सबसे खूबसूरत औरत / चन्द्र भानु आर्य

लघुकथा-संग्रह  : सबसे खूबसूरत औरत 

कथाकार  : चन्द्र भानु आर्य

आईएसबीएन : 978-93-5607-8239

मूल्य:

व्यक्तिगत: ₹80.00/- मात्र

संस्थागत: ₹80.00/- ( 25% डिस्काउण्ट ) मात्र

© सर्वाधिकारः रचयिता

प्रथम संस्करणः फाल्गुन पूर्णिमा, विक्रमी सम्वत् 2078, शुक्रवार (मार्च 18, 2022)

प्रतियाँ: 1100 मात्र ।

प्रकाशक : न्यामती शिक्षा कल्याण समिति (रजि.)

जी- 102 सिग्नेचर व्यू अपार्टमेण्ट, डॉ. मुखर्जी नगर, दिल्ली-110009.

दूरभाष: 011-35571625

चलवाक् (मोबाइल) / व्हाट्सएप : 09312633178

ई-मेल: mailnyamti@gmail.com

मुद्रक: भारत आर्ट प्रेस, ए-42, वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया, दिल्ली-110052 

आवरण तथा आंतरिक सज्जाः श्री जितेन्द्र कुमार रोहिल्ला, श्रीमती करुणा अग्रवाल ।

पृष्ठ संख्या: 140

आर्थिक सहयोग करने की विधियाँ: नकद / धनादेश / ( चैक / डिमाण्ड ड्राफ्ट / ऑन लाइन )

चैकॅ / डिमाण्ड ड्राफ्ट: न्यामती शिक्षा कल्याण समिति (रजि.) NYAMATI SHIKSHA KALYAN SAMITI (REG.)


इस संकलन के संदर्भ में

जिन दिनों हम दोनों अपने बड़े बेटे विश्वास मधुवर्षी के घर गए हुए थे, ह्यूस्टन, अमेरिका में, उन दिनों में लघुकथाएँ लिखने का मन सुहाता ख्याल आया और देखते ही देखते लगभग एक सौ बीस रचनाएँ तैयार हो गईं- पहले रफ, फिर संशोधन- पुनर्लेखन- पुनः सुधार- अनन्तिम रूप से लेखन। उन दिनों में मैं एक-एक लघुकथा पहले कान्ता देवी को सुनाता या पढ़ाता। हम काफी देर तक सोचते - विचारते रहते वो सुझाती रहतीं.. आलोचती रहतीं, वाहवाहती रहतीं... मैं तदनुसार अनुसरण करता रहता और इस प्रकार एक-एक करके एक सौ बीस लघुकथाओं की एक फाइल तैयार हो गई।

भारत में, दिल्ली में, घर में आकर सभी शीर्षकों को वर्णक्रमानुसार " अरेंजित " किया, मन में बसी हुई प्रिय संख्या एक सौ आठ की कसौटी पर परखा। कुल बारह रचनाएँ बाहर कर दीं। प्रत्येक कथा के नीचे रचना तिथि (कोष्ठक में क्रम संख्या) लिखी।... भूमिका के रूप में "इतनी सी बात” लिखी, “एक सीधी सच्ची समीक्षा " के रूप में पत्नी देवी को प्रणाम किया और पूरी प्रकाशकीय तैयारियों-व्यवस्थाओं के साथ पहले कंप्यूटर, फिर प्रैस के हवाले कर दिया।....

प्रभु कृपा से प्रथम संकलन ( गुरुवार, 16 सितंबर, 2010 ) - ग्यारह सौ प्रतियाँ- देखते ही देखते "कोमल अंजलियों और कठोर हाथों" में पहुँच गया तथा मुझे प्रेमिल आदेश मिला एक और संस्करण निकलना चाहिये। इस समय तक श्रीमती कमल कपूर, विदुषी बहन राजकरनी अरोड़ा, दैनिक ट्रिब्यून की प्रतिनिधि साहित्यकार श्रीमती रश्मि तथा सुख्यात साहित्यकार-समीक्षक श्री घमण्डी लाल अग्रवाल की समीक्षा दृष्टि भी "ह्यूस्टन-लिखी लघुकथाएँ" को "डिस्टिंक्शन" अवार्ड कर चुकी थीं। सभी अपनों की आज्ञा शिरोधार्य और स्वाधीनता दिवस, 2011 को द्वितीय संस्करण की ग्यारह सौ (और) प्रतियाँ साहित्यिक जगत में प्रविष्ट हो गईं।... पहले संस्करण की

“इतनी सी बात" में "थोड़ी बातें और" जुड़ गई। ....

