एकांतवास में जिंदगी / अशोक लव
कथाकार : अशोक लव
ISBN 978-93-91414-70-2
कुल पृष्ठ : 112
मूल्य-300/-(पेपरबैक)
प्रथम संस्करण - 2021
प्रकाशक :
सर्व भाषा ट्रस्ट
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Rajapuri, Main Road
New Delhi - 110059
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लघुकथा - क्रम
□ भूमिका : योगराज प्रभाकर
□ मेरी लघुकथाएँ : अशोक लव
1. बड़-बड़ दादी
2. धुलाई युद्ध
3. स्वप्नों पर ग्रहण
4. और क्या जीना
5. मृत्यु का भय
6. जीवन-स्पंदन
7. स्व- आहुति
8. इकलौता मास्क
9. नया दिन नए प्रश्न
10. मातृरूपा
11. योद्धा गाथा
12. श्रद्धा
13. चलें गाँव
14. संकटमोचक
15. मेरे शहर के बच्चे
16. चिंता मत कर
17. पश्चाताप
18. विवशता
19. निर्लज्ज
20. प्रश्न ही प्रश्न
21. पापा तो पापा होते हैं
22. पाषाण प्रतिमाएँ
23. चीनी फोबिया
24. दबंग
25. अविश्वसनीय
26. कूड़ा बन जाना
27.नाम रोग वायरस
28.देश बचना चाहिए
29. लॉकडाउन वैराग्य
30. उपचार
31. फ्री मास्क
32. आशाएँ
33. भगवान सुनते हैं
34. वे पचपन दिन
35. संक्रमण दंश
36. आपके घर का हाल
37. असामान्य
38. गलियों में शिक्षक
39. अलमारी खुली
40. शिवपूजन
41. कछुआ और जलेबियाँ
42. सृष्टि का अंत
43. किरणों की आहटें
44. भयभीत
45. दो ईमानदार
46. बड़ा संकट
47. दूरी हट गई
48. ऑनलाइन चैन कहाँ
49. असहाय न्यायालय
50. निश्चित क्या है
51. मानवता
52. वह कौन थी
53. रुके या जाएँ
54. परधानगी
55. कौन-कौन गया
56. पैंतीस वर्षों के पश्चात्
57. भक्ति-भाव
58. सौम्या ठीक कहती है
59. पंचायत भवन
60. न लकड़ी न अग्नि
एकांतवास में जिंदगी : आलेख
□ केशव मोहन पांडेय
□ डॉ. मनोज तिवारी
□ यशपाल निर्मल
मेरी लघुकथाएँ
'एकांतवास में जिंदगी' की लघुकथाएँ आपके समक्ष हैं। इन्हें पढ़ते समय आपको लगेगा कि ये आपके भोगे अनुभवों की लघुकथाएँ हैं। यही सत्य है। ये लघुकथाएँ जिस काल खंड की हैं, उसे हम सबने देखा, भोगा और पल-पल जिया है। हँसती खेलती, स्वच्छंद विचरती जिंदगी मृत्यु के भय के कारण एकाएक कमरों में बंद हो गई थी। एकांतवास करने को विवश हो गई थी। इस एकांतवास की घुटन और असह्य वेदना अभी भी सिहरन उत्पन्न कर देती है। एकांतवास की जिंदगी सन् 2020 और 2021 के लॉकडाउन तक रही थी। हमने ऐसी जिंदगी की कल्पना नहीं की थी। पूरा विश्व कोविड-19 के आतंक के कारण घरों में बंदी हो गया था। यह वैश्विक संकट अभी भी बना हुआ है। कोई नहीं जानता कि यह स्थिति कब तक बनी रहेगी?
