दीवारें बोलती हैं/सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
लघुकथा-संग्रह : दीवारें बोलती हैं
कथाकार : सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
ISBN: 978-93-85325-48-9
प्रकाशक :
राज पब्लिशिंग हाउस
9 / 5123, कौशिकपुरी, गली नं. 1, पुराना सीलमपुर, दिल्ली - 110031
E-mail : houserajpublishing@gmail.com Contect No. : 9136184246
मूल्य : तीन सौ पचास रुपए मात्र
संस्करण : सन् 2022
© लेखकाधीन
आवरण : विनय विक्रम सिंह ( नोएडा)
मानवीय भावों का सूक्ष्म विश्लेषण करती लघुकथाएँ : 'दीवारें बोलती हैं'
भीष्म साहनी एक जगह लिखते हैं-- "रचना लेखक की कलम नहीं करती, उसका मस्तिष्क नहीं करता, उसका भाव विह्वल हृदय करता है।" यह उक्ति सुरेन्द्र अरोड़ा के सद्यः प्रकाशित लघुकथा संग्रह 'दीवारें बोलती हैं', पर पूर्णतः चरितार्थ होती है। क्योंकि ये रचनाएँ मात्र लिखने के लिए नहीं बल्कि इनमें जो जीवन-मूल्य हैं, वे हमें जीवन को समझने की सीख देते हैं और भटकाव की राह से बचाते हैं।
सुरेन्द्र अरोड़ा जी जीव विज्ञान के प्रवक्ता पद से सेनानिवृत्त हैं। इनके पास जीवन अनुभवों का अनमोल खजाना है और वह खजाना इनकी रचनाओं में बड़ी शिद्दत से अभिव्यक्त हुआ है। सुरेन्द्र जी की प्रकाशित दर्जनों पुस्तकों में जहाँ उनकी रचनाधर्मिता के दर्शन होते हैं, वहीं आधा दर्जन पुस्तकों के सम्पादन में उनकी पारखी दृष्टि प्रभावित करती है ।
इस संग्रह की 55 लघुकथाऐं समाज का कोना-कोना झाँक आई हैं। इनमें अधिकतर में उन विषयों को छूने का प्रयास किया गया है जिन्हें अक्सर लेखक छू नहीं पाते। इसे इस संग्रह की विशेषता भी माना जा सकता है। इन लघुकथाओं में रिश्तों की भी गहन् पड़ताल हुई है। प्रेम के अनेक रूप पाठकों को प्रभावित किए बिना नहीं रहते ।
रिश्ते विश्वास की बुनियाद पर टिके होते हैं। यदि उनमें स्वार्थ के हिचकोले लगने लगें तो वह बुनियाद ज्यादा लम्बे समय तक बरकरार नहीं रहती। लघुकथा 'भाई' में ऐसे ही रिश्तों का मनोविश्लेषण बहुत गहरे से हुआ है।
'सीसा' लघुकथा ऐसे लोगों को शीशा दिखाने का काम करती है जो नारी की प्रतिमा का आकलन न करके, उस पर एहसान - सा जताते हुए, उसका शोषण करने का प्रयास करते हैं। पर यहाँ लेखक की लेखनी ऐसी बेबस नारी का चित्रण नहीं करती बल्कि ऐसी नारी का चित्रण करती है, जो विश्वविद्यालय जैसी उच्च संस्थाओं में घाघ शिक्षकों को उसकी औकात् दिखाती है। उनके अंदर जो वासना के सर्प कुंडली मारे बैठे हैं, उन्हें कुचलकर आगे बढ़ती है। वह किसी पुरस्कार के लालच में अपनी इज्जत समझौता नहीं करती। बल्कि अपने स्वाभिमान का परिचय देती है। 'सीसा' महिला सशक्तिकरण की सशक्त लघुकथा है। ऐसी लघुकथाएँ प्रेरणा देती हैं कि हमें हर परिस्थिति में अपने स्वाभिमान को सर्वोपरि रखना चाहिए। लघुकथा का शीर्षक और कथ्य दोनों प्रभावित करने वाले हैं। 