मोह के धागे / अनिल श्रीवास्तव

लघुकथा-संग्रह  : मोह के धागे

कथाकार  : अनिल श्रीवास्तव 

ISBN: 978-93-94221-42-0

संस्करण-2022

अयन प्रकाशन

जे-19/39, राजापुरी, उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059

मोबाइल : 9211312372

e-mail: ayanprakashan@gmail.com website : www.ayanprakashan.com

© : अनिल श्रीवास्तव

अपनी बात

मुझे लघुकथाएँ बचपन से प्रभावित करती रहीं हैं। निरन्तर पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ता रहा। लेकिन पहले कभी लिखने के लिए नहीं सोचा। यदि संग्रह के रचनाकाल की बात करूँ तो वर्ष 2010 में पिता बनने के बाद मैंने पहली लघुकथा 'पिता' लिखी । मैंने महसूस किया कि पिता के दर्द को पिता बनकर ही समझा जा सकता है। मेरी इस लघुकथा को सबसे पहले प्रतिष्ठित पत्रिका 'सादर इंडिया' में स्थान मिला। लगभग 12 वर्ष का समय लिखने और मिटाने में बीत गया।

मेरी लघुकथाओं का प्रथम पाठक बेटा आकर्ष रहा। प्रत्येक लघुकथा से सम्बन्धित रेखाचित्र के विषय में उससे बातें करता था । अधिकांश लघुकथाओं की आरंभिक रेखाचित्र संकल्पना आकर्ष की हैं, जिसे आसानी से चिन्हित किया जा सकता है।

मेरी लघुकथाएँ जब घर की देहरी लाँघी तो लघुकथाकार श्री नरेन्द्र गौड़ के पास पहुँची। उनके स्नेह और सुझाव से मैं आश्वस्त हुआ। मेरे निवेदन पर समर्थ लघुकथाकार श्रीमती कृष्णलता यादव एवं साहित्यकार श्री हरीन्द्र यादव ने सारी लघुकथाएँ पढ़ीं और लघुकथा के तकनीकी पक्ष की बारीकियों के बारे में खुलकर बात हुई। उक्त तीनों साहित्यकारों की सकारात्मक प्रतिक्रिया व सुझाव से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा। संपादकीय दृष्टि रखने वाले 'दृष्टि' के संपादक श्री अशोक जैन जी समय-समय पर मेरी लघुकथाएँ 'दृष्टि' सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित करते रहे। फलस्वरूप पाठकों व सुधीजनों की बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं ने मुझे प्रोत्साहित किया ।

मैंने वरिष्ठ साहित्यकार श्री मदन साहनी जी को रेखाचित्र सहित पांडुलिपि दिखायी तो उनके आशीर्वाद के साथ मिले बहुमूल्य सुझाव की वजह से संग्रह बेहतर बन सका । पांडुलिपि से पुस्तक तक की यात्रा में उक्त साहित्यकारों का विशेष योगदान रहा, जिससे 'मोह के धागे' की सहज बुनावट हो सकी। इसमें जो कुछ भी अच्छा बन पड़ा है, उसका श्रेय उन्हीं साहित्यकारों को जाता है। शब्द-शक्ति साहित्यिक संस्था एवं हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच द्वारा आयोजित अनेकानेक गोष्ठियों के माध्यम से बहुत कुछ सीखने, समझने का अवसर प्राप्त होता रहा। आमंत्रित वरिष्ठ लघुकथाकारों प्रो. रूप देवगुण, श्री अशोक लव, श्री बलराम अग्रवाल, श्री मुकेश शर्मा, श्रीमती सविता इंद्र गुप्ता आदि का उदबोधन लाभप्रद सिद्ध हुआ।