कोविड- 19 ने मनुष्य को उसकी लघुता का आभास करा दिया है।
'एकांतवास में जिंदगी' की लघुकथाओं के पात्रों ने इस परिवर्तित सामाजिक परिस्थितियों से जन्म लिया है। कोविड- 19 ने हमारी जीवन-शैली परिवर्तित कर दी है, हमारा रहन-सहन, खान-पान सब बदल गया है। पारिवारिक -सामाजिक संबंधों की परिभाषाएँ बदल गई हैं। सुख-दुःख बाँटने के ढंग बदल गए हैं। उत्सव-त्योहार मनाने के ढंग बदल गए हैं। राखी, भैया दूज आनलाइन होने लगे हैं। शोकसभाएँ ऑनलाइन होने लगी हैं। विद्यालयों- महाविद्यालयों के विशाल भवनों सन्नाटा पसरा पड़ा है। घर-घर कक्षाएं बन गए हैं, घर-घर कार्यालय बन गए हैं। घर-घर में एकांतवास भोगती जिंदगी के बहुरूपों ने इन लघुकथाओं में साकार रूप लिया है।
वर्ष 2020 और 2021 के कोरोना-लॉकडाउन एकांतवास काल-खंड में मैंने अनेक लघुकथाएँ लिखी हैं। 'एकांतवास में जिंदगी' से इनके प्रकाशन की प्रक्रिया आरंभ हो गई है। शीघ्र ही अन्य संग्रह भी प्रकाशित होंगे। कम शब्दों में लघुकथा विधा के शास्त्रीय पक्षों का निर्वाह करते हुए लघुकथा लिखने हेतु अतिरिक्त कौशल और सतर्कता की आवश्यकता होती है। चालीस से अधिक वर्षों से इस विधा में सृजन करते रहने पर भी आज भी वैसी ही सतर्कता से लिखता हूँ। इस संग्रह की लघुकथाएँ लिखते समय कोविड-19 का प्रभाव भी मन-मस्तिष्क पर छाया हुआ था। यह अद्भुत सृजनकाल था। सामाजिक जीवन से कटकर स्वयं तक सीमित रहने की विवशता, घर घर के दरवाजे खटखटाती मृत्यु की दस्तकें, प्रत्येक दूसरे दिन किसी संबंधी, परिचित और साहित्यकार के निधन की सूचनाएँ, स्वास्थ्य सेवाओं का चरमरा जाना! 'बड़ बड़ वादी' से लेकर 'न लकड़ी न अग्नि' तक की समस्त लघुकथाएँ कोविड-19 की लघुकथाएँ हैं।
'बुलाई युद्ध' का वृद्ध पत्यूष कोरोना को मारने के लिए फल सब्जियों को रगड़ रगड़ कर बोता है। 'रखानों पर ग्रहण के युवा दंपत्ति मृत्यु की कल्पनाओं में डूबे है। और क्या जीना की स्वार्थी वृद्धा नारायणी को पति की मृत्यु की चिंता नहीं है। 'मृत्यु का भय में कुत्ते कोरोना से डरकर कार में छिप जाते हैं। जीवन स्पंदन' की अंजु अपने मंगेतर को मृत्यु के मुख से लौटते देखकर आश्चर्यचकित है 'स्व आहुति' की रश्मि पति की कोरोना से रक्षा के लिए अपनी आहुति देने को तैयार है। 'इकलौता मास्क' शोबित और नवनीता की आर्थिक विवशता की लघुकथा है। झाडू बरतन करने वाली शारदा के समक्ष लॉकडाउन का 'नया दिन नए प्रश्न' लेकर आता है। भूख के कगार पर पहुंचे शिविंदर के परिवार के लिए गिरिजा देवी 'मातृरूपा' बनकर आती है। 'योद्धा गाथा' का रामसुख शुक्ला बदले घुटने की पीड़ा सहकर बाज़ार से राशन लाते लाते रो पड़ता है। पंडित सुखपाल के लिए भोजन लेकर आई धनवंती भगवान का रूप बन जाती है। 'चले गाँव' लघुकथा में मज़दूर कुणाल गाँव लौटने के लिए बस में बैठ जाता है और एकाएक बस से उतरकर विषम परिस्थितियों का सामना करने का संकल्प करता है। इसी प्रकार अन्य लघुकथाओं पात्र भी कोविड-19 से प्रभावित पात्र हैं।
कोरोना की दूसरी लहर का दंश प्रत्येक परिवार ने भोगा था। कोरोना टेस्ट की सुविधाएँ नहीं थीं, अस्पतालों में न बेड थे, न वेंटीलेटर। ऑक्सीजन और दवाओं की कालाबाजारी हो रही थी। दाह-संस्कार के लिए लकड़ियों तक की कालाबाज़ारी हो रही थी। शवों को गंगा में बहाया जा रहा था। मृत्यु के इन तांडवों को मैंने लघुकथाओं का रूप प्रदान किया है। कोविड-19 के काल में सर्जित और प्रभावित साहित्य पर जब भी शोध होगी, इन लघुकथाओं का संदर्भ अवश्य दिया जाएगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
इन लघुकथाओं के सृजन-काल 2020-21 में पत्नी नरेश बाला लव ही मेरे संग थीं। हम दोनों ने लॉकडाउन और कोरोना-19 की परिस्थितियों को संग-संग जिया था। कमरों में बंद जिंदगी की घुटन को संग-संग महसूस किया था। कोविड-19 की त्रासदियों पर संग-संग चर्चाएँ की थीं। इन लघुकथाओं के सृजन में उनकी अप्रत्यक्षतः महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। अपने 75वें जन्मदिन पर उन्हें यह मेरी साहित्यिक भेंट है।
