दावानल के दौर में / उमेश महादोषी

लघुकथा-संग्रह  :  दावानल के दौर में 

कथाकार  : उमेश महादोषी (लीगल नाम:उमेश चन्द्र)

प्रकाशक : सृजन बिम्ब प्रकाशन

301, सनशाइन -2, के. टी. नगर, काटोल रोड,

नागपुर-440013, महाराष्ट्र

08208529489, 09372729002

मूल्य:₹100/_(पेपरबैक)

ईमेल : srijanbimb.2017@gmail.com

संस्करण : अक्टूबर 2023 (प्रथम)

आईएसबीएन : 978-93-91817-90-9

आवरण का चित्र एवं

भीतरी रेखांकन : कुँअर रवींद्र 

सर्वाधिकार : लेखक, उमेश महादोषी, 

121, इन्द्रापुरम, निकट बीडीए कॉलोनी, 

बदायूँ रोड, बरेली-243001, उ.प्र. 

ईमेल : umeshmahadoshi@gmail.com

मोबाइल : 09458929004



लेखक की ओर से

दो-चार बातें

लघुकथा के प्रति एक भावनात्मक जुड़ाव के बावजूद मैं नियमित लघुकथाकार बनने की प्रक्रिया में कभी शामिल नहीं रहा। पहली लघुकथा एक प्रतियोगिता के लिए संयोगवश और अनुमानित रूपाकार में लिखी गयी थी, तब मुझे लघुकथा के बारे में न तो कोई विशेष जानकारी थी, न ही लघुकथा को लेकर कोई अधययन-मनन । उसके बाद एक लम्बे समय तक कोई लघुकथा नहीं लिखी। शामली कस्बे में रहते हुए 1987-88 के दौरान भाई साहब डॉ. बलराम अग्रवाल जी के संपर्क में आने के बाद लघुकथा के साथ भावनात्मक एवं वैचारिक रूप से जुड़ना आरम्भ हुआ। उनके साथ लघुकथा पर नियमित रूप से चर्चा होने लगी। उस समय तक भी लघुकथा लिखने के बारे में बहुत गंभीरता से नहीं सोचा। बीसवीं सदी के जाने तक संभवतः चार-पाँच लघुकथाएँ ही लिखी गयीं, जिनमें से दो-तीन का तो पता भी नहीं, कहाँ पड़ी होंगी।

ईमानदारी से कहूँ तो संपादन एवं आलोचना से थोड़ा-बहुत जुड़ने पर मित्रों के मध्य लघुकथाकार होने की गलतफहमी और उससे जनित आग्रह एक सीमा तक मेरे लघुकथा लेखन की प्रेरणा बने। और लघुकथा से प्रभावित परिवेश को जीते हुए पथोद्भूत सक्रियता का परिणाम रहा कि किसी न किसी कारण से चिंतन-मनन एवं अन्तर्मन के ब्रह्माण्ड में स्थित पात्रों व दूसरे अवयवों का सम्मिलन कभी-कभार लघुकथाओं के रूप में प्रस्फुटित होने लगा। कुछेक रचनाओं में भावों के प्रवाह के सापेक्ष अधिकांशतः विचारों का प्रवाह ही मेरी लघुकथा के केन्द्र रहा है। इन रचनाओं के साथ कुछ चीजें ऐसी भी हो सकती हैं, जिन्हें कविता के रूप में होना चाहिए हो, पर मैं उन्हें लघुकथा के मंच पर रख बैठा होऊँ। बहरहाल, जैसी भी हैं, ये हैं।

अब तक लिखी लगभग 85-90 लघुकथाओं में से 36 लघुकथाएँ इस संग्रह में शामिल की हैं। इनमें पहली लघुकथा के समय (1981) से 2015 तक की रचनाओं में से 14 एवं 2016 से 2019 तक की रचनाओं में से 22 लघुकथाएँ ली गयी हैं। 2019 के बाद की कोई रचना इस संग्रह में नहीं रखी गयी है। काफी सारी रचनाओं को संग्रह में न रखने के दो-तीन प्रमुख कारण रहे हैं। एक तो मैं संग्रह के रूपाकार को विस्तार नहीं देना चाहता था। मुझे लगता है, कम रचनाओं के संग्रहों के पढ़े जाने की संभावना अधिक रहती है। और उनके प्रकाशन के लिए फौरी तौर पर धन की व्यवस्था करना भी आसान हो जाता है। दूसरी बात, बहुत सारी लघुकथाओं पर मैं और काम करना चाहता था, जिसके लिए समय नहीं निकाल पाया। और अंतिम बात, मेरी लघुकथाएँ कम्प्यूटर में अनियोजित छोटी-छोटी फाइलों एवं कई-कई प्रारूपों में बिखरी पड़ी हैं, जिन्हें निर्धारित समय में उनके अंतिम रूप में खोजकर एक स्थान पर संग्रहित करना मेरे लिए संभव नहीं हो पाया।