शब्द-शक्ति द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता में मेरी लघुकथाओं का चयन होना, मेरे लिए बड़ी बात थी, जिससे कुछ बेहतर लिखने की प्रेरणा मिलती रही। युवा एवं समर्थ उद्योगपति बड़े भाई श्री आशीष श्रीवास्तव के प्रति मैं आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, जिनके कारण मैं दमन से दिल्ली आने का साहस जुटा सका। गुरुग्राम आने के बाद साहित्यिक संस्थाओं सुरुचि साहित्य कला परिवार, शब्द-शक्ति, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, परम्परा परिवार आदि के सम्पर्क में आया। विभिन्न साहित्यिक गतिविधियों के माध्यम से निरन्तर सीखते रहने की प्रक्रिया दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन गयी।

कोविड 19 के दौरान हुए लॉक डाउन में लघुकथा पढ़ने और लिखने का पर्याप्त समय मिला लेकिन जब तक कोई विचार या कथा मुझे व्यथित न कर ९. मैं लिखना उचित नहीं समझा। यद्यपि लिखना, धीमी आँच पर पकाना और खुद निरस्त कर देना जारी रहा। लघुकथा को लेकर मेरे मन में बहुत सारे प्रश्न थे। जिसमे से अधिकांश का उत्तर सशक्त हस्ताक्षर श्री अशोक भाटिया जी की पुस्तक 'परिन्दे पूछते हैं' और प्रख्यात लघुकथाकार श्री बलराम अग्रवाल की पुस्तक 'परिदों के दरमियां' से मिल गया। कुछ प्रश्न अभी भी अनुत्तरित हैं। जिनका उत्तर सीखने और लिखने की प्रक्रिया में मिल जायेगा।

वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. रूप देवगुण उन प्रारंभिक लघुकथाकारों में से हैं जिन्होंने लघुकथा को स्वतंत्र साहित्य विधा के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उन्होंने इस पुस्तक की भूमिका लिखकर मुझे उपकृत किया है।

मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मेरे गणित के शिक्षक और बड़े मामा श्री काशी प्रसाद श्रीवास्तव का आशीर्वाद इस पुस्तक को मिला। उनकी सादगी उन्हें और बड़ा बना देती है। गणित मे मेरी संच उनसे पढ़ने के बाद और बढ़ गयी। मेरे विश्व कीर्तिमान का श्रेय कहीं न कहीं उन्हें जाता है।

मुझे हिंदी साहित्य बीज के रूप में परिवार से मिला। गीतकार चाचा जी स्व. श्री सतीश चंद्र श्रीवास्तव तो मेरे बचपन में ही असमय चले गये लेकिन प्रयाग के तत्कालीन अग्रणी नवगीतकार बड़े पिताजी स्व. श्री अमरनाथ श्रीवास्तव ने मेरे अन्दर फूटते अंकुर को न सिर्फ महसूस किया बल्कि मुझे 'मानस पुत्र' की संज्ञा भी दी। कवि के रूप में मेरे जीवन का पहला कवि सम्मेलन, उनकी ही अध्यक्षता में, प्रयाग की पावन धरती पर हुआ था, जो मेरे स्मृति कोश में सदैव सुरक्षित रहेगा। मेरे मन में यह मलाल रहा कि मैं 'उनके नाम एक शाम' गुरुग्राम में नहीं करवा सका जो मेरे लिए बहुत कठिन नहीं था। अपनी पुस्तक की भूमिका उनसे लिखवा पाने का स्वप्न भी अधूरा रह गया। परिवार के स्तम्भ एवं पूर्व प्रवक्ता चाचा जी श्री उमाशंकर श्रीवास्तव से मैंने दो शब्द के लिए अनुरोध किया। उनका आशीर्वाद मेरे लिए धरोहर है। उनकी नेतृत्व क्षमता, जीवन के व्यवहारिक पक्ष में निपुणता और अपनी बात को प्रभावी ढंग से कहने की सामर्थ्य मुझे बचपन से प्रभावित करती रही है।

कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझने के बावजूद अम्मा की जिजीविषा, प्रेरणा पुंज बनकर मेरे जीवन को आलोकित करती रहेगी। अम्मा के जाने के बाद मुझे महसूस होता कि वह कहीं नहीं गयीं, बल्कि पाँचों छोटी बहनों में बँट गयी। शायद इसीलिए मैंने बेहद करीब और अजीज बहनों बहनोइयों को यह पुस्तक समर्पित की है। दरअसल 'मोह के धागे' में गुथे उन मोतियों को मैंने यह पुस्तक समर्पित की है। अम्मा-पापा का पुण्य स्मरण करते हुए सुमन-संजय, मंजरी-संजय, स्तुति-सुशांत, स्मृति-आशुतोष और ज्योति- आशीष को स्नेह और सम्मान का प्रतीक समर्पित कर रहा हूँ।

कई वर्षों पहले प्रख्यात चित्रकार सुधीर त्रिपुरारी ने मेरी कुछ कविताओं पर रेखाचित्र बनाने एवं पुस्तक रूप में प्रकाशित करने की इच्छा जाहिर की थी। परन्तु किन्हीं कारणों से वह कार्य शुरू नहीं हो सका । इसलिए रेखाचित्र सहित संग्रह का ख्याल मेरे मन में आया। मैंने हर लघुकथा पर रेखाचित्र बनाने के लिए सोचा। सोचने और उकेरने का तरीका मेरे लिए नया भी था और अलग भी। यह महज संयोग है कि इस संग्रह में मेरे द्वारा बनाये गये 75 रेखाचित्र हैं और यह आजादी का अमृत महोत्सव वर्ष भी है।

संग्रह की अधिकांश लघुकथाएँ रिश्तों के इर्द-गिर्द घूमती हैं। इसलिए मुझे शीर्षक उपयुक्त लगा। 'मोह के धागे' दिखायी तो नहीं देते किंतु अपने बंधन में जकड़कर रिश्तों को मजबूती प्रदान करने की सामर्थ्य रखते हैं। मेरा मानना है कि यदि सांसारिक सम्बन्ध मजबूत हैं तो बहुत सी सामाजिक बुराइयाँ, विसंगतियाँ स्वतः लुप्त जाएँगी। मोह के बंधन में बँधना और मोह त्याग देना दोनों के रास्ते भी अलग हैं और सुख भी ।

इस पुस्तक में अंजलि के योगदान को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता । मैंने उनके हिस्से का समय भी इस पुस्तक को दिया है। उनकी सहर्ष स्वीकृति और सहयोग मुझे मिला, अन्यथा ऑफिस के साथ यह सब कर पाना मेरे लिए आसान नहीं होता। सास श्रीमती विजयलक्ष्मी श्रीवास्तव और श्वसुर श्री कन्हैया लाल श्रीवास्तव को नमन करना चाहता हूँ। श्वसुर जी को विशेष नमन इसलिए भी करना चाहता हूँ कि उन्होंने मेरा कविता संग्रह 'कपूरी महक' कई बार पढ़ा है। उम्मीद है कि इस संग्रह को भी पढ़कर वह अपना आशीर्वाद मुझे देंगे।

भावी पीढ़ी अशिका, प्रखर, नवल, सुहानी, आराध्या, अभव्या, शानवी इशांक, दित्या को ढेर सारा स्नेह । आशा और विश्वास के साथ यह संग्रह आपके हाथों में सौंप रहा हूँ। आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रियाओं का आकांक्षी .....

- अनिल श्रीवास्तव 

मियाँपुरा, गाजीपुर,

382/4, फ्लैट नं. 201, द्वितीय तल 

जवाहर नगर, गुरुग्राम हरियाणा - 122001

अनुक्रम

1. काश! तुम समझ पाते...

2. अनपढ़ माँ

3. कालचक्र

4. यक्ष प्रश्न

5. आखिर कब ...

