लघुकथाओं का वृहद संसार / डॉ. नीता त्रिवेदी (सं.)

लघुकथा-समीक्षा : लघुकथाओं का वृहद संसार 

                          (समीक्षात्मक आलेख)

संपादक : डॉ. नीता त्रिवेदी 

ISBN : 978-81-930537-3-7 

© डॉ. नीता त्रिवेदी 

प्रथम संस्करण : 2022 

प्रकाशक : रैना बुक सेन्टर, उदयपुर (राज.)

मूल्य : ₹ 500/- (पेपरबैक)

सम्पादकीय 

आज लघुकथा पूर्ण रूप से एक स्वतन्त्र विधा के रूप में प्रतिष्ठित हो चुकी है। आठवें - नवें दशक में संघर्ष के साथ हिंदी लघुकथा ने अपनी स्थिति को साहित्य जगत में स्थापित किया है। बीसवीं सदी में लघुकथाकारों की एक सशक्त पीढ़ी ने अपनी लेखनी के माध्यम से इस विधा को बहुत समृद्ध किया है। माधव राव सप्रे की 'एक टोकरी भर मिट्टी' से प्रारम्भ होती लघुकथा अद्यतन अपनी एक समृद्ध परम्परा के साथ साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान बना रही है। लघुकथा परम्परा के प्रारम्भिक लघुकथाकारों ने साहित्य की अन्य विधाओं के साथ-साथ जाने-अनजाने लघुकथाओं की भी रचना की क्योंकि इनकी रचनाओं को लघुकथा का नाम भी बाद में दिया गया। स्वयं लेखक भी उन रचनाओं को कहानी, छोटी कहानी ही मानते रहे ।

इस प्रकार जाने-अनजाने साहित्य के आँगन में लघुकथा के बीज अंकुरित हो रहे थे। इन्हें अपनी लेखनी से सींचने का प्रयास जिन कथाकारों ने किया उनमें प्रमुख हैं- रमेश बतरा, बलराम अग्रवाल, कमल चोपड़ा, भगीरथ परिहार, कृष्ण कमलेश, सतीश दुबे, बलराम, युगल, विक्रम सोनी, नरेन्द्र कोहली, चित्रा मुद्गल, सूर्यकान्त नागर, जगदीश कश्यप, सतीश राजपुष्करणा, पृथ्वीराज अरोड़ा, अशोक भाटिया, सुकेश साहनी, असगर वजाहत, दामोदर खडसे, प्रेम जनमेजय, रामेश्वर कम्बोज, सुदर्शन वशिष्ठ, विष्णु नागर, माधव नागदा, डॉ. रामकुमार घोटड़, हरिशंकर शर्मा, सुभाष नीरव, अमरीक सिंह दीप, जसवीर चावला, अवधेश कुमार, चैतन्य त्रिवेदी, एन. उन्नी, सत्यनारायण, विपिन जैन, पूरन मुद्गल, योगेन्द्र दत्त शर्मा, प्रेम कुमार मणि, अशोक गुप्ता, शैलेंद्र सागर आदि । इन सभी लघुकथाकारों ने लघुकथा को रचनात्मक ऊँचाइयाँ प्रदान की।

