'झंकृति' (लघुकथा-विशेषांक)/कुँवर प्रेमिल (अ.सं.)
(डाॅ. कुंवर प्रेमिल द्वारा प्रेषित)
'झंकृति' त्रैमासिक पत्रिका (लघुकथा-विशेषांक)पूर्णांक-13-14, वर्ष - 5
प्रेरणा : स्व. रामखेलावन पाण्डे
संरक्षक :
डॉ. शुकदेव सिंह, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
सम्पादक :
डॉ. शशि प्रभा सिन्हा
अतिथि सम्पादक :
कुँवर प्रेमिल
सम्पादन सहयोग :
श्रीमती कनकलता
श्री श्रीनाथ सिंह
सम्पादकीय एवं समस्त पत्र व्यवहार का पता मनोरम राजेन्द्र पथ, धनबाद
सहयोग राशि : एक प्रति - 20 रुपये
सम्पादन - संचालन प्रकाशन :
अवैतनिक - अव्यावसायिक
स्वत्वाधिकार : डॉ. शशि प्रभा सिन्हा
प्रकाशक :
डॉ. शशि प्रभा सिन्हा
नागफनी प्रकाशन, 'मनोरम' राजेन्द्र पथ, धनबाद पिन- 826001
मुद्रण : विपिन प्रिन्टिंग प्रेस कतरास रोड, धनबाद
रचना के लिए रचनाकार उत्तरदायी
रेखांकन :
मनीष कुमार
डा. शशिप्रभा सिन्हा के लिए डा. शशिप्रभा सिन्हा द्वारा प्रकाशित तथा डा. शशिप्रभा सिन्हा के लिए विपिन प्रिंटिंग प्रेस, बैंक मोड़, धनबाद में मुद्रित और 'मनोरम' राजेन्द्र पथ, धनवाद से प्रकाशित।
अनुक्रम
संपादकीय / डा. शशिप्रभा सिन्हा
लघुकथा, लघुकहानी और लघुव्यंग्य : पार्थक्य के धरातल / डा. बालेन्दु शेखर तिवारी
लघुकथा : संवेदना और स्वरुप / डा. मृत्युंजय उपाध्याय
लघुकथा :समीक्षकों की दृष्टि में / अशोक सिंह
लघुकथाएँ
चिंता / अतुल मोहन प्रसाद
संस्कार / रमेश मनोहरा
पागल कौन ? / नरेन्द्र मिश्र घड़कन
अन्तर्निहित शक्ति / वाणी
संवेदना , वफादारी / चरण सिंह जादौन
मान-अपमान / डा. सतीशराज पुष्करणा
बेचारा कवि / श्रीकान्त व्यास
धोखा / डा. सुनील कुमार अग्रवाल
नियति / शशिप्रभा सिन्हा
आग / डा. सुनील कुमार अग्रवाल
गरीबी और गरीबी की रेखा / कृष्णा भटनागर
तमन्ना / जे. के. अरुण
परिचर्चा
ऊब तो खूब है पर मायाजाल / कृष्ण मनु
सचमुच सार्थक लेखन की जरुरत है / पं. गिरिमोहन गुरु
आम आदमी का बेटा / पं. गिरिमोहन गुरु
पशु कौन / गजराज सिंह ठाकुर
नई सदी को दस्तक देती नये विषयों की लघुकथायें/ डा. तारिक असलम 'तस्लीम'
पहली शर्त, पूँजी निवेश / कुंवर प्रेमिल
मीठी नीम- कड़वी नीम / आशा भाटी
शायर सिंह सपूत / अंजना अनिल
तीतरी / अंजना अनिल
लघुकथा के संबंध चितरंजन भारती का विचार प्रस्तुत है / चितरंजन भारती
भाषान्तर
एक सन्त का आविर्भाव / दुर्गादास चट्टोपाध्याय
पुस्तक समीक्षा
● रेत पर पड़े निशान / राकेश शर्मा घुरी
●जीवन के विभिन्न पहलुओं को उभारता दोहा संग्रह :स्वरुप सहस्त्रसई / डा. जगदीश व्योम
●इतिहास रस का स्वाद / डा. वेदप्रकाश अमिताभ
●वर्तमान विसंगतियों पर घनाघात करत 'सीप में समन्दर' / दीनानाथ शुक्ल
रपट
● डा. यायावर को डी. लिट्.
