उजास / रामनिवास बाँयला
लघुकथा-संग्रह : उजास
कथाकार : रामनिवास बाँयला
ISBN : 978-93-84364-20-5
© : प्रकाशक
प्रकाशक :
अभिलाषा प्रकाशन
विष्णु वस्त्र भण्डार के ऊपर मेन मार्केट,
पिलानी- 333031 ( राजस्थान)
मोबाइल : 9462423378
मूल्य : 350.00
संस्करण: प्रथम, 2022
नए धरातल से अंकुरित होती लघुकथाएँ
हिंदी लघुकथा साहित्य के इतिहास में झांक कर देखें तो, हिदी लघुकथा लेखन लगभग डेढ शताब्दी पूर्व शुरू हुआ । आधुनिक हिंदी साहित्य काल में, भारतेंदु हरिशचंद्र ने लघुकथा को हिंदी साहित्य की एक नई विधा के रूप में लिखने की शुरुआत, हास्य एवं व्यंग्य शैली से की तथा इन्हीं की इस नई लेखन शैली से प्रभावित होकर, इस युग के अन्य रचनाकार भी लघुआकारीय रचनाधर्मिता को अपने लेखन में विशेष स्थान देने लगे, तभी से यह लघुआकारीय रचनाएं दिन प्रतिदिन नए कथ्यों साथ पाठकों के सामने आने लगीं। इस समय ऐसी रचनाओं का नाम कोई विशेष शीर्षक नहीं था। छोटी कहानी के नाम से ही पहचानी जाती थी । गुजरते समय के समकालीन रचनाकार ऐसी रचनाओं को लघुकहानी, भावकथा, गद्यकाव्य आदि-आदि शब्दों से संबोधित कर लिया करते थे । सन 1938 में इन लघुआकारीय रचनाओं को एक उचित शीर्षक 'लघुकथा ' नाम से मिला, तदोपरांत 'लघुकथा' एक विशेष सोच के दायरे में लिखी जाने लगी और लघुकथा लेखन में निरंतरता बनी रही ।
सन 1970 के बाद लघुकथा लेखन में एक जबरदस्त बदलाव आया । 1971 से लघुकथा के स्वरूप, कथानक, भाषा शैली में आए परिवर्तन से यह लेखन पूर्व के लेखन से एकदम नया व हर दृष्टि से हटकर साहित्य जगत में एक चमत्कारिक रूप में सामने आया और इसे 'आधुनिक हिंदी लघुकथा' के नाम से संबोधित किया जाने लगा। फिर तो लघुकथाकारों में लघुकथा लिखने की एक होड़ सी लग गई । उत्तरोत्तर लघुकथाओं और लघुकथाकारों की संख्या में इजाफा होने लगा तथा इसकी मारक शैली के प्रभाव से राष्ट्रिय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में स्थान मिला जिससे लघुकथा को एक अच्छा माहौल मिला। यानि बीसवीं सदी के अंत तक पहुंचते-पहुंचते ‘लघुकथा' ने हिंदी साहित्य संसार में विधागत दर्जे सहित एक विशिष्ट स्थान अर्जित कर लिया ।
इक्कीसवीं सदी में भी लघुकथा लेखन सतत जारी है। नई सदी के शुरुआती दशक में लेखन की गति धीमी रही लेकिन दूसरे दशक के प्रारंभिक वर्ष से ही लाघुकथाकारों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती रही और दूसरे दशक के अंत तक लघुकथा और लघुकथा रचनाकारों की संख्या में एक रिकोर्डतोड़ वृद्धि होती रही। यानि एक अनुमान के अनुसार पिछले चार दशकों ( 1971 से 2010 तक) की संख्या की बराबरी में आ गये। इस नई सदी में