सम-सामयिक लघुकथाएँ / शगुफ़्ता यास्मीन अतीब काजी
●साझा संकलन ●
संपादक : शगुफ़्ता यास्मीन अतीब काजी
उप-संपादक : दिव्या शर्मा
प्रथम संस्करण : 2021
द्वितीय संस्करण : 2022
ISBN : 978-81-951368-9-6
© प्रकाशक : सृजन बिंब प्रकाशन
301, सनशाइन - 2. के. टी. नगर, काटोल रोड,
नागपुर-440013
दूरध्वनि - 8208529489, 9372729002
ई-मेल: srijanbimb.2017@gmail.com
मुखपृष्ठ : मिली पांडे विकमशी, नागपुर
प्रथम संस्करण: मार्च 2021
द्वितीय संस्करण : मई 2022
कुल पृष्ठ-222, मूल्य - 300/-(पेपरबैक)
अनुक्रम
1. रंग-अशोक भाटिया
2. ठंडे पैर--आभा अदीब राज़दान
3. संकल्प- आभा खरे
4. जय हिन्द साहब- अलका अग्रवाल सिगतिया
5. बुढ़िया- अलका देशपांडे
6. लक्ष्मी-अलका रेहानी
7. टच थैरेपी-- आरती सिंह 'एकता'
8. 1. नन्हा पौधा 2. दो - दो चांद-- आशीष मोहन
9. मां तो मां होती है-- डॉ अमृता शुक्ला
10. वॉशिंग साईकल...- अनघा जोगलेकर
11. जब जागे तब सवेरा-अंजू निगम
12. रनर अप-- अंजू खरबंदा
13. मुलम्मा-- अंजुलिका चावला
14. नेपोलियन का घोड़ा-- अंकिता भार्गव
15. पश्चाताप- आशा मुंशी
16. अनुशासन- डॉ. अशोक कालरा
17. सन्नाटा- अंशु विनोद गुप्ता
18. स्क्रीनशॉट- अपराजिता राजोरिया
19. एक मुलाकात- प्रो. बबीता दीवान
20. पीले पंखोंवाली तितलियाँ- बलराम अग्रवाल
21. आघात-भगवान वैद्य प्रखर
22. इस बार की बारिश - डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
23. कल्पना- चैताली मदान मूलचंदानी
24. नास्तिक- डॉ. चंद्रा सायता
25. बुद्धिजीवी- धृति हेमंत बेडेकर
26. भगवान- दीप्ति सिंह
27. पेंटिंग- धीरा खंडेलवाल
28. रंगरेज- दिव्या शर्मा
29. आदमजात- एकता कुमारी
30. नारी नहीं, नाड़ी-ऐषा चैटर्जी
31. तलाश- गति उपाध्याय
32. सितार- डॉ. गीता शर्मा
33. ग्रहण- गुरलीन कौर
34. अछोर प्रेम- हेमलता मिश्र मानवी
35. मर्यादा- जनकजा कान्त शरण
36. चादर पर की सिलवटें- डॉ ज्योति गजभिये
37. बीड़ा- कल्पना सेठी
38. स्त्री-कमलेश भारतीय
39. अंजानी बेचैनी-कमलेश चौरसिया
40. सावन की झड़ी- कान्ता राय
41. सत्संग- कंचन शर्मा 'कोशिका
42. डर- करमजीत कौर
43. बेड़ियाँ- डॉ कृष्णा श्रीवास्तव
44. एहसास-ख़ुदेजा ख़ान
45. शायद-किरण पारेख टाटिया
46. एफ. आई. आर.- कुंवर इंद्रजीत सिंह
47. सोशल डिस्टेंसिंग-लाजपत राय गर्ग
48. स्वाभिमान- डॉ. लता अग्रवाल
49. नज़रिया- लीना शर्मा
50. गजरा-माधुरी राउलकर
51. शरणार्थी कैम्प-मधु सक्सेना
52. बेटी- मालिनी शर्मा
53. माँ-बेटी - मनीषकुमार पाटीदार
54. सौग़ात रिश्ते की- मंजुला सिंह
55. चादर डालना-माया शर्मा (नटखटी)
56. झूठी कसम- डॉ मोहन लाल अरोड़ा
