क्षितिज (लघुकथा-आलोचना अंक-2022) / सतीश राठी (सं.)
क्षितिज
समकालीन लघुकथा लेखन की विशिष्ट पत्रिका
• अंक : 13 • वर्ष 2022
• लघुकथा समालोचना अंक
■ सम्पादन
सतीश राठी, दीपक गिरकर
■ सम्पादक मंडल :
वसुधा गाडगिल, अंतरा करवड़े, सुरेश रायकवार
■ प्रबंध सम्पादन : उमेश कुमार नीमा
■ कला सम्पादन : संदीप राशिनकर
■ परामर्श मंडल :
सूर्यकांत नागर, ज्योति जैन, पुरुषोत्तम दुबे, अश्विनी कुमार दुबे, चरण सिंह अमी, प्रदीप नवीन
■ विधिक सलाहकार :
सुभाष त्रिवेदी
■ क्षेत्रीय सलाहकार
उज्जैन : संतोष सुपेकर
भोपाल : कांता राय
नीमच : बालकृष्ण नीमा
चेन्नई : बी.एल. आच्छा
अयोध्या : हनुमानप्रसाद मिश्र
जबलपुर : पवन जैन
छिंदवाड़ा : पवन शर्मा
■ विशेष सहयोग : अदिति सिंह भदोरिया, ब्रजेश कानूनगो, दिलीप जैन, दौलतराम आवतानी, जितेन्द्र गुप्ता, किशन कौशल शर्मा, ललित समतानी, नरेन्द्र जैन, निधि जैन, रश्मि चौधरी, राममूरत राही, सीमा व्यास, आर.एस. माथुर, विश्वबंधु नीमा, विनीता शर्मा, यशोधरा भटनागर, चंद्रा सायता
■ सम्पादन/संचालन अवैतनिक/अव्यावसायिक
■ लेआउट-डिजाइन : नितिन पंजाबी (वी.एम.ग्राफिक्स, इंदौर)
■ सहयोग राशि : रु.200/
■ सम्पर्क : क्षितिज, आर- 451, महालक्ष्मी नगर, इंदौर-452010 (म.प्र.)
ई-मेल : rathisatish1955@gmail.com
इस अंक में प्रकाशित रचनाओं के लिए लेखक उत्तरदायी है। प्रकाशक या सम्पादक का इनसे सहमत होना अनिवार्य नहीं है। किसी भी विवाद की स्थिति में न्याय क्षेत्र इन्दौर रहेगा।
अनुक्रमणिका
आलेख
लघुकथा : सृजन भूमि और आलोचना दृष्टि / बी. एल. आच्छा
लघुकथा में शिल्प, भाषा और संवेदना / माधव नागदा
ऋग्वेद में कथा-सूक्त / बलराम अग्रवाल
आपदाकाल और लघुकथाएँ / संतोष सुपेकर
मालवा का लघुकथा परिदृश्य (इंदौर के विशेष संदर्भ में) / सतीश राठी
भाषा, शिल्प, शैली और सौंदर्य बोध की पड़ताल / डाॅ. पुरुषोत्तम दुबे
क्षितिज साहित्य संस्था लघुकथा प्रतियोगिता : 2022 की पुरस्कृत लघुकथाएँ
क्षितिज आयोजन समिति
लघुकथाएँ
लघुकथा/लेखक
दूध/चित्रा मुद्गल
मैं वही भगीरथ हूँ/ शरद जोशी
मृगजल / बलराम
बैकग्राउंड/ सतीश राठी
चौराहे पर / पारस दासोत
रांग नंबर/मुरलीधर वैष्णव
षड्यंत्र / पवन शर्मा
इस बार / सन्तोष सुपेकर
संगमरमरी आतिथ्य/बी.एल. आच्छा
लाचार/विनीता शर्मा
लिफाफा/ब्रजेश कानूनगो
परोपकारी उवाच / राम मूरत राही
पनबेसरी / पवन जैन
जाके पैर फटे न बिवाई/ज्योति जैन
जानवर / कनक हरलालका
मजबूरी / विजया त्रिवेदी
सीवन/अंजू निगम
खालीपन / राजेन्द्र वामन काटदरे
जीवन की पूँजी/सुषमा व्यास 'राजनिधि'
अनाथ वृक्ष/ दिलीप जैन
सुनामी सड़क / चेतना भाटी
एक्सीडेंट / डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल
सरनेम/ललित समतानी
जिस्मों का तिलिस्म/सतीश राठी