वरिष्ठ लघुकथाकारों के साथ नए लघुकथाकारों ने भी स्तरीय लघुकथाएँ लघुकथा साहित्य को दीं और अपने अच्छे लघुकथा लेखन शैली के दम पर बहुत से नए लघुकथाकार सामने आये। उन नए लघुकथाकारों में से एक हैं रणबांकुरों की भूमि राजस्थान के श्रीमान राम निवास बाँयला, जिनकी लघुकथाएँ समय-समय पर लघुकथा संकलनों व पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। यह समीक्ष्य कृति 'उजास' शीर्षक से राम निवास जी की दूसरी लघुकथा पुस्तक है जिसमें इनकी 91 लघुकलेवारीय रचनाएं संगृहीत हैं जो आम पाठक को सकारात्मक सन्देश देने में सफल रही हैं।
लघुकथा लेखन के प्रारम्भिक दौर से यह सामने आया है कि अधिकतर लघुकथाकारों ने शुरूआती लेखन में अपनी लघुकथाएँ प्रतीकात्मक शैली में लिखी हैं। समय गुजरते वक्त अपनी शैली को सामान्य लाघुकथात्मक शैली में बदलते रहे हैं। मेरा मानना है कि प्रतीकात्मक शैली में जब ही लघुकथाएँ लिखनी चाहिएँ जब बहुत ही जरुरी हो, सामान्यतय इस शैली से बचना चाहिए। जैसे देश, राष्ट्र के प्रतिष्ठित पद पर आसीन राष्ट्राध्यक्ष की नैतिकता व कार्यशैली उनके पद के अनुरूप से हटकर हो रही हों तो जंगल के राजा को प्रतिक रूप में लेकर उनके जनता के प्रति आचरण को सामने रखना चाहिए ताकि पद की प्रतिष्ठा एवं गरिमा बनी रहे। और मैंने कहा न, प्रतीकात्मक शैली नवांकुरों के लिए एक सीखने की सीढी का काम करती है। श्रीमान राम निवास बाँयला भी इसके अपवाद नहीं हैं । इस संग्रह में दिमाग की फाँस, भेजे में घुसी लकड़ी, मीठापन, मनहूस, ईमान, पतीली, घास, मौलिक अधिकार, व्याख्या, दर्पण, आज़ादी, वफादार, नुमाइंदे, घर की चिंता, पसीने की मौत जैसी दर्जन भर रचनाएं प्रतीकात्मक लाघुकथात्मक शैली में रची गई हैं।
किसी लघुकथा पुस्तक में राजनैतिक सन्दर्भ को अगर सम्मिलित नहीं किया जाता हैं तो पुस्तक में एक अधूरापन का अहसास होता है। आज राजनीति में भाई-भतीजावाद, मोह, स्वार्थपूर्ति, अहंकार, अर्थलाभ, अनाचरण, चरित्र - पतन कथनी करनी में अंतर जैसी अनैतिक कार्यप्रणाली ही आम राजनैतिक शैली बन गई है। इन क्रियाकलापों को लघुकथा माध्यम से आसानी से आम जन के सामने रखा जा सकता है। इनाम, गाँधीजयंती, फैसला लघुकथाएँ, इस संग्रह में राजनैतिक सन्दर्भ की लघुकथाओं की भरपाई करती हैं, जो अपने लेखन में सफल रही हैं। बुजुर्ग जीवन एक ऐसी अवस्था है जिसे ढलते सूर्य के रूप में देखा जा सकता है जिसे कोई पूजता नहीं, पूछता नहीं । जिन्होंने अपने जीवन भर के पसीने भरी मेहनत से पारिवारिक बगिया को हरा-भरा किया है, रखा है परन्तु अफसोस इस बात का है कि इतनी गहराई में जाकर संस्कारों की तरफ कोई नहीं लौटता। वह