिए धन्यवाद देना बहुत संतोष जनक  होता है। दूसरों के दुखों के आगे हमारे दुख गौण हैं, जो यह जान ले, सदैव अपनी स्थिति से संतुष्ट रहेगा। 

कबाड़ – विलासिता से ओतप्रोत घर में अवहेलित वृदधा माँ एक कबाड़ से अधिक कुछ नहीं । बहू अपनी सफाई देते हुए कहती है, कि उन्हें छूत कि बीमारी है। कथा कि पंच लाइन , इसकी जान है। जो उनकी पड़ौसन सुरभि सच्चाई जानने पर कहती है। बुढ़ापा  वाकई छूत की बीमारी है, जो सबको लग जाती है । समाज में पारिवारिक मूल्यों के ह्रास पर एक करारा तंज़। 

वहीं महादान  रक्तदान के महत्व को उजागर करती कथा जो साथ में यह भी जताती है, की कोई सत्कर्म ज़ाया नहीं जाता। 

नेहले पे देहला। शर्त लगाकर झूठे प्रेमजाल में फँसानेवालों के चेहरे पर करारा तमाचा है यह कथा।

तीर्थयात्रा सही अर्थों में सच्चे मानव मूल्य उद्घाटित करती कथा । किसी ज़रूरतमन्द की निस्वार्थ सेवा में चारों धाम का पुण्य निहित है। 

फर्क – समाज में व्याप्त डबल स्टैंडर्डस की बखिया उधेड़ती लघुकथा। 

संजीवनी – यह कथा इस बात पर ज़ोर देती है की मानव जीवन किसी न किसी उद्देश्य  पूर्ति के लिए बना है । जीवन में उद्देश्य मिल जाये तो जीवन सार्थक हो जाता है।  

वही भीख – यह धारणा बदलती है की हर गरीब सिर्फ ज़रूरतमंद ही नहीं , गैरतमंद भी होता है । 

सेल्फ़ी – यह कथा हमेशा सामयिक रहेगी । सोशल मीडिया हमारे जीवन में इस कदर हावी हो गया है की पल पल की खबर हम सोशल मीडिया पर जल्द से जल्द पहुंचाना चाहते हैं। प्राइवेसी नाम की कोई चीज़ ही नहीं रह गई। हमारी दिनचर्या, अपने से जुड़ी हर खबर, बस एक नुमाइश तक सिमटकर रह गई है। खास तौर पर युवा वर्ग इस बीमारी से पूर्णत: ग्रसित है। इसी प्रवृत्ति पर सबक देती एक ज़रूरी कथा ।   

मंदिर- सफाई के महत्व को  समझाती है। मंदिर सिर्फ वही नहीं होता जहाँ पूजा होती है। वास्तव में जहाँ से हमारी रोज़ी रोटी चलती है, वही सही मायनों में मंदिर है। सफाई से सदा बरकत होती हो।

गांधी गिरि।– सार्वजनिक स्थलों पर कचरा फैलाने की गंदी आदत पर एक रोचक कथा। मुक्तिबोध – शिक्षा और स्वाबलंबन के अभाव में न जाने कितनी युवतियाँ जीवन में समझौतों के दलदल में धँसती जाती हैं। फिर चाहे मायका हो या ससुराल। यह कथा उस स्वाभिमान, आत्मविश्वास और मुक्ति की ओर इंगित करती है जो शिक्षा से संभव है। एक प्रेरक कथा। 

फर्ज़ – एक बहुत ही मार्मिक कथा ,जो मित्रता के रिश्ते को नया आयाम देती है, जहाँ एक मित्र सिर्फ इसलिए विवाह नहीं करता क्योंकि उसे अपने दोस्त और उसकी पत्नी की  अकसमत मृत्यु के बाद उनके अनाथ बच्चे को पालना है। 

कमाई – अच्छे कर्मों के महत्व को समझाती है। हम इस जग में खाली हाथ आए हैं और खाली हाथ ही जाएँगे, अगर कुछ साथ जाएगा तो वह है हमारा कमाया हुआ पुण्य। 

