ढका हुआ सौंदर्य / नीरजा कृष्णा

लघुकथा-संग्रह  : ढका हुआ सौंदर्य 

कथाकार  : नीरजा कृष्णा

ISBN: 978-81-956276-4-6

प्रकाशक : स्वत्व प्रकाशन

कुल्हड़िया कॉम्पलेक्स के निकट, अशोक राजपथ, पटना- 800004

e-mail : swatvaprakashan@gmail.com

प्रथम संस्करण : 2022

मूल्य : ₹250.00

@ : लेखक

शब्द संयोजन : स्वत्व प्रकाशन

आवरण व पृष्ठसज्जा : चन्दन कुमार

मुद्रक : थॉमसन प्रेस (इंडिया) लिमिटेड

भूमिका

मन को स्पर्श करती रचनाएँ

परम आदरणीय नीरजा कृष्ण भाभी,

यह जानकर मन खुशियों से भर गया कि आपकी छोटी-छोटी कहानियाँ कुछ ही दिनों में कथा संग्रह के रूप में एक पुस्तक का आकार लेने जा रही है। बीज कब आकार लेकर वटवृक्ष बनता है, पता नहीं चलता। गर्भ से प्रकट होने की यात्रा प्रसव पीड़ा के बाद का सुखद अहसास है। आप उस परिवार को प्रतिबिम्बित करती हैं जहाँ पीड़ित मानवता को समर्पित बड़े भाई डॉ० शाह अद्वैत कृष्ण जी, शिशु रोग विशेषज्ञ के साथ-साथ गीत, संगीत और साहित्य के रसिया हैं तथा उनका हंसता खेलता परिवार अन्य लोगों के लिए प्रेरक संदेश देता है। मैं खुशनसीब हूँ कि आपकी प्रथम पुस्तक 'ढका हुआ सौन्दर्य' के बारे में प्राक्कथन लिखने का मौका मिला है। कोरोना काल ने हजारों महिलाओं की सुसुप्त प्रतिभा को जाग्रत कर नवजीवन प्रदान किया है। खासकर आप भारत विकास परिषद से दशकों से जुड़ी हैं। अतः रचनाओं में सामाजिकता और परिवर्तन की आकांक्षा झलकती है।

साहित्य को मानव जीवन का शाब्दिक दस्तावेज कह सकते हैं लेकिन इस शर्त के साथ की साहित्य की सामग्री मानवीय संवेदनाओं और संबंधों के धागों को स्पर्श करें। परम आदरणीय भाभी एवं लेखिका श्रीमती नीरजा कृष्ण जी की पुस्तक 'ढका हुआ सौंदर्य' इस कसौटी पर खरी उतरती है। आपने अपनी लघु कथाओं के माध्यम से पारिवारिक व सामाजिक समस्याओं को शिद्धत से उठाया है और समाधान भी दिया है। आपकी हर कहानी एक सीख देकर जाती है। सरल, सहज शब्दों का प्रयोग होने से ये कहानियाँ हर वर्ग व हर उम्र के लोगों की पसंद होगी, इसमें कोई शक नहीं है। आज के मोबाइल युग में लोग बड़ी कहानियाँ व लेख कम पसंद करते हैं। व्यस्त जीवन में एक दो मिनट में ही उन्हें कुछ अच्छा पढ़ने को मिल जाये तो इससे अच्छा उपहार कुछ नहीं हो सकता। इतनी बात कहने के पीछे तात्पर्य यही था कि लेखिका आज के व्यस्त जीवन की कसौटी पर भी खरी उतरती है। एक दो मिनट की कहानियों के माध्यम से रोचक तरीके से हर कहानी में सामाजिक या परिवार की समस्या उठाती है, व समाधान भी देती है। सकारात्मक सोच उनकी कहानियों की विशेषता है।

“लाई के" में एक पति के प्रेम व परवाह का बहुत खुबसूरत चित्रण लड्डू" है जो "सबक" में एक बच्चे की माँ की चिंता व अनजान महिला का उस बच्चे के प्रबल ममता का चित्रण अभूतपूर्व है। छोटी सी कहानी में मानवीय संवेदनाओं को उकेर देना लेखिका के कलम का जादू है।

“ढका हुआ सौंदर्य" कहानी में लेखिका ने भारतीय परिधान के सौंदर्य को जिस प्रकार विदेश में स्थापित किया है वैसे ही अपनी इस पुस्तक में पारिवारिक व सामाजिक सौंदर्य को कायम किया है। "मन की आँखें" में आपने आज के युग में लोगों में फैले अवसाद को दूर करने का एक सुंदर उपाय बताते हुए कहा है- “दूसरों के दुःख को दूर करना शुरू कर दो फिर देखो कैसे स्वस्थ हो जाओगे ।" हर कहानी अपने संदेश में सौ प्रतिशत खरी उतरती है।