बुजुर्ग, उसी परिवार में, बगिया का संस्कारवान, एक छायादार, फलदार पेड़ न मानकर एक ठूंठ समझा जाता है। बुजुर्ग जीवन, वास्तव में एक असम्मानित, परित्यक्त, प्रताड़ित जीवन जीना है। नई पीढ़ी यह नहीं सोचती कि हमें भी इसी अवस्था से गुजरना है। अगर बुजुर्ग को मान-सम्मान, स्नेह, अपनापन देंगे तो वही संस्कार पनपेंगे जो उनकी संतति तक प्रवाहित होंगे। ऐसे ही कुछ विचारों को समेटती, छुट्टी, जिम्मेदारी, सरवणलाल, मेरी माँ अब तेरी, एकला कमरा आदि लघुकथाएँ बुजुर्ग जीवन की झलकियाँ हैं जो आम पाठक को सोचने को मज़बूर करती हैं।
शिक्षा विभाग का एक विशाल एवं विस्तृत दायरा है और लघुकथाकार महोदय इसी पेशे से जुड़े हुए हैं। स्कूलों एवं शैक्षिक कार्यालयों में क्या कुछ घट रहा है, लघुकथाकार बाँयला जी ने उसे करीब से देखा है, नजदीक से जाना है, परखा है। इन्हीं अनुभवों को अपनी लेखनी के माध्यम से लघुकथाओं के द्वारारखा है। गुरु दक्षिणा, फिर भी हड़ताल जारी है जैसी रचनाओं को उदहारण के तौर पर रखा जा सकता है ।
अमूमन संसार में दो तरह के लोग पाये जाते हैं, सत्यभाषी और असत्याभाषी । लेकिन गहराई से त्रिनेत्र दृष्टि से देखें तो तृतीय समूह के आदमी भी मिल जाते हैं जो कहते कुछ हैं और करते हैं कुछ और ही । ऐसे ही कथनी-करनी में अंतर को रखने वाले तृतीय श्रेणी के लोगों की दिनचर्या पर आधारित, स्वच्छता पखवाड़ा, संस्कार, आदमखोर, वालेंटियर, हिमायत, रोजगार, व मसीहा जैसी लाघुकथाएँ भी इस लघुकथा संग्रह में सामने आई हैं।
आधुनिक युगीन पीढ़ी पुराने रश्मोरिवाज व पहनावे को पुरातन पंथी करार देती है। संस्कारों को दरकिनार कर आधुनिक जीवन शैली में उलझी हुई है। फेसबुक, प्यार जैसी लघुकथाएं, नई पीढ़ी की जीवन शैली से जुडी लघुकथाएँ हैं।
इस पुस्तक में उजास, रिक्शेवाला, अपहरण, ठोकर आदि ऐसी लघुकथाएं हैं जो पाठक मन में गहराई तक उतरती हैं। इन रचनाओं को जितनी बार पढ़ा जाये उतना गहरा बोध दर्शाती हैं।
साहित्य में अधिकतर रचनाएं पाठक के मन में एक सम्मान जागृत करती, नई दिशा की ओर इंगित करती हैं जिससे वह अपने जीवन के सफलतम पलों को छू सके। इस पुस्तक में भी हिम्मत, अवसर, घसियारी शीर्षक से रची गई आत्मसम्मान से सराबोर लघुकथाएँ हैं ।
प्रश्न, इलाज, पवित्रता, अपने-अपने एक क्या करेगी देवी जैसी धर्म आचरण पर आधारित लघुकथाएँ, घर्म व इष्टदेव की आड़ में भोली जनता को गुमराह कर अपना स्वार्थ सिद्ध करने को बताती हैं। अपने आप को धर्माधिकारी, मठाधीश घोषित करने वाली इन लघुकथाओं के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे, धर्माधीश, पण्डे-पुजारियों से जागृत रहने की ओर इशारा करती हैं।
