तिनका तिनका मन / नीरू मित्तल 'नीर'

लघुकथा संग्रह  : तिनका तिनका मन 

कथाकार  :  नीरू मित्तल 'नीर'

बोधि प्रकाशन

सी-46, सुदर्शनपुरा इंडस्ट्रियल एरिया एक्सटेंशन नाला रोड, 22 गोदाम, जयपुर-302006 

फोन : 0141-2213700, 9829018087 

ई-मेल : bodhiprakashan@gmail.com

कॉपीराइट © नीरू मित्तल 'नीर'

प्रथम संस्करण : 2022

ISBN : 978-93-5536-359-6

कम्प्यूटर ग्राफिक्स : बनवारी कुमावत 

आवरण संयोजन : बोधि टीम

मुद्रक : तरु ऑफसेट, जयपुर

मूल्य : ₹250/-

तिनका तिनका मन यानी जीवन के मार्मिक प्रसंग

यह सुनिश्चित है कि समकालीन लघुकथा के केन्द्र में मनुष्य है और मनुष्य की पूर्णता उसकी चौतरफा दुनिया (सराउंडिंग) के बिना अधूरी है। इसलिए पात्र के तौर पर लघुकथा को जितनी आवश्यकता मनुष्य की है, उतनी ही आवश्यकता उसकी चौतरफा दुनिया की भी है। चौतरफा दुनिया से तात्पर्य है, उसके चारों ओर विद्यमान नदी, तालाब, पोखर, पेड़, पौधे, घास, पशु, पक्षी, पहाड़, पहाड़ों और मैदानों में होने वाली बारिश, बादल यहाँ तक कि इन सबसे निर्मित उसका परिवेश भी। इसलिए कुछेक उन विद्वानों को, जो समकालीन लघुकथा में मानवेतर पात्रों की निर्मिति को पुरातनपंथी समझते हैं, सलाह है, कि वे अपनी सोच का पुनरीक्षण करें।

किसी घटना को थोड़े नैरेशन और कुछेक संवादों के माध्यम से अपेक्षाकृत कम शब्दों में ज्यों का त्यों प्रस्तुत कर देना लघुकथा नहीं है। घटना के अन्दर घुसकर अपने समय के यथार्थ की गहरी छानबीन करना और उसे कलात्मक रूप में प्रस्तुत करना- ये दोनों ही लघुकथाकार के दायित्व हैं। इसलिए लघुकथा का सौन्दर्य उसकी कलात्मक प्रस्तुति मात्र में न होकर उस सामाजिक यथार्थ में भी है जिसे कथाकार ने गहरी छानबीन के उपरान्त प्रस्तुत करने का साहस दिखाया है।

नीरू मित्तल की लघुकथाओं का यह प्रथम संग्रह है। इसलिए कुछ गहरी छानबीन की अपेक्षा उनसे भी अवश्य थी और उसमें वह काफी हद तक संतुष्ट करती हैं। उनकी लघुकथा 'चार सवाल' महानगरीय और ग्रामीण जीवन के बीच उत्पन्न उस खाई को व्यक्त करती है जिसमें पारस्परिक अपनापन खो गया है। घर और कार्यक्षेत्र सम्बन्धी दैनिक व्यस्तताओं के मकड़जाल ने महानगरीय व्यक्ति को इस बुरी तरह जकड़ रखा है कि इन दो के अतिरिक्त किसी तीसरे दायित्व के बारे में वह सोच ही नहीं पाता है। आग लगाने वालों को यह पता नहीं होता कि हवाओं ने रुख बदला तो सबसे पहले व ही उसकी जद में आएँगे, वे ही ख़ाक होंगे; और दूसरी बात यह कि यह ईर्ष्याओं का नहीं, मानवीय मूल्यों का देश है। इसी सत्य को स्थापित करती है लघुकथा 'आग तो आग है'। किसी को भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि 'जलते घरों पर पानी डालते लोग उस पर भी पानी डालने लगे ' जिसने पैट्रोल डालकर उनके घरों को आग के हवाले किया था।

कुछ सवाल सामान्य से लगते हैं, लेकिन वे गहरी छानबीन और साहस की बदौलत ही सामने आ पाते हैं। धूमिल की सुप्रसिद्ध कविता है-'रोटी और संसद', जिसमें वह कहते हैं :

एक आदमी रोटी बेलता है एक आदमी रोटी खाता है एक तीसरा आदमी भी है जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है मैं पूछता हूँ- यह तीसरा आदमी कौन है? मेरे देश की संसद मौन है।

