आ अब लौट चलें-2021/डॉ. ऋचा शर्मा

लघुकथा-संग्रह  : आ अब लौट चलें

कथाकार  : डॉ. ऋचा शर्मा 

ISBN No. : 978-81-921563-5-4

© कॉपीराइट : लेखक

प्रकाशक : विश्व हिंदी साहित्य परिषद 

एडी-94/डी, शालीमार बाग, दिल्ली-110088 

दूरभाष 09811184393, 011-47481521 email: vhspindia@gmail.com

मुद्रक :

एपेक बिजनेस सोल्यूशन्स प्रा. लि. 4653/21, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली।

प्रथम संस्करण : 2021

कुल पृष्ठ : 100

मूल्य : 200

अनुक्रम

सलमा बनाम सोन चिरैया

वही आँखें

सदा सुहागिन

भूख

भारत की भी सोचो, भाई!

हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के...

सीखो ना इनसे

मैडम! कुछ करो ना

मैडम! चलता है ये सब

बीमा पॉलिसी

बरसी

मसीहा कौन ?

हँसते-रोते तो सभी हैं पर

बदलाव

भेड़िए

बाँटने से बढ़ता है

विडंबना

बेड़ियाँ

स्वाभिमानी माई

साज़िश

सोच

आ अब लौट चलें

सवाल एक मजदूर का

गलत सवाल ?

माँ आज भी गाती है

मन के जीते जीत

माँ दूसरी तो बाप तीसरा

तुम संस्कृति हो ना?

पौध संवेदनहीनता की

अपना घर

टीचर के नाम एक पत्र

दिया हुआ वापस आता है

गणेश चौथ

जीवन कैसा हो ?

आ अब लौट चलें

झूठी आधुनिकता

नया पाठ

कबिरा आप उगाइए

ग्रहण

पचास पार की औरत 

कोरोना चला जाएगा, 

दूरियां रह जाएंगी 

चिट्ठी लिखना बेटी! 

अम्माँ को पागल बनाया किसने? 

कम्फर्ट जोन

जिज्जी

जेनरेशन गैप

देवी नहीं है वह

चकनाचूर सपने

अनुष्ठान

दीवार

ऐसे थे दादू

ज़िंद

अंगना में फिर आ जा रे....

दुख में सुख

आग

अब पछताए होत क्या ?

बधाई काहे की ?

ज़ख्म : 1

ज़ख्म : 2

चुनाव

मर्डर

विशेष आलेख

हिंदी 'लघुकथा' का प्रथम विशेषांक....

हिंदी 'लघुकथा' का प्रथम विशेषांक छात्र-छात्राओं के लिए प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका 'शिक्षा भारती' द्वारा प्रकाशित किया गया था। इस पत्रिका के प्रकाशक 'गौतम ब्रदर्स' कानपुर के थे और इस विशेषांक के संपादक थे पत्रकार शिरोमणि श्री लल्लन प्रसाद व्यास। व्यास जी ने उस समय 'लघुकथा' पर पत्रिका का विशेषांक प्रकाशित करने का मेरा प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार किया, जिस कालखंड में हिंदी की कोई भी साहित्यिक कहलाने वाली पत्रिका (साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक) 'लघुकथा' 'संज्ञा' से विभूषित 'लघुकथा' नामक रचना को प्रकाशित करने का साहस नहीं कर रही थी। 'शिक्षा भारती' के इस 'लघुकथा विशेषांक' की एक विशेषता यह भी अपने आप अंकित हो गई कि इसके संपादक श्री लल्लन प्रसाद व्यास जी की तबियत अचानक इतनी अधिक खराब हो गई कि वे उस विशेषांक का संपादकीय भी नहीं लिख पाए और वह 'लघुकथा विशेषांक' बिना संपादकीय के ही प्रकाशित कर दिया गया था।

इस 'लघुकथा विशेषांक' में उस समय तक जो लघुकथा-लेखक लघुकथाओं की रचना कर रहे थे, उनकी लघुकथाएँ ससम्मान एवं सपारिश्रमिक प्रकाशित हुई थीं। इस विशेषांक का एक बड़ा महत्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि लघुकथा लेखकों का मनोबल तो बढ़ा ही, साथ ही अन्य साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं ने अपने अंकों में लघुकथाओं को प्रकाशित करने का साहस किया। धीरे-धीरे लघुकथाएँ प्रकाशित करनेवाले संपादकों की संख्या में भी वृद्धि होती गई।

