बेमिसाल लघुकथाएँ : बलराम अग्रवाल / जितेन्द्र जीतू (संपादक)

लघुकथा-संग्रह  :  बेमिसाल लघुकथाएँ 

         कथाकार : बलराम अग्रवाल

        चयनकर्ता : जितेन्द्र जीतू

ISBN: 978-93-92581-55-7


श्रृंखला संपादक : डॉ. जितेन्द्र जीतू

© बलराम अग्रवाल

मुद्रक : मणिपाल टेक्नोलॉजीज लिमिटेड

आवरण: महेश्वर

प्रकाशक :

पुस्तकनामा, 

डी-77/ एसएफ-202, शौर्यपुरम सोसाइटी, जिन्दल पब्लिक स्कूल के नजदीक एनएच-24, बम्हेटा, पोस्ट - कविनगर, गाजियाबाद 201002 (उ.प्र.) 

ईमेल: info@pustaknama.com

प्रथम संस्करण: 2023

मूल्य : ₹200

अपनी बात

बलराम अग्रवाल विधा के उत्थान को एक मिशन की तरह लेने वाले सच्चे, संकल्पित लघुकथाकार हैं। इनके पास भाषा का चमत्कार और शिल्प की बहार है जिनका ये येन केन प्रकारेण अपनी लघुकथाओं में प्रयोग-अनुप्रयोग-उपयोग करते हैं।

बलराम अग्रवाल उस दौर के हैं जब लघुकथा अल्हड़-सी थी और यौवन की अंगड़ाई भी नहीं ली थी। इनके तब के साथियों में से बहुतों ने दूसरी विधाओं में हाथ आजमाया किंतु ये लघुकथा से ही जुड़े रहे एवं उसे विधा का दर्जा दिलाकर ही माने। आरंभ में जिस लघुकथा लेखन को ये मिशन के तौर पर अपनाकर चल रहे थे. हैरानी व संतोष का विषय है कि अभी तक इन्होंने लाख रुकावटों व संघर्ष के बावजूद अपना मार्ग नहीं बदला है और समकालीन लघुकथा के उतार-चढ़ाव, ऊंच-नीच और संघर्ष के साक्षी रहे हैं। वे कहीं लिखते भी हैं, “साहित्य के कितने ही विद्वजनों ने समझाया- लघुकथा का कोई भविष्य नहीं है, तुम्हारा भविष्य कहाँ से संवारेगी। नाम कमाना है, स्थापित होना है तो कहानी,  उपन्यास में जाओ । हम कहीं नहीं जा पाए। कह नहीं सकते कि कहीं और जा पाने का माद्दा नहीं था या यहीं की रेत से कुछ निचोड़ लेने की मूर्खतापूर्ण जिद हममें थी । अब, अगर कोई यह माने कि लघुकथा जहाँ थी, अभी भी वहीं खड़ी है तो निसंदेह उसके साथ वहीं खड़े हैं जहाँ से हमने यात्रा शुरू की थी; और अगर कोई यह स्वीकारे कि बहुत धीमी चाल से ही सही, लघुकथा ने कुछ मुकाम तय अवश्य किये है तो निसंदेह यह अकेली नहीं चली, हमें भी साथ लेकर चली है...चल रही है।"

लघुकथा के ऐसे समर्पित, विरले व्यक्तित्व बलराम अग्रवाल की लघुकथाएँ संवेदनाओं के वे परचम हैं जो अनुभूतियों के शीर्ष पर जाकर लहराते हैं । बलराम अग्रवाल ने अपनी लघुकथाओं के क्या विषय नहीं लिए । जिस भी विषय को लिया, उसे पूरी शिद्दत से जिया। वे चलते- फिरते लघुकथाकार हैं। रात के अंधेरे में जब सारी दुनिया सो रही होती है, वे लघुकथा या लघुकथा विषयक आलेख लिख रहे होते हैं। दिन में वे कहीं आमंत्रित होते हैं लघुकथा पर व्याख्यान देने के लिए तो रात में फिर लघुकथा लिखने-पढ़ने बैठ जाते हैं। वस्तुतः उनका दिन भी लघुकथा से प्रारंभ होता है और अंत भी लघुकथा से ही होता है।

बलराम अग्रवाल की अनेक लघुकथाएँ अनेक स्तरों पर आपको लुभाती हैं। इनका कथ्य, पात्रों का चुनाव, शैली, भाषा सब मिलकर एक ऐसे औरा का निर्माण करते हैं जिसे लघुकथा कहा जाता है और लघुकथा के अलावा कुछ नहीं कहा जाता है। इनकी अन्वेषण दृष्टि लघुकथा के कथानक को कहीं से भी ढूंढ लाती है। इनका समृद्ध शब्द भंडार पात्रों के लिए सदैव समुचित भाषा उपलब्ध कराता है। इनकी तार्किक योग्यता और ज्ञान- विचार प्रवाहयुक्त शैली की जमीन तैयार करता है । लघुकथा ऐसे ही तैयार नहीं होती। इसमें रातें काली करनी होती हैं, प्रसव वेदना से पड़ता है। जूझना बलराम अग्रवाल की लघुकथा पारंपरिक लघुकथा की लीक पर चलने की अपेक्षा पहले से न आजमाए हुए बिंबों-प्रतीकों को ग्रहण करने की चेष्टा करती दिखती है। बलराम अग्रवाल की एक महत्वपूर्ण विशेषता। शैली के स्तर पर उनके अनेक प्रयोग लुभाते हैं। वे लघुकथा के तयशुदा फ्रेम के अनुसार न चलकर प्रयोगधर्मिता के लिए जाने जाने लगे हैं। वे एक मास्टरपीस तैयार करने की अपेक्षा अनेक ऐसी लघुकथाएँ लिखने में विश्वास करते हैं जिससे विधा के विकास का मार्ग प्रशस्त हो। इसलिए वे प्रयोग करते ही रहते हैं..करते ही रहते हैं...। यदि यह कहूँ कि लघुकथा के मैदान में उतरने वाले वे एक ऐसे लेखक हैं जो हर बार नए प्रयोग, नई दृष्टि के साथ होते हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