नो हॉर्न प्लीज/सीमा व्यास
अबोध कौन/आशागंगा प्रमोद शिरढोणकर
टिकली वाली बंदूक / कोमल वाधवनी 'प्रेरणा'
सम्मान/ यशोधरा भटनागर
माँ के सूत्र / विजय जोशी 'शीतांशु'
बेटी बचाओ/अदितिसिंह भदौरिया
कलयुग की कैकयी/डॉ. संगीता भारूका
तफ्तीश जारी है/दीपक गिरकर
रीत/ डॉ. संगीता तोमर
अन्नदान / आर. एस. माथुर
अवगुंठन / दिव्या शर्मा इंसानी
बस्ती / डॉ. वसुधा गाडगिल
केसर की छोरी का दसेरा/ सूर्यकांत नागर
लेकिन खुद / हनुमानप्रसाद मिश्र
क्रेडिट कार्ड /राजनारायण बोहरे
अदला बदली/अनघा जोगलेकर
स्वामिनी/विजयसिंह चौहान
वीराने में बहार/ डॉ. चंद्रा सायता
लहर/अंतरा करवड़े
भूमिका
लघुकथा समालोचना अंक के बहाने
• सतीश राठी
क्षितिज का पिछला अंक संवादात्मक शैली की लघुकथाओं पर प्रकाशित किया गया था। उसके पहले पाठकों के द्वारा पढ़ी गई लघुकथाओं पर पाठकीय समालोचना को शामिल करते हुए क्षितिज का लघुकथा विवेचना अंक निकाला गया था। शैशव काल से ही क्षितिज संस्था ने विभिन्न प्रतियोगिताओं के माध्यम से लघुकथा के कला पक्ष, शिल्प, भाषा, संवाद, शैली आदि पर निरंतर चर्चा की है, लेकिन समालोचना पर केंद्रित करते हुए कोई अंक संभवतः नहीं आ पाया। इसी बात को ध्यान में रखते हुए इस अंक में कुछ समालोचना आलेखों के साथ लघुकथा पर बातचीत की गई है और विभिन्न चर्चा की गई लघुकथाओं को शामिल भी किया गया है। इसके साथ ही क्षितिज ने इस वर्ष नए लेखन को सामने लाने के लिए और उसकी उत्कृष्टता को प्रस्तुत करने के लिए न सिर्फ एक स्तम्भ उत्कृष्ट लघुकथा के नाम से क्षितिज के व्हाट्सएप ग्रुप पर श्री दीपक गिरकर के माध्यम से संचालित कर रखा है, अपितु क्षितिज ने एक लघुकथा प्रतियोगिता का भी आयोजन इस वर्ष किया है, जिसमें मौलिक अप्रकाशित लघुकथाओं को आमंत्रित कर उनमें से श्रेष्ठ लघुकथाओं को चयन कर उन्हें इंदौर के दिल लघुकथाकारों के नाम से स्थापित सम्मान के साथ सम्मानित करने का काम किया है। यह दिवंगत लघुकथाकार। श्यामसुंदर व्यास, निरंजन जमीदार, चंद्रशेखर दुबे, शर्मा, विक्रम सोनी, सतीश दुबे, एन उनी है। इन अतिरिक्त क्षितिज पत्रिका के कला पक्ष को प्रारंभ से वाले श्री पारस दासोत के नाम पर भी सम्मान प्रदान किया जा रहा है। पिछले दिनों दिवंगत सर्वश्री मधुदीप, रवि प्रभाकर एवं सतीशराज पुष्करणा के नाम पर भी विजेत लघुकथाकारों को सम्मान प्रदान किए जा रहे हैं। इस सम्मानित लघुकथाओं को भी इस अंक में स्थान दिया है। इसके परिप्रेक्ष्य में भी हमारा आशय यही है कि लघुकथाओं की उत्कृष्टता सामने आती रहे और उम क पर आलोचनात्मक कार्य होता रहे। जब लघुकथा की आलोचना के इतिहास की हम बात करते हैं तो हमारा ध्यान सतीशराज पुष्करणा के द्वारा संपादित 'लघुकथा बहस के चौराहे पर पुस्तक पर जाता है, जिसमें उन्होंने विस्तार से बहुत सारे लघुकथा आलेखों को शामिल किया था और लघुकथा पर बहुत कुछ व्याकरण सम्मत बातें शामिल की गई थी।