हिंदी लघुकथा का जन्म, हिमालय की उत्तराखंड घाटी के देहरादून नगर की मशहूर धर्मशाला (टिमलीवालों की धर्मशाला) में आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र (मेरे पिता) की अमृत-लेखनी से तब हुआ था, जब सन् 1919-20 में उनकी दो लघुकथाएँ-'अग्निमित्र की प्रेम-परीक्षा' तथा गाँधीजी को लक्ष्य कर लिखी गई 'बुढा व्यापारी "लघुकथा तथा एक सामाजिक लघु-उपन्यास 'इन्दिरा' की रचना हुई।

आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र जी का यह लघु-उपन्यास पाँचवें दशक में उनके सबसे छोटे पुत्र राजकुमार शर्मा और उनके सहपाठी मित्र दुष्यन्त कुमार के प्रयास से इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली उपन्यास की मासिक पत्रिका 'लता' में प्रकाशित हुआ। इलाहाबाद विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के प्रोफेसर डॉ. रामकुमार वर्मा ने अपने 'हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास' ग्रंथ में आचार्य जगदीश मिश्र के 'इन्दिरा' लघु-उपन्यास का उल्लेख किया है।

आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र जी की दोनों लघुकथाएँ कुछ समय पश्चात् गढ़वाल से प्रकाशित होने वाले 'गढ़देश' नामक पत्र में प्रकाशित हुई, परंतु संपादक महोदय ने 'लघुकथा' संज्ञा का उपयोग करने का साहस प्रदर्शित नहीं किया।

साहित्यकार संसद, प्रयाग के साहित्यिक मासिक पत्र 'साहित्यकार' में आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र जी की तीन लघुकथाएँ'लघुकथा' शीर्षक अंकित करते हुए प्रकाशित एवं विद्वानों द्वारा चर्चित हुई-‘धन का विभाजन', 'अव्यर्थ स्तुति’ और ‘आयु-दान'। पद्मभूषण डॉ. रामकुमार वर्मा ने 'आयु दान' लघुकथा को विश्वविख्यात लघुकथा लेखक 'खलील जिब्रान' की टक्कर की लघुकथा घोषित किया।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के प्रोफेसर तथा सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी विचारक प्रोफेसर प्रकाशचंद्र गुप्त ने अपना मत व्यक्त करते हुए स्पष्ट रूप से घोषणा की- 'आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र जी ने अपनी लघुकथाओं में रवींद्रनाथ टैगोर की लघुकथाओं से कहीं अधिक सफलता प्राप्त की है।

'धर्मयुग' के ख्याति प्राप्त संपादक धर्मवीर भारती जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक थे और अपने लोकप्रिय उपन्यास 'गुनाहों का देवता' के लेखक के रूप में सर्वाधिक चर्चित कथाकार थे, तब साहित्य भवन लिमिटेड के आग्रह पर उन्होंने वार्षिक 'निकष' का संपादन किया। ‘निकष' के एक अंक में आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र जी की लघुकथाएँ  'लघुकथा' शीर्षक से प्रकाशित की तो 'लघुकथा' शीर्षक के साथ प्रकाशित होने के चलन में गति-प्रगति आ गई।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के लंबे अरसे तक हिंदी विभागाध्यक्ष रहे 'पद्मभूषण' डॉ. रामकुमार वर्मा जी ने यह तथ्य बताया है कि गढ़वाल से प्रकाशित होने वाले 'गढ़देश' पत्र में आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र जी की दोनों लघुकथाएँ-'बूढ़ा व्यापारी' (गाँधीजी को लक्ष्य कर लिखी गई लघुकथा) तथा 'अग्निमित्र की प्रेम-परीक्षा' (व्यंग्यात्मक लघुकथा) प्रकाशित हुई हैं, जिनकी रचना आचार्य मिश्रजी ने 1919-1920 के कालखंड में देहरादून में 'टिमलीवालों की धर्मशाला' रहते हुए की थी।