लघुकथा 'रोटी' के माध्यम से नीरू मित्तल पूछती-सी नज़र आती हैं कि वे कौन लोग हैं जो भूखे आदमी को रोटी देने की बजाय उसे दीन-ईमान की रक्षा करने के लिए उकसाकर, जीवन-संघर्ष से हटाकर, धार्मिक कट्टरता की ओर धकेल रहे हैं।

प्रेमचंद की एक उत्कृष्ट लघुकथा है-'राष्ट्र का सेवक' और नीरू मित्तल की एक लघुकथा है- 'पाँच साल बाद की मजबूरी'। प्रेमचंद के यहाँ मुद्दा कुछ और था और नीरू मित्तल के यहाँ मुद्दा कुछ और है; लेकिन त्रासदी यह है कि भारतीय नेता का चरित्र 'राष्ट्र का सेवक' (मूल कथा उर्दू में लिखी गयी थी जिसका शीर्षक था 'क़ौम का ख़ादिम) के लिखे जाने से अब तक लेशमात्र भी नहीं बदला है।

"क्या बताऊं आंटी, अभी पंद्रहवां साल लगा है चांदनी को, लेकिन एक लड़के के साथ चक्कर है। अब मैं कोठियों में काम करूं या उसकी निगरानी करूं?" (एक माँ की मजबूरी) यह चिन्ता किसी कामवाली बाई मात्र की नहीं है, प्रत्येक स्तर की कामकाजी महिला / दम्पति की है। इस लघुकथा में चिन्ता का एक समाधान परिस्थितिवश निकल आया है, लेकिन व्यापक स्तर पर प्रश्न एक भारी-भरकम तलवार के रूप में अभी भी सभी कामकाजी परिवारों के सिरों पर लटक रहा है।


लघुकथाकार के रूप में नीरू मित्तल का सकारात्मक सोच के साथ उपस्थित होना सुखद स्थिति है। 'वायरल-मौसी' अपने प्रति पड़ोसन रानी के उपेक्षाभरे व्यवहार से परिचित होने के बावजूद उसकी सहायता करती है और सिक्के का दूसरा पहलू दिखाती हुई दिलासा देती हैं - 'वायरल मैसेज हमेशा नुकसान ही नहीं करते " बेटी, कभी-कभी फायदा भी करते हैं।" लगभग यही भाव और यही सकारात्मकता उनकी लघुकथा 'सेल्फी' में भी व्यक्त हैं।

नीरू ने 'सरकारी बसें' में परिवहन विभाग का मुद्दा उठाया है; लेकिन प्रकारान्तर से यह सत्य राज्य व केन्द्र के सभी सरकारी विभागों के घाटे पर लागू होता है। इसी लघुकथा में नीरू यह भी दिखाती हैं कि ऐसा नहीं कि मन्त्रिमंडल में ईमानदारी से काम करने वाले लोग होते ही न हों; होते हैं लेकिन वे लोग इतने अकेले होते हैं और उनकी स्थिति इतनी कमज़ोर होती है कि दबंगों के आगे सिवा इसके कि वे चुप बैठ जाएँ, कुछ कर नहीं पाते हैं।

'तुलना' एक अभिजात्य महिला की आप-बीती जैसी है जिसमें वह स्वयं को गरीब मंगते के प्रति संवेदनशील दिखाने का प्रयत्न करती है। 'दाना-पानी' उन बहुरूपियों की कथा है जो दानशीलता के खोल में क्रूर व्यवसायी हैं ।

नीरू मित्तल की 'प्राइवेट स्कूल' और 'चैन की नींद' में से एक में एक प्रकार से तो दूसरी में दूसरे प्रकार से बच्चों के भविष्य और जीवन से खिलवाड़ होता दिखाई देता है। 'बकरा' साइबर क्राइम की तहों की ओर इशारा करती है। कई बार न्यायालय से बाइज्जत बरी' होने के बावजूद व्यक्ति अन्तहीन त्रासदी का शिकार हो चुका होता है। ऐसे में, उम्रभर आँसू बहाते रहने के सिवा उसके हाथ कुछ नहीं लगता है। 'विवश जीवन' में भारतीय परिवेश की कन्याओं की कठोर और हताशाजनक जीवन-पद्धति को दिखाया गया है। 'ये ज़िन्दगी उसी की है' में कन्याओं के प्रति पुरानी पीढ़ी के दृष्टिकोण में बदलाव की बयार को महसूस किया जा सकता है।

