हिन्दी लघुकथा : विश्लेषण में खुलते विविध आयाम /शील कौशिक (डॉ.)

पुस्तक  : हिन्दी लघुकथा विश्लेषण में खुलते विविध आयाम 

लेखिका  : 

डाॅ. शील कौशिक 

ISBN : 978-93-93219-07-7

मूल्य : चार सौ रुपये

प्रथम संस्करण: 2022

सर्वाधिकार : लेखिकाधीन 

प्रकाशक : 

राइजिंग स्टार्स

600/5-ए, आदर्श मोहल्ला, 

गली नं० 15 मौजपुर, दिल्ली- 110053

चलवार्ता : 9891985727

अनुक्रम

1. जनमानस से जुड़ती विधा, लघुकथा : भविष्य, दृष्टि व पोषण 

2. हिंदी लघुकथा में फिल्मी गीतों की अवधारणा

3. दिव्यांग जगत की लघुकथाओं में सामाजिक चेतना

4. लघुकथाओं में शिल्प व शैली को लेकर प्रयोगशीलता के आयाम

5. हिंदी लघुकथाओं में बुजुर्ग विमर्श 

6. लघुकथा के विकास में प्रयोगात्मक संभावनाएँ

7. लघुकथा में नवाचार की सार्थक पहल

8. हिंदी लघुकथाओं में नारी चेतना

9. हिंदी लघुकथा में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण विश्लेषण

10. हिंदी लघुकथा में शीर्षक का महत्व एवं प्रयोगशीलता

11. समीक्षा के क्षेत्र में नई संभावनाएँ

12. रोजमर्रा के जीवन में झाँकती प्रयोगधर्मी लघुकथाएँ

13. आधुनिक हिंदी लघुकथा के समीक्षा बिंदु

नामचीन लघुकथाकारों की लघुकथाओं की प्रकृति और पाठ पर लिखे समीक्षात्मक आलेखों का दस्तावेजीकरण

■ डॉ. पुरुषोत्तम दुबे

अगर महिला और पुरुष समीक्षकों में श्रेणीगत भेद न किया जाए तो लघुकथा-विधा के समीक्षकों की जमात में डॉ. शील कौशिक अग्रिम पंक्ति में खड़ीं लघुकथा की कुशल अन्वेषी और गंभीर समीक्षक के रूप में अपनी मुस्तैद पहचान बना चुकी हैं। लघुकथा की दृष्टि संपन्न समीक्षक होने की योग्यता के पीछे शील कौशिक का अपार अध्ययन, फिर किए हुए अध्ययन पर प्रचुर चिंतन-मनन और जिसके परिणाम स्वरूप प्राप्त निधियों को अनवरत अभिलेखन से शील कौशिक ने समीक्षा पद्धति की जो कमाई की है, उसी का प्रतिफल है कि शील कौशिक अपनी बेबाक टिप्पणियों के सहारे लघुकथाओं का शल्य परीक्षण कर पाने में दक्ष है।

डॉ. शील कौशिक की पुस्तक 'हिंदी लघुकथा विश्लेषण में खुलते विविध आयाम' लघुकथा समय में लघुकथा की समीक्षा पद्धति के नए आयाम खोलती, लघुकथा की रचना-प्रक्रिया में नए और सामयिक मूल्यों की आवश्यकताओं और अनिवार्यताओं का बीजारोपण करतीं एवं नए और पुराने लघुकथाकारों के मध्य साम्य तथा वैषम्य का ससंदर्भ विश्लेषणात्मक विधान रचती, लघुकथा पर अपने विचारों की गुणात्मक समृद्धि का ऐसा व्यापार चलाती हैं, जिससे लघुकथा की मूल्य-परखता विषयक चेतना लघुकथा के सुधी पाठकों को सहज प्राप्त हो सके।

