तालाबंदी/सुरेश सौरभ (सं.)

लघुकथा-संकलन : तालाबंदी

संपादक  :   सुरेश सौरभ 

प्रकाशक :

Shwetwarna Prakashan 

232, B1, Lok Nayak Puram 

New Delhi-110041, INDIA 

Mobile: +91 8447540078

Email: shwetwarna@gmail.com Website: www.shwetwarna.com

Copyright Author

ISBN: 978-93-92617-92-8

लघुकथा-क्रम

1. पनाह - पवन शर्मा

2. पश्चाताप प्रवीण राही 

3. पेट का दर्द - केदार नाथ 'शब्द मसीहा'

4. गोली की भी बचत - केदार नाथ 'शब्द मसीहा' 

5. वो दहलीज - उमेश महदोषी

6. खुराक - गोविंद शर्मा 

7. अच्छी आदत - गोविंद शर्मा

8. मेहरबानी - बजरंगी लाल यादव

9. कृष्णावतार - बजरंगी लाल यादव

10. संस्कार - डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' 

11. असमानता - डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी

12. पहचान - अविनाश अग्निहोत्री

13. तीसरा आदमी - बलराम अग्रवाल 

14. विचार - विनियोजन- कान्ता रॉय

15. क्वारांटाइन - पुखराज सोलंकी

16. तालाबंदी - पुखराज सोलंकी

17. फरिश्ता - देवेन्द्रराज सुथार

18. ग़ुलाम - नज्म सुभाष

19. तब और अब - सतीश चंद्र श्रीवास्तव

20. सच - नीना सिन्हा

21. बचपन और बोहनी - प्रभुनाथ शुक्ल 

22. मालगाड़ी - रंगनाथ द्विवेदी

23. कर्त्तव्य - मीरा जैन

24. भेदभाव - मीरा जैन

25. बंधुआ मजदूर - प्रेरणा गुप्ता 

26. अधूरा वादा - रमाकान्त चौधरी

27. गाड़ी आएगी - चित्तरंजन गोप 'लुकाठी

28. सोचना - विचारना डॉ० प्रदीप उपाध्याय -

29. बोझा - डॉ० प्रदीप उपाध्याय

30. ठंडी बयार -- मधु जैन

31. चूड़ीवाले से मिला काबुलीवाला - गुलज़ार हुसैन

32. बस दो दिन और - डॉ. तबस्सुम 'जहाँ'

33. खयाल अपना-अपना --वीना सिंह

34. लॉकडाउन और क्रियाशीलता - डॉ. मृदुला शुक्ला 'मृदु'

35. जीत - विभा रानी श्रीवास्तव

36. होंगे कामयाब - पूनम ( कतरियार)

37. संग-संग - श्री मनोज

38. कोरोना की राखी - संतराम पाण्डेय

39. खून पसीना - संतराम पाण्डेय 

40. दर्द भरी ड्यूटी - सन्तोष सुपेकर

41. जरूरतों का कमाल - सन्तोष सुपेकर

42. स्त्री जाति बनाम जाति - डॉ. पूरन सिंह

43. बॉडी - सारिका भूषण

44. सब ठीक हो जाएगा ! - सारिका भूषण

45. रोटी का मुख - रमेश कुमार 'रिपु '

46. बहुत बड़े दानवीर - रमेश कुमार 'रिपु '

47. कोरोना के शोर में -रश्मि अग्रवाल

48. रिस्क - नीरज नीर

49. दो गज की दूरी - नीरज नीर

50. मरघट लीला - मोहन लाल यादव

51. अनुमति - मार्टिन जॉन

52. और वह बँट गया- मार्टिन जॉन

53. महादानी / आलोक चोपड़ा

54. दुनियादारी / नीना मंदिलवार 

55. आई लव कोरोना / माधवी चौधरी

56. संस्कारी बहू / अखिलेश कुमार 'अरुण'

57. जलते सपने / गरिमा सक्सेना

58. सेल्फी - अनिता रश्मि

59. मानवता की मौत - नृपेन्द्र अभिषेक नृप

60. विरोध- ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' 