57. भारत दुर्दशा- मृणाल आशुतोष
58. अन्नदाता- मीनू खरे
59. मेजर राजवीर- मीता खुराना
60. तमाशा बन्द हो गया- मेघा राठी
61. ताले में बंद भगवान- डॉ. मुकेश पाटीदार
62. वे चार लोग-नंदिता मनीष सोनी
63. अधूरे सपने- नम्रता तिवारी
64. अंततः- निर्मला हांडे
65. जाग्रत आदमी- निर्मला सुरेंद्रन
66. जमींदोज़-नयना (आरती) कानिटकर
67. नसीहत-नीलम अजित शुक्ला
68. एक बूँद ओस की- नीना सिन्हा
69. टूटे तार- निरुपमा श्रीवास्तव
70. प्याज के छिलके- डॉ. नीलिमा दुबे
71. सच्ची लगन- नीलिमा झा
72. लोटा भर पानी- ओम प्रकाश नौटियाल
73. एकनिष्ठ- पूजा अग्निहोत्री
74. दर्द भी हँसाते है-पूनम तिवारी 'हिंदुस्तानी'
75. मन की आवाज-डॉ पूनम अरोरा
76. समय का चक्कर-डॉ पूनम गुजरानी
77. तमाशबीन- पूनम झा
78. क्रासिंग सिग्नल-डॉ प्रतिभा त्रिवेदी
79. लडाई- प्राची वाटवे
80. दुविधा- पूर्णिमा रविकांत काबरा
81. बुधरु-पूर्णिमा सरोज
82. मैं द्रोपदी नहीं हूँ -राम मूरत 'राही
83. आदत- रमादेवी शर्मा
84. पीली साड़ी-रंजना वर्मा ' उन्मुक्त'
85. तिरंगा- डॉ. रश्मि चौधरी
86. छलावा- रश्मि चौधरी
87. स्त्री का दुःख- राज नारायण बोहरे
88. पत्थर या ईश्वर-राजेश नामदेव
89. दोस्ती की महक- रीमा दीवान चड्ढा
90. फैसला- रेशम मदान
91. शुभ मुहूर्त- रेखा नायर
92. और बाबूजी चले गए- रितु आनंद शर्मा
93. हुनर -रितु आसई
94. पहचान- रूबी दास
95. गंदा- संदीप अग्रवाल
96. वो पीपल का पेड़-- साधना छिरोल्या
97. बेटों से बेटियां भली-डा संध्या शुक्ल 'मृदुल'
98. मैंने जीना सीख लिया-संगीता सिंह बघेल
99. अपना घर - डॉ. संगीता भारूका
100. लॉकडाउन-संतोष बुधराजा
101. व्यवस्था को आमंत्रण- संतोष सुपेकर
102. ढलते सूरज की चमकती किरण-डॉ सारिका औदिच्य
103. पंक्चर-सपना चन्द्रा
104. समझदार बहू- सरोज गर्ग
105. झुमके- सरोज व्यास
106. बँधे हुए स्वप्न ...- सीमा वर्मा
107. रिगार्डिंग- शगुफ्ता यास्मीन क़ाज़ी
108. पहली बारिश- शमा जैन सिंघल
109. प्यार-- शराफ़त अली ख़ान
110 . यथार्थ का दर्पण--शशि भार्गव
111. गहने अपने अपने- शीला अशोक तापड़िया
112. पेंशन का हिसाब- - सुरेंद्र हरड़े
113. एक्स-वाय- सविता प्रथमेश
114. दलील-सुरेखा खरे
115. पड़ोसी माँ- सुलोचना परमार 'उत्तरांचली'
116. मुफ़्त की मौत-शादाब अंजुम
117. अपना आसमान- शर्मिला चौहान
118. हकीकत- सीता गुप्ता
119. पगड़ी सँभाल- शेख़ शहज़ाद उस्मानी
120. छलावा- स्मृति गुप्ता
121. सावधान इंडिया- डॉ. सुधा गुप्ता 'अमृता'
122. पहली तारीख- सुधा तैलंग
123. जीवन संग्राम-सुजाता देशपांडे
124. यूरेका-सुनीता मिश्रा