लघुकथा लेखन ने समय-समय पर कई अंगड़ाइयाँ ली हैं। समकालीन लघुकथा लेखन के तेवरों में युगानुरूप परिवर्तन हुए हैं। ऐसे तमाम वृत्तांतों को पार्श्व में रखते हुए, बृहत जनमानस के साथ लघुकथा का जुड़ना, लघुकथाओं के लेखन तथा पाठन के संबंध में भौगोलिक सीमाओं का एक होना, परिणामस्वरूप आँचलिक शब्दों की व्यापक आमद लघुकथा में होना, इसी के साथ आधुनिक लघुकथाओं में अछूते बिंब, युगबोध, मूल्यबोध की स्थापना का सवाल हल होना। बरअक्स इसके लघुकथा का आकार-प्रकार के तारतम्य में बहस-मुबाहिसों को रेखांकित करते हुए लघुकथाओं में सांकेतिकता एवं प्रतीकात्मकता जैसे जरूरी बिंदुओं पर विस्तार से वस्तुनिष्ठ विवेचन करना डॉ० शील कौशिक का मंतव्य रहा है। जिसकी पुष्टि में उनकी प्रस्तुत पुस्तक 'हिंदी लघुकथा विश्लेषण में खुलते विविध आयाम' लघुकथा के साथ घटित तमाम सृजनात्मक आरोह अवरोहों का दस्तावेजीकरण की सूरत में सामने आई है।

लघुकथा विधा के उन्नयन में लघुकथा जगत को विराट अवदान देने वाले दिशा प्रकाशन, दिल्ली के संस्थापक और लघुकथाकार स्वर्गीय मधुदीप को स्मृति में अपनी लेखनी की अंजूरी से श्रद्धा सुमन चढ़ाते हुए प्रस्तुत पुस्तक के लेखन का मुहूर्त जगाकर शील कौशिक की यह पुस्तक किसी सारस्वत अनुष्ठान से कम नहीं है। वस्तुतः शील कौशिक की यह पुस्तक लघुकथा विधा पर आयोजित व्यावहारिक मगर शाब्दिक रूप में ऐसा वर्कशाप है जिसमें सम्मिलित लघुकथा विषयक विविध आलेख कहीं से बटोरे हुए न होकर शील कौशिक की उस शोधपरक दृष्टि से अवतरित हैं, जिन आलेखों की सृजना में लेखिका शील कौशिक ने उन बिंदुओं को विवेचित किया है जो आज के समय में बल्कि यूँ कहें कि आज की लघुकथाओं की लिखाई में महत्वपूर्ण आधार निरूपित हो सकते हैं।

मैं यह भलीभाँति जानता हूँ कि आज के दौर की लघुकथाओं के जिज्ञासु पाठक किसी भी पुस्तक को पढ़ने से पूर्व उसकी अनुक्रमणिका से होकर अपनी पाठकीय यात्रा आरंभ करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में संग्रहित आलोचनात्मक आलेखों के सांकेतिक प्रयोजन लेखिका शील कौशिक ने पुस्तक की अनुक्रमणिका में विवेचित किए हैं, जो लेखकीय मंतव्य को स्पष्ट करने में सार्थक हैं।

जिन मूलभूत अवधारणाओं के साथ आज के दौर में महत्वपूर्ण लघुकथाएँ लिखी जा रही हैं, उनमें प्रथमत: फिल्मी गीतों के मुखड़े से सन्नद्ध होकर लघुकथाएँ आ रही हैं। तदंतर लघुकथाओं में बुजुर्ग जीवन, विकलांग जीवन से संश्लिष्ट समस्याओं का पुरजोर अभिलेखन चल रहा है, उसको आधार बनाकर बहुतायत में लघुकथाएँ आ रही हैं।

एक अन्य बिंदु लघुकथाओं में प्रयोगशीलता को लेकर हैं, जो आज की लघुकथा की रचनात्मकता में आवश्यक प्रतीत होने लगा है। साथ ही इसी तारतम्य में लघुकथा के विकास में प्रयोगात्मक संभावनाएँ जोर पकड़ने लगी है। शील कौशिक ने लघुकथाओं में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण की महत्ता को समेटा है, और साथ ही लघुकथा के शीर्षकों को लेकर जो चर्चाएँ प्राय: हैं उनके तारतम्य में भी पृथक में बातें की हैं।

