स्थगित जीवन और अन्य कथाएँ-2023 / भगीरथ परिहार
कथाकार : भगीरथ परिहार
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Copyright : 2023, Bhagirath Parihar
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ISBN: 978-93-5756-051-1
Price: Rs.250/-
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अनुक्रम
1. आंतरिक उपनिवेश
2. आप्रवासी
3. आश्वस्ति
4. अंधकार
5. अँधेरे की चीख
6. अवसर में आपदा
7. अवसर
8. अव्वल
9. बजरंगी
10. बरबादियों का जश्न
11. बर्बर
12. बसंत उत्सव
13. बेताल कथा
14. भेड़ पर तीन कथा
15. भीगे मन
16. भूमिका
17. बिक्री के लिए उपलब्ध
18. छोटा कदम
19. दलदल
20. दर्द का धुंआ हो जाना
21. डिटेन्शन सेंटर
22. धर्म का आश्वासन
23. दुर्भाग्य
24. एकांत
25. गणतंत्र के बच्चे
26. गौरक्षक का वसीयतनामा
27. दृष्टि परिवर्तन
28. है हिम्मत?
29. साठ साल का सफर
30. जरुरी चर्चा
31. खुले बंद होते संबंध
32. खरबूजा और चाकू
33. आस्था से प्रभु कृपा तक
34. कुछ करते क्यों नहीं?
35. जारी रहेगी लड़ाई
36. मॉब लिंचिंग
37. पहलू खां
38. पट्टेदार कुत्ते
39. पिता मेरे
40. पुरुषार्थ
41. सब चंगा सी
42. संभावनाओं का खेल
43. सपोले
44. सत्ता का खेल
45. शिक्षा समय
46. सिमटता जीवन
47. आशीष की बौछार
48 स्थगित जीवन
49. सुलगता स्फुलिंग
50. तमाशेबाज
51. टू मच डेमोक्रेसी
52. तुम बिन
53. टूटते मोह का दंश
54. उदासियाँ
55. उठ खड़े होने की हिम्मत
56. कौन था वह ?
57. सकारात्मक जीवन
58. यम का न्याय
59. बेबस पीड़िता
60. पीठ पर पहाड़
61. हायर एण्ड फायर
62. विवाह से डर कैसा!
63. कीर्तनिये
64. प्यार की थपकी
65. पग फेरा
66. खतरनाक आदमी
67. वैवाहिक बलात्कार
68. स्टार्ट अप
69. कैसी औरत ?
70. हरे-भरे पेड़ की कथा
मेरी बात
लघुकथाओं के
साथ दिक्कत यह है कि एक पेज में एक रचना यानी एक कथ्य समेट लेती है। अतः लघुकथा की
एक पुस्तक को रूपाकार देने के लिए करीब सत्तर लघुकथाएँ चाहिए जिनके विषय भी भिन्न
होने चाहिए और शिल्प में भी थोड़ी विभिन्नता चाहिए। विषय जो लेखक को उद्वेलित कर
सके। आसानी से नहीं मिल पाते इस सब में समय लगता है इसलिए मेरे लघुकथा संग्रह
लम्बे अंतराल के बाद आए हैं। मेरा पहला संग्रह 'पेट
सबके हैं' 1994 में प्रकाशित हुआ [पुनः संस्करण 2021]
जिसमें सन् 1972 से लेकर 1990 तक की रचनाएँ सम्मिलित है इसके बाद आया 'बैसाखियों
के पैर' 2017 में, करीब बीस वर्ष बाद और
अब आ रहा है तीसरा संग्रह 'स्थगित जीवन और अन्य कथाएँ' परिस्थितियों के बदलने से नए
विषय / कथ्य लेखक की रचना में आते हैं और कुछ पुराने बने रहते हैं लेकिन उनमें भी
परिवर्तन होता है इस तरह आप देखेंगे कि मेरे कथा संग्रह में विषयों की विभिन्नता
बहुत है। रचनाएँ हड़बड़ी में नहीं लिखी है, वे सुविचारित
होती हैं और समाज की विसंगतियों को उजागर कर एक सार्थक संदेश देती हैं। लघुकथा इस
माने में एक अच्छी विधा है कि यह कम समय में पाठक को सार्थक सन्देश देकर संतुष्ट