इस दौरान मानसिक स्तर पर एक रूपांतरण घटित हो चुका था। अब मुझे लघुकथा के रूप में हर छोटी-बड़ी घटना, प्रत्येक परिवर्तन को देखने पहचानने - वर्णित करने की आदत होने लगी। एक नशा सा छाने लगा, एक किस्म का मज़ा सा आने लगा। मुझे जो कुछ भी जब भी सूझता, तुरंत रफ रूप में एक कागज़ पर झरीट देता...। फिर वह विचार, वह भाव, वह कथन वह पंक्ति मन में विकसित होती रहती, एक आकार सा लेती रहती, उसे शब्दों के वस्त्र प्राप्त होते रहते... एक दिन मुझे लगता कि अब इसे लिख डालना चाहिये। मैं लिख लेता और एक लिफाफे में "डम्प" कर देता।

एक दो तीन महीने के बाद उस " डम्पित मैटीरियल" को निकालता । अपने ही लिखे को निर्मम समीक्षक की निगाहों से गुज़ारता । पर्याप्त काट-छाँट हो जाती। कुछ जुड़ भी जाता और आत्म संतुष्टि प्रदान करती एक "मनभावन" लघुकथा -सी तैयार हो जाती ।...

बारह लघुकथाएँ तो वे थीं ही जो “ह्यूस्टन - लिखी लघुकथाएँ" से बच रही थीं। ये नई नई प्रयत्निकाएँ भी उसी फाइल में जुड़ती चली गई। इस तरह 2010 से 2020 आ गया। दस साल गुज़र गए। इस दौरान हमारे आवास स्थान एन-18 एसएफएस 45. एच- 201 सिग्नेचर व्यू अपार्टमैंट क्रम-क्रम करके बदलते रहे। इन तीनों घरों में हम दोनों रहते रहे वह मेरी " भागवान", मैं उनका "चुटकी भर सिंदूर "!...

एच-201 में रहते-रहते मेरी कान्ता के साँसों की डोर पहले हिली, फिर काँपी और अंत में टूट गई ।... हमारा " जन्म-जन्मांतर का साथ " छूट गया मेरी मानसिक स्थिति ऐसी हो गई 'लगता नहीं था दिल मेरा उस उजड़े दयार में' विकास- तरुणा- सात्विक अभिषेक और " चीकू" के पीछे-पीछे मैं जी - 102 में आ गया।... कुछ समय तक लघुकथाओं का सिलसिला थम सा गया।... इस दौरान पहले “नारी तुम केवल नारी हो" छप गई, फिर " 108 गुण : 324 लघुकथाएँ" अंगड़ाई लेकर उठ खड़ी हुई... लेकिन इस कालखंड में भी " लघुकथाओं का सिलसिला थम सा गया" असत्य सिद्ध होता रहा और कभी-न-कभी, कोई-न-कोई लघुकथा नए-नए शब्द-परिधान धारण करके, नई-नई शैली में सज-धजकर अपनी मधुर मुस्कान से मोहित करती ही रही ।

अभी 30 नवंबर, 2020 यानी कार्तिक पूर्णिमा, वि.सं. 2077 सोमवार को जब मैं अपने पूज्य पिताजी के सौवें जन्मदिवस पर प्रात: वेला में यज्ञ करते हुए उनके नाम की आहुतियाँ अर्पित कर रहा था तो ख्याल आया कि अब तक एकत्र हो गई लघुकथाओं को गिना जाए।... उनसे एक सांझ पूर्व, यानी रविवार शाम को भी मैंने एक लघुकथा लिखी ही थी। मेरी प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं रही, जब यह संख्या एक सौ नौ तक पहुँच गई।... तुरंत यह निश्चय हो गया कि कोई एक लघुकथा निकाल कर शेष एक सौ आठ लघुकथाओं का एक संकलन "प्रिंट्य-प्रकाश्य" रूप में तैयार किया जाए और उसे पूज्य पिताजी को समर्पित करते हुए पुत्र जीवन को सार्थक किया जाए। ....

