आधी डगर (खण्ड एक) / सुरेश वशिष्ठ
पुस्तक : आधी डगर (खण्ड एक)
लेखक : सुरेश वशिष्ठPublished by
Vishu Publishing House
2992, Gali Shiv Sahaimal, Ballimaran, Delhi-06
Ph: 011-40159151, Mob: 9650401817 email: vishupublishinghouse@gmail.com
@ : VishuPublishing House
ISBN: 978-9391660-06-2
Edition 2022
Price: 995/-
लेखन और उसकी सार्थकता
धारणाएँ बदल रही हैं और संवेदनाएँ मर रही हैं। आदमी का अपना अस्तित्व बिखरने लगा है। उसे मशीन के कल-पुर्जों की तरह खोल कर परखा जाने लगा है। प्रगति के नाम पर वह गतिशील तो है लेकिन उसे जाने कहाँ पहुँचने की बेचैनी है? शांति और संस्कार तिरोहित हैं। तेजी से बदल रहे इस यथार्थ में उसे बहुत कुछ पा लेने की जल्दी है । कहीं दंगे, कहीं फसाद और कहीं घृणित रणनीति, आदमी ऐसे चक्रव्यहू में फँसकर रह गया है, जिससे निजात पाना अब आसान नहीं। ऐसे धरातल से मैने सच को उठाया है और उसे अपनी कहानियों में पिरोया है ।
लेखन एक वैचारिक प्रक्रिया है । इस प्रक्रिया में सोच के कठिन दौर से गुजरते यथार्थ के थपेड़ों और कल्पना के संचित बिंबों को पकड़ना होता है। उन्हें शब्दों बाँधते हुये वाक्य बनाना होता है । आज इस रंगमंच पर हर रोज खेले होते हैं । झूठ, फरेब और भ्रष्ट आवरण ओढे, सुंदर परिधान धारण किये, स्वयं की विद्वता और दूसरे की मूर्खता सिद्ध करने में लोग लगे हैं। आदमियत को रसातल की तरफ भेजने वाले ये जाहिल दिनों-दिन आगे ही कदम बढाते चले आ रहे हैं ।
इस यथार्थ धरातल ने आर-पार देखने वाली दृष्टि और कल्पना के लोक दिए और मैंने उड़ान भरना शुरू किया। लोगों के दर्द और तकलीफ को जाना, समझा । कथा उपजी और सच बाहर आने लगा | महसूस हुआ, चौराहे के बीच खड़ा मैं एक अदना-सा पात्र हूँ और जिस सतह पर सभी सांस ले रहे हैं, वहाँ मैं भी मुट्ठी में भरी रेत की तरह फिसलता जा रहा हूँ। मेरा लेखन नितान्त भाव की काल्पनिक भूमि नहीं, सच और हकीकत है ।
लिखने के दौर में असंख्य किस्से-कहानियाँ, यात्रा - वृतांत और संस्मरण शब्दों में कैद हुए। यादों को सहेजा और यथार्थ को उसमें समाहित किया । यह लेखन उन्हें चुभता है, जिनके पाजामें में नाड़ा नहीं । उन्हें तकलीफ है कि कहीं ये आँखें हमारे नंगेपन को ना देख ले और विगत के किसी सच को बाहर ना उगल दें। समय हर किसी को संभलने का वक्त देता है और उसे सोचने पर विवश करता है । व्यक्ति के मानस को उकेर देना और यथार्थ बिम्ब को उसके सही रूप में लेकर आना आसान नहीं, फिर भी प्रयास तो दिखता ही है ।
यह पुस्तक दो खण्डों में विभाजित है। लम्बी और छोटी कहानियाँ, लघुकथाएँ, शिक्षक और छात्र, बाजीगर और जमूरे के बीच हुये संवाद की दिलचस्प कड़ियाँ अपने साथ नये कलेवर में यहाँ प्रस्तुत हुई हैं। व्यंग्यात्मक और चोटिल प्रसंग भी संबन्धों की परतें खोलते नजर पड़ते हैं। ऐसी भी कहानियाँ हैं, जिनमें कल्पना की रम्य उडान भरपूर रोचकता भी दिखाई देती है। मन को सुकून देने वाली एवं रंध्र को पुल्कित करने वाली हवा जहाँ बहती है। वहाँ विश्राम है तो उर्जा का संचार भी है। वहाँ और समझ का विस्तार भी है। लघुकथाओं में चुभन की तीक्षण वृत्ति है तो यथार्थ क नंगापन भी दिखलाई पड़ता है। कहीं बिसरी यादें हैं तो कहीं बीते कल के द्वंद्व हैं।
लोग बदलने लगे हैं और हर पल चेहरा बदलकर मिलते हैं। भीतर खंजर छुपाये और नाखूनों में तेज धार लिए चहूँ ओर फिरते हैं। ऊपर से सभ्य दिखते हैं लेकिन अन्दर के शैतान को हमेशा जगाये रखते हैं। उन्हें बेनकाब करना रचनाधर्मी का धर्म है। दर्पण में सूरत की भयावह और क्रूर शक्ल स्वयं उभरकर आने लगती है । शक्ल के पैने दाँत गिनना कथाकार का प्रथम कर्तव्य है । मुझे उम्मीद है कि मेरा यह लेखन तुम्हें सोचने पर मजबूर कर देगा ।
दिनांक : 4 मई, 2022। सुरेश वशिष्ठ, गुरुग्राम
अनुक्रम
कहानियाँ
रिसता दर्द
कालू
चली पिया के देस
धमक
फिसलन
खुरदरी जमीन
अलका
राह नहीं मिल रही
नदिया के तीर
बुआ
इबादत
छलकन
सिपाही की रस्म
माखन दा
रज्जो
अधूरापन
