आधी डगर (खण्ड दो) / सुरेश वशिष्ठ (डॉ.)
पुस्तक : आधी डगर (खण्ड दो)
लेखक : डाॅ. सुरेश वशिष्ठPublished by
Vishu Publishing House
2992, Gali Shiv Sahaimal, Ballimaran,Delhi-06
Ph: 011-40159151, Mob: 9650401817 email: vishupublishinghouse@gmail.com
@ : VishuPublishing House
ISBN: 978-9391660-06-2
Edition 2022
Price: 995/-
रचनाधर्मी और उसका लेखन
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भग्न यूरोप से एक आवाज उभरी 'ईश्वर मर गया है।' अर्थात अत्याचार इतना बढ़ चुका था कि हमने उस परम शक्ति की मौत का ऐलान कर दिया। वह शक्ति जो हमें नियंत्रित करती है, उचित और अनुचित का ज्ञान देती हैं, संस्कार अर्जित करती है। हमने उसे सिरे से नकार दिया। यह समझने की जहमत नहीं उठाई गई कि इस पृथ्वी पर रहने वाले ही यह सब रच रहे हैं, कहर बरसा रहे हैं। वे हमें अपाहिज करते हैं और तांडव बिखराते हैं। हम हैं कि नासमझी का ढोंग रचते चले आ रहे हैं।
अणु में प्राण है, नर्तन है, क्रोध है, लय और ताल है, लालसा और चाहत है। प्रेम और समर्पण है, इन सबसे कोई अलग नहीं। हम हैं कि अच्छे से ढोंग रचाना और दूसरों को बंदर की तरह नचाना सीख गए हैं। हमने संवेदना के धरातल पर वास्तविक सच को नकार देने की कला सीख ली है। रचनाकार की नजर से यह सब अछूता नहीं रहता। वह इन विषयों को अपने लेखन में उकेरता है, सच से सामना कराता है। समझ देता है और पाठक को जागने के लिए प्रेरित करता है। बदलते मूल्यों और व्याप्त कुरीतियों पर उसकी नजरें बनी रहती हैं। उसे थोड़ा-सा क्रोध, थोड़ी सी करुणा और थोड़ी-सी तर्क वृत्ति लिखने को बाध्य करती है। यथार्थ में जो दिखाई देता है, उससे आँखें मूँदी नहीं जा सकती।
सहृदय वह कथाकार साफगोई से उसे प्रस्तुत करने का धर्म निभाता है। वह यथार्थ से परे हटकर चैन की बंसी नहीं बजा सकता। किसी तर्क में उलझा नहीं रह सकता। जो नींद में हैं और जो कुम्हला रहे हैं, वह उन्हें सचेत करने के लिए, झकझोर देने के लिए लिखता है। लोगों को उठने के लिए प्रेरित करना उसका काम है। वासना की तरंग जगा देने के लिए या भ्रमित कर देने के लिए, किसी अलग रास्ते पर ले जाने के लिए भी लोग लिखते हैं लेकिन धरातल पर वास्तविक सच को समझ लेने के लिए लिखना भी अनिवार्य है।
अपनी संस्कृति, अपने आधार और अपनी आस्था को ठीक से समझकर हमें लिखना चाहिए। हमारी आस्था और हमारे विश्वास पर प्रहार अगर होता है तो हमें संस्कृति को मजबूती देने के लिए लिखना चाहिए। संस्कारों के हनन पर अंकुश रहना चाहिए। पाठक को भीरु और डरपोक बना देने वाला उद्देश्य भी स्वीकार्य नहीं होना चाहिए और यथार्थ से परे हटकर लिखना भी न्याय संगत नहीं।
लोगों का कातिल होना गुनाह है। सोहबत रंग और ढंग बदलती है। दिल अरमान संजोने लगता है। चाल लहकने लगे और मुनादी जब बढ़ने लगे, तब कोई दिलकश आवाज भीतर में चिंघाड़ने लगती है, उस समय आदमी फसादी होने लगता है। आक्रोश जन्म लेने लगता है। बहुत तेज रोशनी में भी वह खुद को अंधेरों से घिरा पाता है। रचनाधर्मी के लिए जाने कैसी तल्खी और बेबसी है, कैसी बेचैनी है कि पीड़ भीतर ही कसमस रहती है। यादें उसे विचलित करती हैं और हृदय को चीर देने वाली हूक बाहर आने को आतुर रहती हैं। ऐसे समय उसका तटस्थ रहना ही उसकी सार्थकता है।
रियाया बेकाबू रहती है तो हथियार की जरूरत पड़ती है। कुछ उसकी आब को लेकर भी ढोल पीटने का काम करते हैं। हर चुनाव के लिए बोतल के जिन्न को बाहर निकाल देना भी फैशन बनता जा रहा है। चुनाव के बाद वापस उसे बोतल में बंद कर देने का खेल भी बहुत पसारा गया है। बोतल में बंद जिन्न का जमकर फायदा उठाया गया है। वे उसे जब चाहते हैं, खुला छोड़ देते हैं और जब फायदा नहीं देखते पुनः कैद कर लेते हैं। इस कार्य में अदालते भी उनका साथ दिये बगैर नहीं रहती। ऐसे करतब करने वाले लोगों की मंशा को बाहर लाना भी लेखक का काम होना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि मेरा यह लेखन यथार्थ की परतें खोल देने में सक्षम साबित होगा और आप इसे पसन्द भी करेंगे।