लब्बोलुआब यह है कि डॉ. शील कौशिक की हाजिर पुस्तक उनकी लघुकथा विधा के प्रति आस्था, उसकी सृजनाविषयक चिंताएँ, लघुकथा लेखन की भरमार में खोता लघुकथा का अस्तित्व, उसकी सर्जना में ताबड़तोड़ व्यवहार, उसकी सांकेतिकता में लेखकीय भूलें, उसकी प्रयोगशीलता में गांभीर्यहीनता आदि अनेक विषयों के तारतम्य में शील कौशिक पर्याप्त सतर्कता के साथ बिंदु-बिंदु बात रखती हुई अपनी पुस्तक में समयानुरूप निष्कर्ष देती मिलती है।

प्रस्तुत पुस्तक के प्रणयन में डॉ० शील कौशिक ने कितना शाब्दिक स्वेद बहाया है, यह तो लेखिका की लेखनी जानती है या इस पुस्तक के सहृदय पाठक जान सकेंगे जो इस पुस्तक का आद्योपांत वाचन अपनी इच्छा शक्ति के साथ करने में प्रवृत्त मिलेंगे।

मैं व्यक्तिगत रूप में शील कौशिक की इस महत्त सर्जना को निष्ठापूर्वक नमन करता हूँ और आशा करता हूँ कि लघुकथा के इतिहास में प्रस्तुत पुस्तक चर्चित होकर लघुकथा विधा पर शोधकार्य करने वाले शोधार्थियों का मार्गदर्शन देने में सफल सिद्ध होगी ।

'शशीपुष्प' 74- जे / ए, 

स्कीम नं० 71, इंदौर-452009 ( म. प्र.)

मो० 9329581414

लेखकीय

आलेख संग्रह के बहाने आदरणीय मधुदीप की याद बड़ी शिद्दत से आ रही है। अखिल भारतीय स्तर की 'पड़ाव और पड़ताल श्रृंखला के प्रणेता तथा संयोजक आदरणीय मधुदीप जी, लघुकथा के इतिहास में सदा के लिए एक जीवंत संदर्भ बन गए हैं। उन्होंने अनेकानेक लघुकथाकारों, समीक्षकों को इस श्रृंखला में स्थान देकर उन्हें उस रूप में पुख्ता पहचान दी है। मैं भी उनमें से एक हूँ। दूसरे शब्दों में अगर कहूँ, मुझे लघुकथा समीक्षक बनाने में उनका ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। उन्होंने मुझ पर विश्वास जताया और सर्वप्रथम स्वर्गीय रामकुमार आत्रेय जी की ग्यारह लघुकथाओं को समीक्षा के दायरे में लेकर विश्लेषण करने का अवसर प्रदान किया। मैंने भी उनके द्वारा ली परीक्षा में सफल होने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी और अपने आप को यथासंभव सिद्ध करने का प्रयास किया। मेरे इस प्रयास ने समीक्षा के क्षेत्र में मेरे लिए राह खोली। फिर तो यह यात्रा चल निकली। मैंने अखिल भारतीय स्तर की लघुकथा समीक्षा की 'पड़ाव और पड़ताल 'श्रृंखला के सात खंडों यथा 7 8 9 13, 15, 29 में समीक्षक के रूप में तथा एक समस्त खंड 28 की समालोचना की। इसके अतिरिक्त देश भर के प्रमुख लघुकथाकारों के लघुकथा-संग्रहों, संकलनों की समीक्षा की है, जिनमें प्रमुख हैं डॉ॰ श्याम सुंदर दिप्ति, रामकुमार आत्रेय, प्रबोध कुमार गोविल, सविता गुप्ता. रामकुमार घोटड़, मधुकांत, गोविंद शर्मा, प्रोफेसर रूप देवगुण, राधेश्याम भारतीय, पंकज शर्मा, नरेंद्रकुमार गौड़, डॉ० रामनिवास मानव, अनिल शूर आजाद कृष्णलता यादव, डॉ० अशोक लव, प्रतापसिंह सोढ़ी, प्रद्युम्न भल्ला, अमर सहानी, त्रिलोकसिंह ठुकरेला आदि। यह सूची बहुत लंबी है । मैं रुकी नहीं, इस क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ती रही हूँ। आदरणीय मधुदीप जी द्वारा 'लघुकथा के समीक्षा बिंदु' नामक पुस्तक में देश के चुनिंदा आलोचकों, समीक्षकों द्वारा लिखे गए आलेखों में बीस पृष्ठों का मेरा आलेख भी सम्मिलित है। यह मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि के समान है। मेरे विस्तृत समीक्षा कार्य मध्य नजर आदरणीय मधुदीप जी ने वर्ष 2021 में समीक्षा के क्षेत्र में पहली पहली बार शुरू किए' नवोदित लघुकथा समीक्षक सम्मान' के लिए मुझे चुना और 'शकुंत दीप स्मृति दिशा सम्मान की घोषणा की। लघुकथा के क्षेत्र में यह मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान और प्रोत्साहन था। अभी वर्ष 2022 में मेरी लघुकथा आलोचना की दो पुस्तकें' डॉक्टर मानव की लघुकथाओं का अंतर्पाठ' तथा' अनिल शूर आजाद की लघुकथाओं का विवेचनात्मक अध्ययन' प्रकाशित हुई हैं। उपरोक्त के अतिरिक्त समय-समय पर मैंने अनेकानेक लघुकथा आलेख भी लिखे हैं, जो पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुए हैं। उन्हीं में से कुछ आलेख प्रस्तुत संग्रह 'हिंदी लघुकथा विश्लेषण में खुलते विविध आयाम' में सम्मिलित किए गए हैं।


