मधुकांत की लघुकथाएँ एक समीक्षात्मक अध्ययन-2022 / प्रो. पुष्पा

पुस्तक  : 

मधुकांत की लघुकथाएँ एक समीक्षात्मक अध्ययन

लेखक : प्रो. पुष्पा

ISBN : 978-81-952068-2-7

© : लेखक

प्रकाशक :

कृष्णा पब्लिशिंग हाउस,

ए-49, तृतीय तल, गली नं. 6, जगतपुरी एक्सटेंशन, दिल्ली - 110093

मो.  0-8851868441

Email  :: kphouse 2018@gmail.com

कुल  पृष्ठ  : 312       मूल्य : ₹ 795.00 

प्रथम संस्करण : 2022

अनुक्रम 

भूमिका

मैं और मेरी लघुकथाएँ

साहित्य तथा रक्तदान को समर्पित - मधुकांत

मधुकांत की लघुकथा यात्रा

मेरी 21 लघुकथाएँ

1. अंधी दौड़

2. शुरुआत

3. बुत 

4. दोस्त

5. मेरा अध्यापक

6. रोटी के रिश्ते

7. अपना-अपना पेट

8. कुतिया और मां

9. जिंदा वे

10. आदमी बिकता है

11. हराम की कमाई

12. शेर की खाल

13. मौसम

14. मन का आतंक

15. विस्तार

16. लघुकथा की दुकान

17. डी.एन.ए.

18. नरसी का भात

19. विश्वास का पुल

20. नकली नोट

21. सास और मां

मधुकांत का व्यापक शैक्षिक अनुभव

लघुकथा में विषयगत अभिनव प्रयोग

मधुकांत की लघुकथाएँ विषय कम लघुकथाएँ अधिक

'तरकश' में लघुकथाओं के सौ बाण समाहित हैं

विद्यालय के समूचे वातावरण के लिए बढ़िया लघुकथाएँ 

पाठक को जागृत करने वाली लघुकथाएँ

पाठक को दिशा-निर्देश देती अच्छी लघुकथाएँ समाज की विकलांग सोच और ये लघुकथाएँ

मानवीय मूल्यों का हास

सामाजिक सरोकारों से सरोबार लघुकथा

दिव्यांग जीवन की लघुकथाएँ

नारी चेतना की लघुकथाएँ

मधुकांत की रक्तदान-प्रेरित लघुकथाएँ

डॉ. मधुकांत समस्या का केवल चित्रण नहीं करते, - बल्कि हल सुझाने वाले रचनाकार

हिन्दी-लघुकथा को समर्पित हस्ताक्षरः मधुकांत

मधुकांत की राजनीतिक परिदृश्य पर महत्त्वपूर्ण लघुकथाएँ मधुकांत की दुनियादारी

साहित्य, शिक्षा, संस्कृति और सामाजिक दायित्व के प्रति समर्पित मधुकांत की 66 लघुकथाएँ और उनकी पड़ताल

अपने समय पर गहरी दृष्टि रखती लघुकथाएँ 

विषय वैविध्य के स्तर पर समृद्ध कथाकार मधुकांत

मधुकांत की लघुकथाएँ : एक चिन्तन 

लघुकथा लेखन परम्परा की मणिमाला के सुमेरु मधुकांत 

सामाजिक परिवेश से साक्षात्कार करती लघुकथाएँ 

बाल मनोविज्ञान की कसौटी पर खरी उतरती लघुकथाएँ

मधुकांत की लघुकथाओं में हरियाणवी आंचलिकता 

डॉ. राजकुमार निजात द्वारा लघुकथा विधा पर संवाद 

डॉ. मधुकांत से अनिल शूर आजाद की अन्तरंग बातचीत

स्वयंवर

व्यंग्य : लघुकथा के स्कूल के

पत्रावली

पत्र-पत्रिकाओं में लघुकथाओं की समीक्षा

The Collection of Mini-Stories: EMPTY FRAME

लेखिका द्वारा लिखित  'भूमिका'