125. गरम खून-सुषमा अग्रवाल
126. दीदी - डॉ. सुषमा झा
127. बचत- शेफालिका झा
128. गलती- स्वाति सुमेश
129. करनी का फल-श्री कृष्ण तैलंग
130, कॉलबेल- तनवीर खान
130. पत्नी-- तारावती सैनी 'नीरज'
131. बड़ा दिल- त्रिलोक महावर
132. 360 टर्न- डा. उपमा शर्मा
133. पिजरे के पंछी-- उर्मिला वर्मा
134. तुम तस्वीर के लिए बने हो-वन्दना दवे
135. समानता का अधिकार- वंदना गोपाल शर्मा 'शैली'
136. दिशा भ्रम- डॉ. वन्दना गुप्ता
137. धैर्य- वंदना खरे
138. नदी का घर- विजय जोशी 'शीतांशु'
139. इंसाफ--विभा रानी श्रीवास्तव
140 . नशा छूमन्तर हो गया-- वीना सिंह
141. पहल- डॉ. विनोद नायक
142. सबक - विजय कुमार विश्वकर्मा
143. अनावृत- विद्या चौहान
144. 1. बड़ डे- विवेक अग्रवाल
2. कस्टडी- विवेक अग्रवाल
145. टोका-टाकी- वाजिद हुसैन
146. सौग़ात- योगिता सिंह
147. अंतर-- जीनत एहसान कुरैशी
प्रकाशक की ओर से
सृजन बिंब से...
लघुकथा आज साहित्य की सबसे सशक्त और तीखी विधा के रूप में उभर कर सामने आई है। यह हिन्दी की मौलिक विधा है जो अपनी लघुता से आकर्षित करती है और अपने प्रभाव से पाठकों को जोड़ती चली जाती है। अपने संक्षिप्त रूप और कसे हुए शिल्प के साथ संवेदनात्मक घटना का बिंब बन लघु कथा आज साहित्य की महत्वपूर्ण विधा बन गई है। लघुकथा यूँ तो एक छोटी कहानी होती है पर उसका फलक किसी उपन्यास से कम विस्तृत नहीं होता। यही कारण है कि आज लघुकथा लेखक और पाठक दोनों की सबसे प्रिय विधा बन गई है।
इस महत्वपूर्ण विधा पर देश के असंख्य लेखक अपनी कलम चला रहे हैं। सृजन बिंब प्रकाशन ने लघुकथाओं को संकलित करने का प्रयास किया है। देश के सिद्धहस्त हस्ताक्षर जहाँ इस संकलन में जुड़े हैं वहीं नव हस्ताक्षरों को भी सम्मानपूर्वक स्थान दिया गया है। संपादन की ज़िम्मेदारी नागपुर की लघुकथाकार शगुफ्ता यास्मीन क़ाज़ी ने उठायी है और उप संपादक के रूप में सहयोग किया है गुरुग्राम से दिव्या शर्मा ने। अतिथि लेखक आदरणीय बलराम अग्रवाल जी का आलेख इस संकलन को पूर्णता प्रदान करता है। इस आलेख के लिए मैं हृदय से उनका आभार व्यक्त करती हूँ।
आवरण का आकर्षक चित्र प्रिय मिली विकमशी जी की कला का एक सुंदर परिचय है, इस चित्र के लिए आभार मिली जी ।
सुधी पाठकों को सृजन बिंब प्रकाशन की नवीनतम कृति सादर समर्पित है।
रीमा दीवान चड्ढा
कवयित्री एवं प्रकाशक, नागपुर
मो. 8208529489
अतिथि लेखक
नयी पीढ़ी अर्थात् नवीनता की गारंटी