आप में से अधिकांश सुधी पाठकों ने अनुभव किया होगा कि मुझे एक सौ आठ की संख्या से विशेष लगाव है। मैंने “ह्यूस्टन-लिखी लघुकथाएँ” में भी समस्त लघुकथाओं के शीर्षक (अनुक्रमणिका में) वर्णक्रमानुसार ही सहेजे थे प्रत्येक लघुकथा के अंत में उसकी रचना तिथि लिखी थी... वही नियम यहाँ भी लागू हो गया एक छोटे-से "जुड़ाव" के साथ प्रत्येक लघुकथा के अंत में उसकी रचना तिथि तो दी ही गई है, साथ " ही साथ, वह रचना किस आवासीय परिसर में रची गई यह संकेत भी किया गया है।

लघुकथाएँ लिखने का क्रम आज भी जारी है इस संकलन से इतर ग्यारह नई लघुकथाएँ लिखी जा चुकी हैं- एक नयी फाइल बना दी गई है... यह सिलसिला लगातार चलता रहेगा. चलता रहना चाहिये।...

जहाँ तक पुस्तक को शीर्षक देने का प्रश्न है- पहले संकलन के समय मेरे लिये यह कोई समस्या नहीं थी। हम दोनों ह्यूस्टन में थे, सारी की सारी लघुकथाएँ वहीं लिखी गई थीं- मेरे सुझाए शीर्षक “ह्यूस्टनी लघुकथाएँ" को मेरी पत्नी कान्ता आर्या ने “ह्यूस्टन -लिखी लघुकथाएँ" करा दिया। मैंने अपने समीक्षक की आज्ञा को शिरोधार्य कर "अच्छा" किया।

'ह्यूस्टन-लिखी लघुकथाएँ" के बाद पुस्तक आ रही है “ 108 गुण 324 लघुकथाएँ"। इस शीर्षक को सोचने में भी कल्पना के घोड़ों को कहीं नहीं दौड़ाना पड़ा। स्वयं शीर्षक में ही किताब का मंतव्य स्पष्ट हो जाता है।

वर्तमान संकलन का नाम किसी एक लघुकथा के आधार पर रखने की सूझी तो एकाएक संकलन की एक सौ चौथी कथा - सबसे खूबसूरत औरत पर दिल, दिमाग और निगाह - सब ऐसे टिके कि हिलने-डुलने का नाम ही नहीं। बस यही इस पुस्तक का शीर्षक हो गया ।

आपसे एक विनम्र प्रार्थना किये बिना रह नहीं पा रहा- “लघुकथा" की शास्त्रीय मर्यादा/कसौटी पर यह संकलन कितना खरा / खोटा ठहरता है, इसका निर्णय तो विद्वान समीक्षक वृन्द करेंगे ही करेंगे। वे मुझे बहुत थोड़ा पुचकारेंगे, बहुत अधिक लताड़ेंगे- मैं उस शाबाशी से अधिक प्रताड़ना के लिये इसलिये प्रस्तुत हूँ क्योंकि उसमें से मेरा उज्ज्वल भविष्य झाँक रहा होगा।

इस समीक्षकीय निष्कर्ष से बढ़कर मुझे इंतज़ार है आपके दो मीठे और तीन कड़वे बोल सुनने का। आपके सुझाव मेरी रचना - पगडंडी को बुहारेंगे और आपकी “ कड़वाहट " उस बुहारी हुई पगडंडी पर चार-छः कोमल पंखुरियाँ छितरा देंगी।

विनीत.

चन्द्र भानु आर्य

मार्गशीर्ष शुक्ल चतुर्थी, वि.सं. 2077

( 18.12.2020, शुक्रवार)

कहाँ कौन-सी रचना 

1. अनुपयोगी

2. अपनी-अपनी सोच

3. अब मैं क्या करूँगा?

4. अमृतसर यात्रा

5. अर्चित, सर

6. अस्त्र-शस्त्र को प्रणाम

7. आखरी इच्छा

8. आठ भाषाएँ.

9. आपके लिये घर

10. आशीर्वाद

11. इज़्ज़त

12. इतनी भी क्या जल्दी है ?

13. इण्ट्यूशन

14. एक चुप हज़ार सुख

15. एक सौ एकवीं गलती

16. औकात

17. अंतर

18. क्यों?

10. कर्मयोगीञ्जीनियर

20. कायापलट

21. काँटों की मुस्कान

22. कुत्ते की मौत

23. कुसंगति

24. खोखले

25. गिफ्ट में बेर

26. गोद

27. गुलाम

28. गोपाष्टमी

29. घर में ही तो हो

30. घर वापसी

31. चल उड़ जा रे पंछी....