जैसे-जैसे मुझे डॉ. मधुकांत का साहित्य विशेषकर लघुकथाओं को पढ़ने का अवसर मिला तो मेरे आश्चर्य और खुशी का ठिकाना न रहा। कैसे एक रचनाकार समाज की गहराइयों को समझकर, चिंतन-मनन करके अपनी रचनाओं के माध्यम से अनेक पाठकों के दिल में उतर जाता है। मैंने तुरंत मधुकांत जी से उनकी लघुकथाओं पर समीक्षात्मक कार्य करने की अनुमति मांगी तो तुरंत उन्होंने मुझे सहर्ष स्वीकृति प्रदान कर दी। जैसे ही मैंने अपना कार्य आरम्भ किया उनकी लघुकथाओं का फलक आकाश की भांति व्यापक हो गया। गागर में सागर की भांति लघुकथाओं के भाव विस्तृत हो गए और यह कार्य मुझे आनंद देने लगा।

हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकुला से दो बार सम्मानित साहित्यकार मधुकांत ने यों तो समाज के प्रायः प्रत्येक पक्ष को अपनी लघुकथा का विषय बनाया है। वर्तमान समय में राजनीति साहित्य पर हावी होती जा रही है, ऐसी भयावह स्थिति में साहित्यकारों को साहित्य की परिस्थिति पर गहन एवम् पैनी दृष्टि रखनी चाहिए। क्योंकि यदि हम ऐसा नहीं करेंगे तो राजनीति साहित्य पर पूर्णरूपेण ढंग से हावी हो जाएगी। इस स्थिति में साहित्य से साहित्यिकता को बचाना कठिन हो जाएगा। मधुकांत ने अपनी लघुकथाएँ इस विषय पर गहन चित्रित किया है। विभिन्न स्थितियों पर केन्द्रित की है।

मधुकांत ने अपनी लघुकथाओं में अपने आस-पास देखी-सुनी अथवा घट रही घटनाओं को स्थान दिया है मूलतः डॉ. मधुकांत कई दशकों तक शिक्षा जगत से जुड़े रहे हैं। वे एक आदर्श अध्यापक के रूप में विख्यात साहित्यकार हैं। समाज सेवा व स्वतंत्र लेखन में व्यस्त रहने वाले रक्तदान प्रणेता मधुकांत का नाम हिन्दी लघुकथा लेखन में बहुपठित व बहुचर्चित है। इनके 27 एकल लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। लघुकथाए लेखन में भारत में इनका तीसरा स्थान है व इनकी कलम विविध विधाओं की 142 पुस्तकों द्वारा हिन्दी साहित्य की समृद्धि में योगदान दे चुकी है। इनकी पुस्तकें राजस्थानी, पंजाबी और अंग्रेजी भाषा में अनुदित हुई हैं। उनके साथ रहते हुए मैंने अनुभव किया कि डॉ. मधुकांत ने समाज के हर स्याह-सफेद बिन्दु को देखा है और अपनी लेखनी से कागज पर उतारा है। फिर चाहे वो पारिवारिक और दाम्पत्य जीवन के मीठे कसैले अनुभव हो या किसी के जीवन को बचाने की कवायद । आप पूछेंगे 'जीवन को बचाने की कवायद' में वो कैसे योगदान कर सकते हैं तो मैं पाठकों को बताना चाहूंगी कि ‘खून’, ‘रक्त’ एक ऐसी चीज है जो विज्ञान कितनी भी तरक्की कर ले उसे नहीं बना सकता यदि किसी व्यक्ति को यदि खून की आवश्यकता पड़ती है तो वह केवल दूसरे व्यक्ति द्वारा ही दिया जा सकता है। अब प्रश्न है कि जब खून अपने शरीर से निकाल दूसरे को देना है तो कोई क्यों देगा या तो कोई उसका अपना सगा सम्बन्धी होगा या बेटा या बेटी। लेकिन पाठकों मैं आपको यह बताना चाहती हूँ कि डॉ. मधुकांत ने सांपला व रोहतक के आस-पास रक्तदान की ऐसी अलख जगाई सिर्फ अपने द्वारा रचित साहित्य के माध्यम से ही नहीं बल्कि स्वयं भी अपना रक्त परायों के लिए दे देकर । रक्तदान पर लिखित उनकी पुस्तक 'गूगल बॉय' का कई भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। रक्तदान को लेकर उनका दैनिक एवम् साहित्यिक अवदान दोनों ही प्रेरक हैं। चाहे कविता हो, नाटक हो या फिर लघुकथा अगर रक्तदान को लेकर उनकी लघुकथा का जिक्र न हुआ तो बात अधूरी रह जाएगी। आपने रक्तदान को लेकर एक मुहिम चला रखी है जिसमें नित प्रति वृद्धि हो रही है लोग जुड़ रहे हैं कारवां बढ़ता जा रहा है।

