बीसवीं सदी की दहेज विषयक लघुकथाएँ और उनका वैशिष्ट्य / रामदुलार सिंह 'पराया'

पुस्तक : बीसवीं सदी की दहेज विषयक लघुकथाएँ और उनका वैशिष्ट्य (शोध)

लेखक : रामदुलार सिंह 'पराया' (डाॅ.)

मूल्य : 250 रुपये

सर्वाधिकार : सुरक्षित 

प्रथम संस्करण : 2023 ई.

प्रकाशक : जानकी दानी प्रकाशन

836, जीएच -3, साईंनाथ अपार्टमेंट, 

सेक्टर - 28, रोहिणी, नयी दिल्ली-110042 दूरभाष : 9801699936, 8789335785

 E-mail : jankidaniprakashan@gmail.com

सार-संक्षेप

यह शोध प्रबंध 

'दहेज की अवधारणा से जुड़ी हुई हिंदी लघुकथा का अनुशीलन' वस्तुतः एक सामयिक अनुष्ठानिक प्रयास है, जो समाज को एक कुप्रथा की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है । दहेज के कारण आज अनेकानेक बहुओं की हत्या अथवा आत्महत्या के दृश्य देखने को मिलते हैं। दैनिक समाचार पत्रों के पन्नों में दहेज से संबंबद्धधित हत्या के समाचार विरल नहीं है। ऐसे में कन्या के पिता की दयनीय स्थिति की कल्पना सहज संभावित है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यालय लखनऊ से डेढ़-दो दशक से निकलने वाले प्रतिष्ठित 'दहेज दानव' पत्र ( सप्ताहिक - लखनऊ) के द्वारा समस्या उपचार पर्याप्त नहीं है। यह शोध प्रबंध इसी क्रम में आठ अध्यायों में लिखित है । दहेज का अर्थ, दहेज की परिभाषा, दहेज का इतिहास, दहेज के विभिन्न रूप, दहेज से जुड़ी हुई विविध लघुकथाएँ - चाहे वे लघुकथात्मक पुस्तकों में हों, लघुकथा खंड के रूप में संकलित हों, लघुकथा संकलन के रूप में हों अथवा लघुकथा संग्रह के रूप में अथवा पत्र-पत्रिकाओं में बिखरे रूप में हों अथवा स्फुट रूप में, अप्रकाशित रूप में जिनके शीघ्र प्रकाशन की - सहज संभावना है - शोध प्रबंधक का उपजीव्य बनी हैं। कहीं वर पक्ष के लोभ पर अधिक प्रकाश दिखता है, कहीं वधू पक्ष की दयनीय स्थिति से हमारा साक्षात्कार होता है । कहीं कन्या के विवाह के समय दूल्हे के ऊपर अथवा दूल्हे के पिता माता के द्वारा धोखा होने पर कोई युवक बिना दहेज के कन्या के उद्धार के लिए तैयार दिखाई पड़ता है । कहीं कन्या स्वयं साहस का परिचय देती है। कहीं कन्या अपने पैरों पर खड़ा होकर दहेज का जुगाड़ करती है। कहीं भावी दूल्हे के साथ पलायन करती है, कहीं कुछ, कहीं कुछ। बहुत सारे नकाबपोश संभ्रांत लोग कुछ नहीं की बात करके भी दहेज के रूप में बहुत कुछ ले लेते हैं और कन्या को कन्या के पिता अथवा परिवार को सांसत में डाल देते हैं इत्यादि। प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष अथवा परोक्ष दोनों रूपों में दहेज वस्तुतः समाज एवं राष्ट्र के लिए घातक है, कुष्ठवत् है, इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। प्रस्तुत शोध प्रबंध साहित्येइतिहास पर का एक नया अध्याय खोलेगा। लोगों को एक नया प्रकाश देगा, ऐसा विश्वास है।

रामदुलार सिंह 'पराया', 

उदित नगर (कुसुम्हीं), 

चुनार, मिर्जापुर-231304 (उ.प्र.)