आज जो यह लघुकथा का विशाल वृक्ष लहलहा रहा है उसमें जड़ों की तो मुख्य भूमिका है ही उस तने का भी अहम योगदान है जो इस विशाल, घने कथा को मजबूती से थामे हुए है, जो लघुकथाओं को लोक विधा बनाते हुए जन वृक्ष तक पहुँचाता है और इसे लोकप्रिय बनाता है। यह दायित्व निभाया है-लघुकथा पर केन्द्रित विशेषांक, लघुकथा पत्रिकाओं तथा इन सभी के साथ आयोजित लघुकथा केन्द्रित संगोष्ठी एवं प्रतियोगिताओं ने । लघुकथा को एक विधा के रूप में पहला बड़ा मंच 1973 में तत्कालीन सम्पादक और प्रसिद्ध कथाकार कमलेश्वर ने 'सारिका' पत्रिका के माध्यम से उपलब्ध कराया। उन्होंने 1973 और फिर 1975 में एक और लघुकथा विशेषांक निकाला। तब से आज तक कई पत्रिकाओं में लघुकथा विशेषांकों ने इस विधा के उन्नयन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें से कुछ प्रतिनिधि विशेषांक हैं— 'सारिका' (दिल्ली 1973, 1975, 1984, 1986 आदि), ‘साहित्य निर्झर' ( चंडीगढ़ 1974), 'शब्द' (लखनऊ 1975), 'समग्र' (दिल्ली 1978), 'वर्ष वैभव' (मुम्बई 1980), 'कथाबिम्ब' (मुम्बई 1981 ), 'दिशा' (पटना 1986), 'सम्बोधन' (काकरोली राजस्थान 1988), 'समान्तर' (म. प्र. 2001), 'पुनः' (पटना 2002), 'शीराजा' (जम्मू 2005) 'नई धारा' (पटना 2009), 'हरिगन्धा' (पंचकूला 2010-11), 'सरस्वती सुमन' (देहरादून 'हिंदी चेतना' (कनाडा 2012), 'शोध - दिशा' (दिल्ली 2012, 15, 16), (रायपुर 2015), 'मधुमती' (उदयपुर 2016), 'साहित्य अमृत' (दिल्ली 'साहित्य त्रिवेणी' (कोलकाता 2017), 'आधुनिक साहित्य' (दिल्ली 2018), 'परिन्दे' (दिल्ली 2019 ) आदि । लघुकथा को पल्लवित पुष्पित करने में इन विशेषांकों का महत्त्वपूर्ण योगदान है। वर्तमान समय में 'लघुकथा डॉट कॉम' (मासिक वेब), 'लघु आघात' (त्रैमासिक), 'संरचना' (वार्षिकी, दिल्ली), 'दृष्टि' (अर्धवार्षिक, गुड़गाँव), 'लघुकथा कलश' (अर्धवार्षिक, पटियाला), 'क्षितिज' (इन्दौर) आदि लघुकथा पत्रिकाओं ने लघुकथा साहित्य को स्थापित करने में केन्द्रीय भूमिका निभाई है।

संघर्ष के दौर से लेकर आज एक लोकप्रिय विधा के रूप में अपनी पहचान पाने तक लघुकथा ने भी अपने आपको निरन्तर नए निकष पर परखा है और स्वयं की साबित भी किया है। समकालीन लघुकथाओं में आए परिवर्तन की पहचान का एक लघु प्रयास हमने भी प्रस्तुत पुस्तक के माध्यम से किया है। इस पुस्तक संकलित आलेख लघुकथा साहित्य के स्वरूप, परम्परा, विकास एवं महत्त्व पर अपनी आलोचनात्मक समीक्षा प्रस्तुत करते हैं। हिंदी कथा साहित्य में लघुकथा में का स्थान साथ ही लघुकथा साहित्य में महिला लघुकथाकारों तथा राजस्थान के कथाकारों की भूमिका पर भी प्रकाश डालते हैं । ये आलेख इक्कीसवीं सदी के लघुकथा साहित्य एवं साहित्यकारों की आलोचनात्मक दृष्टि, लघुकथा साहित्य में आए विमर्श के स्वर, लघुकथा साहित्य की भाषा और शैल्पिक नवाचारों साथ ही लघुकथा के सामाजिक सरोकारों, मानवीय मूल्यों, सांस्कृतिक संक्रमण, हास्य व्यंग्य एवं राजनीतिक दृष्टि पर समीक्षात्मक शोध प्रस्तुत करते हैं ।

मैं इस पुस्तक के सभी आलेख लेखकों को हृदय से आभार ज्ञापित करती हूँ जिनके रचनात्मक सहयोग से यह पुस्तक अपना रूप आकार ले पाई है। लघुकथा साहित्य के क्षेत्र में यह पुस्तक शोधार्थियों, समीक्षकों एवं विद्वानों के लिए कितनी उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण रहेगी इसके आकलन का दायित्व में सुधी पाठकों को सौंपती हूँ। एक बार पुनः इस पुस्तक के प्रकाशन में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष जिनकी भी भूमिका रही है, सभी का हृदय से धन्यवाद !

आभार !

- डॉ० नीता त्रिवेदी

अनुक्रम

1. खड़ी बोली का कथा- गद्य और लघुकथा का पुनर्प्रस्फुटन - डॉ. बलराम अग्रवाल

2. मुट्ठी भर आसमान के लिए: लघुकथा में स्त्री विमर्श-भगीरथ परिहार

3. लघुकथा : संश्लिष्ट सृजन - प्रक्रिया-डॉ. कमल चोपड़ा

4. आधुनिक हिंदी लघुकथा की अवधारणा, विकास एवं परिभाषा- डॉ. रामकुमार घोटड़ 

5. लघुकथाओं में प्रतिबिम्बित मानवीय संवेदनाएँ - डॉ. नीतू परिहार

6. संवेदनाओं की सुगन्ध से महकती लघुकथाएँ - डॉ. नवीन नन्दवाना

7. लघुकथा की भूमिका और माधव नागदा की संवेदना- डॉ. आशीष सिसोदिया

8. लघुकथा साहित्य : कुछ विचार-बिन्दु - डॉ. कुलवन्त सिंह

9. व्यवस्था की विसंगतियों की धारदार अभिव्यंजना असगर वजाहत की लघुकथाएँ — डॉ. प्रीति भट्ट

