पवनवेग (लघुकथाकार : रामनिवास 'मानव' विशेषांक) / सत्यवीर 'मानव' (सं.)

डाॅ. सत्यवीर 'मानव' द्वारा ' लघुकथा सम्मेलन इंदौर, में 29 अक्टूबर  2023 को प्रदत्त। 

R.No. 30652/76

P. Regd. No. P/AB170

पवनवेग

अम्बाला शहर (हरियाणा)

लघुकथाकार : रामनिवास 'मानव' विशेषांक

वर्ष : 5 

मूल्य : 30 पैसे प्रति / वार्षिक शुल्क : 15 रु.

अंक : 24 (दिसम्बर 2021)

सम्पादक : सत्यवीर 'मानव'

किसी भी हिन्दी-लघुकथाकार पर केन्द्रित प्रथम विशेषांक

©: डॉ. रामनिवास 'मानव'

मूल्य : एक सौ रुपये, पृष्ठ संख्या : 48

प्रथम संस्करण : दिसम्बर, 2021

प्रकाशक : समन्वय प्रकाशन के. बी. 97 (प्रथम- तल), कविनगर, गाज़ियाबाद - 201002 (उ.प्र.)

चलित दूरभाष : 9911669922

आवरण : शशि

कम्प्यूटरीकृत: शर्मा कम्प्यूटर्स, गाजियाबाद- 201002

मुद्रक : शर्मा ऑफसेट प्रोसेस, गाजियाबाद -201002

डॉ. 'मानव' उवाच

• वह गद्य-रचना, जिसमें किसी सूक्ष्म मनःस्थिति अथवा भाव स्थिति को, लघु घटना द्वारा कथात्मक संस्पर्श देकर उकेरा गया हो, लघुकथा कहलाती है। यह आकार में जितनी छोटी होती है, स्वरूप में उतनी ही संश्लिष्ट होती है। इसमें किसी प्रकार के विस्तार की गुंजाइश नहीं होती। लघुकथा तो बिजली की तरह कौंधती है और पाठक को, एक क्षण के लिए चमत्कृत कर, खत्म हो जाती है।

* कथा को क्रिकेट के बरक्स रखते हुए उपन्यास की तुलना टेस्ट मैच से, कहानी की तुलना वन-डे मैच से, तो लघुकथा की तुलना टी-20 मैच से की जा सकती है। खेल-समीक्षक कहते हैं कि क्रिकेट खिलाड़ी की वास्तविक परीक्षा टेस्ट मैच से होती है, लेकिन उसका असली रोमांच वन-डे मैच में बल्कि उससे भी अधिक टी-20 मैच में होता है। इसी प्रकार कथाकार की लेखन-कला की वास्तविक परीक्षा उपन्यास या कहानी लेखन द्वारा ही होती है, लेकिन लघुकथा का रोमांच उसे अत्यंत लोकप्रिय बना देता है।

• लघुकथा का प्रारम्भ तभी से माना जाना चाहिए, जब से इस विधा के लिए 'लघुकथा' अभिधान का प्रयोग प्रारम्भ हुआ। इस दृष्टि से सन् 1938 में प्रकाशित 'इन्द्रधनुष के नीचे' को हिन्दी की प्रथम लघुकथा तथा इसके लेखक नित्यानन्द को हिन्दी का प्रथम लघुकथाकार माना जा सकता है। नित्यानन्द द्वारा रचित 'इन्द्रधनुष के नीचे' शीर्षक रचना इलाहाबाद (उ. प्र. ) से प्रकाशित होने वाले मासिक पत्र 'विशाल भारत' के सितम्बर, सन् 1938 के अंक में फिलर के रूप में प्रकाशित हुई थी। संयोग से, बनारस (उ.प्र.) से प्रकाशित होने वाली 'हंस' पत्रिका ने अगले ही महीने यानी अक्टूबर में इसे 'विशाल भारत' से साभार प्रकाशित करते हुए, इस नन्हीं कथा-विधा को 'लघुकथा' नाम भी दे दिया।

सौजन्यवश

'लघुकथाकार रामनिवास 'मानव' विशेषांक' के रूप में 'पवनवेग' का यह अंक आपको सौंपते हुए हमें बड़ा हर्ष हो रहा है। इसके माध्यम से, रामनिवास 'मानव' की चुनिन्दा लघुकथाओं से तो पाठकों का साक्षात्कार होगा ही. लघुकथा के सम्बन्ध में इनके विचारों से भी वे अवगत हो सकेंगे। सुशील राजेश का एक लेख 'मानव' का लघुकथा-संसार' भी दिया गया है, जो इनकी लघुकथा-रचनाधर्मिता की जांच-परख कर मूल्यांकन प्रस्तुत करता है।

रामनिवास 'मानव' मूलतः कवि हैं, किन्तु लघुकथा-लेखन में भी इनकी अच्छी गति है। हिन्दी की अनेक उत्कृष्ट पत्र-पत्रिकाओं में इनकी लगभग दो दर्जन लघुकथाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। कुछ लघुकथाएं आकाशवाणी से प्रसारित और संकलनों में संकलित भी हुई हैं। लघुकथा के स्वरूप और स्थिति के सम्बन्ध में इन्होंने अनेक विवेचनात्मक लेख लिखे हैं, जो इनकी चुनी हुई लघुकथाओं के साथ 'लघुकथा' के रूप में प्रकाशनाधीन हैं।