अनुक्रम

प्राक्कथन

सार संक्षेप

प्रथम अध्याय

प्रस्तावना : लघुकथा का अर्थ, लघुकथा की परिभाषाएँ, कथा विद्या का एक विशिष्ट रूप, साहित्य की एक सशक्त विधा, लघुकथा का वर्णय विषय, आत्यंतिक उद्देश्य, समाज की असंगति-विसंगति का पर्दाफाश, समाज के लोगों को एक प्रकाश देना

द्वितीय अध्याय

दहेज : समाज की एक प्रमुख समस्या, इसका संबंध समाज के सभी श्रेणी के लोगों के साथ सभी जगह प्रायः सभी समय - वर्तमान में इसके माध्यम से पैसे प्राप्त कर यावत जीवन सुखी रहने का स्वप्न देखना, दहेज समाज के एक कोढ़, एक अभिषाप के रूप में जिसका वर्तमान रूप अत्यंत दुखदायी, दहेज के प्रत्यक्ष रूप-अप्रत्यक्ष रूप, दहेज का आत्यंतिक उद्देश्य : तब और अब

तृतीय अध्याय

दहेज विषयक लघुकथा का अनुशीलन : मुख्य उद्देश्य, समाज के भिन्न-भिन्न स्थान के भिन्न-भिन्न लोगों की मनोवृत्ति का अध्ययन, मुख्य समस्या का मूल्यांकन

चतुर्थ अध्याय

हिंदी लघुकथा की परंपरा : वैदिक काल औपनिषेदिक काल, वीर गाथा काल, भक्ति काल, रीति काल, आधुनिक काल, पूर्ण विषय बीसवीं सदी के छठे - सातवें दशक से विभिन्न रूप समस्याओं - को समाविष्ट करने का प्रयास

पंचम अध्याय 

हिंदी लघुकथा सातवाँ दशक और दहेज की समस्या : पत्र-पत्रिकाओं की फुटकल लघुकथाएँ, एकल संग्रह, लघुकथा खंड आदि में प्रकाशित लघुकथाएं

षष्ठ अध्याय

हिन्दी लघुकथा आठवाँ दशक और दहेज की समस्या : पत्र-पत्रिकाओं की फुटकल लघुकथाएँ आदि

सप्तम अध्याय

हिन्दी लघुकथा नवाँ दशक एवं बीसवीं सदी का अंतिम दशक और दहेज की समस्या : पत्र-पत्रिकाओं की फुटकल लघुकथाएँ, एकल संग्रह, लघुकथा खंड आदि में प्रकाशित लघुकथाएँ

अष्ठम अध्याय

दहेज विषयक लघुकथा के अध्ययन से हिंदी साहित्येतिहास पर नवीन प्रकाश : लघुकथा लेखकों की कालिक चेतना का बोध, समाज उत्थान पतन का लेखा-जोखा, मनोरंजन के साथ ज्ञानवर्द्धन, उपसंहार 

आधार ग्रंथ सूची

परिशिष्ट - एक : : संस्कृत

परिशिष्ट - दो : अंग्रेजी

परिशिष्ट तीन : हिंदी 

परिशिष्ट - चार : पत्र-पत्रिकाएँ

डॉ. रामदुलार सिंह 'पराया'

जन्म : 31 जनवरी, 1952 ई.

जन्मस्थान : ग्राम- गोविन्दपुर, तहसील-चुनार जिला-मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) 

शिक्षा : एम.ए., पी.एचडी.

प्रकाशित कृतियाँ : अपनी परायी [कहानी संग्रह ], अवकाश कब और क्यों, सोन चिरैया, प्रयाण गीत, बच्चों के मनभावन गीत, दादा की तीन बातें, काहे न निंदिया आवे, तेरे प्यारे-प्यारे बोल, माँ का आंगन, आगे बढ़ना सीखो [बाल साहित्य ], प्रजातंत्र में [हाइकु], तेरही की दावत, ममता के आँसू, बाल मनोविज्ञान की लघुकथाएँ, अंधभक्ति [लघुकथा संग्रह], हिन्दी वर्णमाला एवं वर्तनी [बच्चों के भाषा ज्ञान पर आधारित], लो बसंत फिर आ गया [दोहा संग्रह], डॉ. स्वर्ण किरण के आत्मीय पत्र [पत्र - साहित्य ]

मूल्यांकन : रामदुलार सिंह 'पराया' के जीवन और साहित्य पर मूल्यांकनपरक पुस्तकें 'डॉ. रामदुलार सिंह 'पराया' : समग्र मूल्यांकन' (लेखक अश्विनी कुमार आलोक) एवं 'शब्द रहेंगे साक्षी' (सम्पादक - अश्विनी कुमार आलोक) प्रकाशित ।

विशेष : विगत 25 वर्षों से सामूहिक विवाह सेवा समिति का संचालन एवं सचिवत्व। दहेज रहित विवाह एवं तेरही भोज के विरुद्ध सामाजिक चेतना के विकास की गतिविधियों का संचालन एवं समिति के स्मारिका का संपादन।

सम्प्रति : अध्यापन सेवा से निवृत्ति के पश्चात गृहस्थ जीवन एवं साहित्य-लेखन ।

सम्पर्क : उदित नगर, पो.-कुसुम्हीं, चुनार जिला-मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश, पिन-231304

मो.-8009243375

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