6. कथनी-करनी

7. पिता कुछ नहीं कहते

8. खुशबू बची है अभी

9. चिराग तले अँधेरा

10. बर्थडे गिफ्ट

11. दो किनारे

12. रिश्तों के छल 

13. तेरा तुझको अर्पण

14. मोल चुप्पी का 

15. बरगद का साया

16. मजबूत कन्धे

17. गुल्लू की गुल्लक

18. मोह के धागे

19. रिश्तों की परवरिश

20. आत्मीय पल

21. नयी शुरुआत

22. तर्पण

23. पिता का इंसाफ

24. मन माने की बात 

25. खामोशी का ज्वार

26. कर्ज नेकी का

27. देखन में छोटे लगें

28. जब जागो तभी सवेरा 

29. अहसास

30. सच्ची पूजा

31. समय के पंख

32. बेटी

33. गिरा कौन

34. यादों का बिछौना

35. अकेलेपन का दंश

36. आज का शकुनि

37. कुछ बूँदे.... बस 

38. सजल हुई आँखें

39. रिश्ता वही, सोच नयी

40. सब कुछ या कुछ नहीं

41. दरअसल

42. बनावटी रिश्ते

43. कर्त्तव्य - विमुख

44. उम्र छोटी, सोच बड़ी

45. प्रशंसा की भूख

46. राजनीति का दंगल

47. अघोषित परीक्षा 

48. कल और आज

49. सिर आँखों पर

50. नजरिया अपना-अपना

51. बड़े लोगों की बड़ी बातें

52. ताजी हवा का झोंका

53. पीठ पर खंजर

54. सीखने की तमीज

55. छोटी चादर

अनिल श्रीवास्तव 

29 अगस्त, 1975 को उत्तर प्रदेश के शहर गाजीपुर में जन्मे स्व. श्री लाल जी सहाय एवं स्व. श्रीमती पुष्पलता श्रीवास्तव के सुपुत्र अनिल श्रीवास्तव ने जहाँ हास्य व्यंग्य कवि के रूप में अपनी विशेष पहचान बनाई, वहीं A4 साइज के शीट पर अनन्त वर्षों का कैलेंडर निर्मित कर विश्व कीर्तिमान स्थापित कर दिया। वह निजी संस्थान रीको ऑटो इंडस्ट्रीज लिमिटेड गुरुग्राम में संभागीय प्रबंधक के रूप में कार्यरत हैं।

उनका कविता संग्रह 'कपूरी महक' (2013) हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला के सौजन्य से प्रकाशित चुका है। शब्द - शक्ति साहित्यिक संस्था, गुरुग्राम द्वारा जारी उनके हास्य व्यंग्य कविताओं की वीडियो सी.डी. 'एक मुस्कान का वादा' (2012) को भी खूब सराहना मिली।

'कलमवीर सम्मान-2016', हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा 'हिंदी सेवी सम्मान-2012', 'युवा प्रतिभा सम्मान-2012', 'राष्ट्रवाणी सम्मान-2010' राष्ट्रीय कवि संगम द्वारा दस्तक नयी पीढ़ी की (2010- चतुर्थ दस्तक), सुरभि संस्कृति अकादमी द्वारा 'चंद्रमणि वशिष्ठ सम्मान-2009' सहित कई प्रतिष्ठित सम्मान से अलंकृत हैं।

विश्व कीर्तिमान हेतु जहाँ उन्हें इंडिया बुक ऑफ रिकॉडर्स और गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स द्वारा सम्मानित किया गया वहीं 'साँझी सोच राष्ट्रीय सम्मान-2018 '. सुरुचि साहित्य कला परिवार, गुरुग्राम द्वारा 'सुरुचि सम्मान- 2017' सहित कई प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा उन्हें विशेष सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है।

सब टी.वी. के बहुचर्चित कार्यक्रम 'वाह वाह' एवं 'वाह वाह क्या बात है', जनता टी.वी. के 'जनता कवि दरबार', साधना टी.वी. क 'कवियों की चौपाल', एस. टी.बी. हरियाणा सहित विभिन्न टी. वा. चोनल एवं आकाशवाणी दिल्ली राहतक से रचनाएँ प्रसारित हो चुकी है। विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ निरन्तर प्रकाशित होती रहती है।

गुरुग्राम की विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं के पदाधिकारी एवं सक्रिय सदस्य है। 

सम्पर्क : 9810492680

ई-मेल : anilari75@gmail.com

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