'भटकाव' लघुकथा में ऐसे प्रेम की अभिव्यक्ति हुई जो शादी के बाद परवान चढ़ता है। पर वह प्रेम मीठे जहर की तरह है जो उनकी गृहस्थी को धीरे-धीरे विनाश की ओर ले जाता है। लघुकथा इसी निष्कर्ष पर पहुँचती है कि शादी के बाद प्रेम की कोई मंजिल नहीं होती। बल्कि भटकाव बना रहता है।
'लिंक', 'अंदाज', 'दुर्घटना', 'सौंदर्य' आदि लधुकथाएँ प्रेम के विविध रूप पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करती हैं ।
यह कैसी विडम्बना है कि जिन राजनेताओं के हाथ राष्ट्र के निर्माण की बागडोर होती है, युवाओं की शक्ति राष्ट्र निर्माण में लगानी होती है वही नेता स्वार्थ में अंधे होकर नशे का कारोबार करके युवाओं की ताकत को मिटाने का काम करते हैं। लघुकथा ‘सर जी की दूसरी पारी' में समाज में चेतना जगाने वाले लोगों का बेमौत् मारा जाना पाठक को हिलाकर रख देता है और अनायास ऐसे नेताओं के प्रति नफ़रत पैदा होने लगती है।
कभी-कभी एक वाक्य जीवन की दशा और दिशा बदलकर रख देता है। हर व्यक्ति जीवन में सफल होना चाहता है पर क्या सफल हो पाता है? सफलता के पीछे क्या राज़ है, उसी राज का रहस्य खोलती है लघुकथा 'समुन्दर' । बहुत ही प्रेरणादायी लघुकथा है एक संवाद देखिए - "ये तुम्हारा वहमृ है कि मेरे पास आकाश को छूने या नापने के लिए अलग से पंख हैं। यह पंख तो दिखने के है। हाँ... मेरी आँखें जरूर दूर तक देख सकती हैं और जब वे मंजिल देख लेती हैं तब मेरे इरादे मुझे उस मंजिल तक ले जाते हैं ।” इंसान का हृदय उस कुएँ के समान है जिसमें जैसी आवाज लगाई जाए, उसमें से वैसी ही प्रतिध्वनि सुनाई पड़ती हैं। उसी प्रकार मनुष्य जैसे कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है । लघुकथा 'दीवारें बोलती हैं' हमें यही सीख देती है कि सत्कर्मों की ओर बढ़ना चाहिए । 'कार्तिक' लघुकथा उस समय चरम बिंदु पर पहुँच जाती है जब बेटा माँ को यह बताता है कि वह यह गिफ्ट अपनी मित्र एक लड़की को देगा। यह सुन जैसे घर में भूचाल आ जाता है। कारण समाज ने आज तक सोचा ही नहीं कि लड़का लड़की में एक पावन रिश्ता भी हो सकता है । लघुकथा उसी पावन रिश्ते का समर्थन करती है। सकारात्मक सोच की लघुकथा है 'कार्तिक' ।
'रुखसाना' लघुकथा उन मूल्यों की बात करती है जिसमें स्पष्ट है कि नफ़रत से नफ़रत फैलती है और प्रेम से प्रेम । समाज चंद लोगों की संकीर्ण सोच के कारण पूरा वातावरण ही प्रदूषित हो रहा है।
लघुकथा 'रुखसती' में लेखक ने मनुष्य की उस मनोवृत्ति को उजागर किया है जो औरत को अपने पाँव की जूती समझता है। औरत दिन में हाड़तोड़ मेहनत करे फिर रात को ऐसे निठल्ले पति की हवस का शिकार बने जो दो-दो शादियाँ किए हुए हैं। लघुकथा का अंत पाठक को सुकून देता है, जब औरत एक दिन पुरुष को घर से निकाल देती है ।