इस संग्रह में कुछ ऐसी लघुकथाएं हैं जो मानवीय संवेदनाओं से सराबोर रचनाएं हैं जो मानवीय मूल्यों को बरकरार रखती संवेदनाओं से ओतप्रोत हैं । यह सभी, इस संग्रह कि लाजवाब बेहतरीन लघुकथाओं की श्रेणी में रखने योग्य हैं । बतोर उदहारण आदमी, मुआवज़ा, दुआ, बड़प्पन को लिया जा सकता है।
युगों-युगों से चली आ रही प्रचलित सामाजिक व्यवस्था, संतति में संस्कार विरोपित न किये जाने के कारण, चरमरा सी गई है। अपने माँ-बाप, बुजर्गों व रिश्तेदारों के प्रति सोच व व्यवहार का तरीका बदल गया है । लगता ही नहीं कि वह एक परिवार के सदस्य हैं। कुटुंब-कबीले के तौर तरीके तो अब कहानियां मात्र रह गए हैं। ऐसा ही कुछ बताने की कोशिश की है राम निवास जी ने अपनी चम्पी, गलीच जगह, सहजीवन, महंगी पसंद, शह, बाप का बाप, पौथी - पन्ने, गुराशा लघुकथाओं में ।
गरीब जीवन को अभिव्यक्त करती लघुकथाएं भी इस संग्रह में संकलित की गई हैं जो गरीब, मजदूर पेशा जीवन को उजागर करती मार्मिक लघुकथाएँ हैं- एक मई, देशभक्त, रोटी सा चाँद आदि आदि ।
मनुष्य में स्वार्थ पनपना एक स्वभाव है, लेकिन एक सीमित सोच तक । जब सोच में हद से ज्यादा स्वार्थ घर कर जाता है तब वह आदमी सामान्य मानसिकता वाला नहीं रह पाता। रिश्ते-नाते सब स्वार्थ पूर्ति में हवा हो जाते हैं। कार्बाइड, कम्पंसेशन, लाइन के उधर, अधिक खुश सरीखी लघुकथाओं के द्वारा यही कहा गया है।
'उजास' में नारी संदर्भित यानि स्त्री जीवन शैली पर आधारित रचनाएं भी पढ़ने को मिलती हैं जिनमें किसी लघुकथा में नारी सशक्तिकरण व किसी में नारी की दीन हया, किसी में मज़बूरी की गाथा है वर्तमान दौर में नारी सन्दर्भ एक बिंद अतः इस विषय पर कामवाली, पांच मेर बाजरे की देन, मजबूरी कर संगत में हर विषय को समेटने की कोशिश की है, लघुकथाकार महोदय ने।
हिदी साहित्य से गुजरते वक्त यह देखा गया है कि उपन्यास, काव्य व कथा जैसी विधाओं में ही की जगह अंग्रेजी वर्ण में शीर्षक पढ़ने को मिलते हैं, सो लघुकथा भी इसका अपवाद नहीं कार्बाइड कम्पनसेशन, फेसबुक लघुकथा नवाचार का समर्थन करती दिखाई देती हैं जो अहिन्दी होना नहीं कहा जा सकता।
पुस्तक में कुछ विषय ऐसे हैं जिन पर इक्का-दुक्का लघुकथाएँ ही लिखी में गई हैं। जैसे पर्यावरण (पर्यावरण दिवस), पत्रकारिता ( दानवीर व सम्मान), कर्मकांड (विरोधाभाष), बालमनोविज्ञान (पिता व पुण्य), किन्नर समाज (जानकी), दलित सन्दर्भ (दीन की धोक), किसान जीवन (रेशम की नाथ), कार्यालयी परंपरा (आप भी आदमी है), कन्या भ्रूण हत्या ( कन्या भ्रूण कथा) विषय पर रची गई हैं। ये सभी लघुकथाएँ अपने विषय पर न्याय करती, हर पहलू पर खरी उतरती हैं। अगर इन्हीं विषयों पर और भी कथाएँ लिखी जाती तो पाठक का पठनीय दायरा और विस्तृत होता। फिर भी प्रत्येक विषय पर लघुकथाएँ देना पुस्तक की पूर्णता को दर्शाता है।