61. निकासी - डॉ. रंजना जायसवाल

62. अंतिम दर्शन - राम करन

63. बेबसी - राजेन्द्र वर्मा 

64. कीचड़ में कमल - मिन्नी मिश्रा

65. लॉकडाउन के घुसपैठिये - हरभगवान चावला

66. दीये - हरभगवान चावला

67. पैसे की सेवा - सुरेश सौरभ 

68. पुराने पाप - सुरेश सौरभ

संपादक की ओर से

सकारात्मकता बनाम नकारात्मकता

कोरोना काल का, यह लघुकथाओं संग्रह 'तालाबंदी' आप को सौंप कर वही सुकून महसूस कर रहा हूँ, जो एक माँ को, अपना बच्चा जनने के बाद होता है। किसी रचनाकार को सृजन का आनंद, किसी माँ की प्रसव वेदना-सा ही होता है, जो गहरी दर्द टीस के बाद स्वर्गीय सुख का सुखद अहसास कराता है। कोरोना काल की सैंकड़ों त्रासदियाँ हैं, सब को गिनाऊँगा, तो तमाम पृष्ठ काले होते चले जाएँगे। एक तरफ जहाँ चुनाव में नेता रैलियाँ कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर आम आदमी, सरकार की तमाम पाबन्दियों की, मुसीबतों से जूझ रहा था, एक ओर जहाँ बगैर किसी तैयारी के रेल, बस व रोजगार के सब साधन बंद करके गरीबों मजदूरों और उनके बच्चों को सड़कों पर मरने और संघर्षों के लिए छोड़ दिया गया, वहीं दूसरी ओर अमीर बच्चों को बाइज्जत एसी बसों से वापिस लाया जा रहा था। अस्पतालों में जीवन रक्षक दवाओं के अभाव में, जहाँ श्मशान घाटों पर लाशों की कतारें थीं, वहीं कई नदियों में व उनके किनारों पर मुर्दों के ढेर पर ढेर लग रहे थे, तिस पर सरकारी अमला सत्ता की नाकामियों को छिपाने के लिए, लाशों को छिपाने की नाकाम कोशिश में लगा रहा। कहीं ट्रेनें रास्ता भूली.... कहीं मजदूरों पर सेनिटाइजर की जगह बेरहमी से कीटनाशक डाल कर अमानवीयता की सारी हदें पार कीं गई, कहीं एक समुदाय को कोरोना म साबित करने की, बिकाऊ गोदी मीडिया के घरानों से साम्प्रदायिक घटिया सामग्री दर्शकों को दिन-रात परोसी गई, तो कहीं सत्ता अपनी असंवेदनशीलता और नाकामियों को छिपाने के लिए, ताली-थाली बजवाने और दीये जलवाने के आयोजन पूरे देश में कराती रही। एक तरफ कुछ जिम्मेदार लोग सरकार की संवेदनहीनता की समीक्षक नाटुकार ताली थाली बजा कर सरकार की नाकामियों पर पर्दा डालने की पुरजोर कवायद में लगे हुए थे. प सच को समझ को झुकने वाले विग्ले कलमकार है। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने कभी कहा--साहित्य समाज का दर्पण होता है। तो क्या साहित्यकार का यह दायित्व नहीं कि बेलाग होकर साहित्य के दर्पण को मस्चाई और ईमानदारी से लोगों के सामने रखे, जो लोग सरकार की समीक्षा को नकारात्मकता की संज्ञा देते हैं, मैं हूँ, उनके दृष्टिकोण को संकुचित एक और किन्ही पूर्वा में यति ही कह सकता है। इस मामले में गोला गोकर्णनाथ के कति रमाकान्त चौधरी ने तो सरकार की समीक्षा में कविता लिखी यथा "जब देश जल रहा हो तो दिया जलाने की जरुरत क्या है/ हसू ये सब को बनाने की जरूरत क्या है।" मेरी समझ सकारात्मक का पक्ष वह है, जो समाज का हित साध रहा है, समाज की भलाई कर रहा है या समाज की भलाई के लिए सत्ता पक्ष को पल-पल सचेत कर रहा है।