डॉ. मधुकांत की लघुकथाएँ मन को झकझोरने वाली होती है। इनके द्वारा हरियाणा में अनेक स्थानों पर रक्तदान के शिविरों का भी आयोजन हो चुका है। उसमें जो रक्त इकट्ठा होता है वह बिना किसी का धर्म व जाति देखे, जरूरतमन्दों को चढ़ाया जाता ।

जहां तक लघुकथा की बात है 'लघुकथा गागर में सागर भरने की विधा है। कथाकार कुछ ही शब्दों के माध्यम से कोई ऐसी बात कह देता है जो सीधे पाठक के दिल में उतर जाती है मधुकांत के साहित्य में जो सबसे अच्छी बात देखने में आती है, वह यह है कि वे सदैव नवीन विषय लेकर सामने आते हैं, जैसे रक्तदान, देहदान, नेत्रदान, एड्स, पर्यावरण, शिक्षा इन सभी विषयों पर आपने लघुकथाएँ लिखी हैं।

लघुकथा का उद्देश्य होता है मानव जीवन की विसंगतियों पर तीव्र प्रहार कर जीवन मूल्यों की स्थापना करना । शैली साहित्य जगत् में बहुत से साहित्यकार हुए हैं। सबकी अपनी-अपनी होती है और इस अपनी मौलिक शैली से ही यह रचनाकर्मी अपनी पहचान बनाता है। जो अपनी अलग पहचान बनाते हैं, वहीं भीड़ में भी अलग दिखाई देते हैं। साहित्यकार मधुकांत एक ऐसे ही रचनाकार हैं जिन्होंने हर क्षेत्र में या यूं कहे हर विधा में कलम चलाकर अपनी अलग पहचान बनाई है। यही कारण है कि आज भारत के लगभग हर विश्वविद्यालय का बच्चा उन पर शोध कर रहा है। मधुकांत एक ऐसे लेखक हैं जिनकी रचनाओं में समाज सेवा की भावना अभिव्यक्त होती है। मेरे विश्वविद्यालय महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय में ही उनके साहित्य पर पांच शोधार्थी शोध कार्य कर रहे हैं। मेरा मधुकांत से परिचय सेवा भावना कार्यक्रमों में ही हुआ है। मधुकांत जी पिछले कई वर्षों से मेरे निकट में रहते हैं, मैं यह तो जानती थी वे एक साहित्यकार है, किन्तु साहित्यिक परिचय कभी नहीं हुआ। शायद दो तीन वर्ष पहले जब मैंने स्वयं समाज सेवा के कार्यक्रमों में हिस्सेदारी की तो मुझे पता चला कि वे एक समाज सेवी होने के साथ-साथ श्रेष्ठ साहित्यकार भी हैं। समाज सेवा की बात करें तो इन्होंने रक्तदान अभियान भी चला रखा 1 उन्होंने एक जगह लिखा है कि समाज सेवा करते-करते समाज की विभिन्न समस्याओं को जागृत करते हुए पेनी लेखनी चलाई है। ऐसी रचनाएं जो पाठकों तथा समाज को एक सही दिशा देने में समर्थ हो, ऐसी रचनाओं के रचियता डॉ. मधुकांत विगत साढ़े तीन दशक से लघुकथाएँ लिखते आ रहे हैं, उनके विचार जीवन की सार्थकता अपने लिए जीने में नहीं बल्कि दूसरों के लिए जीने में है। ये मिट्टी से जुड़े हुए रचनाकार हैं। आमजन के दुःखदर्द एवम् चुनौतियों से इनका गहन परिचय है। वर्तमान को अनेक रूपों में भोगने वाला कवि भविष्य की न जाने कितनी समस्याओं का समाधान भी सहज रूप में ढूंढ़ लेता है ।