गत पचास वर्षों में समकालीन हिन्दी लघुकथा-साहित्य रचना और आलोचना दोनों ही स्तरों पर लगातार सम्पन्न हुआ है। पत्र-पत्रिकाओं में सामूहिक चर्चा से लेकर सेमिनारों और वेबिनारों तक में इसके अंग-प्रत्यंग पर समुचित विमर्श हुआ है। अनेक ऊहापोहों के बीच नैरन्तर्य बनाए रखकर लघुकथा रचना, समीक्षा और आलोचना के क्षेत्र में अपना स्थान सुनिश्चित कर चुकी है। परन्तु स्थान सुनिश्चित कर लेना ही समकालीन लघुकथा के सौष्ठव की गारण्टी नहीं है। रचना, आलोचना और समीक्षा के क्षेत्र में कुछेक गम्भीर प्रयासों की हमें अभी भी प्रतीक्षा है। एक समग्र लघुकथा संग्रह या तो अभी आया नहीं है या फिर आ तो चुका है लेकिन उस पर सक्षम आलोचकीय दृष्टि अभी पड़ी नहीं है, दोनों ही बातें संभव हैं। कुल मिलाकर समकालीन हिन्दी लघुकथा को अपनी सैद्धान्तिक और व्यावहारिक आलोचना - पुस्तक की अभी भी प्रतीक्षा है। इस दिशा में कार्य के लिए हमें समकालीन लघुकथा की संवेदनशीलता का विश्लेषण करने के प्रयास करने होंगे।
यहाँ संवेदना के तात्पर्य को समझ लेना आवश्यक है। यह जान लेना आवश्यक है कि साहित्य के संदर्भ में संवेदना से तात्पर्य मनुष्य के नैतिक-बोध से होता है। संवेदन- ग्रहणशीलता जितनी अधिक होगी, नैतिक-बोध भी उतना ही प्रबल होगा। नैतिक-बोध ही है जो लेखक और कलाकार को सामान्य जन से किंचित अलग व्यक्तित्व वाला बनाता है। लघुकथाकार के संबंध में इस नैतिक-बोध को हम उसका कथा-बोध और कला -बोध दोनों कह सकते हैं। इस अर्थ में तीव्र संवेदन- ग्रहणशीलता लघुकथाकार की वैसी ही विशिष्टता सिद्ध होती है, जैसी किसी लोककवि की होती है। लघुकथा पढ़ने या सुनने के बाद पाठक, श्रोता और आलोचक लघुकथाकार के इस गुण से जुड़कर उसी का विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं । यह लघुकथा की सहज ग्राह्यता का तथा व्यावहारिक आलोचना का प्रमुख सोपान है। इसमें आलोचक अपने आप को कथाकार के 'कथा - बोध' पर केन्द्रित करता है, कथानक आदि उसके लिए गौण हो जाते हैं। लघुकथा लेखन में नये आने वाले कथाकारों से कहा जाता है कि वे वरिष्ठ कथाकारों की रचनाएँ पढ़ें। कथाभिव्यक्ति का कौशल उनसे सीखें। स्पष्ट कर दूँ कि 'वरिष्ठ कथाकारों की रचनाएँ पढ़ना' से तात्पर्य मात्र लघुकथाएँ न होकर कहानी, उपन्यास, कविता और तत्संबंधी आलोचना भी होता है। मुझे लगता है कि 'कथाभिव्यक्ति के कौशल' की प्राप्ति वरिष्ठों को पढ़ने से होने वाले लाभ का एक ही पक्ष है। अन्य भी अनेक पक्ष हैं, जिन्हें जान लेना यहाँ जरूरी है।
