लघुकथा शतक / जसबीर चावला (डॉ.)
कथाकार : डॉ. जसबीर चावला
C जसबीर चावला
ISBN : 978-93-84032-66-1
प्रकाशक :
गीतिका प्रकाशन
16, साहित्य विहार, बिजनौर-246701 (उ.प्र.)
फ़ोन : 01342-263232, 07838090732
ई-मेल : geetikaprakashan2310@gmail.com
वेब साइट : www.hindisahityaniketan.com
टाइप सैटिंग :
अनुभूति ग्राफ़िक्स, बिजनौर ( उ. प्र.)
आवरण : अनुभूति
मुद्रक : आदर्श प्रिंटर्स, दिल्ली 32
संस्करण : प्रथम 2020
मूल्य : तीन सौ रुपए
अपनी बात
पहला लघुकथा संग्रह नब्बे के दशक में छपा था, अयन प्रकाशन से। दूसरा 'सच के सिवा' 2004 में दोनों अब उपलब्ध नहीं हैं। स्व. भूपाल सूद जी से कई बार निवेदन किया था दूसरा संस्करण नहीं, तो चुनिंदा लघुकथाओं का एक संग्रह ही निकाल दें। नए संग्रह निकलते रहे, पर वह योजना साकार नहीं हुई। पांडुलिपि उनके यहाँ ही पड़ी रह गई। छापेंगे, छप रही है, छप गई है, करते-करते तो वे चल बसे। अब यह लघुकथा-शतक उनकी स्मृति को समर्पित है। उक्त दोनों किताबों से तो चुनी ही, साथ ही साथ 'कोमा में मछलियाँ' और 'आतंकवादी' से भी लघुकथाएँ लीं तो, सौ हो गईं।
शतक नाबाद रहे ! कोरोना- काल से निकलेंगे तो श्रेष्ठ लघुकथाओं का एक संकलन छपेगा । यद्यपि बड़ा मुश्किल होगा डेढ़ हजार लघुकथाओं में से श्रेष्ठ डेढ़ सौ का चयन करना। पाठक अपनी प्रतिक्रियाएँ देकर मदद करेंगे, विश्वास है। 'लघुकथा-शतक' के प्रकाशन के पीछे एक उद्देश्य यह भी है। डॉ॰ गिरिराजशरण अग्रवाल जी का आशीर्वाद भी एक बड़ा कारण है। 'रश्मि किरणें अर्चियाँ' की कविताओं के समांतर लघु-कथाओं को रख पढ़ा जाए तो आदरणीय स्वर्गीय डॉ॰ केदारनाथ सिंह जी की भविष्यवाणी को बल मिलेगा। उनकी प्रेरणा को स्मरण करते हुए....
चंडीगढ़। विनीत
25.10.2020। डॉ. जसबीर चावला
प्रस्तावना
धर्मयुग, सारिका के जमाने से उनमें तथा यत्र-तत्र पत्रिकाओं में जसबीर चावला का नाम देखता रहा हूँ। पता नहीं चलता था, यह साहित्यकार दुर्गापुर में है कि राँची में? कभी कोलकाता का पता, कभी जालंधर का तो कभी चंडीगढ़ का। अब कोरोनाकाल में जब निकट से जानने का संयोग मिला तो यकीन नहीं हुआ कि एक धातु विद्यार्थी इंजीनियर साहित्य-साधना में इतना परिपक्व हो सकता है कि वह हर विधा में लिखता है और वह भी कई भारतीय भाषाओं में। इसका कारण है जसबीर का घाट घाट का पानी पीना। अब डॉ० जसबीर चावला, चंडीगढ़ के स्थायी निवासी हैं और अपने समग्र लेखन में विभिन्न भारतीय भाषाओं के प्रभावों को प्रिंट मीडिया की मार्फत उजागर कर रहे हैं। अभी कुछ दिनों पहले उनकी कविताओं की किताब 'रश्मि किरणें अर्चियाँ' का पहला पाठक और प्रकाशक बना। उनमें भी वही ध्वनियों की तलाश करता धातु विद्यार्थी का कवि-मन दिखा। हर धातु की अपनी खास आवाज होती है, आप गिराकर देख लीजिए। ध्वनि सुनकर पहचान हो जाती है। जसबीर भी यही करते हैं। शब्दों से नहीं, उन्हें ध्वनियों से लगाव है । उसी हिसाब से वह भाषा चुन लेते हैं।
इस दौरान उनसे रचनाओं को लेकर बातें होती रहीं। वह सहज-सरल हैं, बिल्कुल जटिल नहीं। जैसा जीते हैं, सोचते हैं वैसा ही लिखते हैं। दिखावटीपन नहीं है। शायद यही कारण है कि उनकी लघुकथाओं में बहुत पैनापन है। संसार के बारे उनकी समझ में पश्चिम के वैज्ञानिकों और बुद्ध की अवधारणाओं का मिश्रण है, परंतु गंभीर सामाजिक सरोकार उनकी चेतना को वर्तमान से कसकर जोड़े हुए हैं। प्रस्तुत संग्रह 'लघुकथा शतक' चाहे उनकी पुरानी लघुकथाओं में से चुनी हुई सौ लघुकथाओं का संग्रह है, पर आज भी उतना ही सामयिक है। जो डेढ़ हजार से ऊपर कथाएँ लिख चुका हो उसके पंद्रह लघुकथा शतक तो सीधे-सीधे बनतें हैं। ईश्वर से प्रार्थना है, उनके शतक सदैव नाबाद रहें । अस्तु ।