'मरी को मरने दो' में 'हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और' वाली कहावत लागू होती है।
'अंदाज' लघुकथा में यह बात उभरकर आती है कि महिलाएँ भी पुरुषों से
समपर्क की ताक में रहती है। औरतों की ओर से प्यार का हल्फनामा माना जाए इस लघुकथा को ।
‘थ्रेडिंग' लघुकथा का कथ्य स्वाभाविक नहीं लग रहा। पर उद्देश्य महत्वपूर्ण है । कहते हैं चोरी का माल मोरी में चला जाता है। अच्छा संदेश देती लघुकथा ।
लेखक ने लघुकथाओं में भाषा पर विशेष ध्यान रखा है। पात्रानुकूल भाषा संवाद में सजीवता ला देती है । और सीधे पाठक के हृदय में उतर जाती है। इसे लघुकथाओं की सफलता ही कहा जा सकता है। 'कसक' लघुकथा की काव्यात्मक भाषा पाठक पर सीधे असर करती है।
'हमदर्दी' की गर्मी से नादिरा के दिल में जमा दर्द का मोम पिघल गया और आँसू बनकर आँखों के रास्ते बह निकला। 'इनसान' लघुकथा में औरत के मन का गहन विश्लेषण हुआ है जिसमें औरत एक पल में पति पर गुस्सा तो दूसरे पल में प्यार का सोता फूट पड़ता है ।
'नई तालीम' लघुकथा एक ऐसा प्रश्न खड़ा करती है शायद पहले कभी इस तरह का प्रश्न नहीं खड़ा किया गया । आखिर ईद पर क्यों मासूम जीवों की बलि दी जाती है? बच्चे उन जीवों से प्रेम करते हैं। उन्हें अपना मित्र मानते हैं । उनकी कुर्बानी से बच्चों के हृदय पर आघात पहुँचता है। बहुत ही मार्मिक लघुकथा ।
सकारात्मक सोच के साथ लघुकथा का अंत सुखद अनुभूति करवाता है। लघुकथा में जहाँ चिंता है वहीं चिंतन भी है।
प्रेम रस में डूबी बेहतरीन लघुकथा है 'बारिश'। बानगी के तौर पर एक संवाद - "तुम्हें मालूम है, तुम तो आज मेरी वजह से थोड़ी देर के लिए बारिश में भीगे हो जिसे तुमने सुखा भी लिया है, पर जिसका तन-मन दोनों ही तुम्हारी वजह से भीग चुके हैं उसे क्या कहोगे ।" “बिरादरी” लघुकथा सिद्ध करती है कि जांत-पांत का नशा हमारी रगों में बह रहा है।
प्रेम में उलझी एक कहानी, क्या हर रिश्ते का नाम हो यह जरूरी तो नहीं, ऐसे ही प्रश्न खड़ा करती है लघुकथा 'उतरन' । इसी तरह के भावों को संजोए है लघुकथा ‘विश्वासघात’। एक छड़ी के माध्यम कैसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी संस्कार चलते हैं। ऐसा सुन्दर संदेश देती लघुकथा 'तालीम'।
ये लघुकथाएँ अपने समय का दस्तावेज है। नवीन कथ्य, पात्रानुकूल भाषा, संवादों में सजीवता, लघुकथा के प्राण है । यह संग्रह साहित्य जगत में अपना एक विशेष स्थान बनाएगा इसी आशा के साथ लेखक को बधाई ।
- राधेश्याम भारतीय नसीब विहार कॉलोनी, घरौंडा - करनाल, पिन- 132114 (हरियाणा)
मो.: 9315382236
अनुक्रम
लेख/भूमिका
मेरी लेखकीय यात्रा के छोटे-बड़े पड़ाव / सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