नीरू मित्तल की इन कुछ ही लघुकथाओं के माध्यम से हम इस संग्रह में उनकी दृष्टि की व्यापकता और रचनाशीलता का अनुमान आसानी से लगा सकते हैं। उनके पास विषय वैविध्य है और रचने का धैर्य भी है। हिन्दी कथा साहित्य को वे उत्कृष्ट लघुकथाएँ देने में सक्षम हैं। 

जो भी व्यक्ति लघुकथा-लेखन से जुड़ता है, उसके लिए यह जानना आवश्यक है कि लघुकथा परिवर्तित जीवन को अपना विषय बनाती है। जीवन के प्रति वह न तो निराशा जगाती है और न उस पर इठलाती ही है। वह संघर्षों में ही जीवन की सार्थकता तलाशती और उसे उपयोगी बनाती है। अहं से उपजी मनुष्य की कुंठित भावनाओं को विस्तृत पटल पर खोलकर लघुकथाकार उसे सामाजिकता प्रदान करता है।

जीवन के मार्मिक प्रसंगों से यदि कथाकार परिचित नहीं होगा, उसके पास यदि व्यापक अनुभव नहीं होंगे; उसे अगर मनुष्य की क्षुद्रताओं, कुटिलताओं, ओछेपनों और कमीनगियों के बीच दम तोड़ते मानवीय सम्बन्धों की पहचान नहीं होगी, उसकी आस्था यदि मनुष्य और मनुष्यता के प्रति नहीं होगी, तो अपने समय की घटनाओं में छिपे मर्म तक वह नहीं पहुँच सकेगा। इसलिये कथाकार के लिये यह आवश्यक है कि वह जीवन यथार्थ से पूरी आस्था के साथ जुड़े; और यही अपेक्षा रचना को आलोचना से भी होती है।

अधीनस्थों की आँख में प्रतिरोध की 'चिंगारी' देखकर सुपरवाइज़र विवश हो जाता है और उनके साथ आ खड़ा होने में ही अपनी भलाई समझता है। गरीब, असहाय और कम ज़मीन वाले किसान किस प्रकार आत्महत्या को विवश हो उठते हैं, इसका सफल चित्रण 'कितनी चीलें' में हुआ है।

कुल मिलाकर, लघुकथा में सकारात्मक स्थापनाओं की ओर कदम बढ़ाती नीरू मित्तल को बधाई और उन्नत भविष्य हेतु मंगलकामनाएँ।

- बलराम अग्रवाल 

वरिष्ठ लघुकथाकार एवं समालोचक

मो. 8826499115

ई-मेल: balram.agarwal1152@gmail.com


आत्मकथ्य

कुछ विद्वान बताते हैं कि लघु कथाएं पंचतंत्र की कहानियों के समय से प्रचलित हैं। युग की साहित्यिक चेतना के अनुरूप इनका स्वरूप बदलता रहा। अब लघुकथा ने नई चेतना, कथ्य और शिल्प को ग्रहण किया है। हमारे आसपास निरंतर घटने वाली घटनाएं, व्यक्तियों के व्यवहार, अंधविश्वास, थोथे दिखावे, मानसिक द्वंद्व, पीड़ा, रीति-रिवाज, अनोखी परंपराएं, स्त्रियों की स्थिति सभी कुछ प्रेरणा के विषय बन जाते हैं। कुछ ऐसे व्यक्ति भी संपर्क में आते हैं जिनको देखकर कोई लघु कथा या कहानी मस्तिष्क में उभर आती है। कई बार अखबार में पढ़ी कोई घटना इतना झकझोर देती है। कि वह कलम से काग़ज़ पर उतरकर लघुकथा का रूप ले लेती है।

वैसे तो कहानी और कविता लेखन बचपन से ही करती आ रही हूं, परंतु सामाजिक सोच की वज़ह से अपनी खास पहचान नहीं बना पाई। सिर्फ कॉलेज और कार्यालय की पत्रिका, दैनिक अखबार और आकाशवाणी तक ही सीमित रही। शादी के बाद की ज़िम्मेदारियों ने लेखन को बैकफुट पर रख दिया। मैं खुद को भाग्यशाली समझती हूं कि जीवन के उत्तरार्ध में जब मैंने सक्रिय रूप से लिखना शुरू किया तो मेरा ऐसे विद्वान लोगों से मिलना हुआ जिन्होंने मुझे प्रेरणा भी दी और मेरे लेखन को गति और सही दिशा भी प्रदान की। इस कड़ी में मैं आदरणीय प्रेम विज साहब का आभार व्यक्त करती हूं जिन्होंने मेरी लेखन कला को सराहा और भ्राता श्री तथा संरक्षक की तरह अपना स्नेहिल हाथ सदैव मेरे सिर पर रखा। आदरणीय लाजपत राय जी का स्थान भी मेरे हृदय में एक बड़े भाई के समकक्ष है जिनसे चर्चा-परिचर्चा करते रहने से लेखन से संबंधित बहुत सी बातें पता चलती हैं।