श्रीमान राम निवास बाँयला के लघुकथा संग्रह 'उजास' की लगभग सभी लघुकथाएं पठनीय बन पड़ी हैं, मन में जिज्ञासा पैदा करती, पढ़ने को विवश करती हैं तथा कुछ लघुकथाएँ तो चित्त को झंकारित करती, सोचने को मज़बूर कर देती हैं। फिर भी एक दो बिन्दुओं पर कुछ विचार रखना चाहूँगा।
1. संग्रह की कुछ लघुकथाओं का लेखन आधुनिक हिंदी लघुकथा लेखन शैली से हटकर है। कोशिश की जाय कि आधुनिक हिंदी लघुकथा के मानदंडों के अनुरोप लघुकथाएं लिखकर स्तरीय लघुकथाएं देते हुए हिंदी लघुकथा को सफलता की ऊँचाइयों पर ले जाएं।
2. कुछ लघुकथाओं में कोष्ठक का प्रयोग किया गया है। कोष्ठक प्रवृत्ति से उबरने के लिए, लेखन को सिर्फ प्रतीक से समझाएं कोष्ठक में रखने से लघुकथा शैली नहीं एकांकी व नाटक शैली का बोध होता है।
3. अधिकतर लघुकथाएँ 200-250 शब्दों की हैं, यह सही है कि कम से कम शब्दों में हम अपना प्रस्तुतीकरण रख सकें, लेकिन कोई कथानक अधिक शब्दों की माँग करता है तो लघुकथा लेखन के दायरे में रहते हुए शब्दों की संख्या में बढ़ोत्तरी करना अव्यवहारिक नहीं।
बावजूद इसके इस लघुकथा पुस्तक की सभी लघुकथाएँ आधुनिक हिंदी लघुकथा साहित्य की दस्तावेजी लघुकथाएँ हैं। सभी लघुकथाएँ धरातल से जुडी, सहज, स्वाभाविक लघुकथाएँ हैं। कोई भी लघुकथा, लघुकथा के दायरे से बाहर निकलती नहीं दिखाई देती। लघुकथा के सौन्दर्यशास्त्र के अनुरूप रची गई ये लघुकथाएँ. लघुकथा के व्याकरण को पूर्णरूपेण अनुकरण करती दिखाई देती हैं। पाठक से सीधा जुडाव रखती अपने उद्देश्य में सफल लघुकथाएँ हैं।
लघुकथाकार श्रीमान का यह दूसरा लघुकथा संग्रह है, इसमें इनके अनुभव व परिश्रम की झलक साफ प्रतिबिंबित होती नजर आ रही है। एक नए लघुकथाकार से जो अपेक्षाएं की जाती हैं, उसमें राम निवास जी खरे उतरते हैं और आशा की जाती है कि बाँचला जी नए कथानकों पर स्तरीय लघुकथाएं दे कर आधुनिक हिंदी लघुकथा साहित्य में श्रीवृद्धि करते रहेंगे।
और अंततः लघुकथाकार श्रीमान राम निवास बाँयला को उनके इस लघुकथा संग्रह प्रकाशन पर बधाई देते हुए, सुखद, स्वस्थ एवं सफल लेखकीय भविष्य के लिए शुभकामनाएं देना चाहूँगा।
राजस्थान दिवस, 2022
डा. रामकुमार घोटड़
निराला अस्पताल, सादुलपुर (चुरू)
राजस्थान
मो. 9414086800
अपनी बात स्वयं कहती लघुकथाएं
'आज सुबह की प्रार्थना सभा में आप ही ने तो बताया था कि पर्यावरण को बचाना है तो हर संभव प्रयास से पेड़ों को बचाना होगा। और सर कागज भी तो पेड़ों से ही बनता है ना?'