● मीडिया संसद 2001(द्वितीय) सम्पन्न / जनार्दन यादव
● आपने कहा
● साभार प्राप्त पुस्तकें
● साभार प्राप्त पत्र-पत्रिकायें
सम्पादकीय
लघुकथा :एक दृष्टि
लघुकथा गद्य विधा का एक महत्वपूर्ण साहित्यिक रुप है। इसका अपना रचतंत्र अस्तित्व है। लघुकथा में ऊपरी वातावरण के अंतराल में सत्यबोध ही प्रधान होता है। लघुकथा क्षणविशेष की आत्माभिव्यक्ति होती है। संवेदनशीलता के घरातल पर मूल घटना या भावना का रेखांकन ही लघुकथा का मर्म है। आकारगत लघुता ही इसकी प्रमुख विशेषता है और संकेतात्मकता इसका प्राणतत्व। "लघु" कथा का विशेषण नहीं बरन सहचर शब्द है। यह अपनी लघु काया में पूर्णता को समेटकर अपूर्व बौद्धिक एवं भावनात्मक तृप्ति प्रदान करती है। समाज, संस्कृति. राजनीति, धर्म, ज्ञान, नगर ग्राम आदि के कोई भी क्षण को लघुकथा बिम्बित करने में समर्थ है। बिजली की काँध की तरह यह मानव मन को ज्योतित करने में पूर्ण रुपेण समर्थ है। जीवन के वास्तविक क्षणों का प्रेरणादायक चित्रण इसकी सब से बड़ी विशेषता है। व्यक्तिगत अनुभूतियों प्रतिक्रियाओं एवं संवेदनाओं को हम लघुकथा में बिम्बित देखते हैं, फलस्वरुप भावतादात्म्य की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। क्षणभर के लिए हम लेखक के भाव विचार को अपना भाव विचार समझने लगते हैं। साहित्य का यही श्रेय और प्रेय हैं।
लघुकथाओं में युगबोध एवं भावबोध की अहम् भूमिका होती है। थोड़े में अधिक कहना इसका नैसर्गिक गुण है। इसमें मात्र युगीन समस्याओं का दिग्दर्शन ही नहीं होता वरन् उपचार का संकेत भी रहता है। अंधेरे में प्रकाश अन्वेषण अच्छी लघुकथाओं में विद्यमान होता है। लघुकथा आजकल कई प्रकार की कहानियों से अधिक प्रभावी और सटीक होती है। यह सूक्ष्म कथ्यों के माध्यम से अपना प्रभाव डालती है। किन्तु लघुकथा लघु कहानी नहीं है। दोनों की पृथक विद्या है। किन्तु कहानी लघु कहानी, लघुकथा की रचना प्रक्रिया में कोई विशेष अन्तर नहीं है। कथ्य जब बहुमुखी होता है तो कहानी जन्म लेती है और कथ्य किसी एक मन स्थिति अथवा क्षण की ओर संकेत करता है तो लघुकथा सृजित होती है।
लघुकथा वस्तुतः अति लघु रचना है. लघुतम शब्दों में बहुत कुछ कह जाना ही इसकी शिल्पगत विशेषता है। परिवेश, वातावरण, चरित्रचित्रण, कथानक विश्लेषित न होकर भी सम्पूर्णता में आमासित हो उठता है। एक बिम्ब के माध्यम से लेखक बहुत कुछ कह देता है। लघुकथा में जीवन का एक खण्ड चित्र होता है। यह चित्र मानवीय संवेदनाओं से युक्त होता है। लघु कथा का पाठक इन्हीं संवेदनाओं को सहज रुप में ग्रहण करता है। जटिलता लघुकथा के लिए वर्जित है । परिस्थिति जन्य संवेदनाएँ लघुकथा के विषय को विविधता प्रदान करती है। सामाजिक राजनीतिक पारिवारिक समस्याओं पर आधारित लघुकथाएँ भी जनमानस को बहुत प्रभावित करती हैं।
रुप की दृष्टि से लघुकथा लघु आकार की होते हुए भी पाठकों के दिल दिमाग को झंकृत कर देती है। वस्तुतः रुप किसी भी रचना की समग्ररुप में प्रस्तुति है। कथ्य और रूप एक दूसरे के पूरक हैं। रूप किसी भी रचना विद्या के आकार ग्रहण करने की चरम परिणति है। कथानक किसी भी साहित्यिक रचना की मूलभूत आवश्यकता है। इसे हम साहित्य का कथात्मक रुप भी कह सकते हैं। अन्य विधाओं की तरह लघुकथा में भी कथानक की अनिवार्यता है किन्तु लघुकथा के कथानक का अपना अलग रूप एवं स्वतंत्र अस्तित्व होता है। लघुकथा की परिभाषा और मिजाज के अनुसार उसके कथानक का चयन होता है। लघुकथा का कथानक सरल एवं सुबोध होता है। यही लघुकथा की विशेषता है।