समय के साथ 'हरिगंधा', 'शुभ तारिका', 'आनंद मार्ग', 'पुष्पगंधा', 'प्रेरणा अंशु', 'संपर्क भाषा भारती', 'अनहद कृति', 'बॉब मित्र', 'चंडीभूमि', 'स्टेट समाचार', 'उत्तम हिंदू' आदि पत्र-पत्रिकाओं में मेरी रचनाओं को स्थान मिलने लगा ।

आदरणीय डॉ चंद्र त्रिखा जी, कमलेश भारतीय जी, ज्ञान प्रकाश पीयूष जी, कमल कपूर जी, अंजू दुआ जैमिनी जी, जवाहर धीर जी, धर्मपाल साहिल जी, उर्मि कृष्ण दीदी, डॉ कैलाश आहलूवालिया जी, विजय कपूर जी, आनंद प्रकाश जी, प्रद्युमन भल्ला जी, अमृतलाल मदान जी, डॉ मुक्ता जी, सुधेंदु ओझा जी, डॉ नीरजा मेहता जी आदि बड़े साहित्यकारों से वार्तालाप मेरे लेखन में झलकता है। इसके अलावा डॉ विनोद शर्मा जी, डॉ अनीश गर्ग जी, हरेंद्र सिन्हा जी का भी सहयोग समय समय पर मिलता रहा। योगराज प्रभाकर जी की 'लघुकथा कलश' में मेरी प्रयोगवादी लघुकथा को स्थान मिला। डॉ राजेश कुमार जी और ललित लालित्य जी द्वारा संपादित व्यंग संग्रह 'धनुर्धारी व्यंग्यकार' और '21वीं सदी के अंतर्राष्ट्रीय श्रेष्ठ व्यंग्यकार ' पुस्तकों में मेरी व्यंग रचनाओं को स्थान मिला। यह सब कुछ आप सरीखे पाठकगणों के आशीर्वाद से ही संभव हो सका।

मैं बहुत आभारी हूं आदरणीय बलराम अग्रवाल जी की जिन्होंने अपना कीमती समय देकर मेरी पुस्तक 'तिनका-तिनका मन' की पांडुलिपि को पढ़ा और उस पर अपनी भूमिका लिखी। मेरे लेखन कार्य में हर पल मेरे साथ रहने वाले, मेरे पहले पाठक, , मेरे सबसे बड़े आलोचक, मेरे पति श्री रविंद्र कुमार मित्तल जी के सहयोग के बिना तो मैं कुछ भी नहीं कर सकती थी। मेरी पुत्री आकांक्षा, दामाद राहुल, पुत्र विशेष, पुत्रवधू रेमी, दो नातिन अकीरा और नितारा ने भी समय-समय पर मुझे प्रेरणा दी है। सुंदर पुस्तक के स्वरूप में मेरी लघु कथाओं को प्रकाशित करने के लिए मैं बोधि प्रकाशन का आभार व्यक्त करती हूं ।

मेरा लघुकथा संग्रह आप सबके समक्ष उपस्थित है। अपेक्षा है, जितना प्यार और आशीर्वाद आपने मेरी अन्य पुस्तकों को दिया है उतना ही, बल्कि उससे भी अधिक, आपका स्नेह और आशीर्वाद इस पुस्तक को भी प्राप्त होगा।

धन्यवाद

- नीरू मित्तल 'नीर'

कोठी न. 40, सेक्टर 15 पंचकूला- 134113 (हरियाणा) 

मो. 9878779743

अनुक्रम

चार सवाल

चोर के घर मोर यह कैसी आग !