सामान्य सी बात है कि दशकों तक लिखते-लिखते अधिकतर कथाकार शैलीगत ( शिल्पगत तथा वस्तुगत भी) स्थिरता का शिकार हो सकते हैं। यह स्थिरता पाठक में एकरसता उत्पन्न करती है और एकरसता ग्राह्यता के ग्राफ को ऊपर चढ़ने से रोकती है। पाठक में उत्पन्न एकरसता का भाव साहित्य के प्रति वस्तुतः एक प्रकार का शैथिल्य उत्पन्न करता है जिसका जिम्मेदार कथाकार है। लंबे अन्तराल तक लिखते लिखते कथाकार में नयी उद्भावनाएँ समाप्त हो चुकने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता, वे सपाट भी हो जा सकती हैं। उसके आशय इकहरेपन का शिकार हो गये हो सकते हैं। इन सब दोषों की पड़ताल उसकी रचनाओं को पढ़े बिना नहीं की जा सकती। पड़ताल नहीं होगी तो नया कथाकार उन दोषों से बचा रहने के बारे में सोच नहीं पायेगा। यह एक बड़ा कारण है जिसका निदान वरिष्ठों के अध्ययन में ही निहित है। शिल्पगत, शैलीगत, कथ्यगत, वस्तुगत शिथिलताओं से त्राण के लिए मात्र वरिष्ठों को ही पढ़ लेना काफी नहीं है, आवश्यक यह भी है कि हम अपने समय के लेखन से भी साथ-साथ ही परिचित होते चलें । लेखन में नवीनता इसी बिन्दु से निकलकर आयेगी। साहित्य में नवीनता का अर्थ है, पूर्व लेखन में पैठ गयी शिथिलताओं और जड़ताओं से मुक्ति। आज यदि हम वेद, ब्राह्मण, उपनिषद आदि में वर्णित लघ्वाकारीय कथाओं के अनुसरण को, यहाँ तक कि बीसवीं सदी में ही लिखित बहुत-सी लघुकथाओं के अनुसरण को उपयुक्त नहीं पाते हैं तो उसका कारण यही है कि हमारी कथा -दृष्टि विकसित हुई है, उनमें आ चुके शैथिल्य को पहचानने में हम सक्षम हो चुके हैं।
सवाल यह पैदा होता है कि ऐसी हालत में पुरातन कथा-साहित्य को हम थाती के तौर पर सँजोए रखना क्यों आवश्यक समझते हैं? इसलिए कि कोई भी पेड़ अपनी जड़ों के बिना हरा-भरा नहीं बना रह सकता। समुद्र का अस्तित्व नदियों से है, नदियों का ग्लेशियर्स से, ग्लेशियर्स का वायुमंडल में तैरते गोचर-अगोचर जल-कणों से तथा उक्त जल-कणों का अस्तित्व सूरज की किरणों द्वारा लगातार सोखे जाते सागर से है। यह मात्र जल चक्र नहीं है, जीवन-चक्र का छोटा-सा एक उदाहरण है। जल चक्र की तरह ही कथाकार के जीवन में कथा-चक्र भी है। पुरातन लगभग समूचा कथा-साहित्य काव्यमय है। उक्त काव्यमयता ही आधुनिक काल की गद्यमयता का उत्म है, यह उतनी बारीक बात नहीं है कि समझ में न आ सके। नितान्त रमहीन वाक्यों के समूह को गद्य मानना गद्य की आत्मा को न जानने के समान है। कोल्हू में पेरकर फेंक दिये गये गन्ने के छ को गद्य नहीं कहते। कथन -भंगिमा में किचित अंतर के माथ गद्य भी काव्य ही है। अगर कहा जाए कि दो पानियों के परस्पर घर्षण से अग्नि उत्पन्न होती है' तो सामान्य व्यक्ति के पल्ले यह बात नहीं पड़ेगी; क्योंकि यह आलंकारिक शब्दावली से युक्त उच्च स्तरीय काव्य है। परन्तु इसी बात को अगर यों कहें कि 'दो मेत्रों के पम्प घर्षण से आकाशीय विद्युत उत्पन्न होती है' तो सबकी समझ में आसानी से आ जाएगी, क्योंकि सामान्य शब्दावली है और ऐसा होते सबने देखा है।
