मन / डॉ. पूरन सिंह

लघुकथा-संग्रह : मन 
कथाकार  : डॉ. पूरन सिंह
ISBN No :- 978-93-94275-14-0
प्रकाशक :
कुटुम्ब प्रकाशन
ए-721, शास्त्री नगर, नई दिल्ली-110052
दूरभाष :
7827713075 
e-mail :
kutumbprakashan@gmail.com
संस्करण..2023
मूल्य :120.00 रुपए (पेपरबैक)
@डॉ. पूरन सिंह
मुख्य आवरण सज्जा......संदीप राशिनकर
मुद्रक..:वि.को. प्रिंटर्स, दिल्ली
वैधानिक चेतावनी 
इस पुस्तक का सर्वाधिकार सुरक्षित है। लेखक की लिखित अनुमति के बिना इसके किसी भी अंश को फोटोकॉपी एवं रिकॉर्डिंग सहित इलेक्ट्रोनिक अथवा मशीनी किसी भी माध्यम से अथवा ज्ञान के संग्रहण एवं पुनर्प्रयोग की प्रणाली द्वारा किसी भी रूप में पुनरुत्पादित अथवा संचा रित प्रसारित नहीं किया जा सकता। प्रस्तुत पुस्तक के घटनाक्रम, पात्र, भाषा-शैली एवं स्थान सभी लेखक की कल्पना है, किसी भी प्रकार के वाद-विवाद के लिए प्रकाशक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है।

भूमिका

मेरे प्रिय एवं आत्मीय शिष्य डॉ. पूरन सिंह दलित साहित्य के एक चिर-परिचित हस्ताक्षर हैं, उनकी रचनात्मक प्रतिभा लघुकथा, कहानी एवं कविताओं के क्षेत्र में अनेक संग्रहों के अंदर देखी जा सकती है। लघुकथा में उन्हें विशेष दक्षता हासिल है। उनका यह नवीन लघुकथा संग्रह - मन. "पचास महत्त्वपूर्ण लघुकथाओं का संग्रह है। ये संकलन इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें केवल दलित-विमर्श की ही लघुकथाएँ नहीं है। अपितु समाज में पनप रही अनेक प्रकार की विकृतियों/शोषण/असमानता और भ्रष्टाचार को स्वर मिले हैं। समाज में हर प्रकार का अन्याय और शोषण पूरन सिंह जो को व्यथित करते हैं, उस व्यथा को वह पूरी ईमानदारी से लघुकथाओं में व्यक्त किया है। समाज मे विकृतियाँ / शोषण धर्म के आधार पर हैं, जाति, वर्ण और वर्ग के आधार पर हैं, दलित और स्त्री के दमन की हैं, वासनात्मक मनोविकृतियों की हैं- पूरन सिंह जी ने इन तमाम तरह के दमन और शोषण को अपनी लघुकथाओं में बेनकाब करते हुए सम्पूर्ण शक्ति के साथ इन पर प्रहार किए हैं। हर लघुकथा समाज के गंदे और गलीज चेहरे को सामने लाकर पाठक को सोचने पर विवश करती है।

गत वर्षों में राजनीति ने जिस प्रकार से जहर घोलते हुए समाज में उन्माद का वातावरण तैयार किया और धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण किया है, वह चिंता कथाकार की अनेक लघुकथाओं में देखी जा सकती है अनीसा चाची, अपवित्र, ये गंगाजल है, कहीं देर न हो जाए, विलाप तथा बड़े चंदामामा जैसी लघुकथाएँ इन्हीं चिंताओं की लघुकथाएँ हैं ।

स्त्री जीवन की समस्याओं और विसंगतियों की संग्रह में अनेक लघुकथाएँ हैं जिनमें स्त्री को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने की जद्दोजेहद है। स्त्री के लिए बनाई गई तमाम वर्जनाओं का विरोध है साथ ही रिश्तों की मर्यादा की सीमाएँ हैं। लघुकथाओं में माँ और बेटी के प्रति बहुत कोमल संवेदनाएँ हैं। मुड़चरी, माँ, डोर, बेटियाँ जैसी लघुकथाएँ सकारात्मक संदेश की संवेदना से परिपूर्ण हैं।
जातिवाद पर भी डॉ. पूरन सिंह ने जम कर प्रहार किए हैं। दलितों में भी जो ऊँच-नीच के भाव हैं, मूर्तिपूजा की विसंगतियाँ हैं सभी को इनकी लघुकथाओं में देखा जा सकता है।