पाँचवें दशक जब आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र जी की मौत की खोज', 'पंचतत्व' और 'जय पराजय' पुस्तकें प्रकाशित हुई तो पत्र-पत्रिकाओं ने 'लघुकथा' विशेषांक तक प्रकाशित करने का साहस किया। उसके पश्चात् 'लघुकथा' को अपनी लेखनी के माध्यम से गतिमान बनाये रखने वाले, आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र जी के परवर्ती श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर', रामधारी सिंह 'दिनकर', रामप्रसाद विद्यार्थी 'रावी', राधाकृष्ण, बैकुंठनाथ मेहरोत्रा, शरदकुमार मिश्र 'शरद', शंकर पुणतांबेकर, सतीशराज पुष्करणा, हरिशंकर परसाई, डॉ. राजकुमार शर्मा आदि रहे। वर्तमान में डॉ. बलराम अग्रवाल, डॉ. दामोदर खड़से, कमल चोपड़ा ('संरचना'), उर्मिकृष्ण ('शुभ-तारिका'), मधुदीप (पड़ाव और पड़ताल), अशोक भाटिया, कांता रॉय (लघुकथा वृत्त), ऋचा शर्मा आदि अनेक लघुकथाकारों की रचनाओं ने 'लघुकथा' विधा को अपने रचना-कौशल से चमत्कारिक स्वरूप प्रदान किया।

हिंदी लघुकथा-लेखकों के दो दल....

यदि गहराई से अध्ययन करें, तो यह तथ्य स्पष्ट रूप से उजागर हो जाएगा कि हिंदी-लघुकथा के प्रारम्भिक दौर में दो प्रकार के लघुकथा-लेखक थे। एक दल के एकमात्र प्रतिनिधि थे 'हिंदी लघुकथा' के जनक 'साहित्य-वारिधि' आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र और दूसरे दल में वे सब लघुकथा लेखक थे, जो लघुकथाएँ तो लिख रहे थे, परंतु उन्हें 'लघुकथा' की संज्ञा' प्रदान करने का अपने मन-मस्तिष्क में साहस नहीं जुटा पा रहे थे, जैसे भारतीय ज्ञानपीठ के लोकप्रिय साहित्यिक मासिक 'ज्ञानोदय' के वर्चस्वी सम्पादक श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' तथा बिहार के सुप्रतिष्ठित कथाकार श्री राधाकृष्ण। 'प्रभाकर' जी एक लंबे अरसे तक 'ज्ञानोदय' के संपादक रहे परंतु उन्होंने अपने संपादकीय-काल में 'लघुकथा' संज्ञा से एक भी लघुकथा कभी प्रकाशित नहीं की, जबकि वे स्वयं एक कुशल लघुकथाकार थे। 'प्रभाकर' जी ने यह तो लिखा है कि साहित्यिक मित्रों में से 'अज्ञेय' ने उनकी ऐसी रचनाओं की सराहना तो की, परंतु न तो अज्ञेय' ने इन्हें 'लघुकथा' कहा और न 'प्रभाकर' जी ने स्वयं ।

'प्रभाकर' जी अपने आरम्भिक पत्रकार जीवन से ही 'विकास' साप्ताहिक का संपादन एवं प्रकाशन करते रहे और काफी लंबे अरसे तक उन्होंने 'नया 'जीवन' मासिक का संपादन एवं प्रकाशन किया, जो सहारनपुर की मशहूर लेखिका ऋषभचरण जैन रईस की धर्मपत्नी श्रीमती चंद्रावती ऋषभचरण की युवा पुत्री 'सुधा' की स्मृति में प्रकाशित किया जाता था। काफी लंबे समय तक एक पृष्ठ में स्वर्गवासी 'सुधा' का चित्र भी 'नया जीवन' में प्रकाशित होता रहा, परंतु न जाने किस कारण से वह चित्र छपना बंद हो गया, परंतु 'नया जीवन', मासिक प्रकाशित होता रहा, जिसमें प्रभाकर जी की लघुकथा-रूपी रचनाएँ, जब कभी छपी, तब 'लघुकथा' शीर्षक के बिना छपी और यही स्थिति 'विकास' साप्ताहिक में छपी हुई लघुकथा-रूपी रचनाओं के साथ रही।

बिहार के श्री राधाकृष्ण जी की मशहूर लघुकथा रूपी रचनाओं की पुस्तक का नाम है-'गल्पिका'। जिसका यह स्पष्ट भावार्थ होता है कि उन्होंने अपनी इन रचनाओं को 'गल्पिका''संज्ञा' देना अधिक उचित समझा, वे उन्हें लघुकथा' नहीं कह पाए।