कुल मिलाकर वेदकाल से लेकर गद्य की स्वीकार्यता के काल (सन् 1801 के आसपास) तक तथा स्वीकार्यता के काल से लेकर आज, गद्य के सामान्यीकरण तक अभिव्यक्ति के हमारे टूल्स में क्रांतिकारी बदलाव आया है। यहीं लघुकथा की भी नवीनता है। इस नवीनता को बनाए रखने की जिम्मेदारी हमेशा नयी पीढ़ी को निभानी होती है। याद रहे, हर पीढ़ी कभी न कभी नयी ही रही होती है।
बलराम अग्रवाल
वरिष्ठ साहित्यकार, दिल्ली
मोबाइल : 8826499115
संपादकीय
गागर में सागर
लघुकथा हिन्दी साहित्य की मौलिक विभा है। प्रश्न उठता है कि लघुकथा कम समय में प्रसिद्धि तथा ऊंचाइयों (ऊंचाई) के शिखर को क्यों छू रही है हां. इसके मुख्य कारण, लघु यानी आकार में छोटी होना, उच्च शिक्षित के साथ साधारण रहे-लिखे पाठकों के मनोरंजन के साथ आम आदमी की पीड़ा, घुटन, संत्रास, क्षोभ, व्यायता टूटन और आकोश को सहज, सरल शब्दावली द्वारा कम शब्दों में व्यक्त कर पाठक को सोचने पर मजबूर करना है।
लघुकथा वर्तमान परिवेश, मानव मन की असंवेदनशीलता, विकासशील युग के बढ़ते मंचेकरण का एहसास दिलाती है। मनुष्य के सामाजिक जीवन के असामंजस्य, व्यक्ति के संघर्ष, मजबूरियों, आकांक्षाओं एवं आपसी द्वेष, मतभेद को बड़ो सूक्ष्मता से दशांकर जहां व्यक्ति के मन को छू लेती है वहीं उसके हृदय को विचलित करने का काम भी तो करती है।
जीवन को आपाधापी में गलाकाट स्पर्धा के चलते नौकरी, व्यावसायिकता के के कारण मनुष्य के पास वक्त हो नहीं है। इसी कारण उपन्यासों, लंबी-लंबी कहानियों को पढ़ने का वक्त और धैर्य भी तो नहीं।
लघुकथा लेखकों के निरंतर प्रयास, नित नई लघुकथाओं पर पुस्तकों तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं द्वारा लघुकथा विशेषांकों का प्रकाशन लघुकथा को प्रसिद्धि दिलाने में मील के पत्थर साबित हुए हैं।
कसा हुआ कथ्य, व्यर्थ के चित्रण को टालकर सहज, सरल, संक्षिप्त, संवेदनात्मकता से किसी घटना के बिम्ब का चित्रण लघुकथा की विशेषता है। लघुकथा अपनी लघुता में बहुत कुछ समेटकर संकेतों के माध्यम से मनुष्य को दर्पण दिखाती है। केवल कुछ हो पंक्तियों में लेखक अपने (समूचे) संपूर्ण अनुभव, सोच को अभिव्यक्त कर जनमानस की व्यथा को चिंतन स्वरूप प्रस्तुत करता है। लघुकथा के इन्हीं विशेष गुणों के कारण पाठक बरबस ही आह! वाह!... कहने को बाध्य हो जाता है।