दूरदर्शिता – तलाक के मुद्दे पर एक बेहतरीन कथा। सम्बन्धों में अबोला फूट की पहली वजह है। लाख नाराजगी हो, पर संवाद बंद नहीं होना चाहिए वरना काई की मोटी परत  जमती जाती है। इस कथा में एक जज़ की दूरदर्शिता से एक और संबंध टूटने से बच जाता है। 

शतरंजी चाल – गंदी राजनीति का पर्दाफाश करती कथा। ऊपर उठने के लिए लोग कितना गिर सकते हैं, उसकी एक बानगी ।   

उनके इस संग्रह में 100 लघुकथाएँ हैं। हमने अधिकतर कथाओं का वर्णन न करते हुए, उनके मर्म को उकेरा है, जिससे पाठकों में उन्हें पढ़ने की जिज्ञासा पैदा हो। इनमें हमें कुल चार  कथाएँ कुछ कमजोर लगीं। 

अन्तर्मन- एक अंधेरी रात को मूसलाधार बारिश हो रही थी। विकास की कार एक बाइक से टकरा जाती है। सवार गिर पड़ता है। विकास रुकता नहीं। अगले दिन सुबह उसे पता चलता है, की वह और कोई नहीं उसका दोस्त अंश था। उसके बूढ़े पिता और विधवा पत्नी से दिलके रिश्तों का वास्ता देते हुए कहता है, अब इस परिवार की ज़िम्मेदारी मेरी है।  

गांठ – मन में पड़ी पूर्वाग्रहों की गाँठें , जब बच्चों की खुशी के आड़े आने लगें, तो उन्हें छोड़ देना चाहिए। पर शिप्रा ने अपनी बेटी साक्षी की खुशियों को अपने पूर्वाग्रहों की भेंट चढ़ा दिया। 

रेनकोट- एक पति और पिता की ज़िम्मेदारी अपने परिवार के प्रति सर्वोपरि होती है। जो स्वयं मुफ़लिसी में जी रहा है, वह अपने बच्चे के लिए खरीदा रेनकोट और पत्नी के लिए खरीदा छाता एक गरीब स्त्री को इसलिए पकड़ा देता है, की वह और उसका बच्चा बारिश में भीग रहे थे। हमें उसकी यह हरकत कुछ गैर जिम्मेदाराना लगी।    

और कुंठा- एक भाई की अपनी सगी बहन से जलन सिर्फ इसलिए की वह बहुत सुंदर थी, और वह दिखने में अति साधारण, जिस वजह से उसकी पूछ कहीं नहीं थी। सिर्फ इसी डाह से वह बहन की सगाई पर उसकी स्प्रे बॉटल में तेज़ाब भर देता है।

यह कथाएँ उनकी और कथाओं की बनिस्बत कमजोर लगीं। कमजोर इस लिहाज से की उनमें वह देप्थ, वह गहराई नहीं थी जो उनकी अन्य कथाओं में बहुत ही प्रभावी रही है। 

मधु जी अपनी कथाओं में समाज की हर इकाई को लेकर चली हैं। उनकी कथाएँ क्रिस्प व करारी होती हैं। शीर्षक और पंच लाइन पर उनका विशेष फोकस होता है। और सबसे अहम बात की उनकी कथाएँ सकारात्मक एवं संदेशप्रद होती हैं। 

समीक्षक  सरस दरबारी


उनका यह लघुकथा संग्रह पढ़कर आप स्वयं हमारी बात से इत्तिफाक़ रखेंगे। उनके इस प्रथम एकल लघुकथा संग्रह के लिए सुश्री मधु जैन जी को बहुत बहुत बधाई आने वाले समय में इनके और संग्रह छपें और हम इन्हें निरंतर पढ़ते रहें इन्हीं शुभकामनाओं के साथ अपनी बात को विराम देते हैं। बहुत बहुत धन्यवाद। 

 

 

 

 

 

 

 

 

 समीक्षा-2 / ॠता शेखर 'मधु'

एक सौ एक कथा-पुष्पों से सजा फूलदान- एक कतरा रौशनी

'एक कतरा रौशनी' , यह लघुकथा संग्रह मुझे मधु जैन जी से उनके करकमलों द्वारा उपहारस्वरूप मिला था। मधु जैन लघुकथा के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है। उनकी लघुकथाएं सदा सकारात्मक संदेश देती हैं।