लघुकथाकार राम निवास बांयला की लघुकथा में एक बालक का अपने प्राचार्य से यह संवाद अपने आप में बहुत कुछ कहता है । जब यह छोटा सा संवाद संग्रह की लघुकथा 'पर्यावरण दिवस' में हम देखते हैं तो पूरा प्रसंग हमारे भीतर कहीं अटक सा जाता है। माना बहुत नई बात नहीं है और कथनी-करनी भेद पर अनेक रचनाएं लिखीं जा चुकी हैं, आगे भी लिखी जाएंगी। कुछ विषय जैसे पर्यावरण चेतना की आवश्यकता कल भी थी, आज भी हैं और कल भी हमें इस विषय पर बात करनी होगी। समय के प्रवाह में अपनी प्रासंगिता और उपयोगिता को बचाए रखने से भी जरूरी बात है यह देखना होता है कि किसी रचना में विषय को किस प्रकार प्रस्तुत किया है। रचना में रचनाकार का अवदान ही समग्र रूप से उसकी साहित्य में उपस्थिति को तय करने का प्रमुख घटक होता है।
प्रस्तुत लघुकथा संग्रह 'उजास' में अनेक लघुकथाएं ऐसी हैं जिनमें लेखक राम निवास बांयला की संवेदनाएं हमारे अनुभव का हिस्सा बनने में सफल रही हैं । वर्तमान समय में साहित्य और समाज की स्थितियों में बड़ा बदलाब हुआ है, पाठकों में लघुकथाओं की प्रासंगकिता बढ़ती जा रही है। इसका कारण है कि किसी बात को बहुत कम शब्दों में कहना हो तो हमारे पास एक सशक्त माध्यम लघुकथा है।
आज राम निवास बांयला का नाम इक्कीसवी शताब्दी के प्रमुख लघुकथाकारों के में राजस्थान से उभर कर बड़े पटल पर छाया हुआ है। वैसे तो बांयला जी ने गद्य-पद्य की अनेक विधाओं में लिखा है और वे वर्षों से लिख-पढ़ रहे हैं। उनके दो कविता-संग्रह- 'बोनसाई' और 'बिसात' प्रकाशित हैं। लघुकथा की बात करें तो लघुकथा संग्रह - 'हिमायत' (2011 ) के बाद यह दूसरा संग्रह 'उजास' लगभग दस वर्षों के अंतराल से आ रहा है। मेरा मानना है कि इस अंतराल में उन्होंने हिंदी लघुकथा को अनेक महत्त्वपूर्ण लघुकथाएं दी हैं, जो इस संकलन में शामिल हुई है। एक रचनाकार के रूप में राम निवास बांयला ने विगत बीस-पच्चीस वर्षों
में अपने आस-पास के परिवेश को जिस ढंग से परिवर्तित होते देखा-परखा और अनुभूत किया है, वह उनकी रचनाओं में मुखरता से बोलता है। यह बोलना वाचाल किस्म का नहीं है। यहां बोलने और कहने में एक संयम और प्रतिकार सहज रूप से शामिल है। बांयला जी की इन रचनाओं में प्रमुखता हम हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव को देखते हैं। यहां यह बहुत बड़ा खतरा था कि वे शिक्षण से जुड़े होने के करण सीधे सीधे उपदेशक की भूमिका में हमारे समाने आ जाते किंतु उन्होंने इस स्थिति से बचते हुए अपनी भूमिका में एक शिक्षक की तुलना में एक रचनाकार की भूमिका को स्वीकार किया है। रचनाकार और शिक्षक के कामों में काफी समानताएं है किंतु विभेद भी है ।