अगर समाज और सरकार का कोई नकारा अमला है, वह जनता का हित करने में हीला-हवाली कर रहा है, या किसी न किसी तरह के अपने निजी स्वार्थो के कारण जनता के हितों को नजरअंदाज कर रहा है, तो ऐसे में, उस नक्कारे अमले से उपजी विसंगतियों को साहित्य के कोर-कोर में विमर्श का विषय निश्चित रूप से जरूर बनाना चाहिए। नीर-क्षीर विवेक से, विसंगतियों को रचनात्मक विमर्श बनाकर ही, साहित्य को समाज का दर्पण बनाया जा सकता है। साहित्यकार सरकार का, समाज का, हमेशा मार्गदर्शक रहा है, समीक्षक रहा है. कभी तुलसी ने कहा था, जासु राजु प्रिय प्रजा दुखारी, सो नृप अवसि नरक अधिकारी अगर साहित्यकार पत्रकार ही सरकार की असावधानियों, असंवेदनशीलताओं और नाकामियों को छिपाने के लिए सरकार की दिन-रात प्रशंसा ही करते रहेंगे, तो उसे गोदी मीडिया नहीं, तो और क्या कहेंगे?

एक तरफ सोनू सूद जैसे लोग गरीबों के लिए मसीहा बने, वहीं दूसरी ओर पैदल घर वापसी कर रहे मजदूरों पर पुलिसिया कहर ढाया गया, तो कहीं सोते मजदूरों पर मालगाड़ी कहर बनकर बरपी। ऐसे तमाम वीडियो व समाचार आज भी आप सोशल मीडिया में सर्च करके देख सकते हैं। क्या अतीत से हमें सबक नहीं लेना चाहिए? क्या हमें अपनी चूकों की समीक्षा नहीं करनी चाहिए?

क्या सरकार की नाकामियों और संवेदनहीनता की समीक्षा नहीं करनी चाहिए? जिससे भविष्य में ऐसी पुनरावृत्तियाँ न हो, पर कुछ लोग सरकार की समीक्षा या आलोचना को नकारात्मकता का स्वरूप देकर सच्चाइयों से सरासर मुँह मोड़ना चाहते हैं या फिर सत्ता के भले में, उसके एजेंडे में, अपनी व्यक्तिगत भलाई का अहसास कर हर दशा में सरकार की आलोचना से अपना मुँह मोड़ना चाहते हैं, जिसमें मैं दोष उनका नहीं, बल्कि उनकी गफलत को ही मानता हूँ। इसमें भी दूसरे टाइप के भी कुछ लोग हैं, जो रागदरबारी उपन्यास के रंगनाथ, पात्र सरीखे है. जो कहना तो बहुत कुछ चाहते हैं पर अन्दर ही अन्दर छटपटाते रहते हैं। कभी उनका पद, कभी उनकी हैसियत, कभी उनका व्यक्तिगत हित, उनकी अभिव्यक्ति और आदर्शवादिता को अन्दर ही अन्दर जिबह कर देता है।


कई बार लघुकथा का कॉन्टेंट जबरदस्त होता है, पर शिल्प कमजोर होता है। कई बार स्वनामधन्य लोगों का शिल्प तो जबरदस्त रहता है, पर कॉन्टेंट खोदा पहाड़ निकली चुहिया सरीखा होता है या बहुत सामान्य होता है। साहित्य का उदेश्य समाज में अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुँचने से होनी चाहिए, अगर किसी बड़े रचनाकार की रचना सिर्फ बादलों हवाओं और प्रेमिका के लटों के ही चक्कर लगा रही है, तो मैं समझता हूँ ऐसी रचना को रीतिकालीन या छायावादी कहना ही उपयुक्त होगा। ऐसे में कोई कम चर्चित या नया रचनाकार गरीबों, मजदूरों, शोषतों, वंचितों की व्यथा कथा जब कमजोर शिल्प से ही उकेर कर लोगों के सामने लाने की कोशिश करता है तो मैं समझता हूँ, वह उकृष्ट रचना होगी। पर इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि हर रचना उसकी शिल्पगत कमजोर ही होगी। सुझाव मात्र यह है कि हर रचनाकार का उदेश्य यही होना चाहिए कि समाज के निचले तबके की समस्याओं को साहित्य में विमर्श का हिस्सा निश्चित रूप से बनाता चले।