पुस्तक की भूमिका लघुकथा की दुनिया में अपना श्रेष्ठ मुकाम बनाने वाली लेखिका कांता रॉय जी द्वारा लिखी गयी है।

पुस्तक का आवरण प्रवेश सोनी जी द्वारा तैयार किया गया है जोकि बेहद आकर्षक है।

अपनी बात में मधु जैन ने बताया कि कैसे उन्होंने लेखन का आरम्भ किया और अपने सकारात्मक लेखन से बहुत जल्द लघुकथा संसार में अपना स्थान बनाने में सफल हुईं।

पुस्तक की पहली ही लघुकथा 'स्नेह पथ' ने मन को मोह लिया। अपने सास ससुर के लिए बहु का सुन्दर भाव गहरे संवेदना प्रेषित कर रहा। 'शगुन' मानवीय संवेदना की कथा है। 'संवेदना' कथा मार्मिक है जहाँ गाय और कुत्ते के लिए लायी गयी रोटियां एक भूखा बालक न पा सका।'तारीख' लघुकथा में दो बेटों के बीच बंटी माँ के लिए 31 तारीख वाला महीना किस कदर समस्या दे जाता है और माँ क्या समाधान निकालती है , यह अत्यंत मर्मभेदी है।' खाली पेट' में एक नन्हे बच्चे की कथा है जिसमें वह किसी घर में काम करके खाना पा लेता है किंतु स्वयं नहीं खाता, क्यों का उत्तर कथा में है।

मानवेतर लघुकथा 'विकास बनाम विनाश' सुन्दर लघुकथा है जो पगडंडी पर लिखी गयी है।'एक कतरा रौशनी' दिल को छू लेने वाली लघुकथा है। निःस्वार्थ और समर्पित भाव से समाजसेवा का अद्भुत उदाहरण है यह कथा और मधु जैन ने इसे बड़ी खूबसूरती से लिखा है। पुस्तक के नाम के लिए यह लघुकथा बिल्कुल सही और सटीक है। 'उजाले की ओर' में एक लड़की की कथा है जो अपने ड्रग एडिक्ट माता पिता के साथ बचपन झेलती है और बाद में एक सार्थक कदम उठाती है।'निवाला' लघुकथा में एक संस्कारी माँ के सुन्दर संस्कार का ससुराल में पालन करने वाली बेटी की मनमोहक और थोड़ी मार्मिक कथा है।'कोहरा' में मधु जैन ने भटकी हुई युवा पीढ़ी को सुन्दर सन्देश दिया है।'दृष्टिकोण' में उन माता-पिता के दृष्टिकोण को स्पष्ट किया गया है जो बच्चों की परिस्थिति का आकलन किये बिना ही उन्हें दोषी मान लेते हैं।'कुत्ते की पूँछ' स्वार्थी रिश्तेदारों की कथा है। ' नव आह्वान' कन्या भोज पर आधारित बहुत प्यारी कथा है।'एक खिड़की अपनी सी' पिता-पुत्री के अनकहे स्नेह की भावभीनी लघुकथा है।' नजराना नजरों का' अद्भुत भाव की सुन्दर लघुकथा है जिसमें छिपी भावना एकबारगी किसी अन्य को भ्रमित कर सकती है।'अंतिम पंक्ति' में उस वर्ग की स्त्रियों की बदलती सोच प्रदर्शित हुई है जिनपर हम कहानियां तो रच लेते हैं किंतु अंत अपनी सोच के अनुसार रखना चाहते हैं। 'वो सात दिन' एक गृहिणी के महत्व को पुरुष द्वारा समझ पाने की सार्थक कथा है।'शांति' सास-बहू के बिगड़े हुए रिश्तों के बीच पिसते हुए बेटे की करुण कहानी है।'सही निर्णय' समाज को सन्देश देतु कथा है। यदि किसी को किसी का छूटा हुआ कोई सामान मिलता है तो कोशिश करनी चाहिए कि किसी प्रकार वह सामान सम्बंधित व्यक्ति तक पहुँच जाए।'गुजारिश' शारीरिक प्रताड़ना के विरुद्ध प्रत्युत्तर देने के लिए आगाह करती कथा है। ' आसरा' में आसरा टूट जाता है उनलोगों का जब अतिक्रमण हटाने के लिए उन लोगों के घर विनष्ट कर दिए जाते हैं।'सौगात' लघुकथा सास के प्रेम को समझने वाली बहू की सुन्दर कथा है। ' विकल्प' ईमानदारी, दृढ़ता और आत्मविश्वास का संदेश देने वाली कथा है जिसका बोध हर स्त्री को होना चाहिए। कंजूसी का उदाहरण पेश करती लघुकथा 'आसक्ति' सबक लेने लायक है। 'सच्चा मित्र' एवं 'कृतघ्न' पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति जागरूक करती लघुकथाएँ हैं। 'सीख' लघुकथा हर माँ को सीख देती सुन्दर लघुकथा है। लड़कियां चाहे कितना भी पढ़ लिख लें, किन्तु प्यार और सम्मान पाने के लिए खाना बनाकर सम्मान के साथ खिलाना भी आना चाहिए और यह सीख बेटियों को माँ ही दे सकती है। 'गाँठ' लघुकथा रिश्तों में धोखा मिलने के बाद पड़ने वाली गाँठ के बारे में है।

'ताली' लघुकथा में थर्ड जेंडर के भावनाओं की मार्मिक अभिव्यक्ति है।'निवारण' में एक आहत सास द्वारा उठाये गए कदम की बात है वहीं 'कबाड़' बुढापा पर लिखी गयी हृदय स्पर्शी लघुकथा है।'लाक्षागृह' पर्यावरण को लेकर चिंता करती लघुकथा है । 'जुनून' बेटियों को सेल्फ डिफेंस के साथ साथ पढ़ाई के प्रति भी जागरूक करने वाली एक माँ की कथा है। किसी के न रहने पर किस तरह 'वजूद' पर प्रभाव पड़ जाता है इसकी बुनावट अच्छी है।कभी कभी सीनियर सिटीजन परिवार के साथ रहते हुए भी एकाकी महसूस करते हैं, ऐसे में उनकी ओर थोड़ा ध्यान दिया जाए तो 'दर्द की दवा' मिल जाती है। 'आहुति' बच्चों के साथ साथ बड़ों को सीख देती कथा है । 'तरकीब' मजेदार तरकीब की कथा है जिसे पाठक स्वयं पढ़ें तो पकौड़ों से अधिक आनंदित होंगे।' इंसाफ' नारी के आत्मसम्मान की कथा है। भावनाएं किस प्रकार हमारे रोजमर्रा की ज़िंदगी को प्रभावित करती हैं और जैसा मन वैसा ही सबकुछ अनुभव होता है। रक्तदान जैसे ' महादान' का महत्व बड़े ही सुन्दर शिल्प और कथ्य से गढ़ा गया है। आज के बच्चे कल के सूत्रधार हैं तो उनमें अच्छे 'संस्कार' डालने की जिम्मेदारी आज के माता-पिता की बनती है जिसके लिए दृढ़संकल्प होना अच्छा संकेत है। 'नहले ओर दहला' कॉलेज में लगे एक शर्त की और उसके प्रत्युत्तर की कथा है।

बहू को बेटी समझने के बावजूद कहीं न कहीं 'फर्क' दिख ही जाता है। रिश्तों पर अंधविश्वास कभी कभी 'विश्वासघात' भी कर जाता है। जब दो जरूरतमंद एक दूसरे से जुड़ जाएँ तो एक दूसरे की 'संजीवनी' बन जाते हैं। 'भीख' एक स्वाभिमानी युवक की कथा है। मार्मिक कथा है 'त्रासदी' जो एक प्राकृतिक आपदा को लेकर बुनी गयी है।'सेल्फ़ी' का चक्कर भी आजकल कुछ ज्यादा है और कथा भी जबरदस्त बनी है।'मंदिर' अपनी- परायी जगह की सोच रखने वालों के लिए सुन्दर सन्देश देती कथा है।जब लोग ढिठाई पर उतर आयें तो 'गांधीगिरी' करना जरूरी हो जाता है। इस लघुकथा की विशेषता है कि बिना शीर्षक का प्रयोग किये कथा ने शीर्षक को परिभाषित किया है। पिंजड़े में अकारण ही कैद हो जाने और लांछन सहने के बाद आज़ादी का निर्णय 'मुक्तिबोध' करवाता है। दुनिया में परायापन कुछ नहीं होता जब कोई अपना 'फर्ज' निभाने की भली सोच रखता हो। 'कमाई' कमाई में भी फर्क होता है।जज साहब की 'दूरदर्शिता' से एक परिवार बिखरने से बच जाता है। 'रेनकोट' मानवीय संवेदना पर आधारित सुन्दर कथा है। राजनीति के दाँव पेंच समझाती ' शतरंजी चाल' बहुत सारे प्रश्न उठा रही। अंगों का 'डोनर' होने के लिए कई कई शर्तें होती हैं। उन शर्तों पर खरा उतरता कोई पराया सामने आ जाये तो मानवता सिद्ध हो जाती है।किसी का हमेशा मजाक बनाते रहने पर जो 'कुंठा' जन्म लेती है उसका परिणाम कितना भयावह हो सकता है यह कथा में पढ़ें। बेटियों का किसी भी कारण से माता पिता से सम्बन्ध टूट जाये तब भी मन से वे दूर नहीं होतीं। अत्यंत मार्मिक लघुकथा है 'मिलन''अंतर्मन' अपराधबोध की कथा है जिससे निकलने के लिए कथा का पात्र सकारात्मक कदम उठाता है। 'नाजायज' एक ऐसी गलती की कथा है जिसे गलती नहीं अपराध कहना चाहिए। वृद्धाश्रम को बेबसी वाली जगह न मानकर ऐसी जगह समझना चाहिए जहाँ हमउम्र साथी मिलते हैं और समय अच्छे से बीत सकता है तो इस 'सार्थक पहल' की ओर बढ़ने को सम्मानजनक माना जाना चाहिए। 'जीवनदायिनी' जीवनदायिनी बेटी की कथा है।'मृगतृष्णा' एक महिला की कथा है जो अच्छे कामों के बावजूद तारीफ की एक बोल के लिए तरस गयी। एक अवगुण पर ताना मारते रहने वाली सास के 'बदलते रंग' को सबने महसूस किया जब उसने गुणों की दुहाई देते हुए तारीफ़ करना आरम्भ किया। राजनीति तो राजनीति है जिसमें 'चित भी मेरी पट भी मेरी' कैसे हो का सुन्दर समागम है। बिन माँ की बेटी को भी 'सौभाग्य' मानने वाले पिता विवाह के उपरांत भी बेटी के साथ बने रहे इसकी सुन्दर कथा है। जिस बहू को ससुराल के गाँव ही पसन्द नहीं थे उसे गांव के जमीन और सास के गहने लेने के ख्वाब देखना 'अधूरे ख्वाब' बनकर रह गए। स्कूल में 'आदर्श घर' में दादा दादी के भी होने की बात ने बालमन को इस तरह प्रभावित किया कि उसके पिता ने परिवार पूरा करने की आवश्यकता समझी। अपनी पहचान बनाने को उत्सुक बहू ने पद प्राप्त करने के बाद 'जद्दोजहद' से निर्णय लिया कि घर को ऑफिस नहीं बनने देगी।'तूफानों के आगे' की जीत को सुनिश्चित करती एक लड़की की इच्छाशक्ति की कथा प्रेरक है। हर अंगों से पूर्ण मनुष्य को दिव्यांग की 'संतोषी' सोच प्रेरणा दे जाए इससे बढ़कर क्या बात हो सकती है। 'सपूत' एक ऐसे पूत की कथा जो अपने पिता की खुशी के लिए अपनी जरूरतें रोक देता है। कभी कभी भविष्य की चिंता में मनुष्य वर्तमान की 'खुशियों का गणित' गड़बड़ कर देता है, सुन्दर सीख देती कथा है।'मुखौटा' लगाकर बातों के जाल में फंसकर अपरोक्ष रूप से दहेज लेने की बनावट सत्य को उजागर कर रही। 'अहसास प्यार भरा' तथा 'थकन' बहुत ही प्यारी लघुकथा है। समाज की वह विशेष जाति भी अपने परिश्रम के बल पर अपने लिए सम्मानपूर्ण स्थान बना सकती है क्योंकि 'जहाँ चाह वहाँ राह ' होती है। 'सफेद झूठ' रिश्तों को रंगीनियां प्रदान करती प्यारी कथा है। बुजुर्गों की बुनियादी जरूरतों को भी अनदेखा करने वाली संतान को कभी न कभी अपनी गलती समझ में आती है और वह तत्तपर हो जाता है क्योंकि 'ठोस रिश्ता' इसे ही कहते हैं।

जीवन की राह में अकेले पड़ गए दो अजनबियों ने एक दूसरे के साथ रहने की 'अनोखी पहल' की । दोस्ती के रिश्ते में आई दरार को दो दुश्मन समझे जाने वाले पशुओं ने किस तरह दोस्ती में बदल दिया , इसे अद्भुत शिल्प में ढाला है लेखिका ने और 'छँटती धुंध' एक प्रेरक कथा बन गयी। रक्तदान को लेकर जो आम लोगों'भ्रांतियाँ' हैं वह निरर्थक हैं। जिंदगी में किसी को भी 'शत प्रतिशत' नहीं मिलता।पति के 'व्यापार' से अनजान पत्नी पति की मौत के बाद जान पति है कि आखिर व्यापार क्या था। अपनों के 'इंतज़ार' में जीवन को सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ाना वाकई मार्मिक है।

कब किसके भाग जग जाएँ, इसका ताना बाना है 'अहिल्या' लघुकथा में।

'वारिस' के चक्कर मे लावारिस हो गयी एक महिला की कथा मार्मिक है। 'नवाशीष' बेटे-बेटी का भेद मिटाती प्यारी लघुकथा है। भाई बहन का रिश्ता होता है 'बंधन प्यार का'। रिश्तों में आई दरार सिर्फ एक पक्ष को महसूस होता रहा जबकि दूसरा पक्ष अपरोक्ष रूप से मदद करता रहा, बहुत सुंदर लघुकथा है। किसी के द्वारा की गई मदद से कोई जीवन भर 'ऋणी' रह सकता है , यह कृतज्ञता की सुन्दर कथा है। किसी 'हादसा' से बदल गए जीवन में आगे के लिए कदम बढ़ाने में अपराध बोध नहीं रहना चाहिए।'उपेक्षा का दंश' किसी ठोस कदम की ओर प्रेरित करता है। किसी को सुधारने के लिए उठाए गए कुछ कदम 'सुखांत' हो जाते हैं। 'अपराध बोध' विवाह में धोखा खाई एक युवती की कथा है। प्रेरणा का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है और उसका सीधा सम्बन्ध 'चैतन्य मन' से होता है चाहे तन लकवाग्रस्त क्यों न हो। 'कर्मठ हाथ' जिजीविषा की कहानी कह जाते हैं किंतु किसी अपने को आहत भी कर सकते हैं।'

'मंथन' मानवेतर लघुकथा है जो एक सोफे के इर्द गिर्द बुनी गयी है। बालमन में 'अनजाना भय' व्याप्त हो जाये तो वह आशंकित हो उठता है।

मधु जैन जी की सभी लघुकथाएं आसपास की लगती हैं तो पाठक सहज ही जुड़ाव महसूस करने लगता है। लेखिका की परिपक्व व सकारात्मक सोच ने पुस्तक को अलग पहचान दी हैं। आगे भी साहित्य समाज आपकी लेखनी से परिपक्व होता रहे इसके लिए शुभकामनाएं।

समीक्षक : ॠता शेखर 'मधु'

 

 

 

टिप्पणियाँ

  1. समीक्षा को लघुकथा विश्वकोश में स्थान देने के लिये सादर आभार आदरणीय।

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