दिनांक : 4 मई, 2022। सुरेश वशिष्ठ, गुरुग्राम
अनुक्रम
कहानियाँ
पूर्वजन्म का खेल
होनी को कौन टाले
धन का लालच बुरा
तीन यार
लाल कुँवर
सरवर नीर
श्वेतपुत्र
लाल सरोवर
रानी कनकप्रभा
बदल गई नीयत
चन्द्रमुखी और राजकुँवर
जादूगर लालदीन
माधवदास उर्फ बंदा बैरागी
एक वैष्णव योद्धा
लघु कहानियाँ
क्रूरता
महान वीर तक्षक
वीरांगना नारायणी बाई
वीर अमरसिंह
स्वामिभक्त शुभ्रक की मलिका
हुस्न जोहराबाई
सुरबाला
मधुर अनुगूँज
आत्मबल
धर्म और योद्धा
वीरांगना किरण देवी
लज्जित लुटेरा
उनका हुनर
योगदान
परछाई
शहजादी का हठयोग
संचरित शक्ति
लघुकथाएँ
बरसात में
यात्रा अभी जारी है
बाल सखा
ताली बजाने की चाकरी
नये घर का आंगन
तुम भी दिल्ली देखो
लव या कुछ और
'ट' और 'ड़' का फर्क
फेरी वाला
एक यह भी सच
सजा
राजा और बेताल
हिजड़ा रेजिमेंट
मन की व्यथा
पश्चाताप
पैंतरा
बुद्ध बनो
जैसी तुरही वैसा साज
सन्नाटा
उसने कहा था
हूक
उलझे रहो
एक पन्ना यह भी
मुझे मोक्ष नहीं चाहिए
गुलामी
जीत और जलेबी
दो किसानों की बातें
साँठ-गाँठ
वे-फिक्री
मतलब
नसीब
रोजी-रोटी
धर्म बदल लेते हैं
जात-पात का खेल
तर्कसंगत ज्ञान
मेलजोल
अंधे
फैंटेसी कथा-एक
फैंटेसी कथा-दो
फैंटेसी कथा- तीन
फैंटेसी कथा -चार
जनेऊ का दर्द
दास्तान 1990
स्नेह के आँसू
गोबरैला
मजबूरी
मोक्ष
हाई वोल्टेज ड्रामा
ठौर-ठिकाना
अंतस की पीड़ा
बेताल और सवाल
मेरी पत्रकथाएँ
प्रिय के नाम पत्र
दर्द की तलाश
एक स्वप्निल पत्र
अंकित हृदय पत्र
माँ के नाम पत्र
एक पत्र उसके नाम
पत्नी के नाम पत्र
मित्र सूर्यदेव के नाम एक गुहार पत्र
विद्वान मित्र को पत्र
छात्रों के नाम एक पत्र
दुःखहरण के लिये पत्र
अदृश्य शक्ति को पत्र
विदेश से पत्नी को पत्र
अनजाने नाम एक पत्र
तस्वीर का रुख!
साहित्यकार को एक पत्र
अंत समय,
एक प्रीत पत्र
संस्कार तरंग और परिवेश
किस्सागोई
कॉलेज की रंगीन दुनिया
खाने का वह स्वाद
भोज की सात मिठाइयाँ
नदारद है वैसी प्रीत !
मेरी बड़ी माँ
यात्रा वृतान्त / संस्मरण
आगरा
भाभीजान
नन्हे बच्चों के साथ
पुणे यात्रा
गुवाहाटी से काजीरंगा
डाॅ. सुरेश वशिष्ठ
14 मार्च 1956 को दिल्ली के एक गाँव में जन्म। 1981 में दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद, जामिआ विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से पी-एच.डी की उपाधि । सर्वप्रथम, दिल्ली सरकार के अधीन विद्यालयों में प्रवक्ता (हिंदी) के पद पर कार्य किया। 2006 में 'संघ लोक सेवा आयोग, दिल्ली' द्वारा प्रिंसिपल पद पर नियुक्ति हुई । 31 मार्च-2018 को सेवा से निवृति ।कला एवं साहित्य की अखिल भारतीय संस्था 'संस्कार भारती' में पिछले चोबीस वर्षों से विभिन्न दायित्व पर कार्यरत रहे। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार) में सदस्य । कला, रंग-कर्म और लेखन से संबंधित अनेक कार्यक्रमों में सक्रिय हिस्सेदारी ।
लगभग एक दर्जन नाटक, चार सौ के लगभग कहानियाँ, दो दर्जन बाल पुस्तकें, चार उपन्यास और कविताएँ। प्रमुख पुस्तकें : पर्दा उठने दो, बेला की पुकार, सैलाबगंज का नुक्कड़, रेत के ढेर पर, गलत फैसला, अंधे शहर में, खुदा का घर, सुनो दास्तान - 1919, नी हिन्द तेरी शान बदले और एक अजेय योद्धा (नाटक) हुकूमत उनकी और अष्टरंग (नाटक संग्रह) खुरदरी जमीन, चली पिया के देश, सिपाही की रस्म, , घेरती दीवारें, नीर बहे. बहती धारा, प्रवाह पथ, श्रंगारण, लोकताल, रक्तचरित्र, भुला नहीं सका हूँ, अधूरी दास्तान, निर्झर नीर, सरवर ताल, सफर कभी रुका नहीं, मुझे बोलने दो, अंधा सगीतज्ञ, रक्तबीज, हिन्दुत्व स्वाह ! और ताल मधुरम् (कहानी संग्रह) लावा, मेवदंश, अलख और नन्हीं चिरैया का खेल तमाशा (उपन्यास) हिन्दी नाटक और रंगमंच ब्रेख्त का प्रभाव, हिन्दी के लोकनाट्य (समीक्षा) विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित साक्षात्कार और लेख । विभिन्न संस्थाओं द्वारा देशभर में नाटकों के हजारों सफल प्रदर्शन ।
सम्पर्क: एफ 189, फेस-2, न्यू पालम विहार, सेक्टर-112, गुरुग्राम- 122017
दूरभाष: 09654404416
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