13 नवंबर, 2021 अशोक लव
अशोक लव
जन्म 13 अप्रैल 1947 (सरकारी)।
उनकी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा कैथल (अब हरियाणा, तब पंजाब) में हुई। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय और हि.प्र. विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने नेशनल म्यूज़ियम, नई दिल्ली से 'आर्ट एप्रीसियेशन' कोर्स किया। उनकी प्रथम रचना सन् 1963 में प्रकाशित हुई थी, वे तब स्कूल में पढ़ते थे। उन्होंने तीस वर्ष तक अध्यापन किया। वे पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य करते रहे। उनकी साहित्यिक और शैक्षिक लगभग 150 पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनके उपन्यास 'शिखरों से आगे पर पी-एच.डी और एम. फिल. हुई है। उनके कविता-संग्रह 'लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान' पर एम. फिल. हुई है। उनके समग्र साहित्य पर भी पी-एच. डी. हुई है।
चर्चित पुस्तकें
1. हिंदी के प्रतिनिधि साहित्यकारों से साक्षात्कार ( उपराष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा द्वारा लोकार्पित) 2. लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान (कविता संग्रह, श्रीमती शीला दीक्षित, मुख्यमंत्री दिल्ली द्वारा लोकार्पित) 3. शिखरों से आगे उपन्यास ( इसका डोगरी में अनुवाद यशपाल निर्मल और भोजपुरी अनुवाद केशव मोहन पांडेय द्वारा किया गया। असमिया अनुवाद डॉ. माखन लाल दास द्वारा किया जा रहा है।) 4. सलाम दिल्ली ( लघुकथा-संग्रह), प्र. संस्करण 1991, द्वितीय संस्करण 2021, 5 अनुभूतियों की आहटें (कविता-संग्रह), 6. पत्थरों से बँधे पंख (कहानी-संग्रह), 7. एकांतवास में जिंदगी (लघुकथा-संग्रह 2021)
बाल गीत
1. आइसक्रीम के बादल, 2. पापा जी की रेल, 3. पानी बरसा झमाझम, 4. झूमें नाचें गाएँ, 5. खोलो अपने बस्ते जी, 6. फुलवारी, 7. महक
संपादित पुस्तकें
1. बंद दरवाज़ों पर दस्तकें, खिड़कियों पर टँगे लोग (लघुकथा-संग्रह), टूटते चक्रव्यूह, हथेलियों पर उतरा सूर्य (कविता संग्रह), प्रेमचंद की सर्वोत्तम कहानियाँ, प्रेमचंद की लोकप्रिय कहानियाँ, संक्षिप्त रामायण, संक्षिप्त महाभारत, बुद्धचरित।
विविध विषयों पर पुस्तकें
सर्वजन हिताय श्रीमद्भगवदगीता, दि श्रीमद्भगवदगीता जीवन दिशा, चाणक्य नीति, युग प्रवर्तक महापुरुष, युगनायक महापुरुष आदि ।
अशोक लव पर पुस्तकें
1. अशोक लव की कहानियों में स्त्री विमर्श (केशव मोहन पाण्डेय), 2. साहित्यकार अशोक लव बहुआयामी हस्ताक्षर (डॉ. ब्रज किशोर पाठक), 3. अशोक लव और सलाम दिल्ली (डॉ. अमरेंद्र और डॉ. आभा पूर्वे)
अशोक लव अनेक पत्र-पत्रिकाओं के संपादक रहे। उनकी रचनाएँ सौ से अधिक पुस्तकों में संकलित हैं। वे सर्वभाषा ट्रस्ट (नई दिल्ली) और अंतरर्राष्ट्रीय हिंदी समिति अमेरिका (दिल्ली, एन.सी.आर.) के अध्यक्ष, राष्ट्रीय सृजन अभियान और एज वेल एसोसियेशन के संरक्षक, सुमंगलम के संस्थापक महासचिव हैं।
अशोक लव को 70 से अधिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। उन्हें प्राप्त प्रसिद्ध सम्मान हैं- भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान, सुभद्रा कुमारी चौहान सम्मान, क्रिएटिव फाउंडेशन कबीर सम्मान, लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड, डॉ. विजयेंद्र स्नातक सम्मान, मानवाधिकार सहस्त्राब्दी सम्मान, राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्त्राब्दी सम्मान, सरस्वती आराधक पुरस्कार, विद्यावाचस्पति, विद्यासागर, साहित्य रत्न ( सम्मानोपाधि), पत्रकार रत्न ।
संपर्क : अशोक लव
फ़्लैट - 363, सूर्य अपार्टमेंट, सेक्टर-6 द्वारका,
नई दिल्ली-110075
मोबाइल : +91-8920608821
ई-मेल : kumar1641@gmail.com
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