आदर्श, नैतिकता, शिक्षा और संस्कारों की अनेक बातें 'उजास' संग्रह की अनेक लघुकथाओं में किसी उपदेश अथवा सीख के रूप में नहीं, वरन इस प्रकार प्रस्तुत है कि लघुकथाकार अपने पाठकों में स्वविवेक जाग्रत करना चाहता है । भाषा की गरिमा में यह समाहित है कि रचनात्मक अनुभवों से पाठक स्वयं अपनी दिशा तय करते हुए फैसले लेने में सक्षम बनें। लघुकथा शब्द में 'कथा' संलग्न है और कथा शब्द से रचनाएं व्यापक- विशद घरातल को स्पर्श करती हैं। संभवतः इसी कारण विद्वानों में लघुकथा विधा के लिए 'गागर में सागर' की बात कही है। किसी असंभव कार्य को शब्द ही संभव बनाने में सक्षम हो सकते हैं। सवाल यह है कि लघुकथा में शब्दों का प्रयोग बहुत सावधानीपूर्वक किस प्रकार किया जाए जिससे बड़ी बड़ी बड़ी बात को कहना भी सहज संभव जाए। यह सहज संभव कैसे होता है, इसके लिए संग्रह की लघुकथा 'भेजे में घुसी लकड़ी' को देखें :
मैंने कुल्हाड़ी को उलाहना दिया : हे कुल्हाड़ी! तू कितनी दुष्ट है? जो फल, फूल, छाया व प्राण वायु प्रदाता है, तू उन्हीं पेड़ों को काटती है ।
कुल्हाड़ी ने सहजता से उत्तर दिया : जो भेजे में घुसकर दिमाग खराब करेगा तो भुगतेगा भी वही ।
यहां महज एक सवाल है और उसका छोटा-सा जवाब है। यह संवाद प्रस्तुत करते हुए लघुकथाकार ने बहुत कम शब्दों में बिना मुखर हुए बहुत बड़ी बात कह दी है। किस बात को कहने के लिए कैसा फार्मेट रहेगा, यह रचनाकार ही तय करता है अथवा कहें कि यह एक लेखन प्रक्रिया है। कहा जाता है कि सर्वाधिक कला वहां होती है जहां वह दिखाई नहीं देती है। आज ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्रों में अत्यधिक विकास हुआ है कि हम हमारी परंपरा और संस्कृति-संस्कारों से किसी न किसी रूप में कटते जा रहे हैं। यह एक डोर है जो मानव को मानव से बांधती है। वह कमजोर हो रही है। ऐसे में अनेक जीवनानुभव हैं। हमारी गतिविधियों और संबंधों का निर्धारण कैसे होता है यह एक बहुत जटिल प्रक्रिया नहीं है फिर भी भारतीय परंपरा में कुछ ऐसा है जिसे हमें बचाना सहेजना और संवारना है। वह है मानव मूल्य ।
हमारे आस-पास के जीवन में अनेक रचनाएं फैली-बिखरी हुई है। कुछ सीधे-सीधे और कुछ को प्रतीक के रूप में यहां इस संग्रह में प्रस्तुत किया गया है। लघुकथाकार राम निवास बांयला के इस लघुकथा संग्रह में अनुभव है तो चिंतन और मनन भी है। इसे ऐसा भी कह कहते हैं कि इनमें ज्ञान के कुछ सूत्र भी हैं जो हमें जीवन में सीखने-समझने और निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाले हो सकते हैं। सूक्ष्म-सूत्रों की बात को समझने के लिए लघुकथा- 'मीठापन' देखें :
हे ईख ! तुम कितनी मीठी हो?
: हां सो तो हूं ।
: इस मीठेपन का ईनाम ?
: आखिरी बूंद तक निचुड़ते रहना ।
यह संवाद किसी कविता की भांति हमें चिंतन के व्यापक वितान में ले जाता है, जैसे किसी ब्योम में यह हमें छोड़कर चल देता है। यहां जीवन और अनुभव के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी सच्चाइयां नजर आने लगती हैं। ऐसा बार-बार कहा-सुना गया है कि जो काम करेगा वही मरेगा.... या फिर उसी पेड़ पर पत्थर फेंक जाते हैं, जो फलदार होता है। लघुकथाओं की महज कुछ पंक्तियों से गुजरते हुए अनेक ऐसी कुछ उक्तियां और संदर्भ हमारे दिलो-दिमाग में एक साथ सक्रिय हो उठते हैं।