ऐसे दूसरे दल के लघुकथा-लेखकों को एकत्रित करने के प्रयास में खोज करते हुए कुछ महानुभाव माधवराव सप्रे की रचना 'एक टोकरी भर मिट्टी' तक पहुँच गए, जिसे अपने जीवन काल में माधवराव सप्रे जी ने भी कभी 'लघुकथा' नहीं कहा।

'हिंदी लघुकथा' का यह बड़ा दुर्भाग्य है कि किसी भी शोधार्थी तथा संकलनकर्ता ने आज तक पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ शोध कार्य नहीं किया। शोध करने की पहली शर्त यह होती है, कि जो कुछ साफ-साफ दिखाई न पड़ रहा हो, शोध करके उसे खोजें और सबके समक्ष उसे प्रदर्शित करें।

मेरे पास लघुकथा के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करने के लिए अनेक पत्र आए परंतु किसी ने भी यह पूछने का कष्ट नहीं किया कि यदि आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र जी की पुस्तकें आपके पास उपलब्ध नहीं है तो उन्हें कहाँ खोजें ? किसी ने भी यह जानने की जिज्ञासा कभी प्रकट नहीं की कि किन-किन स्थानों पर जाकर आचार्य जगदीश मिश्र जी की पुस्तकें मिल जाने की संभावना है?

आचार्य जगदीश चन्द्र मिश्र मूलत: कथाकार हैं। लाहौर (अब पाकिस्तान) से प्रकाशित होने वाली 'शान्ति' पत्रिका से लेकर उत्तराखंड क्षेत्र के 'गढ़देश' तक में आचार्य मिश्र जी की कहानियाँ प्रकाशित होती रही हैं। आचार्य मिश्र जी की कहानियों का प्रथम संग्रह 'धूपदीप' है, जिनमें वह कहानी भी शामिल है' क्रांति का आशीर्वाद' जिसे पढ़कर देश के तत्कालीन विद्वानों ने उसे रूसी कहानी का अनुवाद समझ लिया था।

वर्चस्वी पत्रकार कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने धूपदीप की भूमिका में इसकी चर्चा की है और आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र जी के संबंध में अति महत्त्वपूर्ण टिप्पणी की है-""जार्ज बर्नार्ड शॉ' के संबंध में यह कहा जाता है कि उन्होंने अपना मूल्य स्वयं समझा और सारी दुनिया को समझाया। आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र जी के संबंध में इसे पलटकर हम यों कह सकते हैं कि न तो उन्होंने अपना मूल्य स्वयं समझा और न ही दुनिया को समझाने की कोई कोशिश ही की।"

आचार्य जगदीश चन्द्र मिश्र ने मात्र लघुकथाओं को ही जन्म नहीं दिया, बल्कि लघु-उपन्यास, लघु-नाटक, लघु-एकांकी की नई परंपरा भी स्थापित की। उनके लघु-उपन्यासों पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. त्रिभुवन नारायण सिंह ने अपने उपन्यासों के आलोचना- ग्रंथ में 'लघु उपन्यास अध्याय में आचार्य जगदीश चन्द्र मिश्र के पाँच लघु-उपन्यासों की आलोचनात्मक चर्चा की है। इसी संदर्भ में यह भी विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि 'हिंदी लघुकथा के जनक' के रूप में प्राप्त ख्याति ने उनके अन्य साहित्यिक रूपों को पूरी तरह आच्छादित कर लिया है, जिसके अनावरण करने की परम आवश्यकता है।

'हिंदी लघुकथा' के जनक

आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र को 'हिंदी लघुकथा के जनक' के रूप में ख्याति प्राप्त होने के कई मुख्य कारण हैं :

प्रथम तो यह है कि सबसे पहले 'लघुकथा' की रचना की परिकल्पना आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र ने की।

द्वितीय यह कि निर्भीकता के साथ सबसे पहले अपनी रचना को 'लघुकथा' की संज्ञा प्रदान की।

तृतीय कारण यह है कि आचार्य जी ने अपने 'पंचतत्व' लघुकथा-संग्रह में लघुकथा के पाँच प्रकार बताए हैं।