डॉ० लता अग्रवाल द्वारा विरेचित साक्षात्कार संग्रह 'लघुकथा का अंतरंग' में मेरा साक्षात्कार' शैलियाँ ही लघुकथा का श्रृंगार हैं' शीर्षक से प्रकाशित हुआ


लघुकथा में मेरी समीक्षक दृष्टि को पहचानने वाले मेरे बड़े भाई मधुदीप जी अब इस दुनिया में नहीं है, किंतु उनका यश पीढ़ियों की संकल्पित सर्जन यात्रा का पाथेय हमेशा बना रहेगा। लघुकथा के इस वट वृक्ष के बारे में कहा जा सकता है :

'वह बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई, इक शख्स लघुकथा को इस कदर वीरान कर गया।'

आभार प्रकट करने की श्रृंखला में कृतज्ञ हूँ उस दिव्य आत्मा को जो अब हमारे बीच सशरीर उपस्थित नहीं है, किंतु उनकी पावन स्मृति सदा मेरे हृदय में विराजित है।

आभारी हूँ लघुकथा के प्रमुख आलोचक आदरणीय डॉक्टर पुरुषोत्तम दुबे जी की, जिन्होंने मेरी इस पुस्तक पर अपना महत्वपूर्ण मत रखने के साथ-साथ पुस्तक का शीर्षक भी सुझाया।

आभारी हूँ अपने जीवनसाथी डॉ० मेजर शक्तिराज जी तथा परिवार के सदस्यों की, जिनका सहयोग व प्रोत्साहन मुझे निरंतर मिलता रहता है। यह सदैव बना रहे, इसलिए आभार प्रकट कर उनकी इस भावना से मैं उऋण नहीं होना चाहती।

अंत में कृतज्ञ हूँ उन सभी वरिष्ठ लघुकथाकारों तथा आलोचकों की जिनसे मैं सदैव कुछ न कुछ सीखने का प्रयास करती रहती हूँ।

आशा ही नहीं, पूर्ण विश्वास है कि मेरी यह लघुकथा की पुस्तक शोधकर्ताओं के लिए तथा लघुकथा की विकास यात्रा में महत्वपूर्ण सिद्ध होगी, साथ ही लघुकथा पाठकों एवं लघुकथा प्रेमियों को लघुकथा विधा को समझने सहायक सिद्ध होगी।

शुभाकांक्षी

डॉ. शील कौशिक 

जन्म व जन्म स्थान 19 नवम्बर 1957, फरीदाबाद (हरियाणा)

शिक्षा : एम.एससी. एल.एलबी. एम.एच.एम ( होम्योपैथी) विद्यासागर भारत गौरव (मानद उपाधि)

सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला मलेरिया अधिकारी स्वास्थ्य विभाग हरियाणा ।

प्रकाशित पुस्तकें : कुल 46. मौलिक--32. सम्पादित--6. अनुवादित--4, लेखिका पर पुस्तक--4