- डॉ जितेन्द्र जीतू, बिजनौर jitendra.jeetu1@gmail.com 

मोबाइल: 8650567854

अनुक्रम

अपनी बात

अकेला कब तक लड़ेगा जटायु

अज्ञात गमन

अन्तिम संस्कार

अपने पाँव

अल्लाह ता-कयामत 

अलाव के इर्द-गिर्द 

उनके बीच का अंतर

उम्मीद

एक और देवदास

ओस

और जैक मर गया 

औरत और कुर्सी

कलम के खरीदार

कसाईघाट

कौम के गद्दार

खोई हुई ताकत 

गाँठ

गुलमोहर

जहर की जड़ें

जुबैदा

तीसरा पासा

थोपा गया अभिशाप

दाम्पत्य

दिन-रात

दीप ऐसे जला

दीमक

दुआ

धंधा-पानी

नया नारा

नशेमन की वापसी

नागपूजा

पत्ते

खेल चल निकला

पुलिस पर भरोसा

पुश्तैनी काम

फुटबॉल

बदचलन

बदलेराम

बिम्ब-प्रतिबिम्ब

बेपरदा

भविष्य की खातिर

भ्रांत पीढ़ी

माध्यम

मैं मर रहा हूं

युद्धखोर मुर्दे

रामभरोसे

शोषित को देखकर

समय से मुलाकात

समाधान

सरसों के फूल

साहब का चपरासी 

सीढ़ियां न उतरो शबाना

सुगन्धा

सुबह का इंतजार

संघर्ष और चूहे

संघर्ष बगावत और निर्माण

परिचय : 

बलराम अग्रवाल 

1972 से लघुकथा लेखन, सम्पादन, आलोचना और अनुवाद कार्य में सलग्न। अब तक 6 लघुकथा संग्रह, 2 कहानी संग्रह, 4 लघुकथा आलोचना पुस्तकें। बाल साहित्य की 10 पुस्तकें। प्रेमचंद, प्रसाद, शरत्चन्द्र तथा बालशौरि रेड्डी की कहानियों के 26 संग्रह सम्पादित। 1993 से 1996 तक 'वर्तमान जनगाथा' का तथा 2014-15 में 'शोध समालोचन' का सम्पादन। अनेक पत्रिकाओं के लघुकथा विशेषांकों का सम्पादन। 'हिन्दी लघुकथा का मनोविश्लेषणात्मक अध्ययन' विषय पर पीएच डी। संस्कृति मंत्रालय के अन्तर्गत वर्ष 2018-19 के लिए 'लघुकथा : इतिहास, स्वरूप और सम्भावना' विषय पर सीनियर फैलोशिप । केरल शिक्षा विभाग द्वारा बाल एकांकी 'ज़रूरी खुराक' को कक्षा 7 के पाठ्यक्रम में, हि.प्र. शिक्षा विभाग द्वारा बाल एकांकी 'पेड़ बोलता है' को कक्षा 4 के पाठ्यक्रम में सम्मिलित। मधुबन बुक्स, मुम्बई द्वारा शिक्षण संस्थाओं के लिए तैयार पाठ्यपुस्तक 'माला गुंजन' में कक्षा 6 के लिए बाल एकांकी 'सूरज का इंतजार' को तथा ऑक्सफोर्ड एडवांटेज हिन्दी साहित्य माला-5 में काव्य नाटिका' नहीं रहेंगे अगर जंगल' को सम्मिलित किया गया है ।

डॉ. जितेन्द्र 'जीतू '

जन्म : 25 अगस्त 1965 बिजनौर

शिक्षा: पीएच.डी.

सम्प्रति : सर्व यू.पी. ग्रामीण बैंक, बिजनौर में कार्यरत ।

विधाएँ : व्यंग्य, बालकथा, लघुकथा - आलोचना, कविता, कहानी। 

प्रकाशित कृतियाँ : आज़ादी के पहले आज़ादी के बाद, शहीद को पत्र, पति से कैसे लड़ें व काँटा लगा ( व्यंग्य संग्रह), झूठ बोले कौवा काटे, कटी पतंग (बालकथा संग्रह), समकालीन हिन्दी लघुकथा का सौन्दर्यशास्त्र पर शोध, लघुकथा विषयक अनेक आलेख प्रकाशित। आकाशवाणी के लिए हास्य एकांकी का लेखन।

सम्पादन : बूँद बूँद सागर, अपने - अपने क्षितिज, सफ़र संवेदनाओं का (लघुकथा संकलन) पत्र लेखन, बैंक की डिक्शनरी ।

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