किसी भी रचनाकार का महत्त्व उसकी रचनाओं की संख्या से नहीं, स्तर से आँका जाता है। यह प्रसन्नता की बात है कि 'मानव' की लघुकथाएं भाव-भाषा और शैली - शिल्प, सभी की दृष्टि से आश्वस्त करती हैं। इनके लेख भी अपनी तर्कपूर्ण शैली, सूक्ष्म विवेचन एवं विषय की पकड़ के कारण प्रभावशाली बन पड़े हैं। 'मुक्ति', 'टॉलरेन्स', 'व्यवस्था', 'अच्छा', 'समझदारी' जैमी इनकी लघुकथाएँ जहाँ हिन्दी की श्रेष्ठतम लघुकथाओं के समकक्ष रखी जा सकती हैं, वहीं इनके लेख भी अद्वितीय हैं ।

- सम्पादक

आलेख : सुशील राजेश

'मानव' का लघुकथा-संसार

हरियाणा के लघुकथा - साहित्य की श्रृंखला में एक नई कड़ी जोड़ने के प्रयोग में रामनिवास 'मानव' निरन्तर प्रयत्नशील हैं। इधर-उधर पत्र-पत्रिकाओं में लघुकथा - सृजन के साथ-साथ इसके रचना - शिल्प एवं स्वरूप- विवेचन को लेकर रामनिवास का योगदान वस्तुतः प्रशंसनीय कहा जा सकता है। रचनाकार का परिवेश, संस्कार, विस्तृत गहन चिन्तन आदि कुछ मुद्दे इतने जरूरी हैं, जो उसकी रचनाधर्मिता को संस्कारित एवं परिमार्जित करते हैं। रामनिवास की रचनाओं में इनका व्यक्तित्व, जो कभी विद्रोही है, कभी संयत, तो कभी गम्भीर, पूर्णत: प्रतिबिम्बित होता है। इसका यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि इनकी लघुकथाएं निजता या निजी जीवन की घटनाओं तक ही सीमित रह गई हैं, बल्कि पूरे परिवेश, समुदाय और वर्ग को प्रतिनिधित्व प्रदान करती हुई, सार्वभौमिक यथार्थ-बोध से सम्बद्ध प्रतीत होती हैं। 'मानव' की 'टॉलरेन्स', 'मुक्ति', 'व्यवस्था', 'धर्म परिवर्तन', 'अच्छा' आदि कुछ विशेष उल्लेखनीय लघुकथाएं हैं, जिनमें अधुनातन सामाजिक यथार्थ-बोध, असंगतियों, विद्रूपताओं एवं अधूरी ज़िन्दगी के चित्र बड़ी सजीवता से चित्रित किये गये हैं। इनमें भावों की गहराई, संप्रेषणीयता की तीव्रता, अनुभूति की पैठ और प्राणवत्ता है। 'धर्म परिवर्तन' में ओढ़े हुए या जबरन थोप दिये गये धार्मिक खोखलेपन की कहानी है, जिसे हर रोज कोई-न-कोई खाली पेट उदरापूर्ति के लिए अपना तो लेता है, किन्तु उस पर व्यंग्य से हंसता भी है। 'अच्छा' का कथ्य आर्थिक तंगियों के ईद-गिर्द घूमता है और एक वर्ग - विशेष की मानसिकता से जुड़ा है। 'मुक्ति' एक विरोधीभासी रचना है। अन्ततः मजूदरों को एक जगह से 'मुक्ति' दिलाकर क्या नेता लोग उन्हें भुखमरी और बेबसी से त्राण दिला सकते हैं? यह प्रश्न है, जो इस लघुकथा में बड़ी खूबी के साथ अभिव्यंजित हुआ है। कविता का वास सौन्दर्य में निहित रहता है और कवि की अनुभूतियों के संस्पर्श से उसमें निखार आता है। इस शास्त्रीय ढंग के कथ्य को 'कवि का जन्म' नामक लघुकथा में बड़ा प्यारा प्रस्तुतिकरण मिला है।

कहना न होगा कि रामनिवास का लघुकथा-संसार व्यापक एवं बहुआयामी है। लेकिन कहीं-कहीं विचार-तत्त्व की प्रधानता ने लघुकथा की मूल संवदेना को दबा-सा दिया है। वस्तुतः लघुकथा कोई विचार या सिद्धान्त रूप नहीं है, उसमें कथात्मकता का समावेश अत्यावश्यक है। कथा तत्त्व के अभाव में लघुकथा का पूरी ईमानदारी के साथ निर्वाह कर पाना आग्रह तो हो सकता है, लेकिन स्वतः भाव-उच्छलन नहीं। 'नियति', 'आश्रय' आदि कुछेक लघुकथाएं मात्र विचारों का पोषण करती हैं, कथात्मकता का निर्वाह नहीं। शायद चिन्तन की अतिरेकता के क्षणों में 'मानव' ने इन रचनाओं को जन्म दिया हो । कुल मिलाकर, रामनिवास 'मानव' के प्रयास अनेक संभावनाओं को जन्म देते हैं। और भविष्य के प्रति आश्वस्त करते हैं । कविता, कहानी, निबन्ध आदि के साथ-साथ हरियाणा के लघुकथा - साहित्य को इनसे बड़ी अपेक्षाएं हैं।

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