कालखंड में बहुत सारी लघु पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन निरंतर जारी था और यह सारी पत्रिकाएँ लघुकथा पर आलोचनात्मक आलेखों का निरंतर प्रकाशन कर रही थी। लघुकथा की आलोचना के लिए अलग से आलोक तो शायद उस समय उपलब्ध नहीं हो पाते थे, लेकिन लघुकथा लेखकों में ही समालोचना का दायित्व भी बड़ी आसानी से और बड़े अच्छे तरीके से संभाल लिया था। उस समय दिल्ली के प्रकाशक श्री मधुदीप ने भी 'पाव और पड़ताल के माध्यम से एक खंड प्रस्तुत किया था, जिसे बाद में उन्होंने एक पुस्तक प्रकाशन सीरीज के माध्यम से प्रस्तुत किया और उनके द्वारा किया गया लगभग 36 खंडों का यह कार्य लघुकथा समालोचना के क्षेत्र में मील के पत्थर के रूप में स्थापित हुआ है। इन लघुकथा खंडों में बहुत सारे लघुकथा लेखकों के द्वारा समालोचनात्मक आलेख लिखे गए हैं। आज के वक्त में भी यदि हम देखें तो बलराम अग्रवाल, अशोक भाटिया, योगराज प्रभाकर, कांता राय, अशोक जैन, उमेश महादोषी, माधव नागदा, जितेंद्र जीतू, सुकेश साहनी, कमल चोपड़ा, बी.एल. आच्छा, भगीरथ, अनिल शूर आजाद, रामनिवास मानव आदि निरंतर कार्य कर रहे हैं। अशोक भाटिया की बहुत सारी पुस्तकें लघुकथा समालोचना पर आ चुकी हैं तथा योगराज प्रभाकर 'लघुकथा कलश' के माध्यम से लघुकथा समालोचना पर विस्तार से कार्य कर रहे हैं। कांता राय ने भी 'लघुकथा 'वृत्त' अखबार के माध्यम से और विभिन्न प्रकाशनों के माध्यम से लघुकथा की समालोचना पर निरंतर कार्य किया है। एक माह में 15 के लगभग लघुकथा की समालोचनात्मक गोष्ठियों को करना बहुत बड़ा काम होता है और लघुकथा शोध केंद्र में अपनी टीम के साथ कांता राय जी ने इस कार्य को बड़ी सफलता के साथ निर्वहन किया है। पंजाब में भी इस विषय पर बहुत सारा कार्य हुआ है। डॉ. श्याम सुंदर अग्रवाल, डॉ. श्याम सुंदर दीप्ति और उनकी टीम के बहुत सारे लोगों ने न सिर्फ पंजाबी में अपितु हिंदी में भी समालोचना पर महत्वपूर्ण कार्य किया है। समालोचना पर डॉक्टर कमल किशोर गोयनका की भी एक पुस्तक देखने में आई थी, उसके पश्चात उनका कोई काम सामने नहीं आया। कथाकार बलराम ने लघुकथा के प्राचीन समय से लघुकथा की आलोचना के क्षेत्र में और लघुकथाओं को प्रस्तुत करने के क्षेत्र में बहुत काम किया है। भारत की लघुकथाओं पर, विश्व की लघुकथाओं पर और बहुत सारे आलोचना प्रकाशन कर उन्होंने लघुकथा की स्थापना करने में अपना महती योगदान प्रदान किया है। विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में लघुकथा को शामिल करने का उनका प्रयास निरंतर जारी है। किसी क में सतीश दुबे और विक्रम सोनी ने भी इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है।