रचनाकार जिस काल में होता है, उस काल के उतारों-चढ़ावों को देखता सुनता और महसूस करता है, जिसमें कुछ याद रहता हैं, कुछ समय की धारा अपने साथ बहा ले जाया करती है। इन्हीं कुछ बचे-खुचे यादों के सिलसिलों से हमारी नई पीढ़ी दो-चार होती रहे, ऐसी ही भावनाओं, संवेदनाओं में, डूबी हुई लघुकथाओं की दास्तान आप को सुनाने आया हूँ।

कोरोना काल की हर वर्ग की समस्या, संवेदना विविधतापूर्ण ढंग से, ईमानदार तरीके से रखी जाए. यही मेरी कोशिश रही है। असली संपादक तो आप सुधी पाठक ही है। चुनिंदा लघुकथाकरों की चुनिंदा लघुकथाएँ आप को कैसी लगी? आप की प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।

-सुरेश सौरभ

दिनांक: 6-12-2021


सुरेश सौरभ










मूल नाम : सुरेश कुमार 

पिता : स्वः केवल राम

माता : श्रीमती कमला देवी 

पत्नी : श्रीमती अंजू

बेटी : कृति

शिक्षा : बी. ए. (संस्कृत) बी. काम, एम. ए. हिंदी, यूजीसी नेट ( हिंदी 2011 )

पता :

निर्मल नगर, लखीमपुर खीरी, उ.प्र. पिन-262701

जन्म तिथि :  03.06.1979

प्रकाशित

: दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, हरिभूमि, अमर उजाला, हिन्दुस्तान, प्रभात खबर, डिपेस्ड एक्सप्रेस, पाखी, विभोम स्वर, सुबह सवेरे, कथाबिंब, पंजाब केसरी, ट्रिब्यून सहित देश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं, बेब पत्रिकाओं एवं कई संपदित पुस्तकों में सैकड़ों लघुकथाएँ बाल कथाएँ व्यंग्य, लेख, कविताएँ समीक्षाएँ आदि प्रकाशि

प्रकाशित पुस्तकें

: उपन्यास, एक कवयित्री की प्रेमकथा, तीस- पैंतीस, वर्चुअल रैली (लघुकथा संग्रह) अमिताभ हमारे बाप (हास्य-व्यंग्य) नंदू सुधर गया, पक्की दोस्ती (बाल कहानी संग्रह), निर्भया (कविता संग्रह), नोटबंदी (लघुकथा संग्रह )

संपादित : 100 कवि, 51 कवि, काव्य मंजरी, खीरी जनपद के कवि, तालाबंदी, माउन्टेनमैन। भारतीय साहित्य विश्वकोश में 41 लघुकथाएँ शामिल । यूट्यूब चैनलों और सोशल मीडिया में लघुकथाओं व हास्य-व्यंग्यों की व्यापक चर्चा । एक लघुकथा कबाड़ी पर शार्ट फिल्म का निर्माण।

चौदह साल की उम्र से लेखन में सक्रिय । मंचों से रचनापाठ एवं आकाशवाणी लखनऊ से रचनापाठ।

सम्मान  :

भाऊराव देवरस सेवा न्यास द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर प्रताप नारायण मिश्र युवा सम्मान, 

हिन्दी साहित्य परिषद् सीतापुर द्वारा लक्ष्य लेखिनी सम्मान, 

लखीमपुर की सौजन्या, 

महादलित परिसंघ, 

अखिल भारतीय साहित्य परिषद्, 

साहित्यानंद परिषद्, 

स्वामी विवेकानंद बाल उद्यान गोलागोकर्णनाथ द्वारा 'विवेक श्री' की उपाधि, 

अंतरराष्ट्रीय संस्था भाखा, 

कथा दर्पण साहित्य मंच इंदौर, सहित कई प्रसिद्ध संस्थाओं द्वारा सम्मानित 

सम्प्रति : प्राइवेट महाविद्यालय में अध्यापन एवं स्वतंत्र लेखन।

मोबाइल :  73762 36066 

email : sureshsaurabhImp@gmail.com

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तपती पगडंडियों के पथिक/कमल कपूर (सं.)

आचार्य जगदीश चंद्र मिश्र रचनावली,भाग-1/डाॅ. ऋचा शर्मा (सं.)

पीठ पर टिका घर (लघुकथा संग्रह) / सुधा गोयल (कथाकार)