'सबसे अनमोल', 'अब कुछ अपने लिए', 'दूध पिलाई का नेग' आदि कहानियों में जहाँ पारिवारिक संबंधों की सुंदरता का चित्रण है तो आज की सीता, मकरध्वज कहानी भारतीय संस्कृति की हजारों वर्ष पुराने मूल्यों को लेकर चलती है। और तो और, कहानी मोल भाव, परहेज, दरारें, अम्माजी का श्राद्ध आदि समाज में फैली कुरीतियों पर मीठा प्रहार करती है।

इस पुस्तक को पढ़ते समय धीरे-धीरे इन्फोसिस के नारायण मूर्ति जी की धर्मपत्नी आदरणीया श्रीमती सुधा मूर्ति जी की याद आती है। उनकी थ्री थाउजेंड स्टीचेज (Three thousand stitches), डॉलर बहू, ग्रैण्ड पैरेन्ट्स आदि पुस्तकें भारतीय जीवन मूल्यों और वर्त्तमान पीढ़ी के अर्न्तद्वन्द्व को परिलक्षित करती है। उसी कड़ी में आपकी रचनाएँ भी जीवन में विभिन्न पहलुओं को संवेदना के साथ स्पन्दित करती है।

सहज, प्रभावी सम्प्रेषण से जीवन के विभिन्न रंगों को बिखरेती लेखिका की इन लघु कथाओं को बार-बार पढ़ने का मन करता है। अंत में यही कहा जा सकता है कि नीरजा जी आज के समय की गहरी पहचान रखती हैं। इसलिए उन्होंने किसी का ज्यादा समय न लेते हुए कम शब्दों में कहानी के माध्यम से अपनी बात रखकर अपनी बुद्धिमता का परिचय दिया है। उनकी सुझबूझ ऐसे ही सबको नई राह दिखाती रहे, इस कामना के साथ उन्हें हार्दिक बधाई व शुभकामना ।

                           (पद्मश्री बिमल कुमार जैन)

अनुक्रमणिका

1. वलाई के लड्ड

2. सबक

3. अठन्नी चवन्नी

4. दादी के परांठे

5. जलतरंग

6. इतना तामझाम 

7. जरा सी परवाह

8. रोती हुई विधवा

9. जीने के लिए रोटी

10. पुण्य 

11. आज की सीता 

12. रामराज्य

13. मन पर जमी रेत

14. डस्टबिन

15. ढका हुआ सौंदर्य

16. ऑनलाइन पेमेंट

17. अपनापन

18. ईंट का जवाब पत्थर.