संग्रह की समस्त लघुकथाओं को देखने से लगता है कि शायद ही कोई ऐसा विषय हो जिस पर पूरन सिंह ने लेखनी न चलाई हो । संग्रह की लघुकथाओं के विषय और पात्रों को उन्होंने जीवन के आस-पास से उठाया है इसीलए हर लघुकथा में व्यक्त पीड़ा पाठकों के मन को मथती है, सोचने पर विवश करती है। कोई भी लघुकथा काल्पनिक नहीं है, सभी में जीवन के यथार्थ की पीड़ा को देखा जा सकता है। वस्तुतः ये दलित और पीड़ित वर्ग की पीड़ाओं की सघन अभिव्यक्ति की सार्थक लघुकथाएँ हैं। डॉ. पूरन सिंह जी को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।

- डॉ. शिवजी श्रीवास्तव 
पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग श्री चित्रगुप्त पी. जी. महाविद्यालय, मैनपुरी - 201307

मन चाहता है...

अम्मा पिताजी को जब देखता तो खुश होता और अम्मा से कहता, 'अम्मा, पिताजी तुम्हें बहुत प्यार करते हैं। देखो कितना ध्यान रखते हैं तुम्हारा ।' अम्मा कुछ देर सोचती फिर कहती, 'लला जा डुकरा ते हमारे हिदे फटि गए।' (अर्थात् तुम्हारे पिताजी से मेरा मन टूट गया हैं.. ..मन. ....... मन समझते हैं आप ) मुझे अम्मा पर गुस्सा आता। क्या अम्मा भी । पिताजी इतना प्यार करते हैं अम्मा को फिर भी अम्मा ऐसे करती है। फिर एक दिन अम्मा ने बताया कि पिताजी उसके लिए सब-कुछ करते हैं लेकिन जब गुस्सा होते हैं या अपनी पर आते हैं तो सारी सीमाएं लांघ जाते हैं। गंदी-गंदी गालियों से लेकर मारने या मारने को तैयार रहते। मैं चाहती हूँ वे मुझे प्यार न करें लेकिन ऐसा व्यवहार तो कतई न करें जिससे हृदय फट जाए। मन........मन टूट जाए। तब ये बात समझ नहीं आती थी मुझे । बड़ा हुआ तो अब सब समझ रहा हूँ ।
स्त्री मन को समझने के लिए स्त्री बनना ही होता है। पुरुष होकर प्यार तो हो जाएगा लेकिन मन जीतने के लिए स्त्री होना ही होगा।
मैंने इस लघुकथा संग्रह में अपना बेहतरीन देने का प्रयास किया है। मेरी अच्छी लघुकथाएं इसमें समाहित हैं। वैसे तो रचनाकार के लिए उसकी हर रचना अच्छी होती है लेकिन उन अच्छी में से भी अच्छी रखी हैं मैंने ।
मैं लेखन संख्या बढ़ाने के लिए नहीं करता हूँ। एक-एक रचना में मन से डूबकर अपना सर्वस्व लगाकर लिखता हूँ। कितनी ही लघुकथाएं महीनों-सालों रहती है दिमाग में लेकिन लिखता तभी हूँ जब मन कहता है कि अब लिख भी डालो। मेरा लिखना किताबें बढ़ाना नहीं रहा कभी भी। मेरा लिखना कलेजा चीर कर रख देना रहा। हर रचना बहुत मन से लिखी है मैंने..... मन समझते हैं आप। ...खुशी मिलेगी मुझे।
मेरा 'मन' कैसा है...बताना जरूर...खुशी मिलेगी मुझे और आपको.. ..दोनों को. मन में ।

अंत में..
इस किताब के प्रकाशन में, मेरा साथ दिया मेरे सभी अपनों ने.. ..भूमिका लिखी प्रातः वंदनीय मेरे गुरु जी डॉ. शिवजी श्रीवास्तव सर ने। सर ने मुझे न केवल पी एच डी करवाई बल्कि जीवन के उतार चढ़ाव के महायुद्ध में मेरे सारथी भी रहे हैं। जब जब थका-टूटा-बिखरा, उन्होंने ही नवजीवन दिया। उनके चरणों की रज मेरे ललाट की शोभा है।
पत्नी, बच्चे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रचनाओं में आ ही जाते हैं। उन्हें प्यार और आशीष ।
कार्यालय के कुछ साथी श्री सुखदेव जी, श्री प्रविन्द्र जी, श्री गौरव भाटिया जी, सुश्री आरती सिंह, श्रीमती शेफाली दुष्यंत जी सभी ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस किताब को साकार करने में मदद की है, मेरे सारथी बने हैं उनका बहुत-बहुत आभार । इसके साथ-साथ जाने माने रेखाचित्रकार श्री संदीप राशिनकर जी का अत्यन्त आभारी हूँ जिन्होंने मेरे एक बार के अनुरोध पर ही कई सारे चित्र भेज दिए और फोन पर मुझे गाइड भी किया।
रही बात प्रकाशक की, तो संजय 'शाफी' जी मेरे अनुज हैं। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी, उन्होंने इस किताब को साकार किया, मानो लघुकथा साहित्य विधा को सम्पन्न करने में अपना योगदान दिया। उन्हें प्यार और आशीर्वाद ।
इसी के साथ....
सादर