मानवीय भावों का सूक्ष्म विश्लेषण करती लघुकथाएँ : 'दीवारें बोलती हैं' / राधेश्याम भारतीय
लघुकथाएँ
1. लिंक
2. सर जी की दूसरी पारी
3. खुशहाली
4. मरी को मरने दो
5. अंदाज
6. अपवादू
7. दुर्घटना
8. सौंदर्य
9. भाई
10. नो मेंस लेंड
11. समुन्दर
12. नजदीकियाँ
13. सीसा
14. सफलता
15. भट्काव
16. डील
17. चॉकलेट
18. आखिरी सफर
19. दीवारें बोलती हैं
20. कार्तिक की बेस्ट फ्रैन्ड
21. कुछ भी
22. गुजिया
23. जवानी
24. रुखसाना
25. प्रेम
26. थ्रेडिंग
27. रुखसती
28. कसक
29. तुम्हारे बिना
30. इंसान
31. नई तालीम
32. ज़िंदगी
33. बारिश
34. पूरी औरत
35. निमंत्रण
36. कामना देवी
37. परिणाम
38. प्यार
39. मांसाहार
40. चक्रव्यूह
41. विकल्प
42. विश्वासघात्
43. तालीम
44. जद्दोजहद
45. अमराई
46. छुट्टी
47. जी - साब - जी
48. उतरन
49. चिराग
50. प्रॉमिस
51. बिरादरी
52. डर
53. उदास गुलाब
54. बच्चे की भूख
55. दहेज
संग्रह से प्रस्तुत है 55वीं लघुकथा 'दहेज'
"दस बीस-तीस या फिर पचास लाख, जितने की भी आपकी इच्छा होगी, हम खर्च कर सकते हैं। आप चाहेंगे तो हम अपना एक प्लाट भी आपके बेटे के नाम कर देंगें। हमें अपनी बेटी के लिए आपका बेटा इतना योग्य नज़र आया है कि हम सब कुछ आपकी इच्छा के अनुसार करने को तैयार हैं। आप बस हाँ कर दीजिए।” बेटी का बाप, होने वाले समधी के पांव छूने को आगे बढ़ा।
“ये क्या भाई जी, ऐसा करके मुझे नरक में मत ढकेलिए। बेटी तो आपकी भी किसी से कम नहीं है और मेरे बेटे सहित पूरे परिवार को पसंद भी है।" उन्होंने विनम्रता से कहा।
“जी, यही तो आपका बड़प्पन है। तो मैं रिश्ता पक्का समझू ?" “जी । यही समझिए पर एक आग्रह है कि मुझे दहेज तो चाहिए परन्तु वो नहीं जिसकी चर्चा आपने की है।” “जी, मैं उससे ज्यादा भी कर दूँगा। जो मैंने कहा है, वो तो सिर्फ एक बानगी है । आप हुकुम कीजिए।” लड़की का पिता खुशी से फूले नहीं समा रहा था।
“जी, मेरे घर की बहू पर्याप्त संस्कारित और पारिवारिक मूल्यों का सम्मान करने वाली होनी चाहिए और सम्भव हो तो अपने साथ सिर्फ दो जोड़ी कपड़े ही लाए । ईश्वर का दिया मेरे और मेरे पुत्र के पास अपना घर चलाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था है।" उनके शब्दों में विनम्र मुस्कुराहट थी ।
इस मांग को सुनते ही उन्होंने अपनी धर्मपत्नी पर शंका भरी दृष्टि डाली और फिर बोले, “जी, अभी तो हम विदा लेते हैं। हम घर में विचार करके आपसे फिर बात करेंगें ।” दोनों ने एक-दूसरे का अभिवादन किया और हाथ जोड़ दिए।
सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा
जन्मतिथि : 9 नवम्बर, 1951
जन्मस्थान : जगाधरी (यमुना नगर, हरियाणा)
पिताश्री : स्वर्गीय श्री मोहन लाल