सम्मान व पुरस्कार : हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा 2014 में श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान 2018 में हरियाणा साहित्य रत्न (पंडित माधवप्रसाद मिश्र सम्मान) व लघुकथा संग्रह 'कभी भी कुछ भी को श्रेष्ठ कृति पुरस्कार सहित देश भर की प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा 100 से भी अधिक सम्मान, कृतिकार सम्मान व पुरस्कार प्राप्त।

शोध कार्य : कहानी लघुकथा कविता तथा बाल कहानी की पुस्तकों पर तीन पीएच.डी. व छह लघु शोध प्रबंध सम्पन्न सम्पन्न ।

लघुकथा विधा में उपलब्धियाँ

चार एकल लघुकथा संग्रह : उसी पगडंडी पर पांव (2004) कभी भी कुछ भी (2011) मेरी चुनिंदा लघुकथाएँ (2010) छूटा हुआ सामान (2021) आलोचनात्मक पुस्तकें डॉ. मानव की लघुकथाओं का अंतर्पाठ, अनिल शूर आजाद की लघुकथाओं का विवेचनात्मक अध्ययन।

अनुवाद : 'कभी भी कुछ भी' लघुकथा संग्रह का पंजाबी में अनुवाद जगदीश राय कुलरियां द्वारा, अनेक लघुकथाओं का पंजाबी में अनुवाद 'मिनी त्रैमासिक' में प्रकाशित। 

सम्पादित लघुकथा संग्रह : भावुक मन की लघुकथाएं, सिरसा जनपद की लघुकथा सम्पदा - 2016, सिरसा लघुकथा इतिहास का स्वर्णिम दिन (18 दिसंबर, 2016), लघुकथा पर्व (2018-19)।

लघुकथा में सम्मान व पुरस्कार : हरियाणा साहित्य अकादमी. पंचकूला द्वारा लघुकथा पुस्तक 'कभी भी कुछ भी के लिए वर्ष 2012 का श्रेष्ठ कृति पुरस्कार, अखिल भारतीय हिंदी प्रसार प्रतिष्ठान, पटना द्वारा 'लघुकथा रत्न' श्री ओम प्रकाश यादव मेमोरियल समिति, अटेली मंडी एवं हरियाणा ग्रंथ अकादमी, पंचकूला द्वारा 'लघुकथा 'शिरामणि सम्मान 2010' हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच गुरुग्राम द्वारा 'लघुकथा मणि सम्मान', डॉ. मनमुक्त 'मानव' लघुकथा गौरव सम्मान - 2019, पंजाब कला साहित्य अकादमी, जालंधर 'प्रतिष्ठाजनक लघुकथा श्रेष्ठ अवार्ड' 28.11.21. 'नवोदित लघुकथा समीक्षक' शकुन्तदीप स्मृति दिशा सम्मान 2021 की घोषणा। अखिल भारतीय कुमुद टिक्कू लघुकथा प्रतियोगिता में 'हवा के विरुद्ध' लघुकथा को द्वितीय पुरस्कार, अखिल भारतीय हिंदी लघुकथा प्रतियोगिता 2016 जैमिनी अकैडमी, पानीपत द्वारा लघुकथा 'स्वर्ग की ओर' को प्रथम पुरस्कार। 

लघु शोध कार्य : संग्रह 'उसी पगडंडी पर पांव' में युगबोध (गुरु काशी विश्वविद्यालय, तलवंडी साबो, बठिंडा)। अखिल भारतीय स्तर की लघुकथा व समीक्षा की महत्वपूर्ण श्रृंखला 'पड़ाव और पड़ताल' के सात खंडों यथा--7, 8, 9, 13, 15, 29, 31 में समीक्षक के रूप में व एक समस्त खंड (28) की समालोचना देशभर के 50 लघुकथाकारों के लघुकथा-संग्रहों / संकलनों की समीक्षा की है। 50 से अधिक लघुकथा संकलनों में लघुकथाएं प्रकाशित। 'लघुकथा का अंतरंग' लघुकथा पर केंद्रित 'साक्षात्कार-संग्रह में 'शैलियां ही लघुकथा का श्रृंगार हैं' साक्षात्कार 'लघुकथा संवाद'।

संपर्क- मेजर हाउस, 17, हुडा सेक्टर- 20, पार्ट-1 सिरसा-125056 हरियाणा 

मो. 9416847107

ई-मेल: sheelshakti80@gmail.com

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