करती है। अगर रचना निम्न स्तर की भी है तो पाठक का कम समय व्यर्थ होता है। जबकि निम्न स्तर की कहानियाँ और उपन्यास बहुत समय बरबाद करती हैं और पाठक को कुछ प्राप्त नहीं होता मनोरंजन हो जाय, यह ही बहुत है।
सभी रचनाएँ जीवन यथार्थ को प्रतिबिंबित करती हैं। हमारे जीवन में घट रही घटनाओं पर आधारित हैं। वे उचित-अनुचित का निर्णय करती हैं या कोई सवाल पाठक के समक्ष रखती हैं जो उसे विचार करने के लिए प्रेरित करता है या कोई भावुक प्रसंग जो पाठक के मन को द्रवित कर देता है। लघुकथा सरसरी तौर पर पढ़ने की चीज नहीं है। लघुकथा पाठक से गंभीरता की अपेक्षा रखती है, नहीं तो कई बिंदु छूट सकते हैं। रचना का पूरा आनंद नहीं उठाया जा सकता है। पहले जीवन के छोटे-छोटे प्रसंग लघुकथा में समेटे जाते थे लेकिन अब बड़े विषय भी सफलतापूर्वक उठाए जा रहे हैं।
नये-नये शिल्प उभर कर आ रहे हैं। नए कथ्यों की माँग के अनुसार ही नये शिल्प उभर रहे हैं। शिल्प में सपाटता भी मिल सकती है, उद्देश्य विषय को प्रस्तुत करना होता है। बशर्ते रचना पठनीय हो और पाठक को अच्छी लगे। ऐसे बर्बर समय में सपाटता सीधे-सीधे पाठक से मुखातिब होती है और उसके हृदय में उतरने में सफल होती है। प्रतीक और बिम्ब में उलझी रचना पाठक से लुका-छिपी करती है, भले ही रचनात्मकता के स्तर पर सराहनीय हो लेकिन संदेश को प्रच्छन्न बनाए रखती है। जबकि सपाटता सीधे-सीधे मुठभेड़ करती है।
इनमें से बहुत-सी लघुकथाएँ लघुकथा की सीमा का अतिक्रमण करती प्रतीत होंगी कुछ ललित निबंध जैसी लग सकती है तो कुछ रिपोर्ताज जैसी। फिर भी, पाठक को बौद्धिक संतुष्टि अवश्य देगी। अब सब पाठक और आलोचक की अदालत में हैं।
भगीरथ परिहार
रावतभाटा (कोटा) राजस्थान में रहते हैं. उन्होंने बी.एससी, बी.एड, एम.ए. (राजनीति शास्त्र व अर्थशास्त्र) तथा एल.एल.बी की शिक्षा ग्रहण की.लम्बे समय तक परमाणु ऊर्जा विभाग के केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापन करते हुए 2004 में सेवा निवृत होकर अब स्वतन्त्र लेखन में व्यस्त हैं.
सन 1972 से ही लघुकथा लेखन में सृजनरत. ‘अतिरिक्त’ (1972 फोल्डर पत्रिका)का संपादन तत्पश्चात ‘गुफाओं से मैदान की ओर’(लघुकथा का पहला संकलन 1974 रमेश जैन के साथ सम्पादित), का प्रकाशन. अन्य सम्पादित पुस्तकों में पंजाब की चर्चित लघुकथाएँ व राजस्थान की चर्चित लघुकथाएँ (2001लघुकथा संकलन) पड़ाव और पड़ताल : खंड-4 (लघुकथा एवं समालोचना संकलन), ‘मैदान से वितान की ओर’ (श्रेष्ठ लघुकथाएँ) इन्टरनेट पर प्रकाशित.
मौलिक प्रकाशित पुस्तकें-‘पेट सबके हैं’ एवं ‘बैसाखियों के पैर’ (लघुकथा संग्रह). बाजीगर (कहानी संग्रह), ‘हिंदी लघुकथा के सिद्धांत’ (सैद्धांतिक समालोचना) एवं लघुकथा समीक्षा (समालोचनात्मक समीक्षा). ‘कथा शिल्पी सुकेश साहनी की सृजन संचेतना’ (समीक्षा)
दिशा प्रकाशन, दिल्ली; पंजाबी की मिन्नी पत्रिका, अमृतसर व लघुकथा शोध केंद्र, भोपाल ने लघुकथा लेखन के लिए सम्मानित किया।
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