माताश्री : स्वर्गीय श्रीमती धर्मवन्ती (जमनी बाई)
गुरुदेव : स्वर्गीय श्री सेवक वात्स्यायन (कानपुर विश्वविद्यालय)
पत्नी : श्रीमती कृष्णा कुमारी
शिक्षा : स्नात्कोत्तर (प्राणी-विज्ञान) कानपुर, बी.एड. (हिसार-हरियणा) लेखन विधा : लघुकथा, कहानी, बाल कथा, कविता, बाल कविता, पत्र - लेखन, डायरी लेखन, सामयिक विषया आदि ।
प्रथम प्रकाशित रचना : लाखों रुपये (कहानी), क्राईस चर्च कॉलेज, पत्रिका - कानपुर : (वर्ष 1971)
अन्य प्रकाशन : 1. देश की बहुत सी साहित्यिक पत्रिकाओं में सभी विधाओं में निरन्तर प्रकाशन 2. आजादी (लघुकथा - संग्रह), वर्ष-1999, 3. विष- कन्या (लघुकथा-संग्रह) वर्ष-2008, 4. तीसरा पैग (लघुकथा-संग्रह) वर्ष-2014, 5. सफर : एक यात्रा (लघुकथा-संग्रह) वर्ष - 2014, 6. उतरन (लघुकथा-संग्रह) वर्ष - 2019, 7. बन्धन - मुक्त तथा अन्य कहानियाँ (कहानी-संग्रह) वर्ष-2014, 8. मेरे देश की बात (कविता-संग्रह) वर्ष - 2014, 9. सपने और पेड़ से टूटे पत्ते (कविता-संग्रह) वर्ष-2019, 10. मुमताज तथा अन्य कहानियाँ (कहानी-संग्रह) वर्ष - 2021, 11. बर्थ-डे, नन्हें चाचा का (बालकथा संग्रह) वर्ष-2014, 12. रूखसाना (ई-लघुकथा-संग्रह) अमेजॉन पर उपलब्ध, वर्जिन स्टुडिओ, वर्ष-2018, 13. शंकर की वापसी (ई-लघुकथा-संग्रह) अमेजॉन पर उपलब्ध, वर्जिन स्टुडिओ, वर्ष-2018, 14. दीवारें बोलती हैं (लघुकथा-संग्रह), बहुत से सामूहिक संग्रहों में सहभागिता, वर्ष 2021
सम्पादन : 1. मृग मरीचिका (लघुकथा एवं काव्य पर आधारित अनियमित पत्रिका), 2. तैरते पत्थर डूबते कागज़ (लघुकथा-संग्रह), वर्ष-2004, 3. दरकते किनारे (लघुकथा - संग्रह), वर्ष-2004, 4. अपूर्णा तथा अन्य कहानियाँ (कहानी-संग्रह), वर्ष 2004, 5. लघुकथा-मंजूषा-2 (ई- लघुकथा-संग्रह) अमेजॉन पर उपलब्ध, वर्जिन स्टुडिओ, वर्ष-2018, 6. इकरा : एक संघर्ष (लघुकथा-संग्रह), वर्ष-2022, 7. बेबसी • तथा अन्य कहानियाँ (कहानी-संग्रह), वर्ष 2022
पुरस्कार : 1. हिंदी अकादमी (दिल्ली), दैनिक हिंदुस्तान (दिल्ली) से पुरस्कृत, 2. भगवती प्रसाद न्यास, गाजियाबाद से कहानी बिटिया पुरस्कृत, 3. अनुराग सेवा संस्थान 'लाल-सोट' (दोसा, राजस्थान) द्वारा लघुकथा-संग्रह 'विष-कन्या' को वर्ष 2009 में स्वर्गीय गोपाल प्रसाद पाखंला स्मृति, साहित्य सम्मान, 4. शंकर की वापसी (लघुकथा), दिनांक 11 जनवरी 2019 को पुरस्कृत (मातृभारती डॉट कॉम द्वारा) आजीविका शिक्षा निदेशालय, दिल्ली के अंतर्गत 32 वर्ष तक जीव-विज्ञान के प्रवक्ता पद पर कार्य करने के पश्चात नवम्बर 2011 में अवकाश प्राप्ति ।
संपर्क : डी- 184, श्याम पार्क एक्सटेंशन, साहिबाबाद, गाजियाबाद-201005 (उ.प्र.) मोबाईल : 09911127277,
ई-मेल: surendrakarora1951@gmail.com
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