सातवें दशक से जिन साहित्यकारों ने लघुकथा समालोचना के क्षेत्र में काम किया है उनमें से कुछ प्रमुख का नाम उल्लेख इस प्रकार है। सातवें दशक में प्रमुखतः सुरेन्द्र मंथन, सतीश दुबे, पूरन मुदगल, भगीरथ के नाम हैं। आठवें दशक में भगवान प्रियभाषी, शशि कमलेश, त्रिलोकीनाथ बृजवाल, मोहन राजेश, रमेश बतरा, बलराम, जगदीश कश्यप, बलराम अग्रवाल, कुलदीप जैन, अशोक भाटिया आदि रहे हैं। भगीरथ, अशोक भाटिया, बलराम अग्रवाल, सुकेश साहनी, कमल चोपड़ा, रामेश्वर कांबोज, सूर्यकांत नागर आदि कई ऐसे नाम हैं जो तब से निरंतर लघुकथा समालोचना के कार्य को गंभीरता के साथ करते जा रहे हैं। लघुकथा समालोचना पर बहुत महत्वपूर्ण काम डॉ. रामकुमार घोटड द्वारा किया गया है। उनके द्वारा इस संदर्भ में निरंतर कई किताबों का प्रकाशन भी किया गया है। अविराम साहित्यकी पत्रिका के माध्यम से उमेश महादोषी ने भी लघुकथा की समालोचना पर निरंतर आलेख लिखे हैं और उनके आलेख कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुए हैं। इन पंक्तियों के लेखक ने भी बलराम के द्वारा प्रकाशित की गई पुस्तकों के साथ अन्य कई पत्र-पत्रिकाओं और पुस्तकों में समालोचनात्मक आलेखों को लिखने का काम किया है, जिन पर काफी चर्चा भी हुई है।
डॉ. पुरुषोत्तम दुबे लघुकथा पर निरंतर समालोचनात्मक लेखन का काम करते आ रहे हैं। क्षितिज संस्था के द्वारा उन्हें इस संदर्भ में सम्मानित भी किया गया। है। समालोचना कार्य के लिए क्षितिज द्वारा वर्ष 2018 में प्रोफेसर बी.एल. आच्छा को सम्मानित किया गया था। वर्ष 2012 के बाद लघुकथा समालोचना पर उन्होंने बहुत लिखा है। उनका लेखन बहुत श्रम साध्य है तथा विवेचना में सारे बिंदु शामिल कर लेना उनके स्वभाव में हैं। डॉ. जितेंद्र जीतू ने लघुकथा के सौंदर्यशास्त्र पर लिखा है और इसके अतिरिक्त भी लघुकथा की समालोचना पर उनका काफी काम सामने आया है। उन्हें इस वर्ष क्षितिज द्वारा समालोचना के लिए सम्मान प्रदान किया जा रहा है। माधव नागदा भी इसी परंपरा के लेखक हैं निरंतर आलेख लिखने का काम उनके द्वारा किया जाता रहा है। लघुकथाओं का विश्लेषण करना उनका मनपसंद कार्य है। उन्हें भी क्षितिज संस्था ने इस कार्य के लिए सम्मानित किया है।
क्षितिज ने अपनी परंपरा का निर्वहन करते हुए निरंतर हर दिशा में कार्य किया है। लघुकथा लेखन पर कार्यशाला आयोजित की गई है। लघुकथाओं का मंचन करवाया गया है। लघुकथाओं की पोस्टर प्रदर्शनी लगाई गई है। वर्ष 2018 से निरंतर लघुकथा के लिए कार्य करने वाले लघुकथाकारों का सम्मान किया जा रहा है।