आपका ही तो
डॉ. पूरन सिंह
240, फरीदपुरी,
वेस्ट पटेल नगर, नई दिल्ली-110008
9868846388
drpuransingh64@gmail.com

अनुक्रम

माँ
बाजारू लड़की
कसैला
बट, नॉट ह्यूमन
चिता
बोझ
ये गंगाजल है
बॉडीगार्ड
अनीसा चाची
रजस्वला
बड़े चंदामामा
मुहावरा
शातिर औरत
पाषाण प्रतिमा
बेटियाँ
आँचल
ढोंगी
रीढ़ की हड्डी
सपना और बचपन
ज्ञानाश्रय
शुद्धिकरण 
गंदे दादू
ब्लेकमेल
बरसात
भय
बाजरे की रोटी
विलाप
डोर
तेरी बेटी...... ये मेरी बेटी
स्कूल यूनिफार्म 
छुप-छुपाई
सभासद
समरसता का पाठ
दर्द
सत्संगवाली आशा
नदी के उस पार की माँ
निःशब्द
सर्व शिक्षा अभियान
अस्तित्व
नुक्कड़ नाटक
रामलीला
मन
पेट
अपवित्र
मनुआ
नहीं, अब और नहीं
जाती नहीं है जाति 
कहीं देर न हो जाए 
बुद्धम् शरणम् गच्छामि

डॉ. पूरन सिंह
10 जुलाई, 1964 (मैनपुरी. उत्तर प्रदेश) में जन्म। एम. ए. (अंग्रेजी - हिन्दी ) 'सत्तरोत्तरी हिन्दी कहानियों में नारी' विषय पर पी.एच.डी। लगभग सभी छोटी, बड़ी और स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ, लघुकथाएं, कविताएं, लेख आदि प्रकाशित। विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं द्वारा अनेक सम्मान और पुरस्कार। हिन्दी अकादमी दिल्ली द्वारा कहानी "नरेशा की अम्मा "उर्फ भजोरिया " पर श्रीराम सेंटर दिल्ली में नाट्य मंचन का आयोजन ।
छ: कहानी-संग्रह -
1. पथराई आँखों के सपने 2 साजिश 3. मजबूर
4. पिंजड़ा 5. हवा का रुख (द्वितीय संस्करण) 6. रिश्ते।
सात लघुकथा-संग्रह -
1. महावर 2. वचन 3. सुराही 4. दिदिया 5 इंतजार 6. 100 लघुकथाओं का संग्रह 7. 64 दलित लघुकथाएं।
दो कविता-संग्रह 1. विद्रोह 2. अस्तित्व ।
संपादन
दो कहानी-संग्रह : "18 कहानियाँ 18 कहानीकार", "व्यथा" तथा एक कविता-संग्रह : "वृंदा" । - एक (कहानी-संग्रह), एक (कविता-संग्रह) और एक (लघुकथा-संग्रह) प्रकाशनाधीन । विभिन्न रचनाएँ पुरस्कृत एवं आकाशवाणी से प्रसारित। 
लघुकथाओं, कहानियों और कविताओं आदि में निरंतर लेखन |
उड़िया / मराठी / पंजाबी / बंगला / उर्दू / अंग्रेजी आदि में विभिन्न रचनाओं का अनुवाद प्रकाशित । भारत सरकार में प्रथम श्रेणी अधिकारी
संपर्क : 240, बाबा फरीदपुरी, वेस्ट पटेल नगर,
नई दिल्ली-110008
drpuransingh64@gmail.com
मोबाइल  : +91 98688 46388

टिप्पणियाँ

  1. पूरन सरमा जी जाने - माने अनुभवी , परिपक्व लघुकथाकार हैं। लघुकथा संग्रह " मन " के प्रकाशन पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ । संग्रह का कवर आकर्षक है । मन शीर्षक सारे भेद व कथा भाव समेटे हुए है ।

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