-डॉ० गिरिराजशरण अग्रवाल
कथाक्रम
बुतरू
बाल्टी गैंगरीन
रसिका - नसिका
मणि
एक म्यान दो तलवारें
तैंतीसवीं पुतली
ऊँट के नीचे पहाड़
दक्षिणायण
राजपेड़
अधेड़ रिश्ता
जंगल
पारस
रैपर
काना राजा
फुल पावर
बाकी तुम समझो
स्वर्ण-स्पर्श
उदय-अस्त
छींका
अकाल पुरुख
स्टिंग ऑप्रेशन
ठेके-हाते
कुत्ता आतंक
बाँग
जल - विवाद
काला सच
उडीक
उत्तरकथा
बूढ़ों की सैर
नक्शा
चिड़िया संकल्प
भगवान जो करता
यथार्थ गीता
सच्चा सच
अपने पैर
अंधड़
अंखडता
सौभाग्य
करप्शन
पैसे पर पैसा
खाली स्थान
बछड़ा
दो बंदर
पनीर का टुकड़ा
हिसाब
कश्मीरी बकरी
प्रदूषण और पेड़
देवते नहीं मरे
पानी और प्यास
कर्ज कि शांति
मेहनत का बिजनस
रहमदिली
अनहोनी
दुआ-ए-मुर्ग
विधान
पेंगुइन
पितर कौए
शेर चूहा
सुहाग दिन
लस्से
सुराग
वरदान
आदमी और शेर
रामदीन का लालटेन
सुई और छलनी
रामप्यारी
नई शांति
तेल की धार
अंगूर काले हैं
राज-काज
आतंकवादी
लालच कला
एक दक्षिणा एक दंड
त्रिकाल दर्शन
विलायती बोल
टाडा
सच के सिवा
पोंछा
बेटी की शादी
फकीर
नंगा राज
अलग
कोयले की चाकरी
माँ हाफ, बाप हाफ
मच्छर
नीचे वाली चिटखनी
संतानें
बेसड़क
कर्ण या कबीर
चिड़िया
पाप-पुण्य
मुहर
भिखमंगे
महाराजा की आँख
श्रम
बम्प
जैसे चलता है, वैसे चलेगा
भेड़िये की नीयत
सरसों में भूत
परिचय
डॉ. जसबीर चावला
शिक्षा : बी-टेक इन मैटलर्जीकल इंजीनियरिंग (काशी हिंदू विश्वविद्यालय); एम बी.ए. (बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रांची, मेसरा) एम.ई. इन मैटलर्जी एंड मैटीरियल साइंस (पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज विश्वविद्यालय, चंडीगढ़); पीएच.डी. (जातक कथाओं में प्रबंधशास्त्रीय तत्त्व) पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़। एम. ए. (रूसी भाषा), पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ : फ्रैंच एवं तिब्बती भाषा में डिप्लोमा।
प्रकाशित कृतियाँ : कविता-संग्रह-चेरनोबिल, हलफनामा, जनता जान गई, यह नहीं आवाज खालिस्तान की, सबेरा सवाल बना रहेगा, एक टुकड़ा बादल, इसे फिर से सुनिये, बस में बिकती किताब, नौ खंड पृथ्वी, अपने घर लौटकर, महज भीड़ नहीं कलकत्ता, देसवाली में ईश्वर। लघुकथा-संग्रह- नीचे वाली चिटखनी, सच के सिवा, कोमा में मछलियाँ, आतंकवादी, शरीफ जसबीर, डस्टबिनों का हँसी योग, सियाचिन का पेड़। निबंध-संग्रह-दरारें और दलाल, नज़र-नज़र-नज़रिया, इस्पाती ऊँचाइयों की ओर, बुद्धकीय प्रबंधन पुस्तक माला-भ्रष्टाचार प्रबंधन, दांपत्य कलह प्रबंधन।
सम्मान : हिंदीतर भाषी हिंदी लेखन पुरस्कार, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार (1990-91); हिंदीसेवी सहस्राब्दी सम्मान (2000); राष्ट्रभाषा रत्न, हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग (2001); साहित्यश्री सम्मान; साहित्य वाचस्पति (2013); साहित्य शिरोमणि सारस्वत सम्मान, भारतीय वाङ्मय पीठ, कोलकाता (2013); त्रिवेणी साहित्य सम्मान, साहित्य त्रिवेणी, कोलकाता (2013); कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर सारस्वत साहित्य सम्मान, भारतीय वाङ्मय पीठ, कोलकाता (2014); सृजनगाथा सम्मान, रायपुर (2014) बिजौंग (चीन) में। नये पाठक सम्मान (2016) बाली (इंडोनेशिया) में।
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