इस पुस्तक में हम मधुकांत के लघुकथा साहित्य का मूल्यांकन करने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन मैं पाठकों को एक बात प्रारम्भ में ही कहना चाहती हूं कि मधुकांत जैसे साहित्यकार का मूल्यांकन करना सूरज को दीपक दिखाने के समान है क्योंकि वे केवल पढ़ने के लिए ही साहित्य की रचना नहीं कर रहे बल्कि अपने साहित्य के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को जड़ से मिटाने के लिए भी साहित्य के माध्यम से प्रयास कर रहे हैं। मधुकांत केवल एक विचार के समर्थन में नहीं लिख रहें। वे सोद्देश्यवादी रचनाकार नहीं। उनकी लघुकथाओं की बात करें तो उनका स्वर शैलिक एवम् मानवीय है। लघुकथाओं में आपने आधुनिक युग की एक कमजोरी जिसके बारे में कबीरदास जी भी पहले कह चुके हैं कि 'माया महाठगिनी हम जानी, निरगुण फांस लिये कर होत; मतलब 'धन' एक ऐसी समस्या है जो आज हर व्यक्ति की कमजोरी बन चुकी है। ‘शिक्षक’ भी इससे अपने मन को नहीं हटा पाया। शिक्षक अपने अध्यापन कार्य से विमुख होकर धन लोलुप हो गया है 1


लघुकथा के माध्यम से साहित्यकार घटना, भाव या विचार को अपने संक्षिप्त फलक पर शब्दों की कुंजी और भावों के रंगों से प्रभावी जीवन-चित्त के रूप में प्रस्तुत करता है। लघुकथाकार का रचनात्मक कौशल विषय- विशेष से अधिक उन क्षणों की प्रस्तुति माध्यम से व्यक्त होता है, जिन्हें वह मानवीय चिन्ताओं के विशेष सन्दर्भ में पाठक के समक्ष रखना है । लघुकथा को प्रवाह देने के लिए साहित्यकार या लघुकथा लेखक पात्रों के माध्यम से संवाद सेतु निर्मित करता है जो कथा रोचक और जीवन्त बनाता है । बहुमुखी प्रतिभा के धनी मधुकान्त उन साहित्य साधकों में से एक हैं, जो गम्भीरता से लघुकथाओं की रचनाकर इस विधा के उन्नयन में विशेष योगदान दे रहे हैं ।

                          प्रो. पुष्पा (हिन्दी विभाग) 

मर्हिष दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक (हरियाणा)

जीवन व साहित्यिक परिचय 

प्रोफेसर पुष्पा

पद : प्रोफेसर व चेयरपर्सन महर्षि वाल्मीकि चेयर महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक

जन्म तिथि : 04 सितम्बर, 1968

प्रकाशित पुस्तकें : 

आलोचनात्मक पुस्तकें-1 प्रोफेसर हरिशंकर आदेश के काव्य में प्रेम और सौन्दर्य चित्रण, 2. राष्ट्रीय कवि मैथिलीशरण गुप्त का काव्य संवेदना के शीर्ष; 3. हिन्दी उपन्यासों में युग धर्म (1980-1990); 4. दादू काव्य में सामाजिकता । 

नाटक - संग्रह - 1. अपराधी। 

कहानी-संग्रह- 1. नितबन्दड़ी। कविता-संग्रह- 1. अधोकान्त । 

सम्पादित पुस्तकें- 1. उच्च शिक्षा में दर्शन एवम् नैतिक मूल्य; 2. प्राचीन व आधुनिक भारतीय सन्त साहित्य में धर्म एवम् विज्ञान; 3. महर्षि वाल्मीकि-एक विवेचन; 4. महर्षि वाल्मीकि - मूल्य मीमांसा; 5. संचित काव्य संग्रह; 6. संचित कहानी तरंग; 7. संचित लघुकथा तरंग। 