32. चाय

33. चिरंजीवी

34. चौंतीस साल बाद

35. जीवन मूल्य

36. जूठी पत्तलें

37. जैसे

38. ट्रैवलिंग संस्कार

39. टाइमपास

40. डर

41. डिक्शनरी

42. तीन ऐनकें

43. तृप्ता

44. दृष्टिकोण

45. दाता

46. दाँतों के बीच जुबान

47. दुकानदारी

48. दुराग्रह

49. दूरदर्शी

50. देवकीनन्दन

51. नगर वधू

52. नेता

53. प्रथम सम्मान

54. प्रवचन

55. प्रारब्ध

56. प्रोत्साहन

57. पत्नी भक्त

58. पति धर्म

59. परदादी का नाम

60. परशादा

61. परामर्श

62. परिवारी पति

63. पाँच सहेलियाँ

64. पापी पिता

65. पूजा

66. फ्यूज़ बल्ब

67. फटा कुर्ता ..

68. फर्क

69. फर्ज

70. फैसला

71. बटुक

72. बड़े बोल

73. बहन के ऊपर से पैर

74. बहू का नाम

75. बातों-बातों में

76. बिगड़ैल दामाद.

77. बेटी के घर का पानी

78. बैस्ट ग्रेजुएशन डिग्री बी. Calm

79. बूँदी का प्रसाद

SO. भूल

81. भेंट

82. मधुर

83. महाभारत में कितने धृतराष्ट्र

84. माँ

85. मित्रता

86. मुख्यमंत्री का प्रथम कार्य दिवस

87. मुस्कुराहट.

88. मेरी प्रथम पाठिका पत्नी

89. मेरी बिटिया माँ

90. "मैं" ने..

91. मैरिज ब्यूरो

92. यादें

93. री-एम्पलॉयमैंट..

94. रोना

95. लेडीज पर्स

96. लंच प्रसादम्..

97. वाक् शक्ति

98. वापसी?

99. विश्वास से आगे

100. श्रद्धांजलि

101. शुक्राना

102. 17 दिसंबर....

103. स्वीकृति

104. सबसे खूबसूरत औरत

105. 'सीता' की मौत

106. सुखी पति

107. संतान की डाँट

108. हमारे ग्रुप में नहीं

व्यक्तिगत परिचय

चन्द्र भानु आर्य


जन्म
: तीन पौष शुक्ल वि.सं. 1999. अर्थात् शनिवार, 9 जनवरी, 1943 ई. यूँ रविवार 10 अक्तूबर 1943 ई. (प्रमाणपत्रीय)

जन्म स्थान :

कस्बा सीतपुर, तह. अलीपुर जिला मुजफ्फरगढ़, कमिश्नरी मुल्तान (तब भारत अब पाकिस्तान)

जननी : स्व. न्यामती देवी,

जनक : स्व. प्यारा लाल सेठी,

संस्कार केंद्र :

1. सनातन धर्म प्राथमिक पाठशाला, पुण्डरी-132026,

2. (तत्कालीन) हरियाणा हाई स्कूल, सोनीपत- 131001,

3. छोटुराम आर्य महाविद्यालय, सोनीपत,

4. हिन्दी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र - 132118,

5. राजकीय शिक्षण महाविद्यालय, चण्डीगढ़-160020, 6. हिमाचल विश्वविद्यालय, शिमला- 171001.

आजीवन सहचरी : स्व. श्रीमती कान्ता आर्या, उत्तराधिकारी : 

1. श्री विश्वास मधुवर्षी-शमा भाटिया *अनुष्का, * अलीशा, 

2. श्री विवेक प्रियदर्शी-सुषमा नागपाल * अमन, * चार्वी

3. श्री विकास दिव्यकीर्ति तरुणा वर्मा * सात्विक ।

पूर्व कर्मक्षेत्र : अध्यापन 

पूर्व कर्मभूमियाँ :

1. हिन्दी विभाग, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र।

2. डी.ए.वी. कॉलेज, जालंधर- 144001.

3. डी.ए.वी. शिक्षण महाविद्यालय, होशियारपुर- 146001. 4. छाजुराम शिक्षण महाविद्यालय, हिसार- 125001.

5. छाजुराम जाट मैमोरियल महाविद्यालय, हिसार।

6. राजकीय महाविद्यालय, हिसार, फरीदाबाद, महेंद्रगढ़ - 123029, भिवानी, तिगाँव- 121101. नारनौल- 123001, होडल- 121106, झज्जर- 124104.

7. राजकीय शिक्षण महाविद्यालय, भिवानी- 125021.

सम्प्रति साधना क्षेत्र : पहले मासिक, द्विमासिक अधुना त्रैमासिक पत्रिका 'न्यामती' का प्रकाशन (नवम्बर, 2001 से आज तक )

सम्प्रति साधना-भूमि : पहले फरीदाबाद, अब दिल्ली।

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