व्यस्तता

रोटी

रखवाला

पाँच साल बाद की मजबूरी

एक देश सेवा ऐसी भी

एक माँ की मजबूरी

गाजर का हलवा

बड़प्पन

दोस्ती

प्रतिज्ञा

बिकाऊ

सिखाना

किस्मत

वायरल मौसी

सरोकार

कमज़ोरी

पड़ोस से संबंध

बंटवारा

मदारी

सोच

इमरजेंसी

प्रसाद

मदद

सेवानिवृत्ति के बाद

पड़ोस

सेल्फी

बोहनी

अहोई माता

मुख्य अतिथि

सरकारी बसें

दूसरी शादी

अवार्ड

विचारधारा

अपना सुख

अंधविश्वास

समाज का दुर्भाग्य

भ्रम

तुलना

मजबूरी और फर्ज़

अपनी-अपनी भूख

स्वाबलंबन

दाना-पानी

मानसिकता

यही सवाल

निदान

जीवन का सच

अनंत यात्रा

अधकचरा ज्ञान

मौका

ज़िम्मेदार कौन ?

प्राइवेट स्कूल

निर्णय

युवा सपना

नौकरानी

नाचती जनता

अनुत्तरित प्रश्न

समाज में बदलाव

सज़ा

ऊँची उड़ान

विश्व हिंदी दिवस

शहीद का इंतज़ार

सफलता की इबारत 

समाज पर कर्ज़

यज्ञाहुति

विवशता

अनूठी मिसाल

अतिक्रमण

ठगाई

शाश्वत प्रश्न

कातिल

ये ज़िंदगी उसी की है

बीज से वृक्ष

सहायता

लाचारी

नसीब दगा दे गया

भूल

बेटी का प्रण

जीवन लक्ष्य

सुरक्षा

रफ़्तार

चैन की बांसुरी

आहुति

हज

बनना एक मानव का

होली मिलन

आज की युवा पीढ़ी

बोलती बंद

शिक्षा की उड़ान

खुला आसमान

परिवार

चोरी

टीस

बच्चा

किट किट

कर्त्तव्य मुक्ति

बिल्लियों की लड़ाई

कालि हमारी बारि

धर्मराज की व्यथा

कितनी चीलें

मिलन

नीरू मित्तल 'नीर'

शिक्षा : एम. कॉम, सी.ए.आई. आई. बी

प्रकाशित पुस्तकें : अनकहे शब्द (काव्य संग्रह), शब्दों की परछाइयां ( काव्य संग्रह), रिश्तों की डोर (कहानी संग्रह), तिनका तिनका मन (लघुकथा संग्रह), छू लो आसमान (बाल कहानी संग्रह - प्रकाशनाधीन)

साझा पुस्तकें : इक्कीसवीं सदी के अंतरराष्ट्रीय श्रेष्ठ व्यंगकार ( व्यंग्य संग्रह), अनुभूति के स्वर, दिल से दिल तक, यादों का कोहरा, गीत मधु, अपराजिता, शून्य से शिखर तक, खुला आसमान, सुहाना सफर,बीस-इक्कीस, राष्ट्रीय काव्य सागर । 

सम्पादित पुस्तकें : खुशियां लौटेंगी (काव्य संग्रह), सुनहरी यादों के झरोखे से (काव्य संग्रह) ।

प्रसारण : चंडीगढ़ दूरदर्शन केंद्र पर कविताओं का प्रसारण । आकाशवाणी केंद्र जयपुर से समय-समय पर रचनाओं का प्रसारण। 'रेडियो अपना' विनिपेग कनाडा पर काव्य पाठ प्रस्तुति ।

सम्मान : विद्याधाम, ह्यूस्टन यू. एस. ए. द्वारा संस्कृति संवाहक अवार्ड से सम्मानित । साहित्य सभा कैथल और हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा डॉ लालचंद भल्ला स्मृति साहित्य सम्मान (2022)। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर चंडीगढ़ पुलिस द्वारा अवार्ड ऑफ ऑनर । वैश्विक साहित्य महोत्सव - 2022 में प्रज्ञा साहित्य सृजन सम्मान । काव्य-मंजरी साहित्यिक मंच द्वारा साहित्य - सारथी सम्मान। स्वर सप्तक सोसायटी, कोलकाता द्वारा एक्सीलेंस अवार्ड| चंडीगढ़ रोज़ फेस्टिवल 2020 में Rose Queen टाइटल विजेता । नराकास द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं में कई पुरस्कार । सहभागिता : महिला काव्य मंच इंडोनेशिया के कार्यक्रम में सहभागिता ।

संप्रति : बैंकिंग सेवा से निवृत्त ।

सम्पर्क :

40, सेक्टर - 15, पंचकूला- 134113, हरियाणा ई-मेल : neerumittal58@gmail.com

मोबाइल : +91-9878779743


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