10. सामाजिक सरोकारों का आईना : बोनसाई - डॉ. नीता त्रिवेदी

11. घाव करे गम्भीर : सामाजिक विसंगतियों को अभिव्यक्त करती लघुकथाएँ - डॉ. ममता पानेरी

12. पद्मजा शर्मा की लघुकथाओं में मानवीय संवेदना - डॉ. उषा शर्मा 

13. संवेदना और सामाजिक समरसता से जुड़ी लघुकथाएँ : फूलों वाली दूब- डॉ. शगुफ्ता सैफी 

14. लघुकथाकार गोपी भैया कहिन ( उवाच ) - शेख शहजाद उस्मानी

15. लघुकथा : हास्य एवं व्यंग्य - रोहित बंसल

16. हिंदी के लघुकथाकार एवं उनकी विशाल कथादृष्टि- बबीता गुप्ता

17. हिंदी लघुकथा : लघु कलेवर में व्याप्त गुरुत्तर वैश्विक मूल्य-डॉ. ज्योत्सना स्वर्णकार

18. हिंदी लघुकथा : परिचय, स्वरूप और परिदृश्य-तरुण पालीवाल, शोधार्थी

19. राजस्थान की लघुकथाओं में समाज-डॉ. रेखा खराड़ी 

20. लघुकहानी के सशक्त हस्ताक्षर रघुनन्दन त्रिवेदी- डॉ. कान्ति लाल यादव

21. लघुकथा साहित्य में विमर्श के स्वर - डॉ. कविता यादव 

22. लघुकथा एवं राजस्थान का लघुकथा साहित्य : संक्षिप्त परिचय- किशन दान

23. लघुकथा साहित्य का स्वरूप एवं विकास

- चन्द्रेश साहू 

24. लघुकथा साहित्य : सामाजिक सरोकार- कु. मोनिका पोपट काँबळे 

25. लघुकथाओं में पारिवारिक जीवन मूल्य - बाबुराम

26. लघुकथाओं में सांस्कृतिक जीवन मूल्य – भरत कुमार

27. हिंदी साहित्य की एक नव सयानी विधा लघुकथा - हेमलता राव

28. हिंदी लघुकथाओं में परिवेशगत अनुशीलन – जीनत आबेदीन

29. हिंदी लघुकथा में व्यक्त व्यंग्य का धार्मिक स्वरूप- बजरंग लाल मीणा 

30. मो. मुइनुद्दीन अतहर की लघुकथाएँ : एक दृष्टि- जगदीश कुमार

31. हास्य एवं व्यंग्य से सराबोर लघुकथा साहित्य - गौरव शर्मा 

32. हिंदी लघुकथा साहित्य में राजस्थान के लघुकथाकारों की भूमिका - दौलतराम शर्मा

33. कमल चोपड़ा की लघुकथाओं में तत्कालीन समाज - पूजा व्यास

34. लघुकथा साहित्य को स्थापित करने में लघुकथा साहित्य सम्मेलनों भूमिका - पूनम परिहार

35. लघुकथाओं मे चित्रित नारी जीवन की यथार्थ अभिव्यक्ति-कविता कुमारी 

36. आधुनिक हिंदी कथा साहित्य में लघुकथा व पारिवारिक जीवन - शीशराम मीणा

37. पुष्पलता कश्यप की लघुकथाओं में सामाजिक चेतना- राजवीर सिंह गुर्जर

डॉ. नीता त्रिवेदी

26 जून, 1979, उदयपुर (राज.)

एम. ए. (हिन्दी), पीएच.डी., नेट।

प्रकाशन : पुस्तक कथाशिल्पी नरेन्द्र कोहली (2014), विश्व में राम ( 2021 )

विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तरर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं

में शोध आलेख प्रकाशित

अध्ययन-क्षेत्र : कथा - साहित्य, भक्तिकालीन काव्य, समकालीन कविता, लोक साहित्य एवं साहित्य और सिनेमा ।

सम्प्रति : सहायक आचार्य, हिन्दी विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.)

सम्पर्क : 501, रिद्धि-सिद्धि पार्क, न्यू नवरत्न कॉम्प्लेक्स, भुवाणा उदयपुर - 313001 (राज.)

दूरभाष : 9950960999

ई-मेल : nkntrivedi@gmail.com

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