इस साझा संकलन में पुरूष एवं महिला दोनों ही लघुकथाकारों को शामिल किया है। पुस्तक का विषय स्वतंत्र रखा है, कारण रचनाओं में नवीनता, भिन्नता एवं आकर्षण बना रहे। एक ही विषय पर विभिन्न लेखकों न्दारा लिखने में एक बात बार बार दोहराई जा सकती है। इस संकलन में जहाँ वरिष्ठ साहित्यकारों की रचनाएं है वहीं नवोदित लेखकों को स्थान दिया है। उद्देश्य है वरिष्ठ लेखकों संग अपनी रचना को छपा देख नए लेखक पोत्साहित होकर उत्साह एवं उर्जा के साथ अपनी कलम चलाएं। साथ ही वरिष्ठ लेखकों की रचनाओं को पढ़कर लघु कथा विधा को सीखें तथा लेखन कार्य में सतत सक्रिय रहें।
इस संकलन हेतु हमने तकनीक के वरदान स्वरूप मिले विविध माध्यमों, जैसे -फेसबुक, मैसेंजर, वाटस् ऐप, ई-मेल आदि का उपयोग कर भारत के विभिन्न प्रांतो सहित विदेशों से भी कुछ लोगों से संपर्क साधकर उन्हें जोड़ा है। आदरनीय श्री बलराम सर का फोन नंबर भी इसी तरह हासिल किया। मेरे एक फोन कॉल पर उन्होंने पुस्तक की संकल्पना सुन कर आतिथ्य स्वीकार कर अपना मनोगत तथा लघुकथा अल्पावधि में ही भेज दी। सर की विनम्रता तथा बड़प्पन के लिये हम तहे दिल से उनका शुक्रिया अदा करते हैं। आशा है सर का आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन भविष्य में भी हमें इसी तरह मिलता रहेगा। आ. श्री विवेक अग्रवाल सर वरिष्ठ साहित्यकार होने के बावजूद मेरे एक फोन पर उन्होंने अपनी लघुकथा फौरन भेज दी। जिसके लिये उनका तहे दिल से शुक्रिया। पुस्तक में शामिल वरिष्ठ साहित्यकार, लेखक, नवोदित लेखक जिन्होंने हम पर विश्वास कर हमारी बात का मान रख इस संकलन हेतु अपनी रचनाएं भेजी, उन सभी का तहे दिल से शुक्रिया । सरल, आकर्षक, अद्भुत, कर्मठ व्यक्तित्व की धनी प्रकाशक रीमा दीवान चड्ढा जी के सतत परिश्रम, सहयोग, प्रयास एवं मार्गदर्शन के बिना पुस्तक का वजूद असंभव था। रीमा जी का दिल की गहराईयों से शुक्रिया। उपसंपादक दिव्या शर्मा जी के सतत सहयोग के लिए उन्हें तहे दिल से शुक्रिया कहती हूं। डिजाईनर प्रशांत वानखेड़े जी के सहयोग एवं प्रयास से इस पुस्तक की संकल्पना साकार हुई। प्रशांत जी के हम शुक्रगुजार हैं।
अतिसुंदर एवं आकर्षक मुखपृष्ठ जो कि कोलाज पेंटिंग है, इसे अंजाम देने वाली हरफनमौला एवं वरिष्ठ कलाकार मिली विकमशी जी का तहे दिल से शुक्रिया। इस पुस्तक के मूर्त रूप लेने में जिन-जिन लोगों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग प्राप्त हुआ उन सभी का तहे दिल से शुक्रिया।
पुस्तक में सम्मिलित लघुकथाकारों की प्रसव वेदना से जन्मी लघुकथाएँ मम सामयिक लघुकथा साझा संकलन में संकलित देखकर गर्व और खुशी के साथ-माथ आप सबकी रचनाओं का यह गुलदस्ता आपको समर्पित करते हुए आपकी नज़र करती हूं।
आप खुद फैसला करें कि ये लघुकथाएँ--