अन्तर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित पेपर 50 अन्तर्राष्ट्रीय व राष्ट्रीय संगोष्ठियों में भागीदारी 50; अन्य विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में दिए गए भाषणों की संख्या : 25।

प्रशासनिक अनुभव : प्रभारी प्रोफेसर, महर्षि वाल्मीकि शोध पीठ- 2014 से महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय में स्थापित महर्षि वाल्मीकि शोध पीठ की अध्यक्षा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की पत्रिका अनुदान आयोग द्वारा स्वीकृत पत्रिका 'Indian Journal of Social Concerns' में 'सह सम्पादक' की भूमिका में पिछले तीन वर्षों से कार्य कर रही हूँ।

शोध-परियोजना : अनुसंधान पर्यवेक्षण में शोधर्थियों की संख्या-8 पी-एच.डी. सम्पन्न, 8 शोध कार्यरत, 10 एम. फिल्, 3 शोध कार्यरत, 10 ट्रांसलेशन डिप्लोमा, 3 शोध कार्यरत अनुसंधान परियोजना से सम्मानित किया विश्वविद्यालय अनुदान आयोग केन्द्रिय सरकार के प्रमुख परियोजना को 2016 में पूरा किया गया। 

सम्मान : अर्णव क्लश एसोसिशन द्वारा पर्वर कर्मठ निरन्तर सम्मान; महर्षि दयानन्द यूनिवर्सिटी, रोहतक के स्टूडेण्ट वेल्फेयर विभाग द्वारा Certificate of Appreciation in 2016; कलम की सुगंध द्वारा काव्यपाठ हेतु 2017-18 का साहित्य गौरव सम्मान; आंचलिक संस्कृति संस्था (हरियाणा) 'जल ही जीवन है आंचलिक भाषा साहित्य प्रतिभा सम्मान, 2018; राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान (साल्हावास) हरियाणा कृष्ण जन्माष्टमी पर श्रेष्ठ रचनाकार सम्मान, 2019; राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान झज्जर द्वारा 'फणीश्वरनाथ रेणु आंचलिक संस्कृति संरक्षण, साहित्य, समाजसेवा सम्मान, 2019; निर्मला स्मृति साहित्यिक समिति द्वारा 'इन्द्रा स्वप्न स्मृति साहित्य सम्मान', • 2019; नूतन साहित्य कुञ्ज की ओर से कुञ्ज, प्रसून सम्मान; 'अणर्व क्लश' एसोसिएशन द्वारा गर्णव क्लश साहित्य गौरव सम्मान; हरियाणा ग्रन्थ अकादमी द्वारा साहित्य सेवा सम्मान; पर्वतीय लोकविकास समिति द्वारा साहित्य में विशिष्ट योगदान हेतु - 27 जनवरी, 2019 दिल्ली गौरव सम्मान; राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान (साल्हावास) द्वारा फणीश्वरनाथ रेणु आंचलिक सम्मान, 2019; गार्गी फाउंडेशन द्वारा ऊजाई गार्गी पुरस्कार, 20191

परीक्षक : विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा ऊजाई गार्गी पुरस्कार, 2019

विषय-विशेषज्ञ : महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय, सिरसा, चौधरी बंसी लाल विश्वविद्यालय, भिवानी, उत्तराखण्ड यूनिवर्सिटी, गढ़वाल, पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़, इन्द्रिरा गांधी विश्वविद्यालय, मीरपुर (रोहतक), गुरुकांशी विश्वविद्यालय, तलवंडी साबो (भटिंडा), हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, महेन्द्रगढ़ | आकाशवाणी व दूरदर्शन पर साहित्यिक कार्यक्रमों में निरन्तर भागीदारी।

सम्पादक : 1. इण्डियन जर्नल ऑफ सोशल कन्सर्न; 2. युगशिल्पी 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

समकाल (लघुकथा विशेषांक) अगस्त 2023 / अशोक भाटिया (अतिथि संपादक)

तपती पगडंडियों के पथिक/कमल कपूर (सं.)

आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र रचनावली,भाग-1/डाॅ. ऋचा शर्मा (सं.)