कल की शक्ल / कमल चोपड़ा

 लघुकथा-संग्रह  : कल की शक्ल (बाल-मन की

                       चुनी हुई मर्मस्पर्शी लघुकथाएँ)

कथाकार  : कमल चोपड़ा

प्रकाशन वर्ष  : 2022

प्रकाशक :

किताब घर

4860-62/24, पहली मंजिल, अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली- 110002 

e-mail : kitabghar11@gmail.com

फोन नं. 011-45047517

© लेखक

प्रथम संस्करण : 2022

आवरण : सुरेंद्र गोस्वामी

मूल्य : तीन सौ पिचहत्तर रुपए  ₹ 375/-

ISBN 978-93-92889-09-7

अनुक्रम

बाल-मन की खुरदरी परतों को उकेरता कथाविन्यास-- बी. एल. आच्छा

1. बताया गया रास्ता

2. जात

3. खेलने के दिन

4. चमक

5. छोनू

6. खेल

7. फुहार

8. वैल्यू

9. मिन्नी को सजा

10. खेलने दो

11. प्लान

12. खौफ

13. आपकी बारी

14. विश

15. जीनेवाले

16. बड़ी गाली

17. वहां नहीं रहते वे

18. भगवान विभिन्न

19. एक पेड़ 

20. भगवान का घर

21. दहशत का नाम

22. सपने

23. बोये थे आम

24. बहुत बड़ी लड़ाई

25. अभिन्न

26. आप खुद

27. खिलवाड़

28. आप कहां हैं?

29. रामजी का खेत

30. पुरस्कार

31. रिप्पू का गुस्सा

32. अब्बू का मजहब

33. कल की शक्ल

34. चेहरे

35. खैरख्वाह

36. पहला आश्चर्य

37. किताब का साथ

38. तैसा

39. चाइल्ड ऐट वर्क

40. कसूर किसका

41. तेजाब में भविष्य

42. सुखी रहे

43. इंसान इंसान

44. सोशल

45. दुश्मन देश

46. हारना मत

47. बड़ा आया

48. हम क्यों नहीं

49. चोर

50. विषम खेती

51. असर

52. पुराना लेकिन अच्छा

53. पढ़ाया गया सच

54. अब

55. खोया हुआ सिक्का

56. अगले वर्ष 

57. मुन्ना हैरान

58. फल

59. कमाई

60. क्रूर चेहरों के बीच

61. हंसी

62. परिपक्व

63. इतने अच्छे

64. फ्रॉक

65. जानवर

66. निर्दोष

67. नकेल

68. सोहबत

69. मुन्ने ने पूछा

70. जो बोझ उठाये

71. सीख

फ्लैप 1 से

हिंदी लघुकथा की यात्रा में कमल चोपड़ा जी का अवदान जितना सृजनात्मक है, उतना ही विधा-विमर्शी भी ।

इन लघुकथाओं में निम्न वर्ग की तलहट्टियों के अंधेरों और संघर्षों का प्रतिबिंब रचा गया है और उनसे टकराने का माद्दा भी । इनमें किसी वैचारिक प्रतिच्छाया को ग्रहण किये बगैर सामाजिक प्रतिपक्ष को विरुद्धों की कौशल की गढ़ने की सकारात्मक दृष्टि है। इन लघुकथाओं में अभावों और पसीने के सौंदर्यशास्त्र को रचते हैं। इनमें करुण-विवशता के साथ प्रतिकार और सामाजिक-आर्थिक बदलाव की पुरजोर आकांक्षा है।

इन लघुकथाओं का फलक बालमन पर है। समाज और परिवार को सारे संघर्षों और दुनियादारी के प्रपंचों के अक्स इस बाल - मन के भीतर प्रतिबिंबित होते हैं। उलझते हैं और कसमसाते हैं। टकराते और विवशताजन्य परिदृश्यों में करुणा के पात्र बन जाते हैं। पर उनमें बदलाव और प्रतिकार की जितनी ताकत है, उतनी ही भावनात्मक बदलाव के साथ उस उलझे तंतुजाल से निकलने की समझ भी और वह भी बिना पोथी - पाठ के । इन लघुकथाओं में बालमन की सहज मनोविज्ञान के वे परिदृश्य हैं जो समाज और परिवार पृष्ठभूमि से उपजे हैं। चाहे जातीय विद्वेशों से उपजी हिंसा के भयावह परिदृश्य हों या निम्न मध्यम परिवार की आर्थिक विषमताओं से उपजी विवशताएं, जातीय ऊंच-नीच का समाजशास्त्र हो, बाल मजदूरी और शोषण के मार्मिक व्यवहार हों, धर्म-जाति के कर्मकांड हों, बलात्कार जैसे अपराधों का भय हो। बच्चों के मन पर गहरा असर होता है। पर उस भयावहता में बालमन कभी आघातों का शिकार होता है। कभी अपनी सूझ से रास्ता निकालता है। कभी विद्रोह और प्रतिकार की चिनगारियां फेंकता है। कमल चोपड़ा की ये लघुकथाएं हर कोण से इस बालमन की परतों के साथ समाज- अर्थशास्त्र के कथा पाठ रचती जाती है।

ये लघुकथाएं विवरणात्मक अंशों में नहीं खोतीं। घटनाचक्र की क्रियाशीलता और संवादों से अपनी यति-गति तलाशती हैं। विरोधी परिदृश्यों, रंगों की योजना, प्रतीकों की व्यंजना और चरित्रों की निर्मिति में मनोभूमियों, द्वंद्वों का नियोजन इनके स्थापत्य का कौशल है।

                                    - बी.एल. आच्छा

कमल चोपड़ा

जन्म -- सितंबर, 1955 (पंजाब)

शिक्षा--चिकित्सा स्नातक। 

कृतियां --

अतिक्रमण, भट्ठी में पौधा (कहानी संग्रह) 

अभिप्राय, फंगस, (लघुकथा-संग्रह) । अन्यथा, अकथ, अनर्थ (मराठी में संवेदना, कन्नड़ में 'इष्टो दूर' तथा पंजाबी में 'सिर्फ इंसान') नाम से लघुकथा संग्रह। मेरी चुनिन्दा लघुकथाएं ।

कमल चोपड़ा की 66 लघुकथाएं और उनकी पड़ताल। लघुकथा : सृजनात्मक सरोकार (आलेख) । एक बाल उपन्यास और दो बाल कहानी-संग्रह प्रकाशित। 

कई लघुकथा संकलनों का संपादन--हालात, प्रतिवाद, अपवाद, आयुध, अपरोक्ष, चिंगारियां, लघुकथा सृजन और विचार, अभिव्यंजना ।

संरचना (वार्षिक पत्रिका) का संपादन।

सम्प्रति-चिकित्सा और स्वतंत्र लेखन। 

संपर्क - 1600/114, त्रिनगर, दिल्ली-110035

चलभाष : 9999945679

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