कुकनूस / रवि प्रभाकर
लघुकथा-संग्रह : कुकनूस
कथाकार : रवि प्रभाकर
प्रथम संस्करण : 2022
मूल्य : 250 रुपये
प्रकाशक
देवशीला पब्लिकेशन, शेराँवाला गेट,
पटियाला- 147001 (पंजाब)
चलभाष: 94649-69740
ISBN No: 978-81-955189-9-9
अनुक्रमणिका
लघुकथा समय का दृष्टिसंपन्न लघुकथाकार : रवि प्रभाकर / डॉ. पुरुषोत्तम दुबे
लघुकथाएँ
1. अंध: अंधमनुसरित
2. अंधे अंधा ठेलिया
3. अभागे
4. अभियुक्त
5. आज़ादी
6. आज़ादी और दीवाने
7. एक बड़ा हादसा
8. कठघरे
9. करगा
10. कर्मजली
11. काकबंध्या
12. कुकनूस
13. कौआ
14. ख़ामोश चीखें
15. गर्भाधान
16. घर
17. चलो दिल्ली
18. चौपाया
19. डूबा तारा
20. तरक्षु
21. दंश
22. दीवारें
23. नारी पुराण
24. नालायक़
25. पराजित योद्धा
26. पहचान
27. पापा
28. पिघलती बुनियाद
29. प्रिज़्म
30. प्यादे
31. प्रयोगशाला
32. प्लास्टिक की श्रद्धा
33. फुहारें
34. बदलती परिभाषाएँ
35. बंधन
36. बधाई
37. बहू-बेटी
38. बाज़ार
39. बीज
40. बैताल पराजय
41. भारत पुराण
42. महँगी धूप
43. माँ
44. मुखौटे
45. मुर्दों का शहर
46. मैं एकलव्य नहीं
47. रद्दी
48. रिमोट
49. रियरव्यू
50. वफ़ादारी
51. विजेता
52. विरासत और सियासत
53. विश्व विजेता
54. विसर्जन
55. व्यवस्था
56. शंखनाद
57. शेड्स ऑफ़ ब्लैक
58. संत्रास
59. सर्द रात
60. सहारा
61. सिसकियाँ
62. सेवानिवृत्त
फ्लैप 1 व 2 पर...
रवि प्रभाकर जितने अच्छे लघुकथाकार थे, उससे कहीं बढ़कर आलोचक। ईश्वर ने उन्हें गजब की आलोचकीय दृष्टि प्रदान की थी, जिसे उन्होंने अपने गंभीर अध्ययन और चिंतन में बहुत माँज लिया था। जहाँ वे पुराने लेखकों के श्रम का सम्मान करते थे, वहीं आने वाली पीढ़ी के रचनाकारों को लेकर बेहद आशान्वित भी थे। किसी भी रचना का ऐसा नीर-क्षीर विवेचन करते कि देखने वाला मुग्ध हो जाए। इसकी बानगी उनके आलेख यह अंश स्वयं देता है :
"सोद्देश्यता सार्थकता है जिसका अर्थ है--संकेत, संकेत एक दिशा की ओर या एक अनदेखी स्थिति की ओर। प्रत्येक शब्द का एक अर्थ होता है और उस अर्थ के साथ कुछ संकेत भी होते हैं। लेखकीय कौशल केवल इसमें नहीं कि वह शब्द को पकड़े वरन् इस बात में है कि उसमें छिपे संकेत को भी उजागर करे।"
एक और उदाहरणस्वरूप देखें :
“लघुकथा सृजन हेतु अथवा किसी भी साहित्यिक रचना सृजन के दो पक्ष माने गए हैं। एक पक्ष वह होता है जिसमें भावनाओं की प्रधानता होती है और दूसरे में उन भावनाओं अथवा मनोभावों की प्रस्तुति के माध्यम की जिसे आमतौर पर शिल्प कह दिया जाता है जो अभिव्यक्ति पक्ष भी कहलाता है। किसी भी रचना का मूलभाव ही लेखक की संवेदना है परंतु सफल रचना के लिए कंवल संवेदना ही पर्याप्त नहीं अपितु सवंदना के पुन: निर्माण के लिए कल्पना भी अपरिहार्य है क्योंकि मनोभावों के चित्रों का अंकन कल्पना द्वारा ही संभव है। "
लघुकथाओं की भाषा के संदर्भ में एक अन्य समीक्षा का अंश दृष्टव्य है :
"अनुभवों की सार्थक अभिव्यक्ति का माध्यम भाषा है। रचनाकार अपने जीवन का व्यापक बोध, उसकी जटिलताएँ एवं मानवीय संवेदनाएँ भाषा के माध्यम से ही अभिव्यक्त करता है अर्थात् भाषा ही भावाभिव्यक्ति का प्रमुख साधन है। भाषा की यह संप्रेषण क्षमता जीवन-यथार्थ के स्पंदित परिवेश द्वारा ही संभव है। भाषा, जीवन सापेक्षता का पारस स्पर्श पाकर ही सृजनात्मक, अर्थपूर्ण और संप्रेषणीय बनती है। भाषा जितनी जन सामान्य के करीब होती है संप्रेषण उतना अधिक प्रभावकारी होता है। लेखक अपने जीवन-परिवेश से जो कुछ ग्रहण करता है उसका एक प्रकार का आभ्यंतरीकरण होता है और अभिव्यक्ति के समय जीवन परिवेश के विभिन्न चिह्नों, प्रतीकों और बिंबों से संचालित होकर ही वह संप्रेषणीय बनता है।"
रवि जी जैसा सुलझा हुआ, सहृदय, विनम्र, बहुआयामी व्यक्तित्त्व होना बहुत दुर्लभ-सी बात है। उनका असमय जाना लघुकथा के विकास के मार्ग में एक बहुत बड़ा अवरोध है। उनके जाने से लघुकथा जगत् में जो रिक्तता आई है, उसका दंश आने वाली पीढ़ी वर्षों तक महसूस करेगी।
सीमा सिंह
टॉवर N8, फ़्लैट न. 1505.
रॉयल नेस्ट
ग्रेटर नॉएडा -- 203207
रवि प्रभाकर
रवि प्रभाकर जी बेहतरीन लघुकथाकार, आलोचक व संपादक थे। उनकी लघुकथाओं को एक पुस्तक में पढ़ना निःसन्देह अलग तरह की लघुकथाओं से मिलना, ऐसा लग रहा है।
जवाब देंहटाएंकुकनूस के बहाने सही बात उठाई कही है।