संपर्क में आने वाले दिन से लेकर आज तक लघुकथा विषयक अपनी तमाम गतिविधियों के संदर्भ में भाई साहब (डॉ. बलराम अग्रवाल) से परामर्श करता रहा हूँ। हो सकता है कि मेरे कुछेक निर्णय उनके परामर्श से इतर रहे हों किन्तु उनका मार्गदर्शन मेरे लिए सहज उपलब्ध और सर्वोपरि रहा है। इस समय लगातार तीसरी पुस्तक के रूप में इस संग्रह का आना उन्हीं की प्रेरणा का परिणाम है।

इस अवसर पर सुप्रसिद्ध कवि, नाटककार एवं आलोचक डॉ. नरेन्द्र मोहन साहब का स्मरण हो रहा है। एक बार बरेली आगमन पर हुई लम्बी मुलाकात में उन्होंने मुझे अपना लघुकथा संग्रह जल्दी लाने के लिए प्रेरित किया। यहाँ तक कि संग्रह का फ्लैप स्वयं लिखने का स्नेहभरा आश्वासन भी दिया। मेरा दुर्भाग्य है कि इस या उस कारण से यह संग्रह उनके जीवन-काल में प्रकाशित नहीं करा सका।

समय-समय पर किसी न किसी रूप में अनेक अग्रजों एवं मित्रों से लघुकथा को जानने एवं समझने का कुछ न कुछ अवसर मिलता रहा है, सभी का हार्दिक आभार ।

लब्ध-प्रतिष्ठित चित्रकार श्री कुँअर रवीन्द्र जी ने मुखपृष्ठ के लिए आकर्षक चित्र एवं भीतरी रेखाचित्र उपलब्ध करवाया। उनका हृदय से आभारी हूँ। प्रकाशक सुश्री रीमा चड्ढा जी एवं मुद्रक श्री विनोद तिवारी जी ने स्नेहपूर्वक साफ-सुथरे ढंग से इस पुस्तक का क्रमशः प्रकाशन एवं मुद्रण किया, दोनों का आत्मीय आभार !

-उमेश महादोषी

प्रथम शारदीय नवरात्र 2023 (15.10.2023)

मध्यांतर के इधर

( 2015 से 2019 तक की 22 लघुकथाएँ)

01. करे तो क्या करे भर्तुआ !

02. प्रेम कथा

03. लेखन - धर्म

04. प्रतिध्वनि के पार्श्व से

05. वो एक क्षण 

06. जब समय केवल एक बिन्दु होगा

07. प्रेम कविता

08. महिला विमर्श

09. जो शेष है

10. सरकार सरकार

11. राम का लंकादहन

12. मुद्दे पर बहस

13. शोध परम्परा

14. समय का तीसरा बिन्दु

15. एक रिश्ता यह भी

16. जीवन, जो भाप बनकर उड़ गया

17. पिंजड़े को पकड़कर झूलती चिड़िया

18. परावर्तन

19. लघुकथा बनाम फेसबुक के पाठक

20. हरि-हर एक रूप... 

21. लहलहाती फसलें

22. गन्ने की मिठास

मध्यांतर के उधर

( 2015 तक की 14 लघुकथाएँ)

23. आयु

24. पूतना

25. सबसे लम्बी लघुकथा

26. भीख में कलम

27. चने वाला

28. भीख

29. अगला पड़ाव

30. रूपान्तरण

31. चौपाल

32. मुझे मिलना ही होगा विश्वा से !

33. राजनीति और आदमी

34. शासन- दृष्टि

35. उस खतरनाक मोड़ पर

36. समकाल का एक क्षण



टिप्पणियाँ

  1. 'दावानल के दौर में' अच्छी लघुकथाएं सम्मिलित की हैं आ. उमेश महादोषी जी ने. हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

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