19. विकल्प

20. आम की मिठास

21. तृप्ति

22. बिरादरी

23. वो चार अमरूद

24. ह्यूमन कंप्यूटर

25. अपने पास रहना है

26. लोहा गर्म हो गया

27. लंचबॉक्स

28. ममता

29. देशसेवा

30. रंग बिरंगा स्वेटर

31. आयुष्मान

32. पूरब और पश्चिम

33. मेरे अपने

34. मैं एकलव्य नहीं हूँ

35. सीधा सा गणित

36. कितनी बड़ी सीख

37. दद्दा जी

38. मन की आँखें

39. कद्रदान

40. नेमप्लेट

41. मीठे बोल

42. अनजाने में 

43. मकरध्वज

44. परहेज

45. सबसे अनमोल

46. धराशायी

47. जाकी रही भावना जैसी

48. अमेरिकन सिटीजनशिप

49. आदमी बन जाइए

50. बरगद की छाँव

51. जंकफूड

52. मोलभाव

53. मटमैला झोला

54. शबरी

55. छोटी छोटी बातें 

56. गुड्डी

57. काठ की गुड़िया

58. दो मजबूत हाथ

59. बाकी सब कंगाल

60. नामकरण

61. भगवान के वस्त्र

62. ग्यारह राजभोग

63. असहज

64. गीतासार

65. आँखें नीची

66. परहेज

67. अब कुछ अपने लिए

68. नौटंकी 

69. भेदभाव

70. ओल्ड पंच

71. मैदे की लोई

72. दूधपिलाई का नेग

73. बड़े घर की बेटी

74. दस का नोट 

75. अधूरा सपना

76. फूँक वाला मरहम

77. हुनर

78. बढ़ती उम्र की मिठास

79. अम्माजी का श्राद्ध 

80. दरारें

81. एक अलग सी

82. सच्चा मर्द

83. गर्मागर्म समोसे

84. अरहर की दाल

85. भारतीय नारी

86. इम्यूनिटी पावर

87. पब्लिसिटी

88. दुशाला

89.चायपानी

90. धागों का डिब्बा

91. यादें

92. मक्खनबड़े

93. गुब्बारे

94. सर्वगुणसम्पन्न

95. दो सौ रुपए

96. घर भी मुस्कुराता है

97. बूढ़े बैल

98. विदाई का टीका

99. फक्कड़ बाबा

100. वो साड़ी वाली

... और अंत में अपनी बात

बचपन से ही पठन पाठन में गहरी रुचि थी। मेरे पूज्य नानाजी श्री लक्ष्मी नारायण अग्रवाल जी बराबर मेरी माँ से कहते थे... तेरी ये बेटी कहानी लिखा करेगी.... ।

बात आई गई हो जाती थीं। विवाह पश्चात कई बार कुछ लिखने के लिए मन व्याकुल तो हुआ पर कुछ हो नहीं सका। पारिवारिक व्यस्तताओं ने शायद इसकी इजाजत ही नहीं दी।

खैर, जीवन के इस पड़ाव पर जब कुछ स्थिरता आई तो लिखने का कार्यक्रम बनने लगा । इसी क्रम में फेसबुक पर 'लघुकथा के परिंदे', 'फलक' और 'कहानियां जो दिल को छू गई' जैसे प्रतिष्ठित समूहों से जुड़ने का सौभाग्य मिला। और भी अनेकों समूहों से जुड़ाव हुआ और लगातार सीखने के अवसर मिलते गए।

आज मुझे मूर्धन्य लघुकथा लेखिका सुश्री प्रेरणा गुप्ता जी की बहुत याद आ रही है। अपने नाम के अनुरूप उन्होंने मुझे सदैव प्रेरित किया और आवश्यकता होने पर उचित मार्गदर्शन भी दिया। मैं प्रसिद्ध कहानीकार श्री विनय कुमार मिश्र और श्रीमती अंजू श्रीवास्तव निगम की भी सदा आभारी रहूंगी जिन्होंने मेरी छोटी से छोटी जिज्ञासा भी हर समय सहयोग देकर शांत की। मैं सुश्री मौसमी चंद्रा जी से भी अनुगृहित हूं। आपने कथाओं का वाचन करना सिखाया और अनगिनत मौके भी प्रदान किए। मैं अपने परिवार के प्रति भी बहुत अनुगृहित हूं। मेरे परिवार में सभी ने सदा उत्साहवर्धन किया और मुझे आगे बढ़ाया।

मेरी लघुकथाओं का संग्रह 'ढका हुआ सौंदर्य' आपके समक्ष है। इसको आप अपना आशीर्वाद देने की कृपा करके मुझे धन्य करें।

सादर

नीरजा कृष्णा, पटना

जन्म - 4-2-1951 (अलीगढ़)

शिक्षा- एम. ए. संस्कृत (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय)

विधा - लघुकथा और कहानी

प्रकाशन - साझा लघुकथा संग्रह 'कलरव' और 'आकाशगंगा' में कुछ कहानियाँ । प्रभातखबर, आज, हिंदुस्तान और दस्तकप्रभात जैसे प्रतिष्ठित समाचारपत्रों में प्रकाशन ।

विभिन्न साहित्यिक पटलों पर नियमित प्रकाशन ।

विभिन्न यूट्यूब चैनलों पर मेरी लघुकथाओं का वाचन ।

लब्धप्रतिष्ठ उड़िया कथाकार श्री विनय दास जी के द्वारा मेरी कथा का उड़िया भाषा में अनुवाद |

प्रतिष्ठित लघु फिल्मकार श्री अनिल पतंग जी के द्वारा मेरी एक लघुकथा का फिल्मांकन ।

सक्रियता - विभिन्न सामाजिक समारोहों में सहभागिता । अपनी कहानियों का फलक व 'किस्सा कहानी' यूट्यूब चैनल पर सफल वाचन |

सम्मान - हिन्दी पखवाड़ा के समापन अवसर पर अखिल भारतीय प्रगतिशील लघुकथ मंच एवं स्वरांजलि द्वारा आयोजित लघुकथा उत्सव में सम्मानित। विभिन्न सामाजिक उत्सवों में सम्मानित।

सम्पर्कसूत्र - 9110010816, 8986164530

ईमेल - nirjakrishna1951@gmail-com

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