1. भावात्मक लघुकथाएँ

2. पौराणिक लघुकथाएँ

3. ऐतिहासिक लघुकथाएँ

4. सामाजिक लघुकथाएँ

5. बोधकथाएँ : लघुकथाएँ

आचार्य मिश्र जी ने सब लघुकथा रूपों को स्पष्टता से समझाने के लिए अलग-अलग संग्रह प्रकाशित कराए।

ऐतिहासिक लघुकथाओं का संग्रह प्रकाशित हुआ--'ऐतिहासिक लघुकथाएँ' के नाम से।

सामाजिक लघुकथाओं का संग्रह प्रकाशित हुआ-'मिट्टी के आदमी' के नाम से।

बोधकथाओं के दो संग्रह प्रकाशित हुए- 1. खाली-भरे हाथ तथा 2. उड़ने के पंख। अहिंदी भाषी क्षेत्रों की माँग पर 'खाली भरे हाथ' का अंग्रेजी अनुवाद earth in man नाम से हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की ‘विधि' (कानून) पत्रिका के संपादक हीरा प्रसाद त्रिपाठी ने किया। हाल ही में प्रकाशित पुस्तक 'सेवानिवृत्त हैं भजन में आइए' में डॉ. जयकुमार जलज ने लिखा है-"पुस्तक के रूप में संभवतः केवल आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र की ही कथाएं 'खाली भरे हाथ' के नाम से प्रकाशित हुई हैं। इस तरह से उनके द्वारा ही हिंदी में बोधकथाओं का आरंभ होता है।"

दुर्भाग्य से पौराणिक लघुकथाओं तथा भावात्मक लघुकथाओं की पांडुलिपियां किसी कारणवश अप्रकाशित ही रह गईं। 'पंचतत्व' में पाँचों प्रकार के नमूने हैं, जिसको पढ़कर अंग्रेजी के प्रोफेसर, मार्क्सवादी हिंदी आलोचक प्रो. प्रकाश चंद्र गुप्त ने घोषित किया कि अपनी लघुकथाओं में आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र ने टैगोर से कहीं अधिक सफलता प्राप्त की है।

'हिंदी लघुकथा' का दुर्भाग्य है कि 'लघुकथा' को रचनाकार तो हजारों की संख्या में मिल गए, परंतु सही रूप में समीक्षा लिखनेवाले समालोचकों का अभाव आज भी दिखता है। तेजस्वी, निष्ठावान निर्देशकों का नितांत अभाव मेरे मन को आज भी बेचैन बनाए रखता है। 'हिंदी लघुकथा' के संदर्भ में यह भी एक मजेदार तथ्य है कि उसे शुभारंभ करने का श्रेय लेने की होड़ में लगे रहनेवाले साहित्यकारों की भी कोई कमी नजर नहीं आती।

आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र जी ने लघुकथाओं तथा बोधकथाओं, सैकड़ों कहानियों और कितने ही लघु-उपन्यासों, लघु नाटकों तथा लघु एकांकियों की रचना की, परंतु उनको सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी जिनकी थी वे उसका निर्वाह नहीं कर पाए। उनमें एक मेरी भी गणना निःसंकोच की जा सकती है, क्योंकि आचार्य मिश्र जी की अधिकांश पुस्तकें त्रिवेणी पुस्तक माला के अंतर्गत प्रकाशित हुई हैं मेरे संपादन में। मेरे पास प्रयागराज मेंहुए जो कुछ उन्होंने लिखा, जो कुछ प्रकाशित हुआ, वह भी आज उपलब्ध नहीं है। दोषी तो मैं ही हूँ न-अपना कर्तव्य न निभा पाने का और लघुकथा साहित्य की अमूल्य निधि को गँवाने का ?