शैली अभिव्यक्ति की विशिष्ट पद्धति का नाम है शैली में रचनाकार का व्यक्तित्व समाहित रहता है। शैली से लेखक की पहचान बनती है। शैली विषय वस्तु की अभिव्यक्ति को सुन्दर एवं प्रभावपूर्ण बनाती है। अतः शैली लघुकथा का अनिवार्य तत्व है।
शिल्प का स्थान साहित्य में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। शिल्प किसी रचना का आन्तरिक गठन है, वह गठन जिस पर किसी रचना का सौन्दर्य आधारित होता है। रचना की आन्तरिक बनावट बाहरी संरचना शिल्प है। शिल्प भी लघुकथा के लिए आवश्यक तत्व है। थोड़े में बहुत कुछ कहना यदि लघुकथा का स्वभाव है तो उन्हें सानुपातिक रुप में प्रस्तुत करना शिल्प है। कथ्य, कथानक, संवाद योजना, शिल्प, भाषाशैली सम्प्रेषणीयता, संवेदना और आकारगत लघुता सभी इसके मानक तत्व हैं। प्लेटो के अनुसार - "वस्तुतः शिल्प शैली से ज्यादा व्यापक उपादान है, जिसके द्वारा रचनाकार अपने कथ्य अथवा आशय को किसी विशेष ढंग से ही अभिव्यक्त करता है।"
स्पष्ट है कि साहित्य कला में शिल्प का अप्रतिम स्थान है। शिल्प-शैली, विषयवस्तु कथानक, अभिव्यक्ति, रचना का संपूर्ण ढाँचा, आन्तरिक बुनावट और सम्पूर्ण स्ट्रक्चर का रूप है। सबों का सानुपातिक सम्मिश्रण ही शिल्प है। अन्य विधाओं की तरह लघुकथा के लिए भी शिल्प अपेक्षित तत्व है।
लघुकथा मूलतः विचार से प्रेरित होती है। कथा तो मात्र उसका वाहक शरीर है। लघुकथा की अभिव्यक्ति सामाजिक आर्थिक, राजनीतिक एवं मानसिक विसंगतियों को प्रकट करने के लिए ही अधिक होती है। लघुकथा समस्या का समाधान प्रस्तुत कर जीवन की वास्तविकता से पाठकों को परिचित कराती है।
वर्तमान युग वैज्ञानिक युग है। मानव जीवन को विज्ञान ने प्रभावित किया है। फलस्वरुप जीवन दृष्टि में भी परिवर्तन आ गया है। यथार्थपरकता जीवन दृष्टि बन गयी है जीवन की शैली बदल गयी है और बदली हुई चिंतन शैली से रचनात्मक तेवर में भी परिवर्तन आ गया है। इस तेवर को लघुकथा लेखन में देखा जा सकता है जीवन के कशमकश को लघुकथा ने व्यक्त किया है एवं मानवीय अन्तरात्मा को जगाने का प्रयास किया है। आज के इस भागदौड़ के युग में जबकि मनुष्य के पास समय की कमी है लघुकथा के माध्यम से वह कम समय में पूर्ण तृप्ति का अनुभव करता है। इसलिए यह कहना कदापि सही नहीं है कि पाठक लघुकथा से ऊब रहा है। अच्छी लघुकथा पूर्णतः पाठक को बांधे हुए है और उत्तरोत्तर इसकी मांग बढ़ रही है।
●डाॅ. शशिप्रभा सिन्हा
"झंकृति" का लघुकथांक आज हमारे लिए एक दस्तावेज है । डाॅ. शशिप्रभा सिन्हा जी का प्रेरक संपादकीय , तत्कालीन वस्तु स्थिति से रूबरू कराता है । उनका संपादकीय आँखें खोलता है । जिस विधा में हम लघुकथाकार लिख रहे हैं उसके प्रति आस्थावान होना आवश्यक है ।बलराम अग्रवाल भाई का हार्दिक साधुवाद ।
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