सुरेश चन्द्र गुप्त, डॉ. स्वर्ण किरण, विनय विश्वास, भारतेंदु मिश्र, डॉ. सुलेख चन्द्र शर्मा, सुभाष चन्दर, डॉ. शैलेंद्र कुमार शर्मा, मुकेश शर्मा, प्रो. ऋषभ देव शर्मा, मृत्युंजय उपाध्याय, डॉ. हरनाम शर्मा, सुभाष नीरव, अशोक लव, डॉ. योगेंद्र नाथ शुक्ल, डॉ. मलय पानेरी, श्याम सुंदर दीप्ति, पवन शर्मा, रामेश्वर कम्बोज हिमांशु, सूर्यकांत नागर, डॉ. सुभाष रस्तोगी, कृष्ण कमलेश, निशांत, रामयतन यादव, हरदान हर्ष, हरीश नवल, महेंद्रसिंह महलान, शील कौशिक, पुष्पा जमुआर, रामकुमार आत्रेय, अंतरा करवड़े, हंसराज अरोड़ा, विकेश निझावन, हीरालाल नागर, प्रभुदयाल खट्टर, भगवान प्रियभाषी, शशि राजेश, सुशील राजेश, नीलम कुलश्रेष्ठ, अशोक कुमार खन्ना, सुशीला सितारिया और इनके साथ कई सारे ऐसे नाम हैं जिन्होंने लघुकथा पर छुटपुट अलग-अलग स्थानों पर समीक्षात्मक कार्य किया है। श्री दीपक गिरकर ने लघुकथा समीक्षा पर निरंतर बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया है तथा उनके द्वारा की गई समीक्षा को सर्वत्र सराहना प्राप्त हुई है। लघुकथा पर समालोचनात्मक आलेख लिखने का कार्य बड़ी मेहनत के साथ उज्जैन शहर सुपेकर के द्वारा भी किया गया है। भोपाल के क्षेत्र में बड़ी मेहनत के साथ कार्यकर राय जी के निर्देशन में वहाँ पर कई लोग लेखन का कार्य कर रहे हैं। उनके द्वारा प्रकाशित रहे समाचार पत्र लघुकथा वृत समालोचनात्मक आलेख प्रकाशित होते ते
प्रस्तुत अंक में बलराम अग्रवाल के कथा सूत्र तलाश कर उन सुक्तियों के माध्यम से लघुकथा के बीज तक जाने की कोशिश की गई है। माधव नागदा के द्वारा लघुकथा के शिल्प, भाषा और संवेदना से बातचीत की गई है। श्री बी. एल. आच्छा के द्वारा लघुकथा की सृजन भूमि खोजते हुए समालोचना केंद्रित आलेख प्रस्तुत किया गया है। डॉक्टर पुरुषोत्तम दुबे के द्वारा इंदौर शहर के और क्षितिज से संबद्ध लेखकों की लघुकथाओं पर समालोचनात्मक लेख प्रस्तुत किया गया है। उन्होंने कुछ लघुकथाओं का चयन कर उनकी भाषा, शिल्प, शैली और सौंदर्यबोध की पड़ताल की है। लॉकडाउन में लिखी गई कोरोनाकालीन लघुकथाओं पर सन्तोष सुपेकर ने एक संवेदना पूूर्ण आलेख प्रस्तुत किया है।
क्योंकि इस पत्रिका का प्रकाशन मालवा क्षेत्र इंदौर शहर से हो रहा है इसलिए मालवा के परिदृश्य पर मेरा एक आलेख भी इसमें शामिल किया गया है। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश से लघुकथा समालोचन पर विस्तार से कुछ कार्य प्रस्तुत करने का यह प्रयास किया गया है। सुधि पाठक ही बता पाएँगे कि यह कितना सफल हुआ है।
सतीश राठी
सम्पर्क : क्षितिज, आर-451, महालक्ष्मी नगर, इंदौर-452010 (म.प्र.)
ई-मेल : rathisatish1955@gmail.com
दीपक गिरकर
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