बोयगा की वापसी
मणीला सेन
एक विवाह यह भी
अधूरी दास्तान
लघु कहानियाँ
जिबह नहीं होती नमाज
काली छाया
भिखारिन
लालसा
लोकतंत्र
गद्दार
नन्हीं आँखें
अंतर्द्वंद्व
प्रहरी
मिलन
विधवा
फसादी
परिभाषा
बावरा
समय
शहादत
करतब
खिलौना
कैसी-कैसी दास्तान
अंगद की बहू
साजिश
हादसे
तर्पण
नीलाम घर
सोता जमीर
जिहाद
बदला
रूह
न्याय
पाप
यह भी एक दंगाई
बेबस राहगीर
तपन
बालपन की दुलहन
वक्त
अंधा संगीतज्ञ
पैगाम
मुझे यह मंजूर नहीं
यही तो प्यार है
लाल आँखें
एक मुलाकात
लौटकर घर आना
सलीका
'संस्कार
नफरत
पवित्र कातिल
कामरूप
अव्यक्त सुख
काकी
संवाद
शिक्षक - छात्र संवाद : एक
शिक्षक - छात्र संवाद : दो
शिक्षक - छात्र संवाद : तीन
शिक्षक छात्र संवाद : चार
शिक्षक - छात्र संवाद : पाँच
शिक्षक छात्र संवाद : छह
शिक्षक - छात्र संवाद : सात
शिक्षक - छात्र संवाद : आठ
शिक्षक - छात्र संवाद : नौ
शिक्षक छात्र संवाद : दस
बाजीगर और जमूरा
बाजीगर और जमूरा
बाजीगर और जमूरा
बाजीगर और जमूरा
बाजीगर और जमूरा
बाजीगर और जमूरा
बाजीगर और जमूरा
बाजीगर और जमूरा
लघु कथाएँ
मंजर
शैतानी ताण्डव के बीच
जाँबाज शहीद
उनकी हुकूमत
जहन्नुम का दैत्य
अंधेरी रात का डर
लज्जा
बरसती आँखें
छुपा हुआ दर्द
रुदन करती रूहें
यहाँ मत आना अब्बू ! फ
अंगार की आँच
नुची देह
बूढ़ी औरत का दर्द
रूह की वेदना
नन्ही बच्ची की रूह
छूटे जानवर !
जोगिन और दरबान
फिक्र
घर लौटकर आना
फरमान
चोर नजरें
मजबूर
बदचलनी
आईना
रानी का वास
आधी रात
बालू रेत पर
वृक्षों पर लटके प्रेत
देह का लावा
निर्विकार दानव
सूनापन
यह कैसा डर
दो पल
विभत्स परिदृश्य
पनघट
चीख और पुकार
एक रोटी, एक जिस्म !
राजनीति की दूकान
धर्मान्ध सीख
पहली सीढ़ी
उदास-सी हँसी
परिवर्तन का रहस्य
शाख पर बैठा उल्लू
संकुचित विचार
बड़बोल
अंधों के नगर में आइने
माटी के मोल
यह कंचन काया
डाॅ. सुरेश वशिष्ठ
14 मार्च 1956 को दिल्ली के एक गाँव में जन्म। 1981 में दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद, जामिआ विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से पी-एच.डी की उपाधि । सर्वप्रथम, दिल्ली सरकार के अधीन विद्यालयों में प्रवक्ता (हिंदी) के पद पर कार्य किया। 2006 में 'संघ लोक सेवा आयोग, दिल्ली' द्वारा प्रिंसिपल पद पर नियुक्ति हुई । 31 मार्च-2018 को सेवा से निवृति ।कला एवं साहित्य की अखिल भारतीय संस्था 'संस्कार भारती' में पिछले चोबीस वर्षों से विभिन्न दायित्व पर कार्यरत रहे। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार) में सदस्य । कला, रंग-कर्म और लेखन से संबंधित अनेक कार्यक्रमों में सक्रिय हिस्सेदारी ।
लगभग एक दर्जन नाटक, चार सौ के लगभग कहानियाँ, दो दर्जन बाल पुस्तकें, चार उपन्यास और कविताएँ। प्रमुख पुस्तकें : पर्दा उठने दो, बेला की पुकार, सैलाबगंज का नुक्कड़, रेत के ढेर पर, गलत फैसला, अंधे शहर में, खुदा का घर, सुनो दास्तान - 1919, नी हिन्द तेरी शान बदले और एक अजेय योद्धा (नाटक) हुकूमत उनकी और अष्टरंग (नाटक संग्रह) खुरदरी जमीन, चली पिया के देश, सिपाही की रस्म, , घेरती दीवारें, नीर बहे. बहती धारा, प्रवाह पथ, श्रंगारण, लोकताल, रक्तचरित्र, भुला नहीं सका हूँ, अधूरी दास्तान, निर्झर नीर, सरवर ताल, सफर कभी रुका नहीं, मुझे बोलने दो, अंधा सगीतज्ञ, रक्तबीज, हिन्दुत्व स्वाह ! और ताल मधुरम् (कहानी संग्रह) लावा, मेवदंश, अलख और नन्हीं चिरैया का खेल तमाशा (उपन्यास) हिन्दी नाटक और रंगमंच ब्रेख्त का प्रभाव, हिन्दी के लोकनाट्य (समीक्षा) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित साक्षात्कार और लेख । विभिन्न संस्थाओं द्वारा देशभर में नाटकों के हजारों सफल प्रदर्शन ।
सम्पर्क: एफ 189, फेस-2, न्यू पालम विहार, सेक्टर-112, गुरुग्राम- 122017
दूरभाष: 09654404416
डाॅक्टर सुरेश वशिष्ठ जी को "आधी डगर "खंड 1 के लिये हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ ।
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