लघुकथा विधा में कविता, कहानी, नाटक जैसी अनेक विधाओं का समावेश यहां प्रयोग के रूप में भी हम देख सकते हैं। एक रचनाकार यही चाहता है कि किसी भी प्रकार से अच्छे समाज के लिए ऐसी ईखें समाज, घर-परिवार में सदा उपस्थित रहें और इस जीवन को वे अंत तक मीठा करती रहें। जीवन में जहर और अमृत दोनों है, यह फैसला हमारा है कि हम अपने भीतर क्या भरना, रखना चाहते हैं।
यहां संसार को मीठा और सरस बनाने में स्वयं लघुकथाकार राम निवास बांयला रचनाकार के रूप में सतत सक्रिय हैं। वे केंद्रीय विद्यालय संगठन में हिंदी शिक्षक के रूप में सेवाएं देते हुए नई पीढ़ी के उज्जवल भविष्य हेतु प्रत्यनशील हैं। उनकी संवेदनाओं- अनुभूतियों-चिंतनधारों में विचारों की बहुआयामी छटा के अनेक क्षितिज इस संग्रह में हम यत्र-तत्र कहें सर्वत्र देख सकते हैं । कहने को बहुत कुछ है, किंतु यहां यह कहना पर्याप्त होगा कि प्रत्येक लघुकथा अपनी बात स्वयं कह रही है । मैं 'उजास ' संग्रह का स्वागत करते हुए अपनी शुभकानाएं देता हूं।
- डॉ. नीरज दइया
अनुक्रम
पर्यावरण दिवस
उजास
दानवीर
छुट्टी
गुरु-दक्षिणा
आग
इनाम
भेजे में घुसी लकड़ी
रिक्शेवाला
स्वच्छता पखवाड़ा
दिमाग की फाँस
विरोधाभास
मीठापन
जिम्मेदारी
हिम्मत
फेसबुक
सम्मान
अपहरण
ठोकर
गाँधी जयंती
प्रश्न
सरवन लाल
आदमी
मनहूस
चंपी
ईमान
गलीच जगह असली डाकू
एक मई
फैसला
फिर भी हड़ताल जारी है
पतीली
सह-जीवनी
पिता
महँगी पसंद
घास
मौलिक अधिकार
शह
पुण्य
पेट
जानकी
बाप का बाप
मुआवजा
व्याख्या
अवसर
दर्पण
पोथी-पन्ने
संस्कार
देशभक्त
घसियारी
सार्वजनिक
गुरशान
कारबॉइड
आज़ादी
कंपनसेशन
मेरी माँ, अब तेरी
रफू
रोटी-सा चाँद
संस्कार
वफादार
कामवाली
आदमखोर
उधारी के आभूषण
प्यार
एकला कमरा
आप भी आदमी हैं
दीन की धोक
लाईन के उधर
वोलेंटिएर
नुमाइंदे
रेशम की नाथ
अधिक खुश
घर की चिंता
झुनझुना
दुआ
इलाज
पसीने की मौत
पाँच सेर बाजरे की देन
पवित्रता
हिमायत
रोजगार
पड़ोस
ख़ातिरदारी
मसीहा
रिजल्ट
असर
ज्ञानप्रकाश : ज्ञान का प्रकाश
बड़प्पन
अपने - अपने 'एक'
कन्याभ्रूण कथा
मजबूरी
क्या करेगी देवी
राम निवास बाँयला
जन्म : 05 मई 1964
जन्म स्थान : ग्राम-सोहन पुरा, पोस्ट-पाटन, जिला- सीकर, राजस्थान, पिन : 332718
प्रकाशन : बोनसाई, अपने-अपने आईने तथा बिसात ( कविता संग्रह ), हिमायत ( लघु कथा संग्रह ) तथा देश - विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मे कविताएं, लघु-कथाएं कहानियां, हाइकु व लेख प्रकाशित ।
संपादन : आनन्दमठ, पाप की पराजय
प्रसारण : आकाशवाणी से कविता-पाठ ।
सम्मान : जिला कलेक्टर, बारां द्वारा सम्मानित, कोटा सहोदय शिक्षक सम्मान तथा केंद्रीय विद्यालय संगठन का प्रोत्साहन पुरस्कार, दैनिक भास्कर समूह का गुरु-शिक्षक सम्मान।
संपर्क सूत्र : 09413152703,09510190987
ईमेल : mbanyala@gmail.com
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें