सूरज डूबने से पहले / प्रेरणा गुप्ता

लघुकथा संग्रह  :  सूरज डूबने से पहले
लेखिका  : 
प्रेरणा गुप्ता
समीक्षक
ऋता शेखर ‘मधु’
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर 
पृष्ठ- 220
मूल्य- 250/- रु. मात्र

प्रेरणा गुप्ता जी लघुकथा  के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम हैं। उनकी लघुकथाओं का संग्रह कुछ दिन पहले ही प्रकाशित हुआ है। इंटरनेट पर उनकी कहानियां मुझे बहुत प्रभावित करती थीं। संग्रह के रूप में जब प्रकाशित हुई उनकी लघुकथाएँ तो मुझे हार्दिक खुशी हुई कि अब एक स्थान पर ही पढ़ पाऊँगी।

सर्वप्रथम तो मुझे लघुकथा संग्रह का नाम बहुत बहुत पसंद आया| सूरज डूबने से पहले बहुत कुछ किया जा सकता है| जब उम्र कम रहती है तो उत्साह, उर्जा की कमी नहीं रहती| ऐसा माना जाता है कि उम्र बढ़ने के साथ इनमें कमी आने लगती है| किन्तु सोशल मीडिया ने साबित कर दिया कि जितनी सक्रियता से सो कॉल्ड बुज़ुर्ग, मतलब पचपन के बाद के लोग इस तकनीक ला लाभ उठा रहे , वह प्रशंसनीय है| उत्साह भी है, उर्जा भी है, साथ में अनुभव भी जुड़ गया| आधुनिक बुजुर्ग सूरज डूबने से पहले इस जगत को बहुत कुछ दे जाने को तत्पर दिख रहे| 