प्रो. डॉ. ऋचा शर्मा की लघुकथाओं के संदर्भ में संभवत: इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिकाओं के स्वनामधन्य सम्पादकों ने उनकी लघुकथाओं का प्रकाशन अपनी पत्रिकाओं में किया, जो स्वयं इस सत्य को प्रकाशित करता है कि डॉ. ऋचा शर्मा की लघुकथाओं में कसावट है, बनावट नहीं। कृत्रिमता का लेशमात्र भी किसी लघुकथा में दृष्टिगत नहीं होता। मानवीय जीवन की मूल संवेदनाओं की अतल गहराई तक पहुँचकर अनुभूति को अपनी लघुकथाओं में प्रस्तुत किया है। लघुकथा में कथ्य की रोचकता बनाए रखने के निमित्त सरल एवं सुबोध शब्दावली का सदुपयोग उनकी एक ऐसी अनूठी विशेषता है, जो अन्यत्र देखने को कम ही मिलती है। बेटी ऋचा को बधाई और शुभकामनाएं इस निवेदन के साथ कि अपने पूजनीय बाबा जी की लेखकीय विरासत को पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ जीवन पर्यंत निरंतर आगे बढ़ाने में जुटी रहें।

- डॉ. राजकुमार शर्मा 

सुपुत्र आचार्य श्री जगदीश चंद्र मिश्र 

474, बक्सी खुर्द, त्रिवेणी प्रकाशन, 

दारागंज, इलाहाबाद-06 (उ.प्र.)  


डॉ. ऋचा शर्मा

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग, अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर, महाराष्ट्र

जन्मस्थान : इलाहाबाद (प्रयागराज), उत्तर प्रदेश

शिक्षा : एम. ए. (हिंदी तथा संस्कृत), पीएच. डी. (इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद)

अनुवाद पदविका : सावित्रीबाई फुले पुणे विद्यापीठ, पुणे 

प्रकाशित साहित्य :

1. काव्य संग्रह--अ. गुलदस्तों की संस्कृति में, 

                       आ. द्रौपदी क्यों बँटी तुम ? 

2. समीक्षात्मक :

(1) मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासः एक अनुशीलन, 

(2) हिंदी पत्रकारिता: कल और आज,

(3) वैश्वीकरण के आईने में हिंदी पत्रकारिता

3. संपादित कृतियां-10 

4. सह लेखन--'सीता शक्ति' काव्य

5. अनुवाद - 02

हंस अक्षरा, साक्षात्कार, राष्ट्रवाणी, गुंजन, अनुशीलन, भाषा, संरचना, लघुकथा वृत्त आदि साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित विभिन्न साहित्यिक तथा शोधपरक पत्रिकाओं में 45 शोध लेख प्रकाशित।

'ई अभिव्यक्ति' ब्लॉग साइट पर सन् 2019 से लघुकथाओं का प्रकाशन।

पुरस्कार/सम्मान :

1. बोल्ट एवार्ड-एअर इंडिया द्वारा 'सर्वश्रेष्ठ शिक्षक पुरस्कार, सन् 2006, नागपुर। 

2. साहित्य महोपाध्याय-हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, 9, 10 मई सन् 2010 को आगरा में प्रदान

3. महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई द्वारा 2013-14 का 'विधा पुरस्कार' प्राप्त । 

4. महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा पुणे द्वारा 'आदर्श शिक्षक' पुरस्कार प्राप्त, सन् 2016

5. सामाजिक संस्था 'स्नेहालय', अहमदनगर द्वारा साहित्ययात्री सम्मान प्रदान, सन् 2019

6. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ का धर्मवीर भारती पुरस्कार सन् 20201

साहित्यिक तथा हिंदी प्रचार संस्थाओं से संबंद्ध

1. सहसंपादक- 'राष्ट्रवाणी', महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे

2. मार्गदर्शक साहित्यकार केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली तथा समन्वयक नवलेखक शिविर (अहमदनगर कॉलेज, अहमदनगर) केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली।

3. सदस्य- हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग।

4. संस्थापक-हिंदी सृजन सभा, अहमदनगर के द्वारा अहमदनगर में साहित्यिक तथा सामाजिक गतिविधियों का आयोजन।

5. संयोजक-लघुकथा शोध केंद्र, अहमदनगर (लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल की शाखा) 

6. स्त्री जीवन से सम्बंधित विषयों पर सामाजिक संस्थाओं के आग्रह पर व्याख्यान 

मोबाइल: 09370288414 

ई-मेल: richasharma1168@gmail.com

टिप्पणियाँ

  1. सुप्रभात, वंदन। लघुकथा विधा में आपका लेखन, हिंदी भाषा व साहित्य के प्रति आपकी लगन निश्चित ही सराहनीय है। हार्दिक अभिनंदन. 🌹🙏

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