सतसैया के दोहरे, ज्यों नावक के तीर।
देखन में छोटे लगे, घाव करे गंभीर।।
की तरह हैं या नहीं।
शगुफ्ता यास्मीन काजी
साहित्यकार
नागपुर (महाराष्ट्र)
मोबाइल: 9545588182
उप संपादकीय
लघुकथा के स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी आवश्यक है
पंचभूत से जग बना
पंचतत्व से शरीर
पंच ही तत्व हैं लघुकथा के
याद रखना इसे जरूर
कथानक हो या
कथ्य इसका
शिल्प हो या शैली
पंच लाइन न शामिन हो
रह जाए यह अकेली
शीर्षक में भी पाँच भाव हो
पाँच ही इसकी सहेली
कल्पना, मार्मिकता, यथार्थ
संदेश और विसंगतियाँ बने हमजोली
पंचमेल जब हो एकत्रित
तब बनती है बात
पंच तत्व का महत्व जान लो
पंच का करो गुणगान
पंच फैसला तभी करेंगे
जब पंच में बनोगे निपुण
लघुकथा में सम्मिलित घटक और तत्व को समझाने का सूक्ष्म प्रयास मैंने स्वलिखित इन पंक्तियों द्वारा किया है। वास्तव में लघुकथा एक ऐसी औषधि है जो आकार में छोटी होकर भी रोग को नष्ट करने का गुण रखती है।
लघुकथा सतत प्रयास का फल है जो लेखक की एकाग्रता व गंभीरता के परिणामस्वरूप ही पकता है। जल्दबाजी में यदि इस फल को तोड़ लिया जाए तो वह कच्चा और बंम्वाद रहता है।
लघुकथा विधा को समझने के लिए धैर्य और समर्पण भाव का होना आवश्यक है। यह बात सत्य है कि लेखन नैसर्गिक प्रतिभा होती है किन्तु विधा विशेष को अंगीकृत करने के लिए उस विधा के आधारभूत सिद्धानों को समझना आवश्यक है। मेरे विचार से, "लघुकथा का पोषण गर्भ में पल रहे शिशु की तरह करना चाहिए ताकि जब उसका जन्म हो, वह स्वस्थ हो कुपोषित नहीं।"
प्रत्येक लेखक के लिए उसकी रचना, उसके शिशु की तरह होती है जिसे वह प्रेम करता है लेकिन क्या कोई भी लेखक अपने शिशु को कुपोषित व अल्पविकसित देखना चाहेगा?
'सृजन बिम्ब सम-सामयिक लघुकथा संकलन', सृजन बिम्ब प्रकाशन का प्रथम लघुकथा संकलन है। इस संकलन में बलराम अग्रवाल, अशोक भाटिया और कमलेश भारतीय जैसे स्थापित नामों के साथ लघुकथा के अन्य सितारे भी अपनी चमक बिखेर रहे हैं।
लघुकथा क्या है, यह समझने के लिए संकलन में उपस्थित वरिष्ठों की कथाओं को पढ़कर मनन किया जा सकता है। नवोदित रचनकारों को स्थान दिया गया है जिससे नवोदित रचनाकारों को प्रोत्साहन मिले और वे लेखन में अपने लिए जमीन तलाश सकें।
इस संकलन में सम्मिलित कथाओं को पढ़कर पाठकों को निराशा नहीं होगी ऐसा मुझे विश्वास है।
अंत में मैं संकलन में प्रकाशित सभी रचनाकारों को शुभकामनाएँ प्रेषित करती हूँ।
- आपकी
दिव्या शर्मा
कहानीकार एवं स्क्रिप्ट राइटर
गुडगाँव (हरियाणा)
मो. 7303113924
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