कथाकार: प्रेरणा गुप्ता

इसी शृंखला में पुस्तक की लेखिका प्रेरणा गुप्ता जी ने साहित्य जगत को एक धरोहर सौंपी है| पुस्तक का मुखपृष्ठ बिल्कुल पुस्तक को परिभाषित कर रहा| दो नाविक सागर को पार कर रहे, उन्हें सूरज डूबने से पहले इस पार पहुँचना है क्योंकि उन्हें धरती वालों को अपनी सौगात सौंपनी है|
पुस्तक के अन्दर प्रवेश करते ही समर्पण पृष्ठ है जिसे प्रेरणा जी ने अपने श्रद्धेय गुरु जी को समर्पित किया है| गुरु- गोविंद दौऊ खड़े…काके लागूँ पाँय, इसे चरितार्थ करती हुई लेखिका के पावन विचार से परिचय मिलता है| पुरोवाक्ः श्ब्दाशीष के अंतर्गत पुस्तक को जाने माने वरिष्ठ लघुकथाकार आदरणीय पवन जैन जी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है|
पुस्तक में दो भूमिकाएँ हैं| प्रथम भूमिका ख्यातिप्राप्त ई-पत्रिका अभिव्यक्ति-अनुभूति की संपादक पूर्णिमा वर्मन जी की है| आपका कहना है, “वे समाज के बीच से अपने विषय उठाती हैं, लेकिन उनकी संवेदनाओं का विस्तार अंतर्राष्ट्रीय है|”
दूसरी भूमिका कवि/लघुकथाकार/प्रकाशक एवं समीक्षक नरेश कुमार उदास जी की है| आपका कहना है,”इनकी कुछ लघुकथाओं का फलक विस्तृत रहता है, जिसमें कहानी लिखने की विस्तारवादी झलक भी कई बार महसूस की जा सकती है|”
मन की बात में लेखिका प्रेरणा गुप्ता जी ने लिखा,”अपना लघुकथा- संग्रह प्रकाशित करवाने का एकमात्र कारण यह था कि मैं अपने बच्चों को एक संदेश देना चाहती थी कि किसी भी उम्र में कोई भी अपने हुनर को पुनः जीवित कर सकता है|” लेखिका का यह संदेश अब पूरे समाज के लिए संदेश बन चुका है|
अनुक्रम में लघुकथाओं की क्रमांक सूची नहीं है, इस कारण कुल कथाओं को जानने के लिए उन्हें गिनना पड़ेगा| सभी लघुकथाओं का शीर्षक पृष्ठ संख्या के साथ है| ऐसे मैं मैं भी पृष्ठ संख्या का ही उल्लेख करूँगी |
प्रेरणा जी की लघुकथाएँ सामाजिक, पारिवारिक होने के साथ- साथ मनोवैज्ञानिक भी होती हैं| यही दृष्टिकोण मुझे उनकी लघुकथाओं की ओर आकर्षित करता है| समीक्षा में भी मेरा चयन मनोवैज्ञानिक लघुकथाओं की ओर ही रहेगा|
पृष्ठ २२ पर लघुकथा ’चमगादड़’ में एक निडर नायिका का डरपोक बनना और घर में चमगादड़ घुस जाने पर मची चीख-पुकार के बाद पुनः निडर बन जाना, लघुकथा को शीर्ष पर पहुँचा रहा| घटना का मनोवैज्ञानिक आधार पर बहुत महत्व है| जिस व्यक्ति से नायिका डरती है उसका चमगादड़ से डर जाना , नायिका को संतुष्टि प्रदान कर रहा|
पृष्ठ २२ पर ‘एंटी रिंकल” एक नन्हें बालक का मनोविज्ञान है | झुर्रियों को रोककर मौत से बचा जा सकता है, यही सोचकर वह दादी माँ को एंटी रिंकल क्रीम देता है| न तो बच्चे ने कुछ कहा, न दादी ने| पर भावनाओं का आदान-प्रदान हो गया| बहुत सुंदर लघुकथा|
‘वेल डन’ में भी इस बात पर जोर दिया गया है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती| जीवन में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के बाद अपनी ओर भी ध्यान देना चाहिए| कुछ ऐसा जो करने की इच्छा शेष हो तो पूरा करने की कोशिश अवश्य करें| लघुकथा में, अंग्रेजी न समझ पाने के कारण सासू माँ को एक बार हल्की हँसी का पात्र बनना पड़ा तो सूरज डूबने से पहले उनको अंग्रेजी पढ़ ही लेनी थी जिसमें सभी परिवारजनों ने साथ दिया |
लघुकथा ‘कल की भोर” बहुत मार्मिक है | पढ़ते हुए आंखें नम हो सकती हैं| इस लघुकथा में दो पहलू उभर कर सामने आ रहे| पहला तो बहू पर विश्वास, दूसरा एक सामाजिक जिम्मेदारी| शरीर को अग्नि के हवाले न करके अध्ययन के लिए मेडिकल कॉलेज को सौंपना साहस भरा कदम है|
‘टू फॉर जॉय’ लघुकथा बेहतरीन है| अक्सर हम रोजमर्रा की ज़िन्दगी में किसी अकेला पंछी को देख कह उठते हैं…वन फॉर सॉरो…| इस भाव को लेकर लेखिका ने बहुत सुन्दर और मार्मिक ताना बान बुना है| प्रेरणा जी की यह कला मन को भा गयी| जिन्हें हम नजरअन्दाज कर देते उन्हें लेकर लघुकथा गढ़ लेना उनकी विशेषता है| 
‘कैवल्य’, शीर्षक सहज ही आकर्षित कर रहा| लघुकथा भी बिल्कुल दार्शनिकता को दिखाता हुआ मनोवैज्ञानिक पहलू को एकदम से उभार देता है| माता-पिता के चले जाने के बाद उनकी यादों के साथ रहना मजबूती से रहने की शिक्षा देता निःसंग भाव को दिखाती सुंदर लघुकथा है| इसके लिये लेखिका बधाई की पात्र हैं|
‘ससुराल गेंदा फूल’ बहुत प्यारी लघुकथा है|

‘हिममय जड़ता’ में परिवारजनों की अपेक्षा और थोड़ी सी भी गल्ती पर कटाक्ष सुनने के बाद उठाए गये कदम को बहुत सार्थकता से बुना गया है|

समीक्षक  : ऋता शेखर मधु
‘अँजुरी के फूल’ भावपूर्ण लघुकथा है|एक ही 
कथा में कई संदेश समाहित हैं| बेटी, बुजुर्ग माता-पिता, किन्नरों की सामाजिक समस्या, सभी पर प्रकाश डालती अच्छी लघुकथा है|

प्रेरणा जी की लघुकथाओं में नाटकीयता या अतिश्योक्ति बिल्कुल नहीं है| सभी कथाएँ आसपास में होने वाली घटनाओं से उठाई गई हैं और बिल्कुल अपनी सी लगती हैं|

प्रेरणा जी की यह पुस्तक लघुकथा साहित्य में अपना उत्कृष्ट स्थान प्राप